राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2462/2011
(जिला उपभोक्ता फोरम, गौतमबुद्ध नगर द्वारा परिवाद संख्या-413/2010 में पारित आदेश दिनांक 05.09.2011 के विरूद्ध)
1. Fortis Health Management Companies Act, 1956 having its
office at:
Escort Heart Institute & Research Centre, Okhla Road, New Delhi.
2. Dr. Manoj Singhal Sector-62, Noida District: Gautam Budh Nagar
Uttar Pradesh. .........अपीलार्थी@विपक्षी
बनाम्
1. Neeraj Kumar Sindhu s/o Late Sh. Ramvir Singh
2. Smt. Veena Sindhu w/o Late Sh. Ramvir Singh
both residents of:
H.No. 497 Gali No. 1, Shivpuri Modi Nagar. Tehsil Modi Nagar
District: Ghaziabad. ........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :श्री नीरज कुमार सिन्धु
दिनांक 14.08.2015
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम गोतमबुद्ध नगर के परिवाद संख्या 413/2010 में पारित निर्णय एवं आदेश दि. 05.09.2011 के विरूद्ध योजित की गई है। जिला मंच द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया:-
'' परिवादीगण का परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को संयुक्त रूप से व पृथक-पृथक रूप से आदेश दिया जाता है कि वह परिवादीगण को रू. 364075/- अदा करें तथा रू. 5000/- वाद व्यय के रूप में भी अदा करें।''
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी संख्या 1 के पिता व परिवादी संख्या 2 के पति श्री रामवीर सिंह के दोनों गुर्दे प्रत्यारोपित थे। तदोपरांत वे पूरी तरह से स्वस्थ जीवन बिता रहे थे। वे दि. 02.12.09 तक जनता आदर्श इंटर कालेज मेरठ में प्रधानाचार्य के रूप में कार्यरत थे। दि. 07.12.09 को श्री रामवीर सिंह को बुखार व खांसी की शिकायत हुई। दि. 08.12.09 को विपक्षी संख्या 1/अपीलार्थी के अस्पताल में भर्ती किया गया जहां पर विपक्षी संख्या 2/अपीलार्थी संख्या 2 की देखरेख में उपचार शुरू हुआ व तबियत स्थिर होने पर दि.
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13.12.09 को डिस्चार्ज किया गया। दि. 16.12.09 को रामवीर की तबियत फिर खराब हुई, जबकि दि. 13.12.09 की बतायी गयी दवाईया चल रही थी। दि. 18.12.09 को सांस लेने में परेशानी होने के कारण विपक्षी संख्या 1 के इमरजैन्सी वार्ड में भर्ती कराया गया। विपक्षी संख्या 2 की देखरेख में इलाज शुरू हुआ। दि. 20.12.09 को मरीज की नाक में खून आने लगा तब डा0 मनोज सिंघल विपक्षी संख्या 2 चैकअप के लिए आये और मरीज को आई0सी0यू0 में भर्ती किया गया और इलाज हुआ। दि. 22.12.09 को प्रात: 11 बजे विपक्षीगण ने परिवादी संख्या 1 को सूचना दी कि श्री रामवीर सिंह को स्वाईन फ्लू हो गया है। परिवादी के अनुसार विपक्षीगण ने आगे इलाज से मना किया और अन्य अस्पताल ले जाने के लिए परिवादी पर दबाव बनाया। परिवादी के अनुसार एच-1 व एन-1 की रिपोर्ट दि. 21.12.09 को शाम 7.00 बजे प्राप्त हो चुकी थी और इसके बावजूद भी जांच रिपोर्ट के आधार पर विपक्षीगण ने कोई निर्णय नहीं लिया जो आवश्यक था। परिवादी ने 22.12.09 को सायं 6 बजे राम मनोहर लोहिया अस्पताल दिल्ली में भर्ती कराया गया। परिवादी के अनुसार विपक्षीगण ने रामवीर सिंह का उपचार करने के बजाय उसे अपने अस्पताल से निकालने में रूचि ली और इलाज की ओर ध्यान नहीं दिया। दि. 28.12.09 को विपक्षीगण द्वारा उपचार में लापरवाही बरते जाने के कारण श्री रामवीर सिंह का देहांत हो गया। परिवादी ने कहा कि दि. 08.12.09 को इलाज शुरू करने के समय यदि विपक्षी ने एच-1 व एन-1 टेस्ट करा लिया होता और जांच के अनुसार इलाज किया गया होता तो श्री रामवीर सिंह को बचाया जा सकता था। परिवादीगण के अनुसार विपक्षीगण ने ऐसा न करके सेवा में चूक की है। डिस्चार्ज स्लिप में श्री रामवीर सिंह की डायलिसिस करने का उल्लेख किया गया था जबकि दि. 18.12.09 से 13.12.09 के मध्य श्री रामवीर सिंह की डायलिसिस नहीं हुई थी। विपक्षीगण के इस कृत्य को भी उपेक्षा का आचरण बताया।
