राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-1212/2008
(जिला उपभोक्ता आयोग, पीलीभीत द्वारा परिवाद सं0-84/2001 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 30-08-2001 एवं प्रकीर्ण वाद सं0-63/2007 में पारित आदेश दिनांक 24-05-2008 के विरूद्ध)
डॉ0 सरनजीत पुत्र कन्हैया सिंह निवासी 720, आवास विकास पीलीभीत (उ0प्र0)।
................अपीलार्थी/विपक्षी सं0-2.
बनाम
1. नन्हे लाल पुत्र मुन्शी लाल निवासी-141 खकरा, जिला पीलीभीत (उ0प्र0)।
...............प्रत्यर्थी/परिवादी।
2. क्रिस्टल कैपिटल कारपोरेशन लि0 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर चीफ एग्जुकेटिव आफिस तल्लीताल, नैनीताल (उत्तरांचल)।
...............प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1.
पुनरीक्षण संख्या-179/2008
(जिला उपभोक्ता आयोग, पीलीभीत द्वारा निष्पादन वाद सं0-32/2001 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 30-07-2008 एवं 11-01-2007 के विरूद्ध)
डॉ0 सरनजीत सिंह पुत्र श्री कन्हैया सिंह निवासी 720, आवास विकास पीलीभीत (उ0प्र0)।
................पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी सं0-2.
बनाम
1. नन्हे लाल पुत्र श्री मुन्शी लाल, निवासी-141 खकरा, जिला पीलीभीत।
...............प्रत्यर्थी/परिवादी।
2. क्रिस्टल कैपिटल कारपोरेशन लि0 द्वारा मैनेजमेण्ट डायरेक्टर, चीफ एग्जुकेटिव आफिस, तल्लीताल, नैनीताल (उत्तरांचल)।
...............प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1.
समक्ष:-
1. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी/पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित: श्री हरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित: श्री एस0के0 श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-2 क्रिस्टल कैपिटल कारपोरेशन लि0 की ओर से उपस्थित: कोई नहीं।
दिनांक :- 05-06-2024.
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मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील सं0-1212/2009 जिला उपभोक्ता आयोग, पीलीभीत द्वारा परिवाद सं0-84/2001 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 30-08-2001 एवं प्रकीर्ण वाद सं0-63/2007 में पारित आदेश दिनांक 24-05-2008 के विरूद्ध योजित की गई है तथा उक्त परिवाद के सम्बन्ध में जिला उपभोक्ता आयोग, पीलीभीत द्वारा निष्पादन वाद सं0-32/2001 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 30-07-2008 एवं 11-01-2007 के विरूद्ध पुनरीक्षण सं0-179/2008 योजित की गई है। चूँकि उपरोक्त अपील एवं पुनरीक्षण एक ही मामले के सम्बन्ध में योजित की गई हैं, अत: इन दोनों का निस्तारण साथ-साथ किया जा रहा है। अपील सं0-1212/2008 अग्रणी होगी।
संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी ने विपक्षीगण के यहॉं दिनांक 31.10.96 को एफ.डी. आर. नं. 59/96 मु0 10,000/-रू0, एफ.डी. आर. नं. 58/96 मु0 10,000/-रू0 दिनांक 31-10-96, एफ. डी. आर. नं. 31/96 मु0 10,000/-रु0 दिनांक 31-10-96, आर.डी. नं. 1934/96 मु0 17,000/-रू0 दिनांक 11-9-99, आर.डी. नं0-584/94 मु0 10,500/-रु0 दिनांक 11.9.99, आर.डी.नं0 1937 मु0 8,400/- रू0 दिनांक 19.2.2000, आरा.डी.नं. 1933/96 दिनांक 19-02-2000 मु0 10,500/-रू0, आर.डी.नं. 1825 मु0 9,900/- रू0 दिनांक 19-02-2000 कुल रूपया 86,300/- जमा किये और परिवादी ने जब विपक्षी से उपरोक्त जमा धन के भुगतान के लिये सम्पर्क किया, तो टाल-मटोल करते रहें। विपक्षीगण ने भुगतान न करक सेवा में कमी की है।
विद्वान जिला आयोग द्वारा विपक्षीगण को विधिवत नोटिस जारी किये गये। भेजे गये नोटिस पर पोस्टमेन की इस आशय की रिपोर्ट अंकित पाते हुए कि शाखा/कार्यालय बन्द हो गया है, विद्वान जिला आयोग ने विपक्षीगण पर तामील पर्याप्त होने की उपधारणा की।
