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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 187 सन् 2015
प्रस्तुति दिनांक 20.10.2015
निर्णय दिनांक 29.01.2021
रईशा पत्नी मोo इब्राहिम साकिन- बनावां, थाना- गम्भीरपुर, पोस्ट- विसहम, जनपद- आजमगढ़।
......................................................................................परिवादिनी।
बनाम
- नाजमा हास्पिटल आराजी बाग स्टेडियम के सामने वाली गली में मिल्लतनगर (ब्रह्मस्थान) आजमगढ़ बजरिए मालिक/संचालक।
- डॉo जोरार अहमद (बाल रोग विशेषज्ञ) नाजमा हास्पिटल आराजी बाग स्टेडियम के सामने वाली गली में मिल्लतनगर (ब्रह्मस्थान) आजमगढ़।
- दि ओरिएण्टल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड 4ईo/14 आजाद भवन अन्डेवाला इम्परेशन नई दिल्ली 110055।
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उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसका लड़का मुo आरिफ 10 साल का था। जो कि पूरी तरह से स्वस्थ था। उसे बुखार आने लगा तो वह विपक्षी संख्या 02 के यहाँ गयी। उसके लड़के को विपक्षी संख्या 02 डॉo जोरार अहमद द्वारा चिकित्सा हेतु उसी दिन भर्ती कर लिया गया बच्चे को मात्र हल्का बुखार व उल्टी की शिकायत थी। जिसका परीक्षाणोपरान्त बच्चे की कुछ टेस्ट रिपोर्ट हेतु त्यागी पैथोलाजी आराजीबाग के यहां रेफर किया गया। पैथोलाजी सेन्टर द्वारा परीक्षण रिपोर्ट के उपरान्त उसी दिन विपक्षी संख्या 02 की सलाह पर बच्चे का एक्सरे करवाया गया। एक्सरे रिपोर्ट मेंर बच्चे की स्थिति सामान्य दर्शायी गयी। उसी दिन विपक्षीगण की सलाह पर बच्चे के सम्पूर्म उदर का अल्ट्रासोनोग्राफी भी करायी गयी। उसमें भी स्थिति सामान्य पायी गयी। विपक्षी संख्या 02 द्वारा बच्चे का इलाज किया जा रहा था परन्तु बच्चे की स्थिति में किसी प्रकार का सुधार नहीं हुआ। दो दिन व्यतीत हो जाने के बाद विपक्षी से इस बात की शिकायत की गयी और लड़के की स्थिति न सुधरने पर अन्य डाक्टर या अस्पताल में ले जाने की बात किया तो विपक्षी संख्या 01 ने कहा कि क्यों अन्यत्र ले जाएंगे लड़का मेरे इलाज से ठीक हो जाएगा। दिनांक 28.05.2015 को स्थिति में सुधार न होते
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देख विपक्षीगण से बार-बार बच्चे को डिस्चार्ज करने की बात कही गयी क्यों कि लड़के की स्थिति में सुधार न होकर उसकी हालत बिगड़ती चली जा रही है। इस पर विपक्षीगण संख्या 02 ने कहा कि लड़के का प्रताप डाइग्नोसिस सेन्टर सिविल लाइन आजमगढ़ को रेफर कर रहा हूँ वहाँ बच्चे की सोनोग्राफी पुनः कराईये सोनोग्राफी होने के बाद वह तथ्य प्रकाश में आया कि बच्चे की किडनी में संक्रमण की वजह से किडनी खराब होने के लक्षण पाए गए। बच्चे की तमाम टेस्ट रिपोर्ट एक्सरे अल्ट्रासाउन्ड एवं सोनोग्राफी विपक्षीगण संख्या 02 की सलाह पर करायी गयी उसके अनुरूप बच्चे के किडनी में प्रारम्भिक तौर पर किडनी में कोई दोष नहीं था। किडनी सामान्य दशा में थी। किडनी के संक्रमण होने की बात की जानकारी होने पर विपक्षीगण से शिकायत की बात की। इसके पूर्व किडनी की कोई बीमारी बच्चे में नहीं थी और अस्पताल में आप द्वारा नियमित निदान व चिकित्सा की जाती रही। किडनी में संक्रमण आने की वजह गलत चिकित्सा का परिणाम है। बच्चे की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ और स्थिति बिगड़ती