जिला फोरम उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, झुन्झुनू (राजस्थान)
परिवाद संख्या -204/13
समक्ष:- 1. श्री सुखपाल बुन्देल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती शबाना फारूकी, सदस्या।
3. श्री अजय कुमार मिश्रा, सदस्य।
अनिल डांगी उम्र 40 साल पुत्र हवा सिंह जाति जाट निवासी वार्ड नं0 25 पानी की टंकी के पास मण्ड्रेला रोड़, चिड़ावा तहसील चिड़ावा जिला झुन्झुनू (राज0) .....परिवादी
बनाम
नेषनल इन्ष्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड, शाखा कार्यालय स्टेषन रोड़, झुन्झुनू जरिये शाखा प्रबंधक .....विपक्षी
परिवाद पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1. श्री राजेष पूनिया, अधिवक्ता - परिवादी की ओर से।
2. श्री इन्दुभूषण शर्मा, अधिवक्ता - विपक्षी की ओर से।
- निर्णय - दिनांक 13.01.2015
परिवादी ने यह परिवाद पत्र मंच के समक्ष पेष किया, जिसे दिनांक 17.04.2013 को संस्थित किया गया।
परिवाद पत्र के संक्षिप्त तथ्य इस प्रकार है कि - परिवादी, वाहन मोटर साईकिल हीरो होण्डा स्पलेण्डर इन्जिन नम्बर भ्।10म्भ्ब्9।09773 चेसिस छवण्डठस्भ्।10।क्ब्9।10002 का रजिस्टर्ड मालिक है। उक्त वाहन विपक्षी बीमा कम्पनी के यहां दिनांक 22.01.2012 से 21.01.2013 तक की अवधि के लिए बीमित था, जिसका प्रीमियम विपक्षी ने परिवादी से नियमानुसार प्राप्त किया था। इस प्रकार परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता है।
परिवादी का कथन है कि परिवादी का उक्त वाहन दिनांक 20.04.2012 व 21.04.2012 की रात्रि को उसके घर से चोरी हो गया, जिसकी रिपोर्ट परिवादी ने उसी दिन पुलिस थाना, चिड़ावा मे दर्ज करवाई जिस पर प्रथम सूचना संख्या 193/2012 दर्ज हुई परन्तु पुलिस थाना चिड़ावा ने उक्त वाहन व अज्ञात चोर का पता नहीं चलने के कारण एफ.आर. पेष करदी। परिवादी ने मोटरसाईकिल चोरी होने की सूचना विपक्षी को दे दी थी। परिवादी ने विपक्षी बीमा कम्पनी के यहां क्लेम पेष किया जो यह कहकर खारिज कर दिया गया कि दुर्घटना/चोरी के दिन मोटरसाईकिल की न तो टी.आर.सी. प्रभावी थी और न ही आर.सी. बनवायी, जो मोटर एक्ट की अवहेलना है तथा दावा भाुगतान योग्य नहीं है। जबकि परिवादी की मोटरसाईकिल की टी.आर.सी. प्रभावी थी जिसके नम्बर आर.जे. 18 टी.सी. 0073 थे तथा आर.सी. बाबत जिला परिवहन अधिकारी के यहां प्रार्थना पत्र पेष कर रखा था। उक्त मोटरसाईकिल की वेल्यु बीमा कवरनोट में 44080/-रूपये दर्ज है जो परिवादी विपक्षी बीमा कम्पनी से प्राप्त करने का अधिकारी है।
अन्त में विद्धान अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मय खर्चा स्वीकार करने एंव विपक्षी बीमा कम्पनी से से उक्त चोरी गये वाहन की राषि 44088/-रूपये मय ब्याज भुगतान दिलाये जाने का निवेदन किया।
विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से जवाब पेष कर इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि परिवादी द्वारा वाहन मोटर साईकिल इन्जिन नम्बर भ्।10म्भ्ब्9।09773 चेसिस छवण्डठस्भ्।10।क्ब्9।10002 जरिये बीमा पालिसी नम्बर 35100731116202468447 में वर्णित शर्तो के अधीन एवं मोटर व्हीकल एक्ट एवं रूल्स के प्रावधान की अनुपालना के अधीन दिनांक 22.01.2012 से दिनांक 21.01.2013 तक की अवधि के लिये बीमा पालिसी ली गई है।
