द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष
- इस परिवाद में परिवादी की ओर से यह उपशम मांगा गया है कि विपक्षीगण से उसे बीमित माल की क्षतिप के रूप में अंकन 85109 = 20 पैसा 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित दिलाऐ जाऐ। क्षतिपूर्ति की मद में 10,000/- रूपया और परिवाद व्यय की मद में 4500/-रूपया परिवादी ने अतिरिक्त मांगे हैं।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार है कि परिवादी विभिन्न धातुओं से निर्मित वस्तुओं के निर्यात के क्षेत्र में कार्यरत है इस हेतु उसने विपक्षीगण से दिनांक 2/3/2010 से 1/3/2011 तक की अवधि हेतु अपने माल का 2 करोड़ रूपये का मैरिन इंश्योरेंस करा रखा था। विपक्षीगण ने उसे बीमा पालिसी के अतिरिक्त अन्य कोई प्रपत्र/ शर्तें इत्यादि उपलब्ध नहीं कराई। दिनांक 19/7/2010 को न्यूयार्क निर्यात करने हेतु परिवादी ने हरे कृष्णा रोडवेज कारर्पोंरेशन, मुरादाबाद के माध्यम से अपना माल मुम्बई पोर्ट भेजा। इस माल की कीमत भारतीय मुद्रा में 85109 = 20 पैसा थी। चँकि मुम्बई में जहॉं माल उतारा जाना था वहां माल रखने की जगह नहीं थी और जिस जहाज से माल न्यूयार्क भेजा जाना था उसमें माल को कस्टम क्लीयरेंस न होने की वजह से लोड नहीं किया जा सकता था अत: ट्रांसपोर्टर ने परिवादी द्वारा भेजे गऐ माल को मैसर्स हिना वेयर हाउसिंग कारर्पोरेशन, मुम्बई में दिनांक 26/7/2010 को उतार दिया। यह गोदाम ट्रांसपोर्टर ने किराऐ पर ले रखा था। जिस दिन माल गोदाम में उतारा गया उसी रात को गोदाम में आग लग गई जिससे परिवादी द्वारा भेजा गया सारा माल जलकर राख हो गया। आग लगने की इस घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 26/27 जुलाई, 2010 की रात्रि को ही पुलिस में दर्ज कराई गई। पुलिस ने मौके का पंचनामा तैयार किया। जैसे ही आग लगने की सूचना परिवादी को प्राप्त हुई, परिवादी ने घटना की बाबत विपक्षीगण के कार्यालय में सूचना दी और आवश्यक प्रपत्र प्रस्तुत करते हुऐ बीमा दावा कार्यालय में दाखिल किया। बीमा कम्पनी ने दिनांक 27/7/2010 को ही क्षतिग्रस्त माल का सर्वे करने हेतु सर्वेयर नियुक्त किया जिसने अपनी रिपोर्ट में परिवादी को रू0 85109 = 20 पैसे की क्षति का आंकलन किया। विपक्षीगण ने परिवादी के बीमा दावे का निस्तारण नहीं किया। परिवादी ने अनेकों पत्र विपक्षीगण को दावे का भुगतान करने हेतु भेजे, परन्तु विपक्षीगण सुनवा नहीं हुऐ। परिवादी के अनुसार यह परिवाद योजित करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा। विपक्षीगण ने दावे का निस्तारण न कर अनुचित व्यापार पद्धति अपनाई और सेवा प्रदान करने में कमी की। परिवादी ने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवाद के साथ परिवादी ने इंश्योरेंस पालिसी, मुम्बई भेजे गऐ माल की इनवायस, ट्रांसपोर्टर की माल ले जाने की बिल्टी, पुलिस द्वारा तैयार किऐ गऐ घटनास्थल के पंचनामें, विपक्षी के समक्ष प्रस्तुत किऐ गऐ क्लेम तथा क्लेम भुगतान हेतु विपक्षी सं0-2 को भेजे गऐ अनुरोध पत्रों की नकलों को दाखिल किया, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-2/7 लगायत 3/25 हैं।
- विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-7/1 लगायत 7/5 दाखिल किया गया जिसमें परिवाद में उल्लिखित अवधि हेतु विपक्षी सं0-2 द्वारा परिवादी का मैरिन इंश्योरेंस किया जाना तो स्वीकार किया गया है, किन्तु शेष परिवाद कथनों से इन्कार किया गया। प्रतिवाद पत्र में अग्रेत्तर कथन किया गया कि परिवादी का यह कथन असत्य है कि बीमा पालिसी के साथ उसे पालिसी की शर्तें और प्रतिबन्ध उपलब्ध नहीं कराऐ गऐ हों बल्कि सही बात यह है कि शर्तें और प्रतिबन्ध परिवादी को बता भी दिऐ गऐ थे और उन्हें उपलब्ध भी कर दिया गया था। विशेष कथनों में कहा गया कि परिवाद कालबाधित है, परिवादी को कोई वाद हेतुक उत्पन्न नहीं हुआ। विपक्षी सं0-1 को अनावश्यक पक्षकार बनाया गया है। परिवाद की सुनवाई का इस फोरम को क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादी का यह कथन असत्य है कि हिना वेयर हाउस में आग लगने की सूचना प्राप्त होने पर उसने तत्काल घटना की सूचना विपक्षीगण को दी हो तथा आवश्यक प्रपत्र प्रस्तुत करते हुऐ उत्तरदाता विपक्षीगण के कार्यालय में बीमा दावा प्रस्तुत किया हो। सही बात यह है कि विपक्षीगण को घटना की न तो कोई सूचना दी गई और न ही विपक्षीगण के समक्ष कोई बीमा दावा प्रस्तुत किया गया। परिवादी का यह कथन भी असत्य है कि बीमा कम्पनी ने क्षति आंकलन हेतु दिनांक 27/7/2010 को कोई सर्वेयर नियुक्त किया हो जिसने रू0 85109 = 20 पैसा का क्षति का आंकलन किया हो। विपक्षीगण की ओर से अग्रेत्तर कहा गया कि परिवादी ने न तो किसी घटना की बीमा कम्पनी को सूचना दी और न ही कोई बीमा दावा प्रस्तुत किया ऐसी दशा में बीमा दावे के निस्तारण का कोई अवसर नहीं था। परिवादी द्वारा बीमा दावा के निस्तारण हेतु परिवाद में उल्लिखित पत्र भेजे जाने से भी विपक्षीगण ने इन्कार किया है। उक्त कथनों के अतिरिक्त यह कहते हुऐ कि परिवादी द्वारा फर्जी प्रपत्र निर्मित करते हुऐ अनुचित लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से असत्य कथनों के आधार पर यह परिवाद योजित किया गया है, परिवाद सव्यय खण्डित किऐ जाने की प्रार्थना की गई।
- परिवादी की ओर से फर्म के भागीदार श्री गौरव भाटिया का साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-8/1 लगायत 8/7 दाखिल किया गया जिसके साथ बीमा कम्पनी की ओर से शपथकर्ता गौरव भाटिया को भेजे गऐ ई-मेल की नकल बतौर संलग्नक दाखिल की गई, यह संलग्नक पत्रावली के कागज सं0-8/8 लगायत 8/12 हैं।
- विपक्षीगण की ओर से विपक्षी सं0-1 के सहायक प्रबन्धक श्री रमन ओवेराय का साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-10/1 लगायत 10/5 दाखिल हुआ।
- किसी भी पक्ष ने लिखित बहस दाखिल नहीं की।
- हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- पक्षकारों के मध्य इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि दिनांक 2/3/2010 से 1/3/2011 तक की अवधि हेतु परिवादी के माल का मरिन इंश्योरेंस नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी से था। पालिसी सर्टिफिकेट विपक्षी सं0-2 द्वारा जारी हुआ जिसकी नकल पत्रावली का कागज सं0-3/7 है। पक्षकारों के मध्य इस बिन्दु पर भी कोई विवाद नहीं है कि न्यूयार्क निर्यात करने हेतु परिवादी के माल के 9 कार्टन्स हरे कृष्णा रोडवेज कारपोरेशन, मुरादाबाद के माध्यम से दिनांक 19/7/2010 को मुरादाबाद वेयर हाउस से नेवाशेवा जे0एन0पी0टी0 मुम्बई पोर्ट हेतु भेजे गऐ थे इस माल की भारतीय मुद्रा में कीमत अंकन 85109 = 20 पैसा रूपया थी। विपक्षी को यह स्वीकार है कि दिनांक 26/7/2010 को यह माल जब नवी मुम्बई स्थित हिना वेयर हाउस में रखा हुआ था तो वहां आग लग गई जिससे परिवादी का माल नष्ट हो गया।
- परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने बीमा सर्टिफिकेट की नकल कागज सं0-3/7 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया और कहा कि बीमा पालिसी के अनुसार परिवादी का माल बीमा अवधि में मुरादाबाद अथवा भारत वर्ष में अन्य किसी स्थान से सड़क मार्ग अथवा रेल द्वारा भारत वर्ष के भीतर किसी भी इन्टरनेशनल कस्टम क्लीयरेंस डिपार्टमेंट अथवा मुम्बई पोर्ट पहुँचाने हेतु बीमित था। वर्तमान मामले में वि|मान विवाद के विनिश्चय हेतु यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि बीमा पालिसी के अनुसार परिवादी के माल का डेस्टीनेशन भारत वर्ष में कोई भी इन्टर नेशनल कस्टम क्लीयरेंस डिपार्टमेंट अथवा मुम्बई पोर्ट था। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने परिवाद में अवस्थित परिवादी के कार्टन्स ले जाऐ जाने की विल्टी की नकल कागज सं0-3/9 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुऐ तर्क दिया कि इस विल्टी के अनुसार परिवादी के माल का डेस्टीनेशन नेवाशेवा जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट, मुम्बई था।
- परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि कस्टम क्लीयरेंस न होने की वजह से दिनांक 26/7/2010 को मुम्बई पहुँचने पर ट्रांसपोर्टर ने परिवादी का माल हिना वेयर हाउस नवी मुम्बई में रख दिया यह वेयर हाउस ट्रांसपोर्टर ने किराऐ पर ले रखा है। परिवादी के अनुसार उसी दिन शार्ट सर्किट से हिना वेयर हाउस में आग लग गई और परिवादी का सारा माल उसमें नष्ट हो गया। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि कस्टम क्लीयरेंस न होने तथा मुम्बई पोर्ट में माल ले जाने हेतु जहाज उपलब्ध न हो पाने की वजह से ट्रासपोर्टर ने हिना वेयर हाउस में माल रखा था और माल बिल्टी में उल्लिखित डेस्टीनेशन पर पहुँच नहीं पाया था ऐसी दशा में जब माल कस्टम क्लीयरेंस डिपार्टमेंट अथवा मुम्बई पोर्ट पर पहुँच ही नहीं पाया था और माल आग में नष्ट हो गया तब परिवादी को पालिसी के अनुसार बीमा क्लेम मिलना चाहिए। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने परिवाद के साथ दाखिल विपक्षी सं0-2 को लिखे पत्रों और अनुस्मारक पत्रों (कागज सं0-3/21 लगायत 3/25) की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुऐ कथन किया कि बार-बार अनुरोध के बावजूद विपक्षीगण ने परिवादी का क्लेम नहीं दिया और ऐसा करके विपक्षीगण ने सेवा में कमी की और अनुचित व्यापार प्रथा अपनाई। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार परिवाद में अनुरोधित अनुतोष परिवादी को दिलाऐ जाने चाहिऐ।
- परिवादी पक्ष की ओर से दिऐ गऐ तर्को के उत्तर में विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सर्वप्रथम यह कहा गया कि परिवाद कालबाधित है। इस तर्क को आगे बढ़ाते हुऐ विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने कहा कि आग लगने की घटना दिनांक 26/7/2010 की बताई गई है जबकि परिवाद दिनांक 06/2/2015 को प्रस्तुत किया गया है इस प्रकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-24 (क) के अनुसार परिवाद कालबाधित है। उन्होंने अग्रेत्तर यह भी तर्क दिया कि परिवादी का यह कथन असत्य है कि उसका क्लेम निस्तारित नहीं किया गया। विपक्षीगण के अनुसार वास्तविक्ता यह है कि न तो परिवादी ने कथित घटना की विपक्षीगण को कोई सूचना दी और न कोई बीमा दावा ही प्रस्तुत किया।