विपक्षीगण ने संयुक्त रूप से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया। परिवाद को झूठे और गलत तथ्यों पर आधारित बताया। विपक्षीगण के अनुसार मृतक मरीज की आयु 58 वर्ष थी। वर्ष 2002 व 2003 में गुर्दे का प्रत्यारोपण हो चुका था। विपक्षीगण के अनुसार उन्होंने मरीज को अच्छे से अच्छा उपचार दिया। उपचार के परिणामस्वरूप मरीज की दशा में सुधार हुआ जिसके कारण मरीज का स्वास्थ्य स्थिर हो गया और उसे मरीज के सहयोगियों के अनुरोध पर दि. 13.12.09 को स्थिर स्वास्थ्य की स्थिति में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
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विपक्षीगण के अनुसार श्री रामवीर सिंह मरीज दि. 18.12.09 को अस्पताल में पुन: भर्ती हुये, उस समय खांसी की शिकायत की तथा सांस लेने में तकलीफ थी। उनका उपचार एन्टीबायटिक द्वारा किया गया। विपक्षीगण के अनुसार दि. 20.12.09 को मरीज की नाक से खून आना प्रारंभ हुआ जो कि तत्काल नियंत्रित कर लिया, तदोपरांत ही ई.एन.टी. स्पेशलिस्ट से जांच करायी गई, उनके द्वारा बताया गया कि नाक में सूखेपन के कारण खून आ रहा है। दि. 20.12.09 को आईसीयू में भर्ती कर दिया गया और इसी मध्य स्वाइन फ्लू की महामारी फैली होने के कारण मरीज का नमूना लिया गया। एच-1 व एन-1 की जांच रिपोर्ट दि. 22.10.09 को प्रात: प्राप्त हुई तो विपक्षीगण ने तत्काल ही मरीज को सरकार द्वारा एच-1 व एन-1 के उपचार हेतु अधिकृत किये गये केन्द्र पर उपचार हेतु भेज दिया। विपक्षीगण ने यह भी कहा कि मरीज के अनुरोध पर उसे अपोलो अस्पताल भेजा गया था। विपक्षी की ओर से कहा गया कि दि. 08.2.09 को भर्ती के समय मरीज को एच-1 व एन-1 फ्लू का संदेह होने का कोई कारण नहीं था। विपक्षी ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दिये गये दिशा निर्देशों के प्रकाश में रोगी की दशा श्रेणी बी के अंतर्गत आती थी, अत: सामान्य रूप से जांच एच-1 व एन-1 के कराने की आवश्यकता नहीं समझी गयी। विपक्षी ने कहा कि मरीज की डिस्चार्ज स्लिप में गलती से डायलिसिस को होना लिख गया है। यह संभावना बतायी है कि मरीज के साथ और उसके सहयोगियों के साथ डायलिसिस करने के संदर्भ में चर्चा हुई थी, उसी के परिणामस्वरूप डायलिसिस होना लिख गया है। विपक्षीगण ने कहा कि परिवादी के नोटिस का सही उत्तर दे दिया गया था।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता दि. 14.08.2014 से ही उपस्थित नहीं आ रहे हैं। प्रत्यर्थी संख्या 1 स्वय उपस्थित हुए। पीठ ने प्रत्यर्थी को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों एवं अभिलेखों का परिशीलन किया।
जिला मंच का निर्णय दि. 05.09.11 का है, अपील दि. 15.12.11 को प्रस्तुत की गई है। इस प्रकार अपील 2 माह से अधिक विलम्ब से प्रस्तुत की गई है। अपीलार्थी ने अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब को क्षमा करने के लिए प्रार्थना पत्र दिया है जो शपथपत्र से समर्थित है। प्रत्यर्थी ने विलम्ब क्षमा के प्रार्थन पत्र पर अपनी आपत्ति प्रस्तुत की है। अपीलार्थी ने अपने प्रार्थना पत्र में विलम्ब को क्षमा किए जाने के पर्याप्त कारण दर्शाए हैं, जो स्वीकार योग्य है, अत: विलम्ब को क्षमा किया जाता है।
