(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 567/2021
ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी प्लाट नं0- 1, सेक्टर- नॉलेज पार्क IV, ग्रेटर नोएडा, गौतमबुद्ध नगर-201308.
.........अपीलार्थी
बनाम
नरेन्द्र सिंह त्यागी पुत्र श्री रघुराज सिंह त्यागी, निवासी बी-306, नंदग्राम फ्लैट, गाजियाबाद।
.............प्रत्यर्थी।
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री राजेश चड्ढा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से : श्री वी0पी0 शर्मा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 10.03.2022
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय/आदेश
परिवाद सं0- 381/2018 नरेन्द्र सिंह त्यागी बनाम ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण में जिला उपभोक्ता आयोग, गौतमबुद्ध नगर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 06.04.2021 के विरुद्ध यह अपील धारा- 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी नरेन्द्र सिंह त्यागी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण जिसे आगे 'प्राधिकरण' के रूप में अंकित किया गया है, द्वारा प्रस्तावित स्कीम में एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करते हुए प्रस्तावित स्कीम में एक फ्लैट आवंटन करने हेतु आवेदन किया। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा फ्लैट सं0- 45 एफ ब्लॉक 208 सेक्टर म्यू द्वितीय जिला गौतमबुद्ध नगर में आवंटन प्रस्तुत किया जिस हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा नियमानुसार अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण में देय धनराशि जमा की जाती रही।
उपरोक्त आवंटन अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा एलाटमेंट लेटर जारी करते हुए 18.09.2013 को पंजीकृत किया गया तथा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा पंजीकरण धनराशि रू0 80,000/- व एलाटमेंट/आवंटन धनराशि 1,45,600/-रू0 जमा किया गया तथा उपरोक्त प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा दि0 21.10.2013 से दि0 17.10.2017 तक अर्थात लगभग 04 वर्षों की अवधि में विभिन्न तिथियों में कुल धनराशि 7,15,934/-रू0 अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण के सम्मुख जमा किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में इस तथ्य का अंकन किया कि यद्यपि अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा ब्रोशर में दी गई अवधि में देय धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा समय-समय पर जमा करायी जाती रही, परन्तु अधिक समयावधि होने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा एक प्रार्थना पत्र दिनांकित 01.05.2018 प्रस्तुत करते हुए उपरोक्त फ्लैट के आवंटन कैंसिल करने की प्रार्थना की जिसके फलस्वरूप प्राधिकरण द्वारा दि0 22.05.2018 को प्रत्यर्थी/परिवादी को आवंटित फ्लैट का आवंटन निरस्त किया गया। प्राधिकरण द्वारा ब्रोशर की शर्तों के अनुसार आवंटन निरस्त होने पर निरस्तीकरण की तिथि तक प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जमा समस्त धनराशि जब्त कर ली गई जिसके विरुद्ध उपरोक्त परिवाद प्रस्तुत किया गया।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद पत्र में वर्णित तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए तथा उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुनने के उपरांत प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद स्वीकार किया एवं अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया कि वे प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जमा धनराशि 6,35,934/-रू0 06 प्रतिशत साधारण ब्याज सहित परिवाद की तिथि से भुगतान की तिथि तक 30 दिन की अवधि में प्रत्यर्थी/परिवादी को वापस करें। साथ ही अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा परिवाद व्यय के रूप में 1,000/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी को अदा करने हेतु भी आदेशित किया गया, जिस निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत अपील प्राधिकरण द्वारा हमारे सम्मुख योजित की गई।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि चूँकि प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी श्रीमती कान्ता त्यागी द्वारा भी अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा प्रस्तावित योजना में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करते हुए आवेदन प्रस्तुत किया जिसमें विकास प्राधिकरण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी की पत्नी को एक फ्लैट सं0- 1 एफ एफ ब्लाक 195 सेक्टर म्यू द्वितीय ग्रेटर नोएडा, गौतमबुद्ध नगर आवंटित किया गया। अर्थात पति (परिवादी) एवं पत्नी दोनों को प्रस्तावित योजना में फ्लैट आवंटित किये गये जब कि ब्रोशर में अंकित किया गया कि पति-पत्नी में से एक को ही अथवा परिवार के एक सदस्य को ही प्रस्तावित फ्लैट का आवंटन किया जायेगा तथा यह कि परिवार के एक सदस्य के अलावा यदि उक्त योजना में प्रस्तावित फ्लैट हेतु आवंटन किया गया तो उसका आवंटन निरस्त किया जायेगा तथा उसके साथ सम्पूर्ण जमा धनराशि भी अर्नेस्ट मनी के रूप में मानते हुए जब्त कर ली जायेगी।