- पत्रावली में अवस्थित प्रपत्र कागज सं0-3/19 के अवलोकन से प्रकट है कि परिवादी ने विपक्षी सं0-2 के समक्ष बीमा दावा 18/10/2010 को प्रस्तुत कर दिया था। ई-मेल की नकल कागज सं0-8/8 लगायत 8/12 के अनुसार बीमा कम्पनी को घटना की सूचना दी जा चुकी थी, बीमा कम्पनी ने नुकसान के आंकलन हेतु अपना सर्वेयर भी नियुक्त किया था जिसने परिवादी के बीमित माल का नुकसान लगभग 90,000/- रू0 का होना पाया था। यह ई-मेल नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी के सहायक प्रबन्धक श्री रमन ओवराय द्वारा भेजा गया था। ऐसी दशा में विपक्षीगण के इस तर्क में कोई बल दिखाई नहीं देता कि परिवादी ने बीमा कम्पनी को घटना की सूचना नहीं दी और बीमा दावा प्रस्तुत नहीं किया।
- मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली द्वारा रिवीजन पिटीशन सं0-1409 सन् 2005, न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम प्रदीप माहेश्वरी के मामले में यह व्यवस्था दी गयी है कि यदि बीमित व्यक्ति ने बीमा कम्पनी के समक्ष क्लेम प्रस्तुत कर दिया है तो वाद हेतुक क्लेम अस्वीकृत किऐ जाने की तिथि से उत्पन्न होगा। यदि बीमित व्यक्ति का क्लेम बीमा कम्पनी के पास लम्बित है तो ऐसी दशा में परिवाद के कालबाधित होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। यह निगरानी मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिनांक 04/3/2009 को निरस्तारित की गयी थी।
- लिमिटेशन एक्ट के आर्टीकल-44 (बी.) के अनुसार यदि बीमित व्यक्ति ने बीमा कम्पनी के समक्ष क्लेम प्रस्तुत कर दिया है तो क्लेम को अस्वीकृत किऐ जाने की तिथि से वाद हेतुक उत्पन्न होना माना जायेगा।
- सिरपुर पेपर मिल्स लिमिटेड बनाम नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी, II (1997) सी.पी.जे. पेज-36 की निर्णयज विधि मे मा0 राष्ट्रीय आयोग की पूर्ण पीठ द्वारा तथा ओरियन्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम प्रेम प्रिटिंग प्रेस, I (2009) सी.पी.जे. पृष्ठ-55 की निर्णयज विधि में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह व्यवस्था दी गयी है कि जिस तिथि को बीमा कम्पनी बीमित व्यक्ति के क्लेम को अस्वीकृत करती है, उस तिथि से परिवाद योजित करने का वाद हेतुक उत्पन्न होता है।
- IV(2013) सी.पी.जे. पृष्ठ-607 (एन.सी.), देवेन्द्र सिंह बनाम ओरियन्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड के मामले में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्ली द्वारा निर्णय के पैरा सं0-9 में निम्न व्यवस्था दी गई है:-
‘’ ……… Admittedly this is a case of Insrance claim which was still under consideration of the Insurance Company. Therefore, till the Insurance Company had taken the decision on the complaint, the cause of action for filing the complaint continued. Therefore, in our considered view the State Commission has committed a gave error in holding that the complaint was barred by limitation. ‘’
18. उपरोक्त निर्णयज विधियो के अनुसार किसी भी दृष्टि से परिवाद टाइमवार्ड नहीं है।