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अत: परिवादी की ओर से प्रस्तुत कथनों एवं एक पक्षीय तर्कों तथा प्रलेखीय साक्ष्यों के आधार पर विद्वान जिला आयोग द्वारा परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिनांक 30-08-2001 को निम्नवत् आदेश पारित किया गया :-
'' परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण परिवादी की जमा धनराशि मु0 86,300/- रू0 (रू0 छियासी हजार तीन सौ मात्र) पर 18 प्रतिशत साधारण ब्याज भुगतान की तिथि तक अदा करें। विपक्षी परिवादी को बतौर क्षतिपूर्ति मु० 2,000/- रू० (रू० दोहजार मात्र) एक माह के अन्दर अदा करें। ''
उक्त एक पक्षीय आदेश दिनांक 30-08-2001 को निरस्त करने हेतु विपक्षी डॉ0 सरनजीत द्वारा विद्वान जिला आयोग के समक्ष प्रार्थना पत्र दिनांकित 01-10-2007 प्रस्तुत किया गया, जो प्रकीर्ण प्रार्थना पत्र सं0-63/2007 के रूप में दर्ज हुआ। उपरोक्त प्रकीर्ण प्रार्थना पत्र को विद्वान जिला आयोग द्वारा निम्नांकित आदेश दिनांकित 24-05-2008 द्वारा बलहीन घोषित करते हुए खण्डित किया गया :-
'' दिनांक- 24.05.2008
आदेश
प्रार्थी सरनजीत सिंह ने बर्तमान प्रकीर्ण प्रार्थनापत्र सं०-63/2007 दिनांकित 01.10.2007 मय शपथपत्र के इस विनती के साथ प्रस्तुत किया है कि मूल परिवाद सं0-84/2001 में पारित निर्णय दिनांकित-30.08.2001 को खण्डित कर दिया गया और सुनवायी का अवसर देकर उसे नये सिरे से निर्णीत किया जाय। प्रार्थनापत्र के साथ बिलम्ब मुक्त का प्रार्थनापत्र भी लगाया है।
परिवादी नन्हे लाल ने प्रार्थनापत्र के विरूद्ध कोई आपत्ति दाखिल नहीं की है उसकी ओर से उपस्थित सुयोग्य अधिवक्ता ने केवल एक नजीर प्रस्तुत की है और प्रार्थनापत्र को विधि के विरुद्ध होना बताया है।
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बहस सुनी तथा मूल परिवाद सं०-84/2001 में पारित निर्णय व आदेश दिनांकित-30.08.2001 का अवलोकन किया।
चूंकि मूल परिवाद सं०- 84/2001 में विपक्षीगण के विरूद्ध एक पक्षीय रूप से निर्णय पारित हो चुका है और उक्त निर्णय के पारित होने के छ: वर्ष के उपरान्त प्रार्थी डा० सरनजीत सिंह ने यह प्रकीर्ण प्रार्थनापत्र अति बिलम्ब से दिया है। अतः उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में वर्ष 2002 में किये गये संशोधन व जोड़ी गयी धारा 22ए की स्थित को देखते हुए प्रार्थी डा0 सरन जीत द्वारा प्रस्तुत प्रकीर्ण प्रार्थना पत्र जैसा निवेदित है विधि एवं प्रकिया के अनुसार किसी भी स्थित में स्वीकार होने के योग्य नहीं है।
फलत: इसे बलहीन घोषित करते हुए खण्डित किया जाता है। आदेश से प्रार्थी अवगत हो। ''
जहॉं तक पुनरीक्षण सं0-179/2008 का प्रश्न है, इस सम्बन्ध में तथ्य यह है कि विद्वान जिला आयोग द्वारा मूल परिवाद में पारित आदेश के निष्पादन हेतु परिवादी/डिक्रीदार द्वारा विद्वान जिला आयोग के सम्मुख निष्पादन वाद सं0-32/2001 योजित किया गया, जिसमें विद्वान जिला आयोग ने दिनांक 11-01-2007 को एवं दिनांक 30-07-2008 को निम्न आदेश पारित किए :-
'' 11.1.2007
Heard and perused the judgment and order dated 30.8.2001 passed by this Forum in C.C. Case No. 84/2001. The said order has not been obeyed by the opposite parties till today as reported by the learned counsel of the complainant.
So Issue process U/s 25(3) C.P. Act 1986 for attachment of the properties of OP's Company and also properties of Dr. Saranjeet Singh O.P. No. 2 the alleged and is not realized from OPs and also from O.P. No. 2 in person than O.P. No. 2 shall be arrested and detained in jail for a month as provided U/s 27 of the C.P. Act 1986.
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The process shall be prepared by 16.1.2007 and the Complainant Counsel shall furnish the necessary details in the meantime. Fix 17.2.2007 for report. ''
'' 30-07-2008.