जा रही थी। इसके बावजूद विपक्षी संख्या 02 इस बात का आश्वासन देता रहा कि कुछ दवाएं चली हैं जिनका साइड इफेक्ट हो गया है। पुनः मेरी दवा में बच्चा ठीक हो जाएगा। आप लोग परेशान न हों लेकिन बच्चे की बिगड़ती दशा को देखकर काफी निवेदन के पश्चात् विपक्षीगण द्वारा दिनांक 28.05.2015 को अर्ध रात्रि में विपक्षीगण द्वारा सर्वोदय हास्पिटल अर्दली बाजार वाराणसी के लिए रेफर किया जहाँ दिनांक 28.05.2015 को सर्वोदय हास्पिटल के डाइग्नोसिस सेन्टर द्वारा कुछ जाँच बच्चे की की गयी। उसकी बिगड़ती दशा देखकर 29.05.2015 को हवाई जहाज द्वारा लड़के को लाकर सफदरजंग अस्पताल नई दिल्ली में भर्ती कराया गया जहाँ बच्चे का इलाज होता रहा। अन्त में 02.06.2015 को बच्चे की मृत्यु हो गयी। सर्वोदय हास्पिटल वाराणसी के डाक्टरों व सफदरगंज अस्पताल नई दिल्ली के डाक्टरों द्वारा दौरान इलाज पाया कि प्रारम्भ में ही विपक्षीगण द्वारा गलत निदाव व चिकित्सा में दी गयी हैवी डोज की दी गयी दवाओं के कारण बच्चे की किडनी में संक्रमण पैदा हुआ तथा असावदानी पूर्वक किए गए इलाज के कारण स्तिति अत्यन्त विगड़ जाने के कारण परिणाम स्वरूप बच्चे की मृत्यु हो गयी निदान जाँचोपरान्त बताया गया कि विपक्षीगण द्वारा दिनांक 26.05.2015 से 28.05.2015 तक प्रार्थिनी के लड़के को असावधानिक व लापरवाही एवं दोषपूर्ण निदान व चिकित्सा के कारण उसकी मृत्यु हुई। बच्चे के मृत्यु हो जाने के पश्चात् विपक्षी संख्या 02 द्वारा गलत चिकित्सा निदान व गलत दी गयी दवाओं की जानकारी हो जाने पर विपक्षीगण से मिलकर बच्चे की इलाज सम्बन्धित छायाप्रति प्राप्त करने हेतु कहा गया परन्तु विपक्षीगण कागजात देने से आना-कानी करते हुए इंकार करता रहा। जब उसे
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उच्चाधिकारियों को इस सम्बन्ध में शिकायत करने की बात कही गयी तो दिनांक 06.06.2015 को विपक्षीगण द्वारा बेड टिकट तैयार कराकर आठ घण्टे बाद दिया गया। जिसमें तिथियों का अंकन ओवर राईटिंग द्वारा किया गया है तथा और किसी अन्य मरीज के बेड हेड टिकट पर अंकित नाम की जगह उसे काटकर तथा तिथियों में ओवर राइटिंग में संशोधन कर दिया गया है और विपक्षीगण द्वारा दिए गए प्रपत्रों में गलत ढंग से किसी यश मेडिकल स्टोर जनपद जौनपुर द्वारा खरीदी गयी दवाओं के कैशमेमो को संलग्न कर दिया गया है। बच्चे की सोनोग्राफी एवं चेस्ट एक्सरे आदि के अनुसार दिनांक 26.05.2015 तक लड़के की दशा सामान्य थी तता वह किडनी आदि से संक्रमित नहीं था। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा गलत चिकित्सा एवं गलत दवाओं के प्रयोग में लाने के वजह से प्रार्थिनी के लड़के की किडनी संक्रमित हुई जिसके फलस्वरूप लड़के की मृत्यु हो गयी। विपक्षीगण द्वारा अपने सेवा दायित्वों का निर्वहन कुशल ढंग से न करके घोर लापरवाही और चिकित्सा मानकों का घोर उल्लंघन कर गम्भीर सेवा त्रुटि की गयी है। जिससे उसके बच्चे की मृत्यु हो गयी है। अतः परिवादिनी को बच्चे के इलाज में व सम्पूर्ण एवं अन्य खर्च कुल पांच लाख रुपए बतौर क्षतिपूर्ति दिलवाया जाए। मानसिक व शारीरिक पीड़ा हेतु दो लाख रूपए। प्रार्थिनी के ममता व स्नेह आदि से वंचित होने के बाबत क्षतिपूर्ति एक लाख रुपया तथा अन्य भाग दौड़ में खर्च हुए बीस हजार रुपया कुल आठ लाख बीस हजार रुपया विपक्षीगण से दिलवाया जाए।
परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादिनी ने कागज संख्या 7/1 व7/2 इंडिगो एयर लाईन्स के टिकट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/3 सफदरजंग अस्पताल नई दिल्ली प्रवेश कार्ड की छायाप्रति, कागज संख्या 7/4पैथ लैबेस में टेस्ट रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/5 अम्बे मेडिसीन कार्नर सफदरजंग के दवा की पर्ची की छायाप्रति, कागज संख्या 7/6 क्लीनिकल पैथोलाजी के रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/7 मृतक सम्बन्धी कागजात की छायाप्रति, कागज संख्या 7/8 दवा की पर्ची की छायाप्रति, कागज संख्या 7/9 नाजमा हास्पिटल दिनांक 26.05.2015 को विपक्षी संख्या 02 को द्वारा जारी प्रमाण पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 7/10बेड हेड टिकट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/11-12 चिकित्सा सम्बन्धी प्रमाण पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 7/13 रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/14 टेस्ट करने के लिए दिए गए आदेश की छायाप्रति, कागज संख्या 7/15ता7/17 दवाओं के कैस मेमो की छायाप्रति जो आजमगढ़ में ही किसी मेडिकल स्टोर की है छायाप्रति, कागज संख्या 7/18
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यश मेडिकल स्टोर जौनपुर के कैस मेमो की छायाप्रति, कागज संख्या 7/19-20 इलाज के लिए लिखे गए दवाओं की छायाप्रति, कागज संख्या 7/21 त्यागी पैथालाजी आजमगढ़ द्वारा की गयी विडाल टेस्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/21 त्यागी पैथालाजी द्वारा हेमाटोलॉजी की रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/22 एक्सरे चेस्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/23 अल्ट्रासोनोग्राफी होल एबडोमेन की टेस्ट की रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/24-25 सर्वोदय हास्पिटल वाराणसी रेफरल पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 7/26 हेमाटोलॉजी रिपोर्ट की छायाप्रति तथा कागज संख्या 7/27 टेस्ट रिपोर्ट की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षीगण द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया है, जिसमें उसने यह कहा है कि दिनांक 26.05.2015 को सुबह परिवादिनी का बच्चा जिसका नाम मुo आरिफ पुत्र इब्राहिम था। जिसकी उम्र 10 वर्ष थी। बीमारी की अवस्था में लाया गया। जिसे लगभग एक माह से बुखार था। जिसका उपचार परिवादिनी अपने गांव के ही डाक्टर से करा रही थी। एग्जामिनेशन करने पर पता चला कि बच्चे को तेज बुखार है और उल्टी हो रही थी। मरीज की बीमारी लम्बी होने के कारण तथा पूर्व में किए गए इलाज का पर्चा न होने के कारण ब्राड स्पेक्ट्रम कवरेज के साथ एंटीबायोटिक तथा अन्य आवश्यक दवाएं दी गयी। मरीज की जाँच के बाद यह पाया गया कि मरीज को टाइफाइड का बुखार है जिसके कारण उसे पेट की सोनोग्राफी कराने के लिए विपक्षी द्वारा अपने हास्पिटल की पुरानी पर्ची पर ही दूसरे मरीज का नाम काटकर इस मरीज का नाम बहुमूल्य पेपर बचाने के उद्देश्य से किया गया। सोनोग्राफी के साथ साथ एक्सरे भी कराया गया जिसकी रिपोर्ट सामान्य आई। किन्तु सोनोग्राफी मे एनलाइज्ड लिंफ नोड्स पाए गए। दिनांक 28.05.2015 को मरीज के पेट का दर्द बने रहने के कारण दुबारा अपनी ओ.पी.डी. के बचे हुए पर्चे पर पुराने मरीज का नाम व दिनांक काटकर इस मरीज का नाम व दिनांक लिखकर दूसरे डायग्नोस्टिक सेंटर से जांच कराई गयी। जिसकी रिपोर्ट में टी.