विद्धान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी ने उक्त तर्को का विरोध करते हुए अपने जवाब के अनुसार बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी को चोरी की सूचना दिए जाने पर बीमा कम्पनी द्वारा इन्वेस्टीगेटर नियुक्त किया गया। मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 43 के अनुसार वाहन के टेम्परेरी रजिस्ट्रेषन की वैधता तिथि एक माह निर्धारित है तथा उक्त अवधि के मध्य वाहन का रजिस्ट्रेषन करवाया जाना आज्ञात्मक है परन्तु परिवादी द्वारा वाहन दिनांक 22.01.2012 को क्रय किया गया व उसकी टी.आर.सी. एक माह बाद कालातीत हो गई तथा वाहन का स्थाई पंजीकरण नहीं करवाया गया । इस प्रकार उक्त वाहन की चोरी की तिथि को न तो वाहन की टी.आर.सी. प्रभावषील थी और न ही स्थाई आर.सी. प्राप्त की गई है। इसलिये परिवादी द्वारा जानबुझकर मोटर व्हीकल एक्ट के आज्ञात्मक प्रावधानों की अवहेलना किए जाने के कारण क्लेम पेयबल नहीं होने से नो क्लेम कर दिया गया है तथा बीमा कम्पनी का केाई क्लेम राषि अदा करने का उतरदायित्व नही बनता है।
विद्धान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी ने बहस के दौरान यह भी कथन किया है कि चोरी की तिथि को वाहन का पंजीयन नहीं था इसलिये मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 39 का खण्डन किए जाने से धारा 192 के अधीन आपराधिक कृत्य होने से वाहन का बीमा होने के बावजूद परिवादी को क्षतिपूर्ति अदायगी हेतु बीमा कम्पनी उतरदायी नहीं है तथा बीमा कम्पनी की सेवा मे कोई कमी नही है।
अन्त में विद्धान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी ने परिवादी का परिवाद पत्र मय खर्चा खारिज किये जाने का निवेदन किया।
उभयपक्ष की बहस सुनी गई पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
प्रस्तुत प्रकरण मे यह तथ्य निर्विवादित रहा है कि परिवादी मोटरसाईकिल इन्जिन नम्बर भ्।10म्भ्ब्9।09773 चेसिस छवण् डठस्भ्।10 ।क्ब्9।10002 का रजिस्टर्ड मालिक है तथा उक्त वाहन दिनांक 22.01.2012 से 21.01.2013 तक बीमा कम्पनी के यहां बीमित था।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट हुआ है कि दिनांक 20.04.2012 व 21.04.2012 की मध्य रात्रि को परिवादी के घर से उक्त वाहन चोरी हो गया, जिसकी रिपोर्ट परिवादी ने उसी दिन पुलिस थाना, चिड़ावा मे दर्ज करवाई जिस पर प्रथम सूचना संख्या 193/2012 दर्ज हुई परन्तु पुलिस थाना चिड़ावा ने उक्त वाहन व अज्ञात चोर का पता नहीं चलने के कारण एफ.आर. पेष करदी। एफ.आई.आर. की काॅपी पत्रावली मे सलंग्न है।
विद्धान अधिवक्ता विपक्षी का बहस के दौरान यह तर्क रहा है कि चोरी के दिन मोटरसाईकिल की टी.आर.सी. प्रभावषील नहीं थी और न ही परिवादी द्वारा स्थाई आर.सी. प्राप्त की गई थी जिसके कारण बीमा पाॅलिसी की शर्तो का उल्लंघन होने पर बीमा कम्पनी किसी भी तरह से क्लेम अदा करने के लिए उतरदायी नही है।
