Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/27/2010

SHIV PRASAD - Complainant(s)

Versus

NATIONAL INSURANCE CO.LTD. - Opp.Party(s)

AVNI KUMAR

28 Feb 2022

ORDER

 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 27 सन् 2010

प्रस्तुति दिनांक 03.02.2010

                                                                                               निर्णय दिनांक 28.02.2022

शिव प्रसाद सिंह पुत्र स्वo बोधा सिंह निवासी ग्राम- कादीपुर, पोस्ट- दौलताबाद, थाना- जहानागंज, तहसील- सदर, जिला- आजमगढ़।      

     .........................................................................................परिवादी।

बनाम

    नेशनल इंoकंoलिo जरिए शाखा प्रबन्धक नेशनल इंoकंoलिo शाखा कार्यालय ठण्डी सड़क, मड़या, आजमगढ़।      

  1. विपक्षी।

उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

  •  

कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि वह बोलेरो संख्या यू.पी.50एन./1110 के मालिक हैं। उक्त वाहन बोलेरो व्यक्तिगत उपयोग हेतु पंजीकृत व बीमित है। उक्त बोलेरो का हमेशा परिवादी अपने व्यक्तिगत उद्देश्य हेतु ही इस्तेमाल करता था, उसका कभी भी व्यावसायिक उपयोग नहीं किया। दिनांक 14.09.2008 को अपराह्न लगभग 04 बजे मौजा- सेर्रा, थाना- मेंहनगर, जिला- आजमगढ़ में परिवादी की उक्त बोलेरो के सामने अचानक एक सायकिल सवार आ गया, जिसे बचाने में बोलेरो जीप अनियन्त्रित होकर नदी के पुल से टकराते हुए पलट गयी और लगभग 05 मीटर गहरी खांई में चली गयी, जिसकी वजह से उक्त गाड़ी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गयी एवं गाड़ी चालक इन्द्रासन यादव भी गम्भीर रूप से घायल हो गया। घटना के समय परिवादी की उक्त जीप विपक्षी के यहाँ से बीमित थी। जिसकी सूचना विपक्षी को दिया गया। उक्त वाहन के मरम्मत आदि में लगने वाले खर्च के सम्बन्ध में स्टीमेट विपक्षी को दिया गया एवं गाड़ी बनने पर उसके बनवाने में हुए खर्च के सम्बन्ध में 61,156/- रुपए का बिल भी विपक्षी को दिया गया। सभी कागजात मिलने के पश्चात् विपक्षी परिवादी को सूचित किया कि घटना दिनांक 14.09.2008 के समय उक्त वाहन के फिटनेस का प्रमाण पत्र उसे दिया जावे जिसके बाबत परिवादी द्वारा विपक्षी से बताया गया कि उसकी उपरोक्त गाड़ी व्यावसायिक वाहन नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत वाहन है एवं व्यक्तिगत उद्देश्य हेतु ही प्रयोग होती है। जिसके कारण उक्त बोलेरो जीप के लिए फिटनेस होना कानूनन एवं बीमा पॉलिसी की शर्तों के अनुसार आवश्यक नहीं है, जिस पर विपक्षी द्वारा परिवहन आयुक्त के पत्र दिसम्बर 2005 का हवाला दिया गया। परन्तु उक्त पत्र से भी स्पष्ट है कि व्यक्तिगत वाहन जो व्यक्तिगत उद्देश्य में ही उपयोग होता है, के लिए फिटनेस प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है। इसके अतिरिक्त फिटनेस प्रमाण पत्र के बाबत मोटर व्हेकिल ऐक्ट की धारा 56 में मात्र व्यावसायिक वाहनों के लिए ही फिटनेस प्रमाण पत्र का होना अनिवार्य किया गया है। परिवहन आयुक्त का उपरोक्त पत्र कानूनन मोटर व्हेकिल ऐक्ट के प्रावधान के ऊपर प्रीवेल नहीं करेगा। उपरोक्त बीमा पॉलिसी, मोटर व्हेकिल ऐक्ट के अन्तर्गत जारी है और मोटर व्हेकिल ऐक्ट के प्रावधानों के अन्तर्गत ही पक्षों की जिम्मेदारी तय होगी और मोटर व्हेकिल ऐक्ट में व्यक्तिगत वाहन के लिए फिटनेस अनिवार्य होने की शर्त कहीं पर भी दर्ज नहीं है। विपक्षी ने परिवादी के कथनों पर ध्यान दिए बिना अपने दावा दिनांक 31.07.2009 को क्लेम निरस्त कर दिया गया। अतः विपक्षी से परिवादी के बोलेरो जीप के मरम्मत में हुए व्यय मुo 61,156/- रुपए तथा उस पर दुर्घटना की तिथि से भुगतान की तिथि तक 18% वार्षित ब्याज की दर से एवं मानसिक व शारीरिक कष्ट के लिए हर्जा के रूप में मुo 10,000/- रुपए परिवादी को दिलाया जाए।   

परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 6/1 थानाध्यक्ष को दिए गए प्रार्थना पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 6/2 डी.एल. की छायाप्रति, कागज संख्या 6/3 सर्टिफिकेट ऑफ रजिस्ट्रेशन की छायाप्रति, कागज संख्या 6/4 सर्टिफिकेट ऑफ इन्श्योरेन्स की छायाप्रति, कागज संख्या 26/1ता26/3 इस्टीमेट की छायाप्रति तथा कागज संख्या 26/4 क्लेम निरस्तीकरण प्रपत्र की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।   

