Uttar Pradesh

StateCommission

A/345/2016

DRM N.C. Railway - Complainant(s)

Versus

Nathuram Porwal - Opp.Party(s)

P.P. Srivastva

12 Dec 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/345/2016
(Arisen out of Order Dated 29/01/2016 in Case No. C/06/2009 of District Etawah)
 
1. DRM N.C. Railway
Allahabad
...........Appellant(s)
Versus
1. Nathuram Porwal
Etawah
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 HON'BLE MR. Jitendra Nath Sinha MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 12 Dec 2016
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-345/2016

(सुरक्षित)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, इटावा द्वारा परिवाद संख्‍या 06/2009 में पारित आदेश दिनांक 29.01.2016 के विरूद्ध)

1. मण्‍डल रेल प्रबन्‍धक उत्‍तर मध्‍य रेलवे मण्‍डल इलाहाबाद

2. मण्‍डल रेल प्रबन्‍धक मध्‍य रेलवे मुम्‍बई

3. मुख्‍य टिकट निरीक्षक, भुसावल

4. चेयरमैन रेलवे बोर्ड दिल्‍ली, बड़ौदा हाऊस नई दिल्‍ली

                        ....................अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

बनाम

नाथूराम पोरवाल पुत्र श्रीनिवास पोरवाल निवासी-आजाद रोड कस्‍बा व परगना भरथना, जिला-इटावा        ................प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्री जितेन्‍द्र नाथ सिन्‍हा, सदस्‍य।

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित  : श्री पी0पी0 श्रीवास्‍तव,                     

                                  विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री ए0के0 पाण्‍डेय,

                          विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक: 09-02-2017        

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

परिवाद संख्‍या-06/2009 नाथूराम पोरवाल बनाम श्रीमान मण्‍डल रेल प्रबन्‍धक उत्‍तर मध्‍य रेलवे मण्‍डल इलाहाबाद आदि में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, इटावा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 29.01.2016 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्‍त परिवाद के विपक्षीगण मण्‍डल रेल प्रबन्‍धक उत्‍तर मध्‍य रेलवे मण्‍डल इलाहाबाद आदि की ओर से धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

 

-2-

आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी का परिवाद अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध 65,950/-रू0 की वसूली हेतु स्‍वीकार करते हुए अपीलार्थी/विपक्षीगण को आदेशित किया है कि वे वाद योजन की तिथि से वास्‍तविक भुगतान की तिथि तक 07 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज सहित उपरोक्‍त धनराशि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को एक मास के अन्‍दर अदा करें। इसके साथ ही जिला फोरम ने रेलवे विभाग को यह छूट दी है कि यदि वह ठीक समझे तो विभाग को हुई क्षति की सम्‍पूर्ण धनराशि मय ब्‍याज के सम्‍बन्धित अधिकारी व कर्मचारी के वेतनभत्‍तों, भविष्‍य निधि अथवा पेंशन जैसी भी स्थिति हो, से वसूल कर सकता है।

अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से  उनके  विद्वान  अधिवक्‍ता  श्री पी0पी0 श्रीवास्‍तव एवं प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से उनके विद्वान अधिवक्‍ता श्री ए0के0 पाण्‍डेय उपस्थित आए हैं।

वर्तमान अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने उपरोक्‍त परिवाद जिला फोरम, इटावा के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसे अपनी पुत्री की शादी के सिलसिले में रायपुर बंगलौर जाना था। अत: उसने अपीलार्थी/विपक्षीगण की तत्‍काल सेवा के अन्‍तर्गत ई बुकिंग के जरिए अपने व अपनी पत्‍नी और दो बेटियों के लिए कर्नाटक एक्‍सप्रेस से आगरा से बंगलौर सिटी के लिए चार बर्थ ए0सी0 थ्री टायर की बुकिंग दि0 2.8.2008 को कराया। इस पर पी0एन0आर0 सं0 2251303078 पर उसे  चार  बर्थ  कन्‍फर्म  की  बुकिंग  की

 

