Madhya Pradesh

Seoni

CC/05/2013

KU. ISARAT KHAN - Complainant(s)

Versus

NATIONAL INSURANCE COMPANY LMT. - Opp.Party(s)

14 Mar 2013

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)

प्रकरण क्रमांक -05-2013                                      प्रस्तुति दिनांक-02.01.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

कुमारी इषरत सिदधकी, पिता मुकीम खान,
उम्र लगभग 20 वर्श, निवासी-भगतसिंह वार्ड
सिवनी, तहसील व जिला सिवनी
(म0प्र0)।..................................................................आवेदकपरिवादी।


                :-विरूद्ध-:                  
षाखा प्रबंधक, नेषनल इंष्योरेंस कंपनी
लिमिटेड, षाखा कार्यालय, पंकज प्लाजा,
प्रथम तल, र्इ.एल.सी. चौक, नागपुर रोड,
छिन्दवाड़ा, तहसील व जिला छिन्दवाड़ा
(म0प्र0) 460 001 ...................................................अनावेदकविपक्षी।  

                  
                 :-आदेश-:
     (आज दिनांक- 14/03/2013            को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1)        परिवादिया ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, उसके अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा बीमित वाहन क्रमांक-एम0पी0 22 एच0745, पालिसी नंबर-116300000679 के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर पेष किये गये ओ0डी0 क्लेम के अनावेदक द्वारा, दिनांक-19.09.2012 के  सूचना-पत्र द्वारा निरस्ती को अनुचित होना कहते हुये, वाहन क्षति की मरम्मत राषि व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2)         यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादिया का उक्त वाहन दिनांक-27.02.2012 को दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और अनावेदक द्वारा, उक्त वाहन के संबंध में जारी की गर्इ पैकेज पालिसी के द्वारा, वाहन दिनांक-10.07.2011 से 09.07.2012 तक की अवधि के लिए बीमित रहा है। परिवादी द्वारा पेष किये गये ओ0डी0 क्लेम के अनावेदक द्वारा सर्वेयर से जांच करार्इ गर्इ, जो कि- घटना दिनांक को वैध व प्रभावी परमिट न रहे होने से बीमा पालिसी के षर्तों के उल्लघंन के फलस्वरूप, परिवादी का क्लेम अनावेदक द्वारा निरस्त किया गया। 
(3)        स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि-अनावेदक ने दिनांक-19.09.2012 को परिवादी के क्लेम को बिना किसी उचित कारण के समाप्त कर दिया, जो कि-परिवादी के प्रति सेवा में कमी है और इसलिए वाहन के क्षति मरम्मत के जमा बिलों की राषि 99,000-रूपये व हर्जाना दिलाने का अनुतोश चाहा गया है।
(4)        अनावेदक का स्वीकृत तथ्यों के अलावा, जवाब का सार यह है कि-परिवादिया के क्लेम को पंजीबद्ध कर, अनावेदक ने वाहन की पालिसी, परमिट, फिटनेष व ड्रायवर के ड्रायविंग लायसेंस आदि के दस्तावेज परिवादिया से मांग कर, प्राप्त किये थे तथा अन्वेक्षणकत्र्ता व सर्वेयर से जांच करार्इ गर्इ थी, जो कि-यह पाया गया था कि-घटना के समय वैध व प्रभावी परमिट नहीं था, जो परिवादी द्वारा पेष किये गये परमिट की प्रति से ही दर्षित है, जो कि-परिवादिया द्वारा, क्लेम के साथ सभी पेपर्स नहीं दिये गये और बार-बार मांग के लिए लिखे जाने के बाद भी जो कागज दिये, उससे स्पश्ट रहा है कि-उसका परमिट सही नहीं था, जांच में भी सही नहीं पाया गया, जो कि-परिवादिया के प्रति कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ है और बीमा षर्तों के उल्लघंन के फलस्वरूप, क्लेम निरस्त किया गया। 
(5)        मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
        (अ)    क्या अनावेदक द्वारा, परिवादिया का ओ0डी0 क्लेम
            निरस्त किया जाना अनुचित होकर, परिवादिया के
