सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
पुनरीक्षण वाद संख्या-138/2001
(जिला उपभोक्ता फोरम, अलीगढ़ द्वारा इजराय संख्या-48/1999 में पारित आदेश दिनांक 07.07.2001 के विरूद्ध)
1. यू0पी0 स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड द्वारा एग्जीक्यूटिव इंजीनियर, इलेक्ट्रिसिटी अर्बन डिस्ट्रिब्यूशन डिवीजन-I, उदय सिंह जैन रोड, अलीगढ़।
2. आर0के0 सिंह, एग्जीक्यूटिव इंजीनियर, इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रिब्यूशन डिवीजन-I, उदय सिंह जैन रोड, अलीगढ़।
3. अशोक चौहान, असिस्टेण्ट इंजीनियर, मीटर्स, इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, उदय सिंह जैन रोड, अलीगढ़।
पुनरीक्षणकर्तागण/निर्णी ऋणी
बनाम्
नन्नू मल, निवासी रघुवीर पुरी, अलीगढ़।
प्रत्यर्थी/निष्पादनकर्ता
समक्ष:-
1. माननीय श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री संजय कुमार, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्तागण की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 03.01.2017
मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
वर्तमान पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र, इजराय संख्या-48/1999, नन्नू मल बनाम उ0प्र0 राज्य विद्युत परिषद द्वारा अधिशासी अभियन्ता व अन्य में जिला उपभोक्ता फोरम, अलीगढ़ द्वारा पारित आदेश दिनांक 07.07.2001 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत किया गया है, जिसके अन्तर्गत जिला फोरम द्वारा निम्नवत् आदेश पारित किया गया है :-
‘’ विपक्षी विद्युत विभाग को आदेश दिया जाता है कि वह एक सप्ताह में आदेश का अनुपालन करें अगर आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो तुरन्त गैर जमानती वारन्ट जारी किया जाएगा। ‘’
उपरोक्त वर्णित आदेश से क्षुब्ध होकर निर्णीत ऋणी/पुनरीक्षणकर्तागण की ओर से वर्तमान पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया है।
पुनरीक्षणकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। यह पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र पिछले 15 वर्ष से अधिक समय से निस्तारण हेतु सूचीबद्ध है, अत: पीठ द्वारा समीचीन पाया गया कि प्रस्तुत पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र का निस्तारण गुणदोष के आधार पर पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर कर दिया जाये, तदनुसार पुनरीक्षणकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता को विस्तारपूर्वक सुना गया एवं पत्रावली का गहनता से परिशीलन किया गया।
पुनरीक्षणकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता ने अपना तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि जिला फोरम द्वारा पारित आदेश दिनांक 07.07.2001 सही एवं उचित नहीं है, क्योंकि कमिशन की रिपोर्ट के आधार पर जिला फोरम ने प्रश्नगत आदेश पारित किया है, जो सही नही है। पुनरीक्षणकर्तागण का यह भी कथन है कि अधिवक्ता कमिशन की रिपोर्ट निर्णीत ऋणी/पुनरीक्षणकर्तागण के कथन का समर्थन करती है। कमिशन की रिपोर्ट के अनुसार घटना स्थल पर कोई भवन अस्तित्व में नहीं है, केवल पिलर ही मौजूद हैं और पिलर को भवन नहीं माना जा सकता है। पूर्ण निर्मित मकान में ही विद्युत सप्लाई दी जा सकती है। अधिक सम्भावना है कि वर्षा के कारण दिवाल पर विद्युत प्रवाह फैल सकता है, जिससे दूसरे सटे हुए भवनों पर भी विद्युत प्रवाह फैल सकता है, जिससे बहुत बड़ी क्षति होना संभव है। पुनरीक्षणकर्तागण द्वारा यह भी कहा गया कि जिला फोरम द्वारा परिवाद संख्या-631/1994 में पारित निर्णय/आदेश का निष्पादन संख्या-48/1999 संभव नहीं था। जिला फोरम ने फैक्ट्री बन्द होने का कोई निष्कर्ष प्रश्नगत आदेश में नहीं दिया है। प्रदूषण कन्ट्रोल बोर्ड/नगर निगम से रिपोर्ट विपक्षी के माध्यम से मांगनी चाहिए थी। परिवादी से भी स्पष्टीकरण नहीं मांगा कि कहां तुम्हारी फैक्ट्री स्थित है। भवन पर किरायदार श्री एस0एन0 मिश्रा द्वारा कब्जा किया गया है तथा एस0एन0 मिश्रा ने अपने कमरे में अलग कनेक्शन लिया है। कोई स्थान नहीं है, जहां मीटर लगाया जा सके। इस प्रकार जिला फोरम के निष्पादन का आदेश सही एवं उचित नहीं है।
