(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2862/1999
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मुजफ्फर नगर द्वारा परिवाद संख्या-192/1997 में पारित निणय/आदेश दिनांक 15.09.1999 के विरूद्ध)
1. दि यू.पी. स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, द्वारा एग्जीक्यूटिव इंजीनियर, ई.डी.डी. I, शामली, मुजफ्फर नगर।
2. यू.पी. स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, द्वारा सु्प्रीटेंडिंग इंजीनियर, ई.डी.सी., मुजफ्फर नगर।
3. यू.पी. स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, द्वारा सब डिवीजनल आफिसर कैराना, मुजफ्फर नगर।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
नरेन्द्र सिंह पुत्र श्री महेन्द्र सिंह, निवासी राजपुर छाजपुर, तहसील बुढ़ाना, जिला मुजफ्फर नगर।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित - श्री इसार हुसैन, विद्वान अधिवक्ता के
सहयोगी अधिवक्ता श्री कासिम जैदी।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित - श्री वी0एस0 बिसारिया, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 19.08.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-192/1997, नरेन्द्र सिंह बनाम उ0प्र0 राज्य विद्युत परिषद तथा तीन अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, मुजफ्फर नगर द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 15.09.1999 के विरूद्ध यह अपील योजित की गई है। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया है कि बिल एवं डिमाण्ड नोटिस शून्य हैं, इन बिलों को वसूल न किया जाए। मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक प्रताड़ना की मद में अंकन 20,000/- रूपये तथा वाद व्यय व वकील फीस की मद में अंकन 3,000/- रूपये और रोजगार में बाधा उत्पन्न होने की मद में अंकन 500/- रूपये प्रतिमाह की दर से क्षतिपूर्ति अदा करने का आदेश दिया गया है।
2. परिवाद पत्र के तथ्य के अनुसार परिवादी ने 5 हार्स पावर के विद्युत कनेक्शन के लिए आवेदन दिनांक 13.03.1992 को किया। अंकन 8,168/- रूपये दिनांक 24.12.1992 को जमा किए। दिनांक 12.02.1993 को उप ख्ाण्ड अधिकारी विद्युत वितरण खण्ड द्वितीय कैराना ने इस आशय का पत्र जारी किया कि औद्योगिक योजना के अन्तर्गत अनुबंध हो चुका है। अत: लाइन प्रसार करा दिया जाए, परन्तु विपक्षीगण द्वारा लाइन नहीं खींची गई और विद्युत कनेक्शन जारी नहीं किया गया।
3. परिवाद पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि दिनांक 23.12.1995 को जबरन मीटर लगाकर चले गए और कहा कि तुम्हारी लाइन एक-दो दिन में खींची जाएगी, परन्तु परिवादी के पश्चात आवेदन करने वाले व्यक्तियों को विद्युत कनेक्शन दे दिए गए। दिनांक 25.12.1995 से दिनांक 25.01.1996 तक का विद्युत बिल रू0 91,165.30 पैसे का भेज दिया गया। अधिशासी अभियन्ता के समक्ष की गई शिकायत तथा उनके द्वारा दिए गए आदेशों का अनुपालन नहीं किया गया। विपक्षी संख्या-4 द्वारा निरीक्षण किया गया और अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि परिवादी के यहां कोई लाइन नहीं खींची गई है और न ही मीटर लगा हुआ है।
4. विपक्षीगण ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि विद्युत कनेक्शन के लिए अनुबंध हुआ था, परन्तु उल्लेख किया कि अस्थाई लाइन चालू कर दी गई थी और दिनांक 23.12.1995 को विद्युत मीटर लगा दिया गया था। परिवादी द्वारा विद्युत का उपभोग किया गया, परन्तु विद्युत शुल्क जमा नहीं कराया गया। परिवादी को विद्युत आपूर्ति रेगूलेशन एक्ट, रेव्न्यू रिकवरी एक्ट तथा UPZALR की धारा 287 ए से भी बाधित होना कहा गया।
5. दोनों पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादी के विद्युत कनेक्शन के लिए लाइन जोड़कर विद्युत आपूर्ति चालू नहीं की गई। अत: तदनुसार उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।
6. इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधि विरूद्ध, अनुचित तथा मनमाना है। संभावनाओं एवं कल्पनाओं पर आधारित है। विपक्षीगण के लिखित कथन पर कोई विचार नहीं किया गया, जिसमें स्पष्ट उल्लेख किया गया था कि दिनांक 23.12.1995 को विद्युत आपूर्ति की गई थी तथा मीटर भी लगाया गया था तथा सीलिंग रिपोर्ट पर हस्ताक्षर भी किए गए थे। यह कथन असत्य है कि मीटर बल पूर्वक लगाया गया था। उसने स्वंय डोरी डालकर विद्युत का प्रयोग किया है। उ0प्र0 राज्य विद्युत बोर्ड विद्युत आपूर्ति नियमों पर कोइ विचार नहीं किया गया। स्वंय परिवादी दिनांक 23.12.1995 से पूर्व भी डोरी डालकर विद्युत का उपभोग कर रहा था, इसलिए विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है।
7. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन के सहयोगी अधिवक्ता श्री कासिम जैदी तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया की बहस सुनी गई तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
8. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी के विद्युत कनेक्शन के लिए दिनांक 23.12.1995 को मीटर लगा दिया गया था। यद्यपि वह विद्युत का प्रयोग पूर्व से ही कर रहा था। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में कोई बल नहीं पाया जाता है कि विद्युत मीटर लगाने से पूर्व परिवादी विद्युत का प्रयोग कर रहा था। यदि ऐसा किया जा रहा था तब विद्युत विभाग के कर्मचारियों के स्तर से लापरवाही कारित की गई है। विद्युत मीटर संस्थित किए बिना विद्युत आपूर्ति प्रारम्भ किए जाने का स्पष्ट आदेश विभाग द्वारा जारी किया जाना चाहिए, परन्तु प्रस्तुत केस में विभाग द्वारा इस आशय का कोइ आदेश जारी नहीं किया गया, इसलिए यह तर्क स्वीकार करने योग्य नहीं है कि मीटर लगने से पूर्व ही उपभोक्ता द्वारा विद्युत का प्रयोग किया जा रहा था।
9. दिनांक 19.02.1996 को अधीक्षण अभियन्ता, श्री आर0के0 मित्तल द्वारा विद्युत वितरण खण्ड मुजफ्फर नगर को इस आशय का पत्र लिखा गया है कि उपभोक्ता की इस शिकायत पर ध्यान दिया जाए कि विद्युत कनेक्शन अभी तक जारी नहीं हुआ है। इसी प्रकार दिनांक 23.03.1996 को भी साइट निरीक्षण करने का आदेश अधीक्षण अभियन्ता द्वारा जारी किया गया। इसके पश्चात दिनांक 30.05.1996 को भी इसी आशय का पत्र अधीक्षण अभियन्ता द्वारा लिखा गया है। दिनांक 04.04.1996 को श्री आर0के0 अरोरा, अधिशासी अभियन्ता द्वारा विद्युत वितरण खण्ड द्वितीय कैराना, मुजफ्फर नगर को उपभोक्ता की शिकायत दूर करने के लिए पत्र लिखा गया है। अत: विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा समस्त साक्ष्य का विश्लेषण करने के पश्चात् यह निष्कर्ष दिया गया है कि उपभोक्ता को विद्युत कनेक्शन जारी नहीं किया गया और विद्युत कनेक्शन जारी किए बिना विद्युत बिल जारी कर दिया गया। इस संबंध में विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधिसम्मत है।
10. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह बहस की गई है कि मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक क्षतिपूर्ति के रूप में अंकन 20,000/- रूपये अदा करने का आदेश अनुचित है। यह पीठ भी इस मत की है कि इस प्रकरण में अंकन 20,000/-रूपये की क्षतिपूर्ति का आदेश विधिसम्मत नहीं है। अत: यह राशि अंकन 20,000/- रूपये के स्थान पर अंकन 5,000/- रूपये संशोधित किए जाने योग्य है।
11. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह बहस भी की गई है कि वाद व्यय एवं वकील की फीस की मद में अंकन 3,000/- रूपये का आदेश अनुचित है, परन्तु यह तर्क स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि किसी भी परिवाद को संचालित करने में अंकन 3,000/- रूपये से अधिक ही राशि का खर्च आता है। अत: इस आदेश में संशोधन की आवश्यकता नहीं है।
12. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अंकन 500/- रूपये प्रतिमाह की दर से रोजगार में बाधा उत्पन्न होने के कारण क्षतिपूर्ति का आदेश अनुचित रूप से पारित किया गया है। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा क्षति का आंकलन अपने निर्णय में नहीं किया गया है। क्षति का आंकलन किए बिना यह आदेश पारित किया गया है। दूरवर्ती क्षति के लिए आदेश पारित करना विधिसम्मत नहीं है। तदनुसार यह आदेश भी अपास्त होने योग्य है। अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
13. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी को अंकन 20,000/- रूपये के स्थान पर केवल 5,000/- रूपये मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक प्रताड़ना की मद में देय होंगे तथा अंकन 500/- रूपये की क्षतिपूर्ति देय नहीं होगी। शेष आदेश पुष्ट किया जाता है।
पक्षकार अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3