Final Order / Judgement | (मौखिक) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ अपील संख्या-754/2010 Agra Development Authority & other Versus Naimuddin S/O Sri Akiluddin समक्ष:- 1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य। 2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य। उपस्थिति:- अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित: श्री आर0के0 गुप्ता, विद्धान अधिवक्ता प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित:- श्री टी0एच0 नकवी, विद्धान अधिवक्ता दिनांक :28.11.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - परिवाद संख्या-201/2005, नईमुद्दीन बनाम सचिव, आगरा विकास प्राधिकरण व अन्य में विद्वान जिला आयोग, (द्वितीय) आगरा द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 18.03.2010 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने 45 दिन के अंदर कब्जा देने, परिवादी द्वारा जमा राशि समायोजित करने, नियमित रूप से किश्त प्राप्त करने तथा कोई ब्याज एवं सरचार्ज वसूल न करने का आदेश पारित किया है।
- परिवाद के तथ्यों के अनुसार विपक्षी द्वारा परिवादी को एक भवन नम्बर ई-4/311 90 वर्ष की लीज पर दिया गया था। परिवादी द्वारा कब्जे से पूर्व4,840/-रू0 जमा कराये गये। अग्रिम पट्टा किराया राशि 668.50 पैसे ओरियंटल बैंक शाखा में जमा किये गये। अंकन 2,800/-रू0 के स्टाम्प पेपर भी जमा करा दिये। भवन की अवशेष कीमत 24,500/-रू0 बकाया थी, जिसे 20 वर्षों में 80 त्रैमासिक किश्तों मे जमा करना था, परंतु विपक्षीगण द्वारा जमा करने के बारे में कोई सूचना नहीं दी गयी न ही कब्जा दिया गया। इसके पश्चात दिनांक 14.02.2000 को एकमुश्त जमा योजना के अंतर्गत 100/-रू0 जमा किया गया, लेकिन इस योजना के अंतर्गत कोई कार्यवाही नहीं की गयी। दिनांक 04.02.2003 को 78,131.37 पैसे की राशि बकायी दर्शायी गयी। आपत्ति करने पर इस राशि को दुरूस्त नहीं किया गया। इसके बाद दिनांक 03.03.2004 को 85,982/-रू0 अदा करना बताया गया, इसलिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
- विपक्षीगण का कथन है कि परिवादी ने भवन का अवैध रूप से कब्जा प्राप्त कर लिया है। औपचारिकतायें पूर्ण नहीं की गयी। आवंटन के समय से ही किश्तें प्रारंभ होनी थी, जिसकी जानकारी परिवादी को दी जा चुकी थी, पंरतु किश्तें जमा नहीं करायी गयी, एकमुश्त योजना के लिए आवेदन दिया गया। 28.02.2003 को इस योजना के अंतर्गत 78,131.37 पैसे की धनराशि बकाया होना बताया गया, परंतु यह धनराशि जमा नहीं की गयी, इसके पश्चात धनराशि निरंतर बढ़ती रही, जिसे परिवादी ने जमा नहीं किया।
- साक्ष्य की व्याख्या के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया है।
- इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील में वर्णित तथ्यों तथा मौखिक बहस का सार यह है कि परिवादी ने कभी भी नियमित रूप से किश्तें जमा नहीं की। परिवादी की एकमुश्त योजना के अंतर्गत देय राशि भी समय से जमा नहीं की। परिवादी पर ब्याज बकाया है, इसलिए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधि-विरूद्ध है।
- स्वयं परिवाद पत्र में परिवादी ने कथन किया है कि उसके द्वारा कब्जा प्राप्त कर लिया गया है, इसलिए यह कथन असत्य है कि उसे कब्जा प्राप्त नहीं कराया गया। अत: कब्जा प्राप्ति के संबंध में पारित किया गया आदेश भी साक्ष्य के विपरीत है।
- परिवादी ने यह भी स्वीकार किया है कि उसके द्वारा एकमुश्त योजना के अंतर्गत आवेदन दिया गया था। एकमुश्त योजना के अंतर्गत जो राशि बकाया थी, वह 78,131.37 पैसे थी, जिसका ज्ञान परिवादी को था, परंतु इस राशि को भी परिवादी द्वारा जमा नहीं किया गया, इसलिए परिवादी पर ब्याज लगना या पैनल ब्याज लगना विधिसम्मत है। जिला उपभोक्ता आयोग को कोई अधिकार नहीं है कि परिवादी द्वारा नियमित रूप से धनराशि जमा न करने के बावजूद यह आदेशित किया जाए कि परिवादी से दण्ड ब्याज न वसूला जाए। कोई भी प्राधिकरण लाभ हानि रहित योजना के अंतर्गत अपने नागरिकों को आवासीय सुविधा उपलब्ध कराने के लिए स्थापित है, परंतु आवंटी नागरिक का दायित्व है कि समय पर किश्तों का भुगतान करे और यदि किसी कारणवश समय पर किश्तों का भुगतान नहीं हुआ तब उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा जनहित में संचालित ओ0टी0एस0 योजना का लाभ उठाये, जिस दिन ओ0टी0एस0 योजना के आवेदन का निस्तारण करते हुए बकाया धनराशि बतायी गयी, उस दिन या प्राधिकरण द्वारा दी गयी समयावधि के अंतर्गत इस राशि को जमा करे, यदि आवंटी इस अवधि के दौरान धनराशि जमा करने में विफल होता है तब ओ0टी0एस0 योजना के अंतर्गत दिया गया लाभ स्वमेव समाप्त हो जाता है और इसके पश्चात उपभोक्ता प्राधिकरणों के नियमों के अनुसार ब्याज दण्ड, बयाज आदि अदा करने करने के लिए दायित्वाधीन हो जाता है, इसलिए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है।
आदेश अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है। उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे। प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे। (सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार) सदस्य सदस्य संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2 | |