पुनरीक्षण प्रार्थना पत्र एवं सम्पूर्ण पत्रावली का परिशीलन किया गया, जिससे यह विदित होता है कि निष्पादनकर्ता/प्रत्यर्थी ने जिला फोरम के समक्ष एक परिवाद योजित किया था, जिसमें जिला फोरम ने दिनांक 12.05.1998 को अन्तिम आदेश पारित किया था कि विपक्षी बिजली विभाग प्रार्थी का कनेक्शन 30 दिन में पुन: चालू करेगा तथा यह भी आदेश पारित किया था कि यदि इस आदेश का अनुपालन नहीं किया गया तो 100/- रू0 प्रतिदिन दिनांक 15.04.1994 से कनेक्शन जोड़ने की तिथि तक क्षतिपूर्ति के रूप में देय होगा। इस आदेश का अनुपालन विद्युत विभाग द्वारा नहीं किया गया। इस सम्बन्ध में विद्युत विभाग द्वारा आपत्ति प्रस्तुत की गयी और आपत्ति के संदर्भ में कमीशन जारी किया गया। कमिशन रिपोर्ट प्रस्तुत हुई, जिसमें यह कहा गया कि मौके पर कमरा बना हुआ है तथा नक्शा नजीर में उसे दर्शाया गया है। निष्पादनकर्ता/प्रत्यर्थी ने जिसे अपनी फैक्ट्री बताया है, उस कमरे में छत नहीं है। कमरे के बाहर 30/40 पटिया रखी हुई हैं तथा 10 लोहे के गार्ड भी मौजूद हैं। कमरे के बाहर पुरानी बिजली के केबिल लगे हुए हैं। कमरे के अन्दर एक लकड़ी का ड्रम रखा है तथा घरेलू सामान भी रखा हुआ है। यह भी रिपोर्ट में आया है कि सुरेन्द्र नाथ मिश्रा ने यह कमरा 3-4 वर्ष पूर्व किराये पर लिया था। इसका प्रयोग गोदाम के लिए किया जा रहा था। सुरेन्द्र नाथ मिश्रा प्लास्टिक बैग का निर्माण करते हैं। कमिशन की रिपोर्ट से यह साबित होता है कि मौके पर भवन निर्मित है तथा विद्युत कनेक्शन हेतु परिवाद दाखिल किया गया था। विद्युत विभाग के द्वारा यह आपत्ति उठाई गयी कि जिस स्थान पर विद्युत कनेक्शन देने का आदेश पारित किया गया है, वह स्थान मौजूद नहीं है। दोनों रिपोर्ट के आधार पर जिला फोरम ने विचार करते हुए मूल वाद में पारित निर्णय/आदेश के अनुसार अनुपालन के बावत दिनांक 07.07.2001 को प्रश्नगत आदेश पारित किया है।
जिला फोरम द्वारा पारित मूल निर्णय/आदेश दिनांक 12.05.1998 के विरूद्ध कोई अपील योजित नहीं की गयी है, जबकि मूल निर्णय/आदेश दिनांकित 12.05.1998 अन्तिम रूप ले चुका है और प्रश्नगत आदेश निष्पादन वाद में मूल वाद में पारित निर्णय/आदेश के अनुपालन हेतु पारित किया गया है।
पुनरीक्षणकर्तागण का मुख्य तर्क यह है कि मूल वाद के आदेश का निष्पादन सम्भव नहीं है, अत: निष्पादन वाद खण्डित होना चाहिये।
मा0 राष्ट्रीय आयोग ने आशीष कुमार बिशवा बनाम डी0डी0ए0 एण्ड अदर्स Current Consumer Cases 1996 (1) Page 467 (NS) में निम्न सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं :-
“ This Commission has already taken the view that it is not permissible to go behind the basic order in the proceedings under Section 27 of the Act. The proceedings under Section 27 are in the nature of execution proceedings of the basic order. The basic order could not be amended, modified or varied in the proceedings under Section 27. There is no jurisdiction to go behind the basic order. In this case the appeal of the DDA against the basic order dated 7.4.94 was dismissed by this Commission as barred by limitation. The basic order became final. ”
उपरोक्त विधिक व्यवस्था के आलोक में हम इस मत के हैं कि प्रश्नगत प्रकरण में परिवाद का निर्णय अन्तिम रूप ले चुका है, क्योंकि प्रश्नगत परिवाद में पारित मूल निर्णय/आदेश के विरूद्ध कोई अपील नहीं की गयी है। कानून की स्थिति इस प्रकरण में स्पष्ट है कि निष्पादन वाद में मूल आदेश के सन्दर्भ में विचार किया जाना विधि अनुकूल नहीं है, अत: पुनरीक्षणकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता के तर्क में कोई बल नहीं पाया जाता है तथा क्षेत्राधिकार सम्बन्धी त्रुटि भी नहीं पायी जाती है। तदनुसार वर्तमान पुनरीक्षण में बल नहीं पाया जाता है, अत: पुनरीक्षण खण्डित होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत पुनरीक्षण खण्डित किया जाता है।
(जितेन्द्र नाथ सिन्हा) (संजय कुमार)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2