राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :648 /2008
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या-13/2005 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 29-11-2007 के विरूद्ध)
1- Union of India through the Secretary, Ministry of Post and Telegraph, New Delhi.
2- Senior Superintendent of Post Offices,Jaunpur, District-Jaunpur.
अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम्
Nasim Ahmad, S/o Late Shri Anwar Ali, R/o Sa. Mauza : Bartala Post-Khetasaraya, Tehsil; Shahgang District-Jaunpur.
प्रत्यर्थी/परिवादी
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री कृष्ण पाठक।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
- मा0 श्री महेश चन्द, पीठासीन सदस्य ।
- मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
दिनांक : 27-04-2018
मा0 श्री महेश चन्द, पीठासीन सदस्य द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-13/2005 नसीम अहमद बनाम् भारतीय डाक विभाग द्वारा डाक अधीक्षक, जौनपुर आदि में जिला उपभोक्ता फोरम, जौनपुर द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय एवं आदेश दिनांक 29-11-2007 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की है।
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संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने डाकघर खाता सराय जिला जौनपुर के माध्यम से एक अपना आवेदन पत्र स्पीड पोस्ट द्वारा दिनांक 24-11-2004 को लोक सेवा आयोग, इलाहाबाद के पते पर भेजे, किन्तु स्पीड पोस्ट द्वारा भेजे गये उक्त आवेदन पत्र इलाहाबाद में दिनांक 29-11-2004 को प्राप्त हुए, जबकि उक्त आवेदन पत्र की लोक सेवा आयोग, इलाहाबाद में जमा होने की अन्तिम तिथि दिनांक 27-11-2004 थी। विलम्ब से आवेदन पत्र पहुँचने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी आवेदित पदों पर साक्षात्कार में सम्मिलित नहीं हो सका। इस प्रकार डाक विभाग की लापरवाही एवं सेवा में कमी एवं अकर्मण्यता व गैर जिम्मेदारी के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को अपूर्णनीय क्षति हुई। इसी से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने हेतु परिवाद संख्या-13/2005 नसीम अहमद बनाम् भारतीय डाक विभाग जिला उपभोक्ता फोरम, जौनपुर के समक्ष दायर किया गया और परिवाद पत्र में क्षतिपूर्ति हेतु रू0 20,00,000/- क्षतिपूर्ति की मांग की गयी।
विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा अपीलार्थी/विपक्षीगण को नोटिस जारी किया गया। विपक्षीगण की ओर से परिवाद पत्र का विरोध करते हुए अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल किया गया
उभयपक्षों ने अपने-अपने अभिकथन के समर्थन में अपने-अपने साक्ष्य प्रस्तुत किये। उभयपक्षों को सुनने एवं उनके द्वारा प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों का परिशीलन करने के बाद विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है-
‘’परिवाद संख्या-13/2005 अंशत: स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि वे परिवादी को मु0 4,000/-रू0 एवं उस पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि दिनांक 19-01-2005 से देयता की तिथि तक 06 प्रतिशत ब्याज के साथ निर्णय होने की तिथि से दो माह के अंदर परिवादी को प्रदान करे। पक्षकार वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।‘’ उपरोक्त उल्लिखित आदेश दिनांक 29-11-2007 से क्षुब्ध होकर यह अपील दायर की गयी है।
अपील में जो आधार लिये गये है उनमें कथन किया गया है कि प्रश्नगत आदेश मनमाना, अवैधानिक तथा बिना किसी क्षेत्राधिकार के पारित किया गया है।
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अपील में यह भी अभिकथन किया गया है कि स्पीड पोस्ट दिनांक 24-11-2004 को पोस्ट आफिस खेतासराय, जौनपुर से बुक किया गया था और वह दिनांक 29-11-2004 को लोक सेवा आयोग, इलाहाबाद के दफ्तर में प्राप्त हो गया था। अपील में यह भी आधार लिया गया है कि बीच में गुरूनानक जयन्ती का अवकाश होने के कारण स्पीड पोस्ट के वितरण में विलम्ब हुआ। अपील के आधार में यह भी अभिकथन किया गया है कि पोस्ट आफिस अधिनियम की धारा-6 के अन्तर्गत डाक के गलत पते पते पर वितरित होने अथवा उसे विलम्ब से पहुँचाने अथवा डाक के क्षतिग्रस्त हो जाने पर, किसी भी प्रकार का दायित्व सरकार/डाक विभाग पर नहीं होगा। अपील में धारा-6 को निम्न प्रकार से अपने अपील के आधार में उद्धरत किया गया है।
Section-6 Exemption from liability for loss, miss-delivery, delay or damages.
