जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण अजमेर
गिनिका महाजन पुत्री श्री रवि कुमार महाजन, 3 क-22, वैषालीनगर, अजमेर ।
प्रार्थीया
बनाम
1. प्रबन्धक, नागौर मोटर्स प्राईवेट लिमिटेड, विजय वल्लभ चैक, नागौर(राजस्थान)
2. प्रबन्धक, टाटा मोटर्स लिमिटेड, 305-ए, 3तक फलोर, टावर-बी, सिगनेचर टावर, साउथ सिटी, नेषनल हाईवे-8, गुडगांव ।
अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 33/2014
समक्ष
1. गौतम प्रकाष षर्मा अध्यक्ष
2. विजेन्द्र कुमार मेहता सदस्य
3. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
उपस्थिति
1.श्री प्रभात कुमार गुप्ता, अधिवक्ता, प्रार्थीया
2.श्री सुधीर टांक एवं नरेष मटाई,अधिवक्ता अप्रार्थी सं.1
3.श्री अनिल षर्मा, अधिवक्ता, अप्रार्थी सं.2
मंच द्वारा :ः- आदेष:ः- दिनांकः-03.03.2015
1. परिवाद के तथ्योंनुसार प्रार्थीया ने अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा निर्मित व अप्रार्थी संख्या 1 डीलर से एक कार जिसका विवरण परिवाद की चरण संख्या 1 में किया है, क्रय करने हेतु अप्रार्थी संख्या 1 कम्पनी के मुलाजिम जो अजमेर प्रार्थीया के घर दिनंाक 19.7.2013 को आए, को रू. 30,000/- अग्रिम देकर बुक करवाई तथा बाकी का भुगतान दिनंाक 24.7.2013 को जब गाडी की डिलीवरी लेकर अप्रार्थी के आदमी अजमेर आए तब किया । अप्रार्थी संख्या 1 ने प्रार्थीया को आष्वासन दिया कि यह वाहन हर प्रकार से दुरूस्त व ठीक है एवं इसी आष्वासन के बाद प्रार्थीया ने यह वाहन खरीदा लेकिन प्रार्थीया का कथन रहा है कि यह वाहन एक खराब वाहन था । परिवाद की चरण संख्या 5 में वर्णितानुसार इस वाहन के ब्रेक, वाहन खरीदने के 3 दिन बाद ही फेल हो गए । मैकेनिक से मालूम पडा कि ब्रेक में एयर थी । इसी प्रकार इस वाहन का पिछला बांयी तरफ का दरवाजा भी 3-4 दिन बाद खुलना बन्द हो गया जिसे पिछली सर्विस में मुदगल मोटर्स, परबतपुरा, अजमेर से ठीक करवाया वहां पर भी उसका कोई पार्ट बदला गया एवं प्रार्थीया से कोई राषि नहीं ली गई जिसका तात्पर्य यह है कि वाहन में कोई खराबी थी । अतः प्रार्थीया से राषि नहीं ली गई । यह वाहन बहुत कम एवरेज दे रहा था व इंजन व बाडी में से आवाज भी आ रही थी जिसके संबंध में अप्रार्थी का कथन है कि वाहन थोडा चलेगा तो आवाज अपने आप बन्द हो जावेगी व एवरेज भी सुधरेगा । वाहन में सेन्ट्रल लाॅक सिस्टम था एवं वाहन की चाबी में सेंसर वाला रिमोट भी लगा हुआ था । हर वाहन के साथ दो चाबियां दी जाती है परन्तु प्रार्थीया को एक चाबी रिमोट वाली एवं एक चाबी बिना रिमोट वाली दी गई एवं इस संबंध में एक घटना घटित हुई जिससे पता चला कि दूसरी चाबी में रिमोट नहीं है यथा उसके पिताजी को आवष्यक कार्य से मांगलियावास जाना पडा एवं वे दूसरी चाबी लेकर चले गए और आते समय संेसर लाॅक हो गया एवं कार स्टार्ट नहीं हुई । परिवाद की चरण संख्या 9 में वर्णितानुसार दिनंाक 12.12.2012 को वाहन को नागौर जाकर नागौर मोटर्स के टाटा सर्विस सेंटर पर दिखलाया एवं उपरोक्त सारी खामियों के बारे में बतलाया । उस वक्त यह पता चला कि फ्य्ूल टैंक के दो नट नहीं थे एवं अप्रार्थी संख्या 1 के सर्विस सेन्टर पर पिछले सस्पेंषन में ग्रीस कर दिया तथा एवरेज के लिए कहा कि 10000 कि.