वी. के साथ मेडिकर रेनल डिजीज ग्रेड 1 पाई गयी। मरीज के अभिभावक को यह बताया गया कि दिनांक 28.05.2015 की रिपोर्ट में मरीज की पेट की टी.बी. व गुर्दे में हल्की सी सूजन आ रही है। इसलिए आप अपने बच्चे को किसी सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल में ले जाए। जहाँ पर हर रोग के स्पेशिलिस्ट डाक्टर मौजूद रहते हैं। विपक्षी द्वारा यह मरीज के अभिभावकों को सलाह दी गयी कि लम्बे समय की बीमारी के कारण यह बीमारी बढ़ रही है। जिसके बेहतर इलाज के लिए एस.जी.पी.जी. आई.लखनऊ ले जाए किन्तु मरीज के अभिभावक द्वारा एस.पी.जी.आई. लखनऊ जाने से यह कहते हुए मना कर दिया गया कि वहाँ पर बहुत सारी जाँच कराते हैं। उसके बाद इलाज करते हैं। इन सबके पश्चात्
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विपक्षी ने सूर्योदय हास्पिटल वाराणसी ने दिनांक 28.05.2015 को रेफर कर दिया और अपने यहाँ हुए इलाज का बिल बाउचर वगैरह मरीज के अभिभावक को दे दिया। यहाँ यह भी उल्लेख करना समीचीन है कि उस समय विपक्षी के हास्पिटल में नए कम्प्यूटर में इन्स्टॉल करने के दौरान आई खराबी के कारण डाटा तो उत्तरदाता विपक्षी के हास्पिटल का था। किन्तु मेडिकल स्टोर का नाम गलत प्रिंट हो गया जिसे जल्दीबाजी में नहीं देखा जा सका। जिसे मरीज के मामा ने देखा तथा कहा कि यह यश मेडिकल स्टोर का बिल है। आप अपने हास्पिटल का बिल दीजिए। यह जानने पर विपक्षी द्वारा शिब्ली एकेडमी के कम्प्यूटर विभाग में कार्यरत हमदान जो विपक्षी के कम्प्यूटर की देखरेख करते हैं को बुलाया गया तता समस्या बताई गयी जिस पर उनके द्वारा बताया गया कि इन्फोटेक मेडिकल सॉफ्टवेयर जो वाराणसी के मिस्टर शशि द्वारा इंस्टॉल किया गया है, में आई खराबी के कारण ऐसा हुआ है। इस त्रुटि के सम्बन्ध में बच्चे के मामा को मिस्टर हमदान ने बताया और समझाया तथा दूसरे कम्प्यूटर से नजमा हास्पिटल के नाम से सभी बिल निकाल कर दे दिए। किन्तु उनके द्वारा विपक्षी के यहाँ हुए दवा व इलाज का एक भी पैसा नहीं दिया गया तथा यह कहा गया कि पैसा बाद में आकर दे जाएंगे। जून के दूसरे सप्ताह में मोहम्मद इब्राहिम 15-20 लोगों को साथ लेकर विपक्षी के हास्पिटल पर आए और कहने लगे कि उनके बच्चे की मृत्यु हो गयी है और बच्चे के इलाज में यहाँ से लेकर वाराणसी और दिल्ली तक लगभग 5,00,000/- रुपए खर्च हुआ है जिसे दे दो अन्यथा आपके परिवार को मार डालूंगा और मीडिया को बुलाकर आपके अस्पताल को बदनाम कर दूंगा। मोहम्मद इब्राहिम वली द्वारा यह भी कहा गया है कि आपने जो भी दवा इलाज किया है उसका सभी पेपर एक घण्टे के अन्दर देदें और अपने लेटर पैड पर यह भी लिख कर दें कि उसका बच्चा किस परिस्थिति में आया था और आपने किस परिस्थिति में उसे रेफर किया। इन लोगों के दबाव से वह भय के कारण विपक्षी द्वारा इलाज की पत्रावली की छायाप्रति, कराकर अपने पास रख के मूल पत्रावली उन्हें दे दिया। सभी पेपर लेने के बाद जाते समय इन लोगों ने कहा कि यदि एक सप्ताह के अन्दर पांच लाख रुपए नहीं दिए तो आपको अंजाम भुगतान पड़ेगा। इसके पश्चात् एक दिन विपक्षी के मोबाइल पर मरीज के अभिभावक का फोन आया तथा कहा कि अविलम्ब पैसे की व्यवस्था करिए नहीं तो आपको फर्जी मुकदमें में फंसा दिया जाएगा। इस सम्बन्ध में विपक्षी द्वारा मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष और सचिव डॉo अशोक सिंह से बात करके उन्हें अवगत भी कराया गया है। मरीज जब विपक्षी के हास्पिटल में आया तो रोग के लक्षण के अनुसार आवश्यक जाँच करके उचित व सही दवाएं दी गयी जिससे मरीज को कोई हानि नहीं पहुंच सकती थी। मरीज लम्बे समय से बीमार था तथा पहले