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री वी0पी0 शर्मा द्वारा कथन किया गया कि निर्विवादित रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा फ्लैट आवंटन हेतु प्रार्थना पत्र अपीलार्थी/विपक्षी के सम्मुख वर्ष 2013 में प्रस्तुत किया गया जिस पर अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा आवंटन पत्र दि0 18.09.2013 को जारी किया गया तथा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा निर्विवादित रूप से 04 वर्ष की अवधि में देय धनराशि का रू0 6,35,934/- तथा पंजीकरण धनराशि 80,000/-रू0 कुल धनराशि 7,15,934/-रू0 जमा किया गया तथा यह कि उपरोक्त 04 वर्ष की अवधि में कभी भी अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी के विरुद्ध कोई कार्यवाही आवंटन निरस्तीकरण हेतु नहीं किया जाना न ही विकास प्राधिकरण द्वारा स्वयं किसी प्रकार की सूचना प्रदान करना यह दर्शित करता है कि प्राधिकरण को यदि प्रत्यर्थी/परिवादी स्वयं आवंटित फ्लैट को कैंसिल करने हेतु दि0 01.05.2018 को प्रार्थना पत्र नहीं देता तब उस स्थिति में प्राधिकरण को कदापि इस तथ्य का संज्ञान नहीं हो सकता था। प्रत्यर्थी/परिवादी के साथ लापरवाही बरती गई तथा उसका आवंटन निरस्त कर दिया गया।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश को विधिक एवं सही आंकलित करते हुए यह कथन किया गया कि प्रस्तुत अपील अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा अत्यंत विलम्ब से योजित की गई है तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो आदेश पारित किया गया है उसमें यह तथ्य सुसंगत रूप से विचारित करते हुए कि पंजीकरण धनराशि 80,000/-रू0 की देयता प्राधिकरण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को नहीं की जायेगी अर्थात पंजीकरण के अलावा जो धनराशि प्राधिकरण को प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा 6,35,934/-रू0 जमा किया गया है वह 06 प्रतिशत साधारण ब्याज के साथ 30 दिवस में प्रत्यर्थी/परिवादी को प्राधिकरण द्वारा प्राप्त कराया जायेगा।
हमारे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा और प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0पी0 शर्मा को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय व आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया गया तथा यह पाया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग ने समस्त तथ्यों का परीक्षण करते हुए जो आदेश पारित किया है वह पूर्णत: विधिक है, क्योंकि यह निर्विवादित है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अनेकों तिथियों पर जो धनराशि फ्लैट के ई0एम0आई0 के रूप में जमा की गई उसमें 05 वर्ष की अवधि में कभी भी प्राधिकरण द्वारा यह अवगत नहीं कराया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी ब्रोशर में अंकित शर्तों को दृष्टिगत रखते हुए योग्य नहीं है। यहां यह तथ्य भी अंकित करना आवश्यक है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा स्वयं आवेदन देकर आवंटन निरस्त करने की प्रार्थना की गई तदोपरांत आवंटन निरस्त किया गया, अतएव पंजीकरण की धनराशि 80,000/-रू0 विधिक रूप से जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को वापस करने हेतु अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण को आदेशित नहीं किया गया।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिये गये ब्याज के सम्बन्ध में कथन किया गया कि प्राधिकरण द्वारा कोई कारोबार/व्यापार नहीं किया जाता है, अतएव ब्याज छूट प्रदान की जावे।
चूँकि अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा निर्णय एवं आदेश दि0 06.04.2021 का अनुपालन 30 दिवस में करना था, अतएव अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण से यह अपेक्षा थी कि वह उपरोक्त निर्णय व आदेश यदि सुनिश्चित नहीं करना चाहता था तो उसको समयावधि के अंतर्गत अर्थात 30 दिवस में इस न्यायालय के सम्मुख अपील प्रस्तुत करनी थी। साथ ही अपील के अंतरिम प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करना था, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण द्वारा ऐसा न करके अपने कर्तव्यों के प्रति घोर कमी दर्शित की गई तथा प्रस्तुत अपील प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश के 07 माह के पश्चात योजित किया जाना अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण की कार्यप्रणाली को स्वयं दर्शित करता है जिस हेतु अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण के सम्बन्धित अधिकारी अथवा सम्बन्धित पक्ष ही उत्तरदायी हैं, अतएव अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण के विद्वान अधिवक्ता के कथन को बलहीन पाया जाता है तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है। अपीलार्थी/विपक्षी प्राधिकरण को आदेशित किया जाता है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 06.04.2021 का अनुपालन इस निर्णय/आदेश की तिथि से 30 दिन की अवधि में सुनिश्चित करें।
अपील में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थी द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित इस निर्णय/आदेश के अनुसार निस्तारण हेतु जिला उपभोक्ता आयोग को प्रेषित की जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 1