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अपीलार्थी ने अपने अपील के आधार में यह कहा है कि जिला मंच ने इस तथ्य को ध्यान नहीं दिया है कि रोगी गुर्दे की समस्या से ग्रस्त था और इस तरह के रोगी में संक्रमण की संभावना रहती है। रोगी को वे समस्त उपचार दिए जो उसकी स्थिति को देखते हुए देने चाहिए थे। जब रोगी दि. 08.12.09 को पहली बार भर्ती हुआ था तो उसे बुखार, कफ व सांस लेने में तकलीफ थी। जब रोगी दि. 18.12.09 को दुबारा भर्ती हुआ तो उसके बुखार नहीं था। चूंकि रोगी का ' इम्यून सिस्टम ' अत्यंत कमजोर था, उसको रिकवर होने में ज्यादा समय लग रहा था। अपीलार्थी द्वारा स्वाइन फ्लू के संबंध में जो दिशा निर्देश दिए गए थे, उनका पालन किया गया। जिला मंच ने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि यह सत्य नहीं है कि प्रत्येक रोगी जो कि बुखार, कफ और सांस लेने की परेशानी ग्रस्त है वह एच 1 एन 1 पाजीटिव ही होगा। जब रोगी दि. 08.12.09 को अस्पताल में भर्ती हुआ तो लक्षणों के दृष्टिगत उसका उपचार किया गया था। जब रोगी द्वारा दिए गए उपचार का असर नहीं हुआ तभी खून का सैम्पल एच 1 एन 1 टेस्ट के लिए भेजा गया था। यह कहना गलत है कि रोगी की मृत्यु दि. 08.12.09 को रोगी के सैम्पल एच 1 एन 1 टेस्ट के लिए न भेजे जाने के कारण हुआ।
यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी संख्या 1 के पिता जो कि प्रत्यर्थी संख्या 2 के पति थे, के दोनों गुर्दों का प्रत्यारोपण हुआ था। श्री रामवीर सिंह रोगी को बुखार व खांसी की शिकायत होने पर दि. 08.12.09 को अपीलार्थी के अस्पताल में भर्ती किया गया जहां अपीलार्थी संख्या 2 की देखरेख में उपचार हुआ। दि. 13.12.09 को रोगी को अपीलार्थी के अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया उस समय उसकी स्थिति सुधर चुकी थी, परन्तु दि. 16.12.09 को पुन: तबीयत खराब हुई, तब रोगी रामवीर सिंह को दि. 18.12.09 को पुन: अपीलार्थी के अस्पताल में भर्ती कराया गया। अभिलेखों एवं उभय पक्षों के कथन से यह स्पष्ट है कि दि. 18.12.09 को भर्ती के बाद उसके कई टेस्ट, एक्सरे, सी.टी. स्कैन इत्यादि कराए गए तथा दि. 20.1.09 को मरीज की नाक से खून आने पर उसे आई.सी.यू. में भर्ती किया गया। जब स्थिति में सुधार नहीं आया तब यह निर्णय लिया गया कि मरीज का एच 1 एन 1 की जांच करा लिया जाए। दि. 22.12.09 को परिवादी संख्या 1/प्रत्यर्थी संख्या 1 को यह सूचना दी गई कि मरीज को स्वाइन फ्लू हो गया है।
इस प्रकरण में मुख्य विवाद का बिन्दु यह है कि यदि अपीलार्थी के अस्पताल में
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चिकित्सक द्वारा रोगी के भर्ती के समय दि. 08.12.09 को यदि स्वाइन फ्लू की जांच करा ली जाती तो उसी के अनुसार इलाज होता और स्वाइन फ्लू से रोगी की मृत्यु न होती। अपीलार्थी ने जांच न कराकर लापरवाही कर सेवा में कमी की।
इस प्रकरण में यह देखा जाना है कि क्या मरीज चिकित्सीय अपेक्षा का शिकार हुआ है और क्या अपीलार्थी अस्पताल एवं चिकित्सक द्वारा रोग के निदान के लिए अपनी व्यावसायिक कुशलता तथा ज्ञान का न्यायोचित उपयोग नहीं किया है और क्या चिकित्सक ने अपने कर्तव्य का निर्वहन अपनी कुशलता तथा सक्षमता की सामान्य मात्रा का उपयोग नहीं किया। अभिलेखों एवं उभय पक्षों के कथनों से यह सिद्ध है कि मरीज विपक्षी के अस्पताल में दि. 08.12.09 को भर्ती हुआ। भर्ती के समय मरीज को खांसी व सांस लेने में तकलीफ थी और बुखार भी था। भर्ती के उपरांत चिकित्सकों ने मरीज की तत्काल जांच करायी और यह पाया कि वायरल इन्फेक्शन मरीज को है और यह पाया गया कि वायरल इन्फेक्शन और इन्फुलेन्जा था। मरीज को उपचार दिया गया, उपचार के परिणामस्वरूप मरीज की दशा में सुधार हुआ, जिसके कारण मरीज का स्वास्थ्य स्थिर हो गया और दि. 13.12.09 को मरीज रामवीर सिंह को डिस्चार्ज किया गया था, तब उसकी स्थिति ठीक थी और दि. 