मी. चलने पर गाडी ठीक हो जावेगी । प्रार्थीया द्वारा इस संबंध में अप्रार्थी को षिकायत की और यह बतलाया कि यह वाहन डिफक्टिव है जिस पर अप्रार्थी के आदमी द्वारा बतलाया कि प्रार्थीया इस वाहन को सेर्वष्वर मोटर्स ले जावे वहां वाहन में आई सभी खराबियों को सही कर देगें । वाहन वहां ले जाने पर भी सहीं नहीं हुआ तब प्रार्थीया ने दिनंाक 19.12.2013 को ई- मेल से षिकायत भेजी । अगले ही दिन नागौर से कम्पनी के प्रतिनिधि श्री मनौज गौड का फोन आया और उसने विष्वास दिलाया कि प्रार्थीया की कार ठीक हो जावेगी तथा सारी तकलीफ क्लच की प्रेषर प्लेट से हो रही है और बाडी के एलाईन्मेंट को सही करवा देगें । इसके बाद टाटा मोटर्स के इंजीनियर श्री नितिन पाराषर का फोन आया एवं उसने कार की समस्यो के बारे में पूछा और उसने कहा कि वह अपनी देखरेख में कार सही करवा देगा । दिनंाक 23.12.2012 को नितिन पाराषर सर्वेष्वर सर्विस सेन्टर के मालिक के साथ प्रार्थीया के घर आया तथा कार को 3 दिन में सही करके देने का वादा किया तथा प्रार्थीया को जो तकलीफ हुई उसके लिए कहा कि एक गोल्ड कार्ड दो वर्ष के लिए प्रार्थीया को दिया जावेगा जिसके तहत कार का काम फ्री होगा । सर्वेष्वर सर्विस सेन्टर पर प्रार्थीया की कार के क्लच का पूरा सिस्टम बदला, इंजन का पम्प बदला चारों नौजल बदले, फ्यूल टेंक को खोला, चारों दरवाजों के आलईन्मेंट को सही किया, बोनस का अलाईन्मेंट सही किया, इंजन का टाईमिंग सेट किया , आल्टीनेटर को रिपेयर किया तथा उसका बेल्ट नया डाला गया तथा ब्रेकों को सही किया व वाईफर ब्लेड पानी को पूरी तरह से साफ नहीं कर रही थी, उसे बदला या नहीं पता नहीं । इस प्रकार प्रार्थीया का कथन है कि ये सारे दोष नई कार में नहीं हो सकते एवं पुरानी कार में हो सकते है। टाटा मोटर्स के मिस़्ित्रयो ने कहा कि कार डिफेक्टिव है । इस प्रकार उपरेाक्त दिक्कतों से परेषान होकर प्रार्थीया ने दिनंाक 28.12.2012 को सर्वेष्वर मोटर सर्विस सेन्टर,,,माखुपरा अजमेर के सुपुर्द कर दिया और तब से कार उनके कब्जे में ही है । दिनांक 31.12.2013 को नितिन पाराषर ने ईमेल से प्रार्थीया को सूचना दी कि उनकी कार दिनांक 28.12.2013 से तैयार खडी है जिसे प्रार्थीया ले जावे । जिस पर प्रार्थीया के पिता दिनंाक 31.12.2013 को वर्कषाॅप षाम 6.00 बजे गए तो यह पाया कि उस समय कार तैयार नहीं थी और उनसे कहा कि 1-2 दिन लगेगे । इस तरह से अप्रार्थीगण ने प्रार्थीया के साथ गलत व झूठा तथ्य दर्षाया व प्रार्थीया को एक डिफेक्टिव पीस दिया । इसके अतिरिक्त अप्रार्थी संख्या 1 के विरूद्व भी इस आषय की भी सेवा में कमी दषाई है कि नागौर मोटर्स ने वाहन की कीमत रू. 