कागज संख्या 9क² विपक्षी द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि परिवाद पत्र परिवादी विधि एवं तथ्यों के विपरीत प्रस्तुत किया है। परिवादी ने घटना दिनांक 14.09.2008 के घटित होने की सूचना विपक्षी बीमा कम्पनी में शाखा आजमगढ़ को दिया जिस पर विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा स्वतन्त्र सर्वेक्षक को नियुक्त करके उक्त वाहन का स्पाट सर्वे व फाईनल सर्वे कराया गया। बीमा पॉलिसी की शर्तों व कम्पनी के नियमों के अनुसार परिवादी के वाहन में हुई कुल क्षतिपूर्ति की धनराशि 45,200/- हुई जिसका भुगतान परिवादी को कर भी दिया जाता यदि परिवादी द्वारा बीमा पॉलिसी के नियमों व शर्तों का उल्लंघन न किया गया होता। परिवादी द्वारा प्रेषित वाहन से सम्बन्धित प्रपत्रों के जाँचोपरान्त यह तथ्य प्रकाश में आया कि उक्त वाहन का फिटनेश दुर्घटना दिनांक 14.09.2008 को नहीं था। जिसे परिवादी ने अपने परिवादी पत्र की धारा 6 में स्वीकार भी किया है। विपक्षी द्वारा परिवादी को उक्त आशय की सूचना दी गयी तथा परिवहन आयुक्त के सरकुलर दिनांक 12.12.2005 का हवाला दिया गया जिससे स्पष्ट रूप से यह आदेश जारी हुआ कि चालक को छोड़कर 06 सीट से अधिक पंजीकृत प्रत्येक निजी वाहन का फिटनेश होना अनिवार्य है। उक्त दुर्घटनाग्रस्त वाहन 08 इन ऑल (7+1) में पंजीकृत है तथा पंजीकरण के समय ही वाहन संख्या यू.पी. 50 एन.1110 का फिटनेश दिनांक 19.07.2006 से 18.07.2008 तक के लिए प्रभावी था जो दुर्घटना तिथि दिनांक 14.09.2008 को कवर नहीं करता जो बीमा पॉलिसी के अनुबन्धों का स्पष्ट उल्लंघन है और ऐसी परिस्थितियों में प्रतिकर देयता की सम्पूर्ण जिम्मेदारी विपक्षी की न होकर वाहन स्वामी की ही है। अतः परिवाद खारिज किया जाए।   

विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी द्वारा कागज संख्या 13/1 नेशनल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड लखनऊ के प्रपत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 13/2 बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी को फिटनेश प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए दी गयी सूचना पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 13/3 बीमा कम्पनी द्वारा वाहन स्वामी को दिए गए प्रार्थना पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 13/4 बीमा कम्पनी द्वारा दिया गया इस आशय का पत्र कि दुर्घटना के दिन फिटनेश प्रभावी नहीं था, की छायाप्रति, कागज  संख्या 16/1व2 दीप आटो मोबाइल के बिल की छायाप्रति, कागज संख्या 18 एफ.आई.आर. की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।

बहस के दौरान पुकार कराए जाने पर उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित आए तथा उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं ने अपना-अपना बहस सुनाया। बहस सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। कागज संख्या 13/1 के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि इसके पैरा 01 में यह लिखा हुआ है कि बीमा आर.टी.ओ. के रूल के अनुसार ही किया जाता है। वाहन का केवल दो साल का फिटनेस दिया गया था, लेकिन दुर्घटना के दिन उसका फिटनेस प्रमाण पत्र नहीं था। अतः उसके लिए परिवादी को सूचित किया गया, लेकिन उसने फिटनेस प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया। इसलिए उसका क्लेम निरस्त कर दिया। “एम.वी.ऐक्ट 1988 की धारा-56” के ‘प्रावधान 59 एवं 60 की धारा- 39’ के अनुसार ट्रान्सपोर्ट वेहिकिल का ही फिटनेस चाहिए। इसी धारा की ‘उपधारा-33’ के अनुसार यदि वाहन पर ड्राइवर के अतिरिक्त 06 व्यक्तियों को बैठने की सुविधा है और उसका उपयोग व्यापार के लिए नहीं किया जाता है तो उसे एम.वी.ऐक्ट के तहत पब्लिक उद्देश्य से प्रयोग किया जाना नहीं माना जाएगा। इस प्रकार चूंकि आर.टी.ओ. के रूल पर एम.वी.ऐक्ट प्रभावी है। अतः बीमा कम्पनी का यह कहना कि वाहन का फिटनेस नहीं था, गलत है। विपक्षी ने अपने जवाबदावा के पैसा 14 में यह लिखा है कि यदि वाहन का फिटनेस होता तो उसे मुo 45,200/- रुपए का भुगतान कर दिया गया होता और फिटनेस के अभाव में यह धनराशि उसको भुगतान नहीं की जा सकती है।

उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य है। 

आदेश

    परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को मुo 45,200/- (रु.पैंतालीस हजार दो सौ मात्र) रुपए अन्दर 30 दिन भुगतान करे, जिस पर परिवाद दाखिला की तिथि से अन्तिम भुगतान की तिथि तक 09% वार्षिक ब्याज भी देय होगा।

 

 

 

 

 

                                                                          गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह 

                                                        (सदस्य)                             (अध्यक्ष)

 

            दिनांक 28.02.2022

                                                यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

 

                                               गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह

                                                                 (सदस्य)                             (अध्यक्ष)

 

 

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