16.12.09 को पुन: उसकी तबियत खराब हुई। इससे यह सिद्ध होता है कि जो इलाज चिकित्सक ने मरीज को दिया, उसको मरीज ने ' रिसपान्ड ' किया था। प्रत्यर्थीगणों द्वारा दि. 18.12.09 को पुन: अपीलार्थी के अस्पताल में भर्ती कराया गया। इससे यह भी सिद्ध होता है कि प्रत्यर्थी/अपीलार्थी द्वारा दिए जा रहे इलाज से संतुष्ट थे। दि. 18.12.09 को भर्ती होने के पश्चात पुन: एक्सरे, एबीजी एवं सी.टी. स्कैन किए गए। दि. 20.12.09 को मरीज की नाक से खून आना प्रारंभ हुआ, जिसे तत्काल नियंत्रित किया गय। ई.एन.टी. स्पेशलिस्ट से जांच करायी गई। दि. 20.12.09 को आई.सी.यू. में भर्ती कराया गया और इस बीच मरीज का सैम्पल एच 1 एन 1 की जांच के लिए लिया गया। ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि जिन तिथियों में मरीज अस्पताल में भर्ती रहा, चिकित्सक या हास्पिटल प्रबंधक द्वारा कोई लापरवाही बरती गई हो। यह सत्य है कि जिस समय मरीज भर्ती हुआ स्वाईन फ्लू फैला हुआ था, परन्तु भारत सरकार के महानिदेशक स्वास्थ्य सेवाओं ने एच 1 एन 1 मरीजों की श्रेणीबद्धता जो कि टेस्टिंग आइसोलेशन, होम केयर, हास्पिटलाईजेशन के लिए थी(पुनरीक्षित दि. 05.10.09) के दिशा निर्देशों के क्रम में ऐसा प्रतीत नहीं होता कि
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अपीलार्थी द्वारा इन दिशा निर्देशों का उल्लंघन किया गया हो। चिकित्सक लक्षणों एवं कराई गई जांच के आधार पर उपचार कर निर्णय लेते है। बुखार, कफ, सांस लेने में तकलीफ आदि की शिकायत पर सभी मरीजों का एच 1 एन 1 टेस्ट कराया जाए, ऐसा न तो संभव हो पाता है और न ही शासन के स्वास्थ्य विभाग के ऐसे दिशा निर्देश ही थे।
इस प्रकार उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर हम यह पाते हैं कि मरीज के इलाज में अपीलार्थी ने कोई लापरवाही नहीं बरती, केवल इस आधार पर कि यदि दि. 08.12.09 को स्वाईन फ्लू की जांच करा ली गई होती तो मरीज की मृत्यु नहीं होती प्रत्यर्थीगणों की सेवाओं में कमी मानना न्यायसंगत नहीं होगा। इस संबंध में मा0 राष्ट्रीय आयोग, नई दिल्ली ने " The Chief Medical Officer, Ehirc & Anr. v/s Ramesh Chand Sharma रिवीजन पिटीशन नं0 3602/2008 में निम्नानुसार अवधारित किया है :-
A doctor need not be held neigligent simply because something went wrong. The Hon'ble Apex Court, as well as this Commission in a catena of decisions has held that, the doctor is not liable for negligence because of someone else of better skill or knowledge would have prescribed a different treatment or operated in a different way. He is not guilty of negligence if he has acted in accordance with the practice accepted as proper by a reasonable body of medical professionals. We put reliance upon, the case of Dr. Laxman Blkrishna vs Dr Trimbak, AIR 1969 SC 128, Hon'ble Supreme Court has held the above view. In the case of Indian Medical Association v/s V.P. Shanta (1995) 6 SCC 651, the Hon'ble Supreme Court has decided that the skill of a medical practitioner differs from doctor to doctor and it is incumbent upon the complainant to prove that a doctor was negligent in the line of treatment that resulted in the life of the patient. "
उपरोक्त विवेचना के दृष्टिगत हम यह पाते हैं कि अपील स्वीकार किए जाने योग्य है तथा जिला मंच का निर्णय/आदेश दि. 05.09.11 निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच का निर्णय/आदेश दि. 05.09.11 निरस्त किया जाता है।
(राम चरन चौधरी) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-5