5,42,000/- प्राप्त की थी किन्तु वाहन का बीमा रू. 5,14,900/- का ही करवाया गया तथा प्रार्थीया ने कार लेने के थोडे समय पूर्व ही लाॅंच हुई नई माॅडल का वाहन देने की बात कही थी किन्तु पुराना माॅडल को नए माॅडल की कार कह कर दे दी । परिवाद पेष करते हुए प्रार्थीया ने अनुतोष चाहा है कि इस त्रुटिपूर्ण कार के स्थार पर नई कार दिलाई जावे व मानसिक , षारीरिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति भी दिलाई जावे ।
2. अप्रार्थी संख्या 1 की ओर से जवाब प्रस्तुत हुआ जिसमे प्रारम्भिक आपत्तियों में यह दर्षाया है कि प्रार्थीया ने यह परिवाद झूठे, मनगढन्त व गलत तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया है जो खारिज होने योग्य हे । इसके अततरिक्त
इस मंच को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं होकर नागौर मंच को सुनवाई का क्षेत्राधिकार हे । अतः इस आधार पर भी परिवाद खारिज होने येाग्य बतलाया।
परिवाद के चरणवार जवाब में कथन किया है कि वाहन के बीमा के संबंध में आईआईडीए के नियमानुसार वाहन के मूल्य के 95 प्रतिषत भाग पर ही बीमा किया जाता है । वाहन की अग्रिम राषि रू. 30,000/- भी प्रार्थीया के पिता ने नागौर आकर जमा कराना तथा वाहन की डिलीवरी भी नागौर आकर लेना वर्णित किया है । जहां तक प्रार्थीया को दूसरा माडल देने का प्रष्न है इस संबंध में प्रार्थीया के पिता द्वारा वाहन की डिलीवरी के समय कोई एतराज नहीं किया । यदि ऐसी बात होती तो से इस संबंध में एतराज करते । ब्रेक फेल होने के संबंध में दर्षाया कि वाहन को ध्यानपूर्वक तरीके से बाहर नहीं निकाला जिसके कारण पीछे खडी मोटर साईकिल के टक्कर लगी होगी । वाहन के कोई ब्रेक फेल नहीं हुए थे । अपने जवाब की चरण संख्या 6 में दर्षाया है कि प्रार्थीया द्वारा इस वाहन को एक बार दिनंाक 12.1.2.2012 को इस अपा्रर्थी के वर्कषाप पर लाया गया एवं वाहन को चेक किया । वाहन सही पाया गया । यह अप्रार्थी एवरेज के संबंध में मंच के निर्देषानुसार जांच के लिए तैयार एवं तत्पर है । दूसरी चाबी रिमोट वाली दिए जाने के संबंध में दर्षाया कि दूसरी चाबी बिना रिमोट के ही दी जाती है । रिमोट लगाने की राषि रू. 2000/- होती है । प्रार्थीया को चाहिए था कि यदि उसे दूसरी चाबी रिमोट वाली चाहिए थी तो रू. 