-3-

गयी। बुकिंग करने वाले द्वारा पहचान पत्र की मांग की गयी, तो उसने अपना वोटर आई0डी0 यू0पी0/67/306/303055 दिखाया। उसके बाद नियत तिथि 07.08.2008 को आगरा से उसने उपरोक्‍त ट्रेन के द्वारा यात्रा प्रारम्‍भ की और जब दिनांक 08.08.2008 को वह अपने परिवार के साथ रेलवे स्‍टेशन भुसावल पहुँचा, तब अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-2 मण्‍डल रेल प्रबन्‍धक मध्‍य रेलवे मुम्‍बई द्वारा फोटो पहचान पत्र की मांग की गयी। तब उसने वोटर आई0डी0 कार्ड दिखाया तो उन्‍होंने कहा कि यह फोटो स्‍टेट है। इसके साथ ही उसने अभद्र भाषा का प्रयोग किया और प्रत्‍यर्थी/परिवादी से 11,000/-रू0 वसूल किए, परन्तु 10,924/-रू0 की ही रसीद दी और 50/-रू0 वापस किये तथा फुटकर न होने की बात कहकर चले गए।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि तत्‍काल सेवा में पहचान पत्र दिखाने का प्राविधान रद्द कर दिया गया है। अत: उससे अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-2 द्वारा पहचान पत्र की मांग किया जाना तथा उपरोक्‍त धनराशि वसूल किया जाना अनुचित व्‍यापार पद्धति है और सेवा में कमी है। अत: प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्‍तुत कर उपरोक्‍त धनराशि 10,950/-रू0 24 प्रतिशत सालाना ब्‍याज सहित वापस दिलाए जाने का निवेदन किया है और साथ ही क्षतिपूर्ति के रूप में 50,000/-रू0 और वाद व्‍यय के रूप में 5000/-रू0 की मांग की है।

 

 

-4-

अपीलार्थी/विपक्षीगण संख्‍या-1 ता 3 की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्‍तुत कर परिवाद का विरोध किया गया है।

अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-1 की ओर से प्रस्‍तुत किए गए लिखित कथन में जिला फोरम, इटावा के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी गयी है और कहा गया है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी रेलवे का उपभोक्‍ता नहीं है। वह टिकट जारी करने वाली संस्‍था आई0आर0सी0टी0सी0 का उपभोक्‍ता है।

अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-2 की ओर से अपने लिखित कथन में कहा गया है कि उसे अनावश्‍यक रूप से पक्षकार बनाया गया है।

अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-3 की ओर से अपने लिखित कथन में कहा गया है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने पहचान पत्र की फोटो    प्रति दिखायी थी, जबकि मूल प्रमाण पत्र दिखाना आवश्‍यक     था।

अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-4 की ओर से कोई लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत नहीं किया गया है।

जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों का परिशीलन कर यह निष्‍कर्ष निकाला है कि परिवाद जिला फोरम, इटावा के अधिकार क्षेत्र में है और उसे सुनवाई का अधिकार है। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में यह निष्‍कर्ष निकाला है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को अनाधिकृत रूप से वसूले गए 10,950/-रू0, मानसिक कष्‍ट की क्षतिपूर्ति हेतु 50,000/-रू0 और वाद  व्‍यय  हेतु  5000/-रू0  कुल  65,950/-रू0  दिलाया  जाना

 

 

-5-

न्‍यायोचित है। अत: तदनुसार जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।

अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्‍य और विधि के विरूद्ध है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी से पहचान पत्र की मांग नियमानुसार की गयी है और प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पास मूल प्रमाण पत्र न होने के कारण उससे उपरोक्‍त धनराशि वसूल की गयी है, जो रेलवे के नियम के अनुकूल है। अपीलार्थी/विपक्षीगण ने न तो अनुचित व्‍यापार पद्धति अपनायी है और न ही सेवा में कोई कमी की है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्‍त कर परिवाद निरस्‍त किया जाना विधि की दृष्टि से आवश्‍यक है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता ने जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश का समर्थन करते हुए रेलवे की विज्ञप्ति नं0 2003/TG-I/20/P/Tatkal New Delhi, Dated 26/08/2004 (Commercial Circular No.33 of 2004)  सन्‍दर्भित   किया है और कहा है कि इस सर्कुलर के अनुसार यह प्राविधान किया गया है कि तत्‍काल टिकट के लिए न तो टिकट लेते समय और न ही यात्रा के दौरान पहचान पत्र की मांग की जाएगी।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि रेलवे के उपरोक्‍त सर्कुलर के अनुसार इस प्राविधान को 06 महीने बाद रिव्‍यू किया जाना था, परन्‍तु अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा उसे संशोधित रेलवे विभाग का सर्कुलर नहीं दिखाया गया है, जिससे यह

 

-6-

कहा जा सके कि पहचान पत्र की मांग न किए जाने का प्राविधान प्रत्‍यर्थी/परिवादी की घटना के समय समाप्‍त किया जा चुका था।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि टिकट ई टिकटिंग सेवा के माध्‍यम से भरथना, इटावा से खरीदा गया था। अत: जिला फोरम, इटावा को परिवाद सुनने का क्षेत्राधिकार है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अधिकार युक्‍त और विधिसम्‍मत है।

हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से अतिरिक्‍त लिखित बहस प्रस्‍तुत की गयी है, जिसके साथ प्रत्‍यर्थी/परिवादी के ई टिकटिंग सेवा से प्राप्‍त आरक्षण टिकट की फोटो प्रति प्रस्‍तुत की गयी है। इससे स्‍पष्‍ट है कि टिकट भरथना, इटावा से प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने प्राप्‍त किया है। अत: परिवाद जिला फोरम, इटावा की स्‍थानीय क्षेत्राधिकारिता में है, परन्‍तु इस आरक्षण टिकट के अवलोकन से यह भी स्‍पष्‍ट होता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी का टिकट उसके वोटर आई0डी0 UP/67/306/303055 के आधार पर जारी किया गया है और इस आरक्षण टिकट में स्‍पष्‍ट रूप से उल्‍लेख है कि यात्री को अपना यह पहचान प्रमाण पत्र मूल रूप से यात्रा के दौरान साथ रखना होगा। प्रत्‍यर्थी/परिवादी इसी टिकट के आधार पर कथित घटना के समय रेल यात्रा कर रहा था। चूँकि टिकट में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी अपना उपरोक्‍त पहचान प्रमाण पत्र मूल रूप से अपने पास यात्रा के समय रखेगा, ऐसी स्थिति में प्रत्‍यर्थी/परिवादी इस शर्त का पालन करने हेतु  कानूनन  बाध्‍य  था

 

-7-

और ऐसी स्थिति में यह दर्शित करने का भार प्रत्‍यर्थी/परिवादी पर है कि वर्ष 2008 में भी तत्‍काल टिकट के लिए पहचान प्रमाण पत्र की आवश्‍यकता नहीं रही है, परन्‍तु वह यह दर्शित नहीं कर सका है कि वर्ष 2008 में भी कथित घटना के समय तत्‍काल टिकट पहचान प्रमाण पत्र से अवमुक्‍त था।

उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि जब प्रत्‍यर्थी/परिवादी के आरक्षण टिकट में ही यह स्‍पष्‍ट प्राविधान रहा है कि वह यात्रा के दौरान अपना उपरोक्‍त पहचान प्रमाण पत्र मूल रूप से रखेगा तो यात्रा के दौरान इस शर्त का पालन सुनिश्चित करने हेतु रेलवे विभाग के कर्मचारियों द्वारा जांच किया जाना या मूल प्रमाण पत्र मांगा जाना कदापि अनुचित व्‍यापार पद्धति नहीं कहा जा सकता है और न ही इसे सेवा में कमी कहा जा सकता है।

सम्‍पूर्ण तथ्‍यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्‍त हम इस मत के हैं कि यह मानने योग्‍य उचित और युक्‍तसंगत आधार नहीं है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण के कर्मचारियों ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी से मूल पहचान पत्र की जो मांग की है, वह विधि विरूद्ध है और पहचान पत्र प्रस्‍तुत न करने पर उन्‍होंने प्रत्‍यर्थी/परिवादी से जो वसूली की है, वह अनुचित है। अत: पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों के आधार पर हमारी राय में अपीलार्थी/विपक्षीगण को अनुचित व्‍यापार पद्धति अथवा सेवा में कमी का दोषी ठहराने हेतु उचित आधार नहीं है।

जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में सर्कुलर आदेश दिनांक 08.10.2008 और 31.10.2008 का  उल्‍लेख

 

-8-

किया है। यह दोनों सर्कुलर इस परिवाद पत्र की कथित घटना के बाद के हैं और इन्‍हें उभय पक्ष ने अपील में प्रस्‍तुत नहीं किया है, जबकि उपरोक्‍त विवेचना से स्‍पष्‍ट है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत आरक्षण टिकट में स्‍पष्‍ट रूप से अंकित है कि यात्री अपने साथ उल्लिखित पहचान पत्र मूल रूप से रखेगा।

अत: उपरोक्‍त निष्‍कर्षों के आधार पर अपील स्‍वीकार करते हुए जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्‍त किए जाने तथा प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

आदेश

अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 29.01.2016 अपास्‍त करते हुए प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद निरस्‍त किया जाता है।

उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत इस अपील में जमा की गयी धनराशि ब्‍याज सहित अपीलार्थी/विपक्षीगण को नियमानुसार वापस कर दी जाएगी।

 

     (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)      (जितेन्‍द्र नाथ सिन्‍हा)    

         अध्‍यक्ष                         सदस्‍य                   

 

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1            

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Jitendra Nath Sinha]
MEMBER

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