            प्रति सेवा में कमी है?
        (ब)    सहायता एवं व्यय?
                -:सकारण निष्कर्ष:-
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6)       प्रथम तो परिवादी की ओर से परिवाद-पत्र में ऐसा कोर्इ आधार या कारण नहीं बताया गया है कि-अनावेदक द्वारा, परिवादी का क्लेम, दुर्घटना के समय परमिट न होने के आधार पर निरस्त किया जाना क्यों और कैसे अनुचित है, परिवाद में क्लेम निरस्ती के कारण व आधार तक का उललेख नहीं किया गया और ऐसा भी कोर्इ उल्लेख नहीं किया गया कि- परिवादी के पास दुर्घटना दिनांक को वाहन का कोर्इ परमिट रहा है तथा परिवादी-पक्ष की ओर से वाहन के किसी परमिट की प्रति भी पेष नहीं की गर्इ है। जबकि-अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष जवाब से व लास असेसर हर्शवर्धनसिंह बघेल के षपथ-पत्र और उनके फायनयल सर्वे रिपोर्ट प्रदर्ष आर-4, वाहन के फिटनेष व परमिट के संबंध में जांच के आधार पर दी गर्इ जानकारी का पत्र प्रदर्ष आर-5 और उसके साथ आर0टी0ओ0 कार्यालय से प्राप्त किये गये जानकारी व प्रमाण प्रदर्ष आर-6 से आर-10 व प्रदर्ष आर- 12, आर-13 से यह स्पश्ट होता है कि-अनावेदक द्वारा बार-बार मांग किये जाने पर, परिवादी की ओर से एक अस्थायी अनुज्ञा-पत्र, जो बीमा कम्पनी को प्रेशित किया गया, उसकी फोटोप्रति प्रदर्ष आर-8 है, जो कि-असत्य दस्तावेज रहा होना संबंधित आर0टी0ओ0 कार्यालय से भी बताया गया और अन्यथा भी उक्त प्रदर्ष आर-8 के अस्थायी परमिट में जारी होने की तिथि 06.03.2012 अर्थात दुर्घटना दिनांक से बाद की दर्षार्इ गर्इ है और उसे पिछली अवधि के लिए जारी किया जाना बताया गया है। जबकि-उसमें अनुज्ञा-पत्र की अवधि 07.01.2012 से 31.03.2012 दर्षार्इ गर्इ है, ऐसे में यह सिथति स्पश्ट है कि-दुर्घटना दिनांक को कोर्इ परमिट परिवादिया के पास नहीं रहा है और इसलिए परिवादी-पक्ष इस मामले में दुर्घटना दिनांक के लिए प्रभावी कोर्इ परमिट दुर्घटना दिनांक को रहे होने का परिवाद में उल्लेख तक नहीं किया, इस बाबद मौन रहा और कोर्इ परमिट संबंधी दस्तावेज भी पेष नहीं किये।
(7)        परिवादी-पक्ष की ओर से एक मात्र तर्क यह किया गया है कि- परमिट न होने के आधार पर, परिवादिया के वाहन क्षति के बीमा ओ0डी. क्लेम को पूरी तरह से निरस्त नहीं किया जाना चाहिए था, जो कि-यह पालिसी की षर्तों का मूलभूत भंग नहीं कहा जा सकता। जबकि-परिवादी-पक्ष की ओर से परिवाद में भले ही पालिसी क्रमांक का उल्लेख किया गया है, लेकिन पालिसी की प्रति पेष न कर, मात्र कवरनोट प्रदर्ष सी-1 पेष किया गया है।
(8)        अनावेदक-पक्ष की ओर से पालिसी की प्रति प्रदर्ष आर-15 पेष की गर्इ है, जो तीन पृश्ठों में है और उसके कालम में प्रयोग की सीमाओं के तहत यह स्पश्ट षर्त उल्लेख है कि-मोटरयान अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्राप्त किये गये परमिट के अन्तर्गत ही वाहन के उपयोग को पालिसी के तहत आच्छादित किया गया है, जो कि-ऐसी षर्त स्वयं परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-1 के कवरनोट के पृश्ठ भाग पर दी गर्इ षर्त क्रमांक-'क और 'घ में भी उल्लेख किया गया है, तो बीमा षर्तों के मूलभूत व स्पश्ट षर्त के उल्लघंन के फलस्वरूप क्लेम भुगतान का दायित्व बीमा कम्पनी का न रहे होने का तर्क करते हुये, अनावेदक-पक्ष की ओर से न्यायदृश्टांत-2010 (भाग-4) सी0पे0जे0 321 (एन0सी0) युनार्इटेड इणिडया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड विरूद्ध ़ित्रलोक कौषिक की ओर ध्यान आकृश्ट किया गया है कि-परमिट के बिना मालयान को चलाना मोटरयान अधिनियम के तहत प्रतिबंधित होकर, दण्डनीय अपराध भी है। 
