Final Order / Judgement | जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ। परिवाद संख्या:- 426/2019 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष। श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्य। परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-01.05.2019 परिवाद के निर्णय की तारीख:-22.02.2022 श्रीमती रेखा सिंह पत्नी श्री अजय सिंह निवासी-मकान नं0 521/279, माई जी की बगिया, बड़ा चॉंदगंज, नियर साई मन्दिर, महानगर, लखनऊ। .........परिवादी। बनाम National Insurance Company Limited Motor Claim Hub, Lucknow Regional Office, 3rd Floor, Jeevan Bhawan, Nawal Kishore Road, Hazratganj, Lucknow-226001. .........विपक्षी। आदेश द्वारा- श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष। श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्य। निर्णय - परिवादिनी ने प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत विपक्षी से वाहन की मरम्मत में हुए व्यय 1,16,844.00 रूपया क्लेम की दिनॉंक से 18 प्रतिशत ब्याज सहित, मानसिक एवं शारीरिक कष्ट के लिये 1,00,000.00 रूपये एवं वाद व्यय 11,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
- संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादिनी ने दिसम्बर, 2016 में एक टाटा इन्डिका वाहन क्रय किया जिसका रजिस्ट्रेशन नम्बर यूपी 32 जी एन 6876 है। उक्त वाहन का बीमा विपक्षी से कराया और विपक्षी द्वारा उक्त वाहन का मूल्य 3,37,050.00 घोषित किया गया तथा बीमे की वैधता 23.11.2017 से 22.11.2018 तक है, जिसका प्रीमियम विपक्षी द्वारा 21,934.00 रूपये लिया गया।
- परिवादिनी का उपरोक्त वाहन दिनॉंक 20.09.2018 को हुण्डई क्रेटा कार संख्या यूपी 32 जे जेड 7915 से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दुर्घटना के समय परिवादिनी का भाई सुरेन्द्र कुमार सिंह उक्त वाहन चला रहा था। दुर्घटना की सूचना उसी दिन विपक्षी को दी गयी तो विपक्षी ने क्षतिग्रस्त वाहन को कम्पनी के अधिकृत सर्विस सेन्टर पर ले जाने को कहा। परिवादिनी अपने क्षतिग्रस्त वाहन को कम्पनी के अधिकृत सर्विस सेन्टर पर ले गयी।
- परिवादिनी द्वारा विपक्षी के यहॉं दिनॉंक 22.09.2018 को क्लेम दर्ज कराया गया तथा विपक्षी द्वारा क्लेम के भुगतान हेतु समस्त वांछित कागजात एवं औरचारिकतायें परिवादिनी द्वारा पूर्ण की जा चुकी हैं। विपक्षी द्वारा अपने पत्र दिनॉंक 10.12.2018 द्वारा परिवादिनी के क्लेम की धनराशि को मनमाने, अनुचित व अवैधानिक रूप से भुगतान करने सह यह कहते हुए इनकार कर दिया कि ड्राइवर श्री सुरेन्द्र कुमार सिंह का वैध ड्राइविंग लाइसेंस वाणिज्यिक श्रेणी का चालक का अनुज्ञप्ति नहीं था इस कारण उक्त क्षतिपूर्ति की पत्रावली बन्द कर दी गयी। विपक्षी द्वारा नो क्लेम किये जाने के कारण परिवादिनी को परिवाद का कारण उत्पन्न हुआ।
- विपक्षी ने अपनी आपत्ति में कहा कि टाटा इन्डिका कार संख्या यूपी 32 जीएन 6876 क्रय की गयी थी। उक्त वाहन का बीमा दिनॉंक 23.11.2017 से 22.11.2018 तक की अवधि के लिये वाहन मूल्य 3,37,050.00 रूपये पर प्रीमियम के रूप में 21,934.00 रूपये का भुगतान करते हुए बीमित कराया गया था।