2000/-खर्च कर प्राप्त कर सकती थी । प्रार्थीया ने परिवाद में रिमोट वाली चाबी नही ंहोने से जो तकलीफ होने का वर्णन किया है इस आषय की षिकायत जब उसके पिताजी दिनंाक 12.12.2013 को नागौर आए तब नहीं करवाई । दिनंाक 12.12.2013 को प्रार्थीया के पिता ड्राईवर के साथ इस अप्रार्थी के वर्कषाॅप पर आए इस तथ्य को स्वीकार किया तथा जाॅब कार्ड आर-2 में वर्णित अनुसार उनके द्वारा षिकायत संख्या 1,2,3 व 6 के संबंध में बतलाया था बाकी कोई षिकायत नहीं बतलाई । दिनांक 12.12.2012 को प्रार्थीया के वाहन की सर्विस की गई तथा सन्तुष्ट होकर प्रार्थीया के ड्राईवर ने हस्ताक्षर किए तथा वाहन के संबंध में गेट पास जारी हुआ जिसके संबंध में प्रदर्ष-आर-3 पत्रावली पर है । इस तरह से अप्रार्थी का जवाब है कि प्रार्थीया को कोई त्रुटिपूर्ण या बुक कराए गए वाहन के अतिरिक्त दूसरा वाहन नहीं दिया गया तथा प्रार्थीया द्वारा इस वाहन को एक बार ही इस अप्रार्थी के वर्कषाॅप पर लेकर आई एवं वाहन की पूरी सर्विस की गई एवं स्वयं के पक्ष में किसी तरह की सेवा में कमी से इन्कार किया गया ।
3. अप्रार्थी संख्या 2 का जवाब पेष हुआ जिसमें दर्षाया कि वाहन में कोई देाष नहीं था । वाहन आॅटोमोबाईल्स रिसर्च इन्स्टीट्यूट आफ इण्डिया से अनुमोदित होने के बाद ही बाजार में विक्रय के लिए उतारा जाता है । इस अप्रार्थी द्वारा डीलर को सही वाहन ही उपलब्ध कराया गया था । प्रारमिभक आपत्तियों में इस मंच को परिवाद सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं होने का उल्लेख किया है क्योंकि वाहन नागौर से क्रय किया गया एवं वहीं से डिलीवरी ली गई थी । आगे बतलाया कि प्रार्थीया ने वाहन सर्वेष्वर मोटर्स, अजमेर से ठीक कराया किन्तु सर्वेष्वर मोटर्स को पक्षकार नहीं बनाया गया जो कि एक आवष्यक पक्षकार हे । वाहन दिनांक 24.7.2013 को क्रय किया गया एवं दिनांक 24.2.2014 तक की अवधि तक वाहन को प्रयोग में लिया जाता रहा है एवं वाहन दिनांक
12.12.2013 तक 6302 कि.मी. तक चल चुका था । यदि वाहन त्रुटिपूर्ण था तो इतने लम्बे समय तक वाहन का उपयोग नहीं किया जा सकता था। जवाब की चरण संख्या 6 में वाहन में निर्माण संबंधी दोष होना प्रार्थीया ने बतलाया है उसके संबंध में इस अप्रार्थी का कथन है कि इस बिन्दु को सिद्व करने का भार प्रार्थीया पर होता है एवं प्रार्थीया द्वारा इस हेतु किसी भी विषेषज्ञ की राय आॅटोमोबाईल्स रिसर्च इन्स्टीट्यूट आफ इण्डिया/ मैकेनिकल इंजीनियर आदि की कोई रिर्पोट पेष नहीं की है । प्रार्थीया स्वयं ने इस वाहन के त्रुटिपूर्ण होने के संबंध में निरीक्षण करने का कोई आवंेदन मंच में प्रस्तुत नहीं किया है जबकि ऐसी जांच आॅटोमोबाईल्स रिसर्च इन्स्टीट्यूट आफ इण्डिया जो कि भारत सरकार के हेवी इण्डस्ट्रीयल एण्ड पब्लिक एण्टरप्राईजेज मंत्रालय के अधीन है, वहा ऐसे वाहन की निष्पक्ष जांच होती है जो प्रार्थीया द्वारा नहीं करवाई गई । इस अप्रार्थी ने प्रारम्भिक आपत्तियों में कई आपत्तियां ली गई तथा परिवाद के मदवार जवाब में प्रार्थीया के परिवाद को खारिज होने योग्य दर्षाया है ।
4. परिवाद के समर्थन में प्रार्थीया ने स्वयं का संक्षिप्त ष्षपथपत्र पेष किया तथा अप्