(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
पुनरीक्षण वाद संख्या- 74/2021
(जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या- 1032/1998 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 10-10-2022 के विरूद्ध)
आदर्श नगर प्रगतिशील सहकारी आवास समिति लि0 जी-276 प्रताप विहार विजय नगर, गाजियाबाद द्वारा इट्स सेक्रेटरी श्री महिपाल सिंह
रिवीजनकर्ता
बनाम
नानक सिंह पुत्र श्री कन्हैया लाल निवासी- बी-85 ब्लॉक-बी, विश्वकर्मा कालोनी, एम०बी० रोड, न्यू दिल्ली 110044.
विपक्षी
समक्ष :-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
उपस्थिति :
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित- विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा
विपक्षी की ओर से उपस्थित- कोई उपस्थित नहीं।
दिनांक : 10-11-2022
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार अध्यक्ष, द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका पुनरीक्षणकर्ता आदर्श नगर प्रगतिशील सहकारी आवास समिति लि0 द्वारा विद्वान जिला आयोग गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या- 1032/1998 नानक सिंह बनाम आदर्श नगर प्रगतिशील सहकारी गृह निर्माण समिति लि0 व अन्य में पारित आदेश दिनांक 10-10-2022 के विरूद्ध इस आयोग के समक्ष योजित की गयी है।
जिला आयोग के समक्ष विभिन्न परिवाद संख्या- अर्थात 1032, 1033, 1034, 1035, 1036, 1037, 1038, 1040, 1041/98 योजित किये गये हैं।
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उपरोक्त परिवाद पत्र शिकायतकर्ता द्वारा जिला आयोग के सम्मुख परिवाद पत्र में पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षीगण सोसायटी के यहॉं जमा धनराशि को जमा की तिथि से भुगतान की तिथि तक 02 प्रतिशत ब्याज लगाते हुए प्रदान किये जाने की प्रार्थना की गयी साथ ही यह भी प्रार्थना की गयी कि विपक्षीगण/पुनरीक्षणकर्ता द्वारा जारी आवंटन पत्र दिनांक 29-08-89 में वर्णित प्लाट का कब्जा भी दिलाया जाय।
उपरोक्त प्रार्थना के अलावा परिवादीगण द्वारा पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षीगण से अपेक्षित सेवा न प्रदान किये जाने को दृष्टिगत रखते हुए तथा जमा धनराशि जमा की तिथि से 09-10 वर्ष तक प्लाट/मकान उपलब्ध न कराए जाने हेतु मानसिक आघात लिए रू० दो लाख एवं वाद व्यय के रूप में 5000/-रू० का अनुतोष प्रदान किये जाने की प्रार्थना की गयी।
अत्यन्त आश्चर्य का विषय है कि उपरोक्त परिवाद वर्ष 1998 से विद्वान जिला आयोग गाजियाबाद के समक्ष लम्बित है जिनमें प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा 13(4) अधिनियम 1986 दिनांक 29-09-2017 लगभग 20 वर्ष के उपरान्त पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत किया गया है जिस पर विद्वान जिला आयोग द्वारा समुचित विचार करने के उपरान्त सुसंगत आदेश पारित किया गया है जिसे पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से पुनरीक्षणकर्ता द्वारा इस न्यायालय के सम्मुख चुनौती दी गयी है।
प्रथम दृष्टया मेरे द्वारा जिला आयोग द्वारा पारित आदेश दिनांक- 10-10-2022 का सम्यक रूप से परिशीलन किया गया तथा यह पाया गया कि विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित उपरोक्त आदेश
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पूर्णतया विधिक एवं सुसंगत है जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की कोई परिकल्पना भी नहीं की जा सकती है साथ ही यह भी तथ्य उल्लिखित किया जाता है कि पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षीगण न सिर्फ ऊपर उल्लिखित परिवादों को जिला आयोग द्वारा निर्णीत किये जाने में बाधक है वरन वे विधि के अनुरूप अपेक्षित सहयोग भी जिला आयोग को प्रदान नहीं कर रहे हैं।
उपरोक्त समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका निरस्त की जाती है तथा जिला आयोग को आदेशित किया जाता है कि उपरोक्त परिवाद संख्या-1032, 1033, 1034, 1035, 1036, 1037, 1038, 1040, 1041/98 को विधि अनुसार गुण-दोष के आधार पर बिना किसी स्थगन प्रदान करते हुए यथाशीघ्र 03 माह की अवधि में अंतिम रूप से निर्णीत किया जावे एवं निर्णय के अनुपालन में अपेक्षित एवं विधिक कार्यवाही सुनिश्चित की जावे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
कृष्णा–आशु0 कोर्ट नं0 1