“The Government shall not incur any liability by reason if the loss, miss-delivery or delay of, or damages to, any postal article in course of transmission by post, expect in so far as such liability may in express terms be undertaken by the Central Givernment as herein after provided, and no officer of the post office shall incur any liability by reason of any such loss, miss-delivery, delivery or damages, unless she has caused the same fraudulently or his willful act or default.”
अपील में यह आधार भी लिया गया है कि विद्धान जिला फोरम ने प्रश्नगत आदेश के द्वारा रू0 4,000/- क्षतिपूर्ति एवार्ड कर त्रुटि की है और उस पर 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी गलत एवं मनमाने ढंग से अनुमन्य किया है। अपीलार्थी/विपक्षी के स्तर पर सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की गयी है और अपील में प्रश्नगत आदेश को खण्डित करनेकी प्रार्थना की गयी है।
अपील में प्रत्यर्थी/परिवादी को नोटिस जारी किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी को नोटिस जारी किये जाने के बावजूद उसकी ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। प्रत्यर्थी/परिवादी पर नोटिस की तामीला पर्याप्त मानते हुए अपील में एकपक्षीय सुनवाई की गयी है।
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अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता डा0 उदयवीर सिंह के अधिकृत अधिवक्ता श्री कृष्ण पाठक उपस्थित हुए। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
पत्रावली पर उपलब्ध अभिलखों के परिशीलन से यह स्पष्ट है कि डाकघर अधिनियम-1898 की धारा-6 के अन्तर्गत डाकघर/सरकार को किसी भी डाक के गलत पते पर वितरित हो जाने अथवा उसे विलम्ब से पहुँचाने अथवा उसे क्षतिग्रस्त को जाने के कारण उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। अधिक से अधिक स्पीड पोस्ट पर हुए व्यय की धनराशि उसे वापस की जा सकती है। इस प्रकरण में भी डाक 2-3 दिन विलम्ब से वितरित हुई है क्योंकि बीच में गुरूनानक जयन्ती का अवकाश था। उपरोक्त उल्लिखित डाकघर अधिनियम-1898 की धारा-6 के अन्तर्गत इस प्रकार डाक वितरण में हुए विलम्ब के लिए शासन/डाकघर को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। इण्डियन पोस्ट आफिस रूल्स (स्पीड पोस्ट रूल्स की धारा-66-बी) के अन्तर्गत डाक के विलम्ब से वितरित होने के कारण क्षतिपूर्ति के रूप में स्पीड पोस्ट में हुए व्यय के लिए दोगुनी धनराशि का भुगतान परिवादी को किया जा सकता है। इस प्रकरण में भी अधिक से अधिक स्पीड पोस्ट पर लगाये गये डाक टिकटों की धनराशि की दुगनी धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी को डाक विभाग द्वारा वापस की जा सकती है। विद्धान जिला फोरम ने डाकघर के उपरोक्त प्राविधानों की अनदेखी करके त्रुटि की है और प्रश्नगत आदेश त्रुटिपूर्ण ढंग से पारित किया है जो खण्डित होने योग्य है।
अपीलार्थी की अपील में बल है। उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस मत के है कि प्रत्यर्थी/परिवादी अधिक-से-अधिक डाक टिकटों में व्यय हुई धनराशि की दुगनी धनराशि अपीलार्थी/विपक्षी से प्राप्त करने का अधिकारी है। अत: अपीलार्थी की अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। प्रश्गनत आदेश खण्डित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को
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उसके द्वारा डाक टिकटों में व्यय की गयी धनराशि की दुगनी धनराशि का भुगतान करें।
उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वंय वहन करेंगे।
उभयपक्षों को निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
( महेश चन्द ) ( गोवर्धन यादव )
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट नं0-3, प्रदीप मिश्रा, आशु0