- उपरोक्त वाहन सुरेन्द्र कुमार सिंह द्वारा चलाया जा रहा था, उनके पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस वाणिज्यिक श्रेणी का नहीं था। परिवादिनी से कभी नहीं कहा गया कि क्षतिग्रस्त वाहन वर्कशाप पर ले जाए। परिवादिनी द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी को अपने वाहन के क्षतिग्रस्त हो जाने की सूचना दिनॉंक 22.09.2018 के सूचना पत्र के माध्यम से दिनॉंक 26.09.2018 को प्राप्त करायी गयी थी। बीमा कम्पनी द्वारा परिवादिनी की प्रार्थनानुसार क्षतिग्रस्त वाहन का दावा निरस्त कर दिया गया। कार्यालय में पत्रावली की अनुलब्धता के कारण स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया गया। 1,16,844.00 रूपये की जो धनराशि की मॉंग की गयी है वह साबित किये जाने पर परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र में यह भी कहा गया कि मलबे का मूल्य 3000.00 रूपये और एक्सेस क्लाज की कटौती 500.00 रूपये नियत करते हुए घटाये जाने के उपरान्त कम्पनी का दायित्व 68,934.00 रूपये नियत किया गया था।
- परिवादिनी ने अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में इं0 की प्रतिलिपि, नो क्लेम प्रमाण पत्र, रसीद, टैक्स इनवाइस एवं विपक्षी द्वारा सशपथ बयान सर्वेयर रिपोर्ट, नो क्लेम पत्र एवं शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
- मैने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
- विदित है कि परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद क्षतिग्रस्त वाहन का क्लेम प्राप्त करने हेतु संस्थित किया गया है तथा यह कहा गया कि परिवादिनी की उपरोक्त टाटा इन्डिका कार जो बीमित थी दिनॉंक 20.09.2018 को हुण्डई क्रेटा कार से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गयी और इसके उपरान्त उसकी सूचना विपक्षी बीमा कम्पनी को दी गयी। विपक्षी द्वारा कहा गया कि उसे वर्कशाप पर ले जाए उसके उपरान्त हो भी देय होगा नियमानुसार भुगतान किया जायेगा।
- परिवादिनी का दावा नो क्लेम करके पत्रावली बन्द कर दी गयी तथा यह कहा गया कि वैध ड्राइविंग लाइसेंस वाणिज्यिक श्रेणी का नहीं था। विपक्षी द्वारा अपनी आपत्ति में उपरोक्त गाड़ी का इन्श्योरेंस होना स्वीकार किया गया है और यह कहा गया कि यह साबित करने का विषय है कि मॉंगी गयी धनराशि 1,16,844.00 रूपये की बजाए दुर्घटना में मरम्मत में कितना व्यय हुआ था, जबकि सर्वेयर के अनुसार 68,934.00 रूपये के आस पास है और परिवादिनी को साबित किये जाने का विषय है कि 1,16,844.00 रूपये व्यय हुआ था।
- परिवादिनी ने अपनी कार जिसकी दुर्घटना के फलस्वरूप मरम्मत में हुए व्यय को प्राप्त किये जाने के संबंध में यह परिवाद दाखिल किया है और उक्त वाहन विपक्षी इन्श्योरेंस कम्पनी से बीमित है। इस प्रकार विपक्षी उसका उपभोक्ता है।
- यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि नो क्लेम के रूप में पत्रावली बन्द कर दी गयी तथा यह कहा गया कि ड्राइविंग लाइसेंस वाणिज्यिक श्रेणी का नहीं था। परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि दुर्घटना के फलस्वरूप अगर क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिये जो धनराशि उसकी मरम्मत में खर्च की गयी है यह जरूरी नहीं है कि उसमें दुर्घटना के समय छोटे वाहन चलाने वाले व्यक्ति का लाइसेंस वाणिज्यिक हो।
- परिवादिनी के अधिवक्ता द्वारा अपने कथानक एवं शपथ पत्र में यह कहा गया कि विपक्षी द्वारा अपने पत्र दिनॉंकित 10.12.2018 द्वारा परिवादिनी के क्लेम की धनराशि को मनमाने, अनुचित व अवैधानिक रूप से भुगतान करने से इनकार कर दिया और कहा कि ड्राइवर सुरेन्द्र कुमार सिंह द्वारा वैध वाणिज्यिक अनुज्ञप्ति द्वारा दुर्घटना के समय वाहन का संचालन नहीं किया जा रहा था। क्योंकि टैक्सी के रूप में वाहन का संचालन किया जा रहा था। विपक्षी द्वारा अपने साक्ष्य में यह कहा गया कि परिवादिनी द्वारा जो व्यक्ति सुरेन्द्र कुमार सिंह को प्रश्नगत भाई बताकर वाहन का चालक होना बताया जा रहा है उसके पास उस श्रेणी की (वाणिज्यिक श्रेणी) चालन अनुज्ञप्ति नहीं थी जिस श्रेणी का वाहन चालक द्वारा चलाया जा रहा था। क्योंकि उक्त वाहन वाणिज्यिक वाहन के रूप में पंजीकृत था।