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से इलाज चल रहा था, जिसका इलाज विपक्षी द्वारा मात्र दो दिन करने के पश्चात् जाँच की रिपोर्ट के आधार पर आवश्यक होने के कारण उसे हायर सेंटर रेफर कर दिया गया जो कि आवश्यक था। इस प्रकार विपक्षी द्वारा इलाज में कोई लापरवाही नहीं की गयी है तथा सभी आवश्यक जाँच आदि कराते हुए व जरूरी दवाएं देते हुए आवश्यकतानुसार उचित समय से मरीज को हायर सेंटर के लिए रेफर कर दिया गया। जिसमें विपक्षी की कोई त्रुटि नहीं है। उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि परिवादिनी व उसके परिजनों द्वारा परिवाद पत्र न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हुए मात्र विपक्षीगण का नाजायज शोषण करने के उद्देश्य से दाखिल किया गया है। इस सम्बन्ध में यह भी स्पष्ट कराना है कि विपक्षीगण पर दबाव बनाने के उद्देश्य से विपक्षी संख्या 02 की शिकायत सी.एम.ओ. आजमगढ़ के समक्ष भी की गयी है जिसका जवाब विपक्षी संख्या 02 द्वारा श्रीमान् मुख्य चिकित्साधिकारी आजमगढ़ के समक्ष दिया जा चुका है। इसी प्रकरण में विपक्षी संख्या 02 के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज कराने हेतु माo सी.जे.एम. के न्यायालय में प्रार्थना पत्र भी अन्तर्गत धारा- 156 (3) दण्ड प्रक्रिया संहिता दाखिल किया गया है। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद में बंदिश मुकदमें की नीयत से अनावश्यक रूप से तथ्यों को तोड़-मड़ोर कर प्रस्तुत किया जा रहा है तथा गलत बयानी की जा रही है जो सत्यता से परे है तथा स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। इससे यह स्पष्ट है कि विपक्षी ने जो भी काम किया है वह सही किया है। इसके विरुद्ध परिवादिनी द्वारा किया गया कथन गलत है। प्रस्तुत परिवाद में मरीज के केस में विपक्षी द्वारा इलाज के दौरान कोई असावधानी बरतने का कोई भी साक्ष्य पत्रावली पर नहीं है एवं विपक्षी द्वारा मरीज का इलाज चिकित्सा शास्त्र के सर्वमान्य सिद्धान्तों के अनुसार किया गया है तथा यह सुस्थापित विधि है कि ऐसी स्थिति में डॉक्टर को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है और डाक्टर की लापरवाही साबित करने का भार सदैव परिवादी पर है। प्रस्तुत प्रकरण में मरीज का इलाज पूरी दक्षता व कुशलता से व पूरी सावधानी के साथ उचित चिकित्सकीय प्रक्रिया का पालन करके किया गया है। इस प्रकार परिवाद पत्र गलत तथ्यों पर प्रस्तुत किया गया है। अतः खारिज किया जाए।
विपक्षीगण द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादिनी द्वारा कथित सारे पर्चे पत्रावली में संलग्न हैं। दिनांक 26.05.2015 को आरिफ को नाजमा हास्पिटल में भर्ती कराया गया था और डॉक्टर ने एब्डोमेन के विषय में विवरण दिया है। ऊपर जो कटिंग है वह किसी दूसरे का नाम था, जिसे काटकर मृतक मरीज का नाम अंकित किया गया है। इस बात को विपक्षीगण