(9)        परिवादी-पक्ष की ओर से न्यायदृश्टांत-2010 (भाग-4) एस.सी.सी. 536 अम्लेन्द्र साहू विरूद्ध ओरियण्टल इंष्योरेंस कम्पनी और न्यायदृश्टांत- 2006 (भाग-2) सी0पी0जे0 144 (एन0सी0) न्यू इणिडया इंष्योरेंस कम्पनी विरूद्ध नारायण प्रसाद पाठक पेष किये गये हैं, जिसमें प्रथम न्यायदृश्टांत के मामले के आवेदक की प्रायवेट कार का बैंक के द्वारा, उपयोग के दौरान दुर्घटना होने, अर्थात वाहन के प्रयोग की सीमा का उल्लघंन बाबद रहा है और दूसरे न्यायदृश्टांत का मामला मेक्सीकेप वाहन में दुर्घटना के समय सीमा से अधिक यात्रियों को परिवहन किये जाने के कारण, बीमा षर्तों के उल्लघंन का रहा है, जिनमें कि-कब क्लेम का भुगतान नानस्टेण्डर्ड आधार पर किया जा सकता है, यह गाइड लार्इन ही दर्षार्इ गर्इ है।
(10)        प्रस्तुत मामला न तो वाहन में ओवर लोडिंग का है, न ही विहित प्रकार से अन्य प्रकार का उपयोग किये जाने का है और न ही वाहन चोरी होने के क्लेम का है, तो बीमा षर्तों के किसी सतही या तकनीकी भंग मात्र का मामला होना प्रस्तुत प्रकरण में दर्षित नहीं।
(11)        जहां कि-मालवाहन की दुर्घटना के समय वाहन का कोर्इ परमिट नहीं था, परमिट का पूर्णतया आभाव होते हुये भी माल के परिवाहन हेतु रोड पर उसका उपयोग किया जा रहा था, तो यह मोटरयान अधिनियम के प्रावधानों का उल्लघंन होकर, दण्डनीय अपराध भी है और जहां कि-बीमा पालिसी में ही यह स्पश्ट षर्त रही है कि-मोटरयान अधिनियमों के तहत आवष्यक परमिट के तहत वाहन के उपयोग को ही बीमा पालिसी के तहत आच्छादित किया गया है, तो यह पालिसी की षर्तों का मूलभूत भंग है और इसलिए बिना परमिट के वाहन के उपयोग के दौरान दुर्घटना में हुर्इ वाहन की क्षति का जोखिम पालिसी षर्तों से आच्छादित नहीं है। और इस संबंध में अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष त्रिलोक कौषिक वाले न्यायदृश्टांत के मामले की पुशिट करते हुये, न्यायदृश्टांत-2013 (1) सी0पी0जे0 542 (एन0सी0) मनोज बेनर्जी विरूद्ध ओरियण्टल इंष्योरेंस कम्पनी व अन्य वाले मामले में यह अभि निर्धारित किया गया है कि-जहां वाहन का परमिट अन्य राज्यों की सीमा के लिए था और परमिट, क्षेत्र से बाहर जाकर उपयोग किये जाने के दौरान हुर्इ दुर्घटना में क्षति के मामले में बीमा कम्पनी द्वारा, क्षति क्लेम अस्वीकार किया जाना उचित है।
(12)        प्रस्तुत मामले में तो दुर्घटना के समय वाहन के उपयोग के लिए आवष्यक परमिट का पूर्ण आभाव रहा है, तो यह बीमा षर्तों का मूलभूत उल्लघंन है और क्योंकि परमिट के बिना वाहन के उपयोग के दौरान वाहन की क्षति का जोखिम पालिसी षर्तों के अनुसार आच्छादित नहीं था, इसलिए अनावेदक बीमा कम्पनी द्वारा, परिवादी के वाहन क्षति क्लेम को अस्वीकार किया जाना किसी भी तरह अनुचित नहीं। अत: अनावेदक द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी किया जाना स्थापित नहीं पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(13)        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर, परिवादी- पक्ष का पेष परिवाद स्वीकार योग्य न होने से निरस्त किया जाता है। पक्षकार अपना-अपना कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे।
                        
        मैं सहमत हूँ।                              मेरे द्वारा लिखवाया गया।         

(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (रवि कुमार नायक)
            सदस्य                                                अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                           जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         

         (म0प्र0)                                                 (म0प्र0)

 

 

 

 


        
            

 

 

 

 

 

 

 

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