Issue fresh prosess u/s 27 of C.P. Act With a latter of forum. Fix. 19-9-2008 for report. Step by 5-8-2008. ''
उपरोक्त दोनों आदेशों को निरस्त करने हेतु पुनरीक्षण सं0-179/2008 परिवाद के विपक्षी सं0-1 डॉ0 सरनजीत द्वारा योजित की गई है।
हमारे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को अपील सं0-1212/2008 एवं पुनरीक्षण सं0-179/2008 पर सुना गया तथा पत्रावलियों पर उपलब्ध कथनों/अभिकथनों/प्रलेखीय साक्ष्यों तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेशों का सम्यक् रूप से परिशीलन व परीक्षण किया गया।
विद्वान जिला आयोग द्वारा परिवाद सं0-84/2001 में पारित आदेश दिनांक 30-08-2001 के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि अपीलार्थी डॉ0 सरनजीत सिंह द्वारा मूल परिवाद के उक्त निर्णय एवं आदेश को अपास्त किए जाने हेतु प्रकीर्ण आवेदन दिया गया था, जिस पर विद्वान जिला आयोग ने दिनांक 24-05-2008 को यह आदेश पारित किया है कि विधि एवं प्रक्रिया के अनुसार किसी भी स्थिति में स्वीकार योग्य नहीं है। उक्त परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत चल रहा है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि अधिनियम की योजना में जिला उपभोक्ता आयोग एवं राज्य उपभोक्ता आयोग को अपने पूर्व पारित आदेश को अपास्त किए जाने एवं पुनर्विलोकन किए जाने की शक्तियॉं नहीं दी गई हैं। यह शक्ति, धारा-22 ए, अन्तर्गत उपरोक्त अधिनियम केवल माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग को प्राप्त है, जैसा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा Rajeev Hitendra Pathak & Ors. Vs. Achyut Kashinath Karekar & Anr. (2011) 9 SCC 541 के वाद में अवधारित किया गया है।
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उपरोक्त प्रावधान एवं मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित उपरोक्त निर्णय के प्रकाश में यह पीठ इस मत की है कि विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित आदेश दिनांकित 24-05-2008 उचित है, क्योंकि अपने पूर्व एकपक्षीय निर्णय को अपास्त किए जाने हेतु जिला उपभोक्ता आयोग को शक्ति प्राप्त नही है, किन्तु यह देखते हुए कि डॉ0 सरनजीत सिंह को मूल परिवाद सं0-84/2001 में अपना पक्ष रखने एवं वाद की कार्यवाही में सम्मिलित होने का अवसर नहीं प्राप्त हुआ था, अत: निर्णय दिनांक 30-08-2001 अपास्त करते हुए प्रकरण प्रतिप्रेषित किए जाने योग्य है।
जहॉं तक पुनरीक्षण सं0-179/2008 का प्रश्न है, यह पुनरीक्षण मूल निर्णय दिनांकित 30-08-2001 के निष्पादन की कार्यवाही के अन्तर्गत पारित आदेश दिनांकित 11-01-2007 व दिनांकित 30-07-2008 विरूद्ध योजित किया गया है। चूँकि मूल निर्णय दिनांकित 30-08-2001 अपास्त किया जा रहा है, अत: निष्पादन की कार्यवाही भी समाप्त मानी जायेगी एवं इसमें पारित सभी आदेश सारहीन हो गये हैं और तदनुसार निगरानी भी सारहीन हो गई है। निगरानी भी तदनुसार निरस्त करते हुए उभय पक्ष को विद्वान जिला आयोग के समक्ष उपस्थित होने हेतु निर्देशित किया जाना उचित होगा।
तदनुसार अपील सं0-1212/2008 स्वीकार किए जाने एवं पुनरीक्षण सं0-179/2008 निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील सं0-1212/2008 स्वीकार की जाती है एवं पुनरीक्षण सं0-179/2008 निरस्त की जाती हैं। जिला उपभोक्ता आयोग, पीलीभीत द्वारा परिवाद सं0-84/2001 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 30-08-2001 अपास्त करते हुए प्रकरण विद्वान जिला आयोग, पीलीभीत को इस निर्देश के साथ प्रतिप्रेषित किया जाता है कि उक्त परिवाद को मूल नम्बर पर पुनस्थापित करने के उपरान्त अपीलार्थी/विपक्षी डॉ0 सरनजीत सिंह को परिवाद में अपना पक्ष
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रखने एवं प्रथम 30 दिन के भीतर तथा इसके उपरान्त अपने विवेकाधिकार से अगले 15 दिन की अनुमति देते हुए वादोत्तर प्रस्तुत करने एवं वाद की कार्यवाही
में सम्मिलित होने का अवसर प्रदान करें और मामले का निस्तारण दोनों पक्षों को सुनकर शीघ्रातिशीघ्र करें।
यहॉं स्पष्ट किया जाता है कि चूँकि प्रश्नगत मूल निर्णय दिनांकित 30-08-2001 अपास्त किया गया है, अत: इससे सम्बन्धित निष्पादन की कार्यवाही के अन्तर्गत पारित सभी आदेश निष्प्रभावी हो जायेंगे।
अपील/पुनरीक्षण व्यय उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
अपीलार्थी/पुनरीक्षणकर्ता द्वारा अपनी अपील/पुनरीक्षण योजित करते समय इस राज्य आयोग में यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो वह सम्पूर्ण धनराशि मय अर्जित ब्याज के साथ अपीलार्थी/पुनरीक्षणकर्ता को विधि अनुससार शीघ्रातिशीघ्र वापस अदा कर दी जाए।
इस निर्णय की मूल प्रति अग्रणी अपील सं0-1212/2008 में रखी जाए तथा एक प्रमाणित प्रतिलिपि पुनरीक्षण सं0-179/2008 में रखी जाए।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
दिनांक :- 05-06-2024.
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-3.