20. अब देखना यह है कि क्या परिवादी द्वारा हरे कृष्णा रोडवेज कारपोरेशन के माध्यम से मुम्बई भेजा गया माल डेस्टीनेशन पर पहुँच गया था अथवा नहीं पत्रावली में अवस्थित ट्रांसपोर्टर हरे कृष्णा रोडवेज कारपोरेशन की बिल्टी कागज सं0-3/9 के अवलोकन से प्रकट है कि प्रश्नगत माल मुरादाबाद से नेवाशेवा जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट, मुम्बई ले जाया जाना था। स्वीकृत रूप से हिना वेयर हाउस जहॉं आग लगने के कारण दिनांक 26/7/2010 को परिवादी का प्रश्नगत माल नष्ट हुआ, मुम्बई स्थित कोई पोर्ट (बन्दरगाह) नहीं है। माल की बीमा पालिसी की नकल कागज सं0-3/7 के अनुसार माल मुरादाबाद से मुम्बई पोर्ट तक के लिए यात्रा के दौरान न्यू इंडिया इंश्योरेंस कम्पनी द्वारा बीमित किया गया था। आग लगने की घटना बीमा अवधि की है। इस तरह पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री और अभिलेखों से यह भलीभांति प्रमाणित है कि प्रश्नगत माल बीमा पालिसी में उल्लिखित डेस्टीनेशन पर नहीं पहुँचा था और ट्रांजिट था।
21. विपक्षीगण की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि इस फोरम को परिवाद की सुनवाई का भौगोलिक क्षेत्राधिकार नहीं है। इस सन्दर्भ में उन्होंने हमारा ध्यान विपक्षी सं0-1 के सहायक प्रबन्धक श्री रमन ओवराय के साक्ष्य शपथ पत्र के पैरा सं0-17 की ओर आकर्षित किया। हमने पाया कि विपक्षीगण की ओर से उठाऐ गऐ इस तर्क में कोई बल नहीं है क्योंकि बीमा पालिसी जारी करने वाली शाखा का पता बीमा पालिसी की नकल कागज सं0-3/7 में ‘’ अलीपुर चौपुला, नेशनल हाईवे, गजरौला, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश ’’ अंकित है। कहने का आशय यह है कि बीमा सर्टिफिकेट के अनुसार बीमा पालिसी जारी करने वाली ब्रांच जनपद मुरादाबाद के क्षेत्रान्तर्गत स्थित है।
22. उपरोक्त विवेचना से प्रकट है कि विपक्षीगण ने परिवादी का क्लेम निस्तारित ने कर सेवा में कमी और अनुचित व्यापार प्रथा अपनाई है। परिवाद कालबाधित होना नहीं पाया गया है। नष्ट हुऐ परिवादी के 9 कार्टन्स की कीमत 85109 = 20 पैसा थी। परिवादी यह धनराशि परिवाद योजित किऐ जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित विपक्षीगण से पाने का अधिकारी है। इसके अतिरिक्त क्षतिपूर्ति की मद में परिवादी को एकमुश्त 25,00/- (दो हजार पांच रूपया) तथा परिवाद व्यय की मद में 2500/- (दो हजार पाँच सौ रूपया) अतिरिक्त दिलाया जाना भी न्यायोचित होगा। तदानुसार परिवाद स्वीकार होने योग्य है।
परिवाद योजित किऐ जाने की तिथि से वास्तविक वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित 85109 = 20 पैसा (पिचासी हजार एक सौ नो रूपया बीस पैसा) की वसूली हेतु यह परिवाद परिवादी के पक्ष में और विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। क्षतिपूर्ति की मद में परिवादी एकमुश्त 25,00/- (दो हजार पांच सौ रूपया) तथा परिवाद व्यय की मद में 2500/- (दो हजार पाँच सौ रूपया) विपक्षीगण से अतिरिक्त पाने का अधिकारी होगा। समस्त धनराशि की अदायगी इस आदेश की तिथि से दो माह के भीतर की जाय।
(श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन)
सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष
- 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
27.10.2016 27.10.2016 27.10.2016
हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 27.10.2016 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया।
(श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन)
सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष
- 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
27.10.2016 27.10.2016 27.10.2016