हम, विद्धान अधिवक्ता विपक्षी के उक्त तर्को से सहमत नही है क्योंकि पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट हुआ है कि परिवादी ने उक्त वाहन चोरी होने की घटना की रिपोर्ट तुरन्त पुलिस थाना चिडावा मे घटना के रोज ही दर्ज करादी गई थी तथा परिवादी के पास वाहन की टी.आर.सी. थी जिसके नम्बर आर.जे. 18 टी.सी.0073 थे तथा स्थाई आर.सी. बाबत जिला परिवहन अधिकारी के यहां प्रार्थना पत्र पेष कर रखा था जिसकी कार्यवाही डी.टी.ओ. के यहां विचाराधीन थी। परिवादी की इसमे कोई लापरवाही प्रतीत नही होती है।
विद्धान अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपने तर्को के समर्थन मे माननीय राष्ट्रीय आयोग द्धारा निर्णित रिविजन पेटीषन संख्या 4951/2012 नरेन्द्र सिंह बनाम न्यू इण्डिया एष्योरेंस कं0 लि0 वगैरह एवं रिविजन पेटीषन संख्या 1834/12 दी मैनेजर भारती आक्सा जनरल इंष्योरेंस कम्पनी लि0 वगैरह बनाम बी.ए. लोकेष कुमार के निर्णय की प्रतियां पेष की।
उपरोक्त न्यायदृष्टान्तों मे माननीय राष्ट्रीय आयोग द्धारा जो सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये है उनसे हम पूर्ण रुप से सहमत है लेकिन इस प्रकरण के तथ्य व परिस्थितियां भिन्न होने के कारण उपरोक्त न्यायदृष्टान्त विपक्षी को पूर्ण रूप से मदद नही करते है।
इस सम्बन्ध मे विद्धान अधिवक्ता परिवादी ने न्यायदृष्टान्त 2014 क्छश्र ;ब्ब्द्ध च्ंहम 93. व्तपमदजंस प्देनतंदबम ब्वण् स्जकण् ज्ीतवष् ब्ीपम िडंदंहमत टेण् ।रममज टमतउं प्रस्तुत किया। उक्त न्यायदृष्टांत में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्धारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया कि पालिसी लेने के बाद ही दुर्घटना हुई, वक्त घटना वाहन पंजीकृत नहीं था। बीमा कम्पनी को ट्रेफिक पुलिस की शक्ति प्राप्त नहीं है और दावा खारिज नहीं किया जा सकता। रेस्पोडेंट ने पालिसी की शर्तो का उल्लंघन किया.. अमानक आधार पर 75ः राषि प्रस्तावित की।
विद्धान अधिवक्ता विपक्षी के द्धारा दिये गये तर्को का खण्डन परिवादी के परिवाद पत्र मे अंकित तथ्यों व न्यायदृष्टान्त से स्वतः ही हो जाता है।
परिवादी के पास वक्त घटना स्थाई आर.सी. नहीं थी तथा वाहन उपभोग कुछ समय के लिये किया गया लेकिन उक्त न्यायदृष्टांत को ध्यान में रखते हुये परिवादी को क्षतिपूर्ति की राषि दिलाया जाना उचित प्रतीत होता है।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर परिवादी, विपक्षी बीमा कम्पनी से क्मबसंतमक टंसनम ;व्क्टद्ध व िटमीपबसम की 75ः राषि बीमा क्लेम के रूप में प्राप्त करने का अधिकारी है तथा विपक्षी बीमा कम्पनी किसी भी तरीके से क्लेम राषि के उतरदायित्व से विमुख/मुक्त नही हो सकती।
अतः प्रकरण के तमाम तथ्यों व परिस्थितियों को ध्यान मे रखते हुए परिवादी का परिवाद पत्र विरूद्ध विपक्षी बीमा कम्पनी आंषिक रूप से स्वीकार किया जाकर विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेष दिया जाता है कि परिवादी विपक्षी से बीमित किमत राषि 44080/- की 75ः राषि बीमा बतौर क्लेम 33060/रुपये (अक्षरे रूपये तेतीस हजार साठ मात्र) प्राप्त करने का अधिकारी है। परिवादी उक्त क्लेम राषि पर संस्थित परिवाद पत्र दिनांक 17.04.2013 से तावसूली 9 प्रतिषत वार्षिक दर से ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है। इस निर्देष के साथ प्रकरण का निस्तारण किया जाता है।
निर्णय आज दिनांक 13.01.2015 को लिखाया जाकर मंच द्धारा सुनाया गया।