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ने अपने जवाबदावा में स्वीकार किया है। विपक्षी संख्या 02 ने जो भी इलाज किया है वह सम्पूर्ण टेस्ट करवाने के बाद ही दो दिनों तक इलाज किया और ठीक न होने के कारण मृतक का कागज संख्या 7/9 में मरीज को विपक्षी संख्या 02 के अस्पताल में भर्ती किया गया था। कागज संख्या 7/9 के अवलोकन से स्पष्ट है कि मरीज को विपक्षी के अस्पताल में दिनांक 26.05.2015 को एडमिट किया गया था और उसी तारीख से मृतक की दवाएं भी चली हैं। कागज संख्या 7/25 के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि मृतक 28.05.2015 को सर्वोदय हास्पिटल वाराणसी में भर्ती किया गया था जहाँ पर उसे दूसरे हास्पिटल में रेफर कर दिया गया। कागज संख्या 7/3 के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि मृतक सफदरजंग अस्पताल नई दिल्ली में 29.05.2015 को भर्ती हुआ था और सफदरजंग अस्पताल में ही दिनांक 02.06.2015 को आरिफ की मृत्यु हो गयी। इस प्रकार आरिफ चार दिन तक सफदरजंग अस्पताल में इलाज करवाता रहा और वहीं पर उसकी मृत्यु हो गयी। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “कुसुम शर्मा एवं अन्य बनाम बत्रा हॉस्पिटल एवं मेडिकल रिसर्च सेन्टर एवं अन्य (2010)3 एस.सी.सी. 480” का अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में माo उच्चतम न्यायालय ने यह अभिधारित किया है कि डॉक्टर की रीजनेबुल डिग्री होनी चाहिए। विपक्षी संख्या 02 बच्चों का डॉक्टर है और उसके पास बच्चों के इलाज करने की डिग्री हासिल है। इस सन्दर्भ में यदि हम एक और न्याय निर्णय “मार्टिन एफ.डी. सूजा बनाम मोहम्मद अस्फाक 2009 सी.आई.जे 352 (एस.सी.)” का अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में माo उच्चतम न्यायालय ने यह अभिधारित किया है कि किसी भी डॉक्टर को इस हेतु उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता जबकि मिसचान्स, मिसएडवन्चर, एरर ऑफ जजमेन्ट या ट्रीटमेन्ट प्रिफरेन्स टू अनदर हो।यहाँ इस बात का भी उल्लेख कर देना आवश्यक है कि परिवादिनी ने अपने परिवाद को सिद्ध करने हेतु इक्सपर्ट रिपोर्ट नहीं मगांई है। इस सन्दर्भ में यदि हम एक और न्याय निर्णय “रमेश चन्द्र अग्रवाल बनाम रेजेन्सी हॉस्पिटल लिमिटेड एवं अन्य सी.ए. नं. 5991/02 दिनांकित 11.09.2009” का अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में यह कहा गया है कि एक्सपर्ट रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष सारा मटेरियल और रीजन पेश करेगा। हमारे विचार से विपक्षी संख्या 02 ने बच्चे के इलाज में कोई भी लापरवाही नहीं बरता है। उसके हॉस्पिटल में दिनांक 26.05.2015 को मरीज भर्ती हुआ और एक दिन बाद मरीज को उन्होंने दूसरे हॉस्पिटल में रेफर कर दिया और परिवादिनी तथा उसके परिवार वाले मरीज को सर्वोदय हॉस्पिटल वाराणसी में भर्ती किए। इसके पश्चात् उन्होंने 29.05.2015 को मरीज को सफदरजंग हॉस्पिटल नई दिल्ली ले गए जहाँ पर मरीज दिनांक 02.06.2015 को मर गया। हमारे समझ से विपक्षी
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संख्या 02 ने बच्चे के इलाज में कोई भी लापरवाही नहीं किया है। यदि वह बीमारी के बाबत गलत डाइग्नोसिस किया होता तो चूंकि डॉक्टर एक सक्षम व बच्चों का स्पेशिलिस्ट है और केवल इस आधार पर उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है।
आदेश
परिवाद- पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 29.01.2021
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)