- परिवादिनी के अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि वह हल्के वाहन से संबंधित गाड़ी थी भले ही वाणिज्यिक हो, की श्रेणी में शामिल किया जा रहा था। भारत सरकार के इस पत्र के तहत आवश्यक नहीं है, तथा उक्त पत्र में मुकुन्द देवगत बनाम ओरियएन्टल इ0कं0लि0 में कहा गया है। उक्त पत्र में यह भी उल्लिखित किया गया कि 7500 किलोग्राम कम होगा उसी में वाणिज्यिक वाहन का होना अनिवार्य है। चूँकि दुर्घटना कारित करने वाला वाहन यू0पी0 32 जे जेड 7915 है जिसका अनलेडेन वेट एक हजार किलोग्राम हो। ऐसी परिस्थिति में माननीय सुप्रीम कोर्ट सिविल अपील नम्बर 5826/2011 मुकुन्द देवगन बनाम सुप्रा के तहत वाणिज्यिक लाइसेन्स की आवश्यकता नहीं है। जैसा कि विपक्षी का कथन है कि वाणिज्यिक अनुज्ञप्ति द्वारा वाहन संचालन नहीं किया जा रहा था। यह तर्कपूर्ण नहीं है।
- विपक्षी के अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि मनमाने ढंग से क्षतिपूर्ति की धनराशि क्लेम की गयी है और यह परिवादी को साबित किया जाना है कि वास्तव में जो धनराशि उनके द्वारा परिवाद पत्र के तहत क्लेम की गयी है वह व्यय हुई हो।
- याची को यह साबित करना है कि मॉंगी गयी धनराशि के बाबत जो भी उनका क्षतिपूर्ति के रूप में व्यय हुआ है यदि इनके तर्क से सहमत हो विपक्षी द्वारा यह भी कहा गया कि उक्त् वाहन की मरम्मत के लिये कम्पनी ने सर्वेयर भेजा था । उनके अनुसार 71000.00 रूपये के आप-पास का ही नुकसान हुआ है और कम्पनी के सर्वेयर की रिपोर्ट के आधार पर ही क्षतिपूर्ति दे सकती है। ठीक इसके विपरीत परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि मैं विपक्षी के अधिवक्ता के तर्कों से सहमत हॅूं कि जो सर्वेयर द्वारा दी गयी रिपोर्ट है उसके आधार पर ही भुगतान किया जाना है।
- विपक्षी द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रोसेसिंग शुल्क 500.00 रूपये व मलबे का मूल्य 3000.00 रूपये को नहीं दिया है। अत: सर्वेयर की रिपोर्ट से उक्त् 3000.00 रूपये एवं 500.00 रूपये की कटौती करते हुए 68,000.00 रूपये ही मात्र क्षतिपूर्ति प्राप्त करने की अधिकारी है। दुर्घटना की तिथि 20.09.2018 को वाहन दिनॉंक 23.11.2017 से 22.11.2018 तक बीमित था। इसलिये क्षतिपूर्ति की अदायगी का दायित्व विपक्षी इन्श्योंरेंस कम्पनी का है।
- पत्रावली पर उपलब्ध तथ्यों, साक्ष्यों एवं कथनों के परिशीलन से प्रतीत होता है कि विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी है। अत: परिवादिनी वाहन की मरम्मत में हुआ व्यय 68,000.00 रूपया क्षतिपूर्ति मय 09 प्रतिशत ब्याज सहित पाने की हकदार है। परिवादिनी को हुए मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट के लिये क्षतिपूर्ति मुबलिग 10,000.00 (दस हजार रूपया मात्र) भी प्राप्त करने की हकदार है।
आदेश - परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादिनी को मुबलिग 68,000.00 (अरसठ हजार रूपया मात्र) परिवाद दायर करने की तिथि से निर्णय की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ 45 दिन के अन्दर अदा करें।
- परिवादिनी को हुए मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट तथा वाद व्यय के लिये मुबलिग 15,000.00 (पन्द्रह हजार रूपया मात्र) भी अदा करें।
- यदि आदेश का अनुपालन निश्चित अवधि में नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देय होगा।
(अशोक कुमार सिंह) (नीलकंठ सहाय) सदस्य अध्यक्ष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ। आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया। (अशोक कुमार सिंह) (नीलकंठ सहाय) सदस्य अध्यक्ष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ। दिनॉंक-22.02.2022 | |