जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण अजमेर
श्री अनिल कुमार पुत्र भगवान सहारय, जाति- यादव, उम्र- 37 वर्ष, निवासी- षिव मंदिर के सामने, आजाद नगर, मदनगंज-किषनगढ, जिला-अजमेर ।
प्रार्थी
बनाम
नेषनल इन्ष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड जरिए षाखा प्रबन्धक, स्टेषन रेाड, मदनगंज-किषनगढ, जिला-अजमेर ।
अप्रार्थी
परिवाद संख्या 259/2013
समक्ष
1. गौतम प्रकाष षर्मा अध्यक्ष
2. विजेन्द्र कुमार मेहता सदस्य
3. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
उपस्थिति
1.श्री सिराजुद्दीन, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री ए.एस. ओबराय, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- आदेष:ः- दिनांकः- 13.03.2015
1. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि प्रार्थी का वाहन संख्या आर.जे.01.जी0ए0 1256 अप्रार्थी बीमा कम्पनी के यहां परिवाद की चरण संख्या 2 में वर्णित अनुसार बीमा पाॅलिसी के जरिए अवधि दिनंाक 4.9.2006 से 3.9.2007 तक बीमित था । उक्त वाहन दिनंाक 20.8.2007 को मैनपुरी(उत्तरप्रदेष) में दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसका मुकदमा संख्या 631/07 गुलाम साबिर बनाम अनिल कुमार वगैरह एमएसीटी न्यायालय, इटावा में चला और उसमें दिनंाक 4.6.2010को रू. 3,69,000/- का अवार्ड पारित करते हुए प्रार्थीगण को उक्त अवार्ड राषि इस प्रार्थी से दिलाए जाने के आदेष हुए । उक्त अवार्ड पारित होने के पूर्व संबंधित न्यायालय से उक्त मुकदमें से नोटिस प्राप्त होने पर प्रार्थी से दिनांक 18.9.07 व 24.9.2007 को अप्रार्थी बीमा कम्पनी से सम्पर्क कर उक्त क्लेम में पैरवी करने का निवेदन किया किन्तु अप्रार्थी बीमा कम्पनी उक्त न्यायालय में उपस्थित नहीं हुई और उक्तानुसार अवार्ड राषि प्रार्थी को अदा करने के लिए जिम्मेदार ठहराया । दिनांक 26.5.2011 को उपखण्ड अधिकारी, किषनगढ से उक्त अवार्ड राषि जमा कराने का नोटिस प्राप्त हुआ जिस पर उसने अप्रार्थी बीमा कम्पनी से अवार्ड राषि जमा कराने का कई बार निवेदन किया किन्तु अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने राषि जमा नहीं करा कर सेवा में कमी कारित की है । प्रार्थी ने परिवाद प्रस्तुत करते हुए वांछित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है ।
2. अप्रार्थी बीमा कम्पनी की ओर से जवाब पेष हुआ जिसमें प्रारम्भिक आपत्तियां ली गई जिसमें दर्षाया गया कि जिस कार्यवाही को आधार मानकर उक्त परिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया है उक्त कथित कूर्की कार्यवाही उक्त प्रकरण से संबंधित ही नहीं है उक्त कूर्की कार्यवाही में कुर्क की जाने वाली राषि 105311/- व 462430/- ब्याज का उल्लेख है जबकि मोटर यान अधिकरणर, इटावा के द्वारा पारित अवार्ड राषि रू. 3,69,000/- है इस प्रकार दोनो राषियां भिन्न भिन्न है । इससे स्पष्ट है कि प्रार्थी के द्वारा गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया गया है । प्रार्थी के पास मोटर यान अधिकरण के द्वारा पारित अववार्ड व लम्बित कूर्की कार्यवाही के विरूद्व अन्तर्गत मोटर यान अधिनियम व व्यवहार प्रक्रिया संहिता के तहत विधिक उपचार उपलब्ध है । मोटर यान अधिकरण, इटावा के द्वारा पारित अवार्ड व लम्बित कुर्की कार्यवाही के विरूद्व मंच को सुनवाई का अधिकार नहीं होने से परिवाद खारिज होने योग्य है ।
आगे मदवार जवाब प्रस्तुत करते हुए प्रार्थी के वाहन को बीमित होना स्वीकार करते हुए दर्षाया है कि प्रार्थी ने मोटर यान अधिकरण, इटावा के समक्ष उपस्थित होने बाबत् कोई निर्देष नहीं दिए गए और ना ही प्रार्थी ने स्वयं की ओर से पैरवी करने के लिए कोई वकालतनामा ही अप्रार्थी को उपलब्ध कराया गया । उक्त अधिकरण ने प्रार्थी द्वारा फौजदारी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत चालक अनुज्ञा पत्र को आधार मान कर उसे अस्पष्ट मानते हुए अवार्ड पारित किया गया है । उक्त अधिकरण ने बीमा पाॅलिसी की ष्षर्तो का उल्लंघन पाए जान पर ही बीमा कम्पनी को दायित्व से मुक्त किया गया है और बीमा पाॅलिसी की षर्तो का उल्लंघन प्रार्थी स्वयं के दस्तावेज के आधार पर पाया जाने पर प्रार्थी के विरूद्व अवार्ड पारित किया गया है । अन्त में परिवाद खारिज होना दर्षाया ।
3. हमने पक्षकारान के अधिवक्तागण को सुना एवं पत्रावली का अनुषीलन किया ।
4. सबसे पहले हमें यह अभिनिर्धारित करना है कि प्रार्थी की ओर से जो यह परिवाद लाया गया है, के संबंध में प्रार्थी व अप्रार्थी के मध्य सेवा प्रदाता व उपभोक्ता के संबंध है ? अधिवक्ता प्रार्थी की इस संबंध में बहस रही है कि प्रार्थी का वाहन ट्रक संख्या आर.जे.01. जी.ए. 1256 अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा अवधि दिनंाक 4.9.2006 से 3.9.2007 तक बीमित था । दुर्घटना से संबंधित तथ्य इस तरह से है कि दिनंाक 20.8.2007 को प्रार्थी का यह वाहन एक बोलेरों से टकराया एवं उक्त दुर्घटना में बोलेरा में बैठे जमील अहमद नाम के व्यक्ति की मौके पर ही मृत्यु हो गई । उक्त जमील अहमद के परिवारजन की ओर से एक एम.ए.सी.टी. वाद संख्या 631/2007 मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण, इटावा में प्रस्तुत हुआ एवं उक्त वाद में प्रार्थी अनिल कुमार जो कि अप्रार्थी संख्या 1 वाहन स्वामी के रूप में वर्णित था, के उपस्थित नहीं होने से एक पक्षीय कार्यवाही हुई एवं निर्णय उपरान्त हस्तगत प्रकरण के प्रार्थी अनिल कुमार के विरूद्व रू. 3,69,000/- की डिक्री पारित हुई एवं अप्रार्थी बीमा कम्पनी सहित अन्य अप्रार्थीगण के विरूद्व मामला बनना नहीं पाया । इस परिवाद में प्रार्थी का कथन है कि उसने उक्त एम.ए.सी.टी. दुर्घटना के नोटिस जो प्राप्त हुए उन्हें अप्रार्थी बीमा कम्पनी को उसकी ओर से पैरवी करने हेतु सौंप दिए थे लेकिन अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने उसकी ओर से पैरवी नहीं की । परिणामस्वरूप उक्त परिवाद में प्रार्थी के विरूद्व उपर वर्णित अनुसार डिक्री जारी हुई । इस तरह से अधिवक्ता प्रार्थी की बहस है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी का यह दायित्व था कि वह प्रार्थी की ओर से उक्त एमएसीटी प्रकरण में पैरवी करते जो उनके द्वारा नहीं की गई । अतः उनके पक्ष में सेवा में कमी पाई जाती है क्योंकि प्रार्थी का वाहन इस अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा बीमित था । अतः प्रार्थी व अप्रार्थी बीमा कम्पनी के मध्य सेवा प्रदाता व उपभोक्ता के संबंध है । इस तरह से प्रार्थी अप्रार्थी बीमा कम्पनी का उपभोक्ता है । हमने अप्रार्थी बीमा कम्पनी के अधिवक्ता को भी सुना ।
5. यदि प्रार्थी के उपर वर्णित कथनों को मान भी लिया जाए तब भी एमएसीटी न्यायालय से प्राप्त नोटिस व अन्य कागजात अप्रार्थी बीमा कम्पनी को सौपे हो , तथ्य सिद्व नहीं हुआ है और ना ही अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने इस तथ्य को स्वीकार किया है । प्रार्थी की ओर से अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा जो बीमा पाॅलिसी प्रष्नगत वाहन के संबंध में जारी हुई, कि कोई ऐसी षर्त नहीं दर्षाई है जिसमें प्रार्थी के बताए अनुसार दायित्व अप्रार्थी बीमा कम्पनी का होता हो । प्रार्थी की ओर से अन्य कोई विधि भी इस संबंध में नहीं दषाई है । जबकि एमएसीटी प्रकरण के मामले की अपील के प्रावधान दिए हुए है एवं प्रार्थी के लिए आवष्यक था कि वह अपने विरूद्व हुए फैसले की अपील संबंधित उच्च न्यायालय में करता जो प्रार्थी द्वारा नहीं की गई है एवं उसके द्वारा यह परिवाद स्वयं का अप्रार्थी बीमा कम्पनी का उपभोक्ता बतलाते हुए लाया गया है । प्रार्थी का मामला उसके वाहन में हुए नुकसान से संबंधित नहीं है ।
6. उपरोक्त विवेचन से हमारा निष्कर्ष है कि प्रार्थी ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी की सेवाएं कोई प्रतिफल देकर इस हेतु प्राप्त नहीं की है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी उसकी ओर से मामले की पैरवी करने हेतु बाध्य थी या उनकी ओर से प्रार्थी के लिए पैरवी करना आवष्यक था । अतः हम प्रार्थी व अप्रार्थी बीमा कम्पनी के मध्य परिवाद में जो विवाद लाया गया है , हेतु सेवा प्रदाता एवं उपभोक्ता का रिष्ता नहीं पाते है । परिणामस्वरूप प्रार्थी अप्रार्थी बीमा कम्पनी का इस परिववाद में लाए गए विवाद हेतु उपभोक्ता नहीं है एवं प्रार्थी का यह परिववाद स्वीकार होने योग्य नहीं है । अतः आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
7 प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
(विजेन्द्र कुमार मेहता) (श्रीमती ज्योति डोसी) (गौतम प्रकाष षर्मा)
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8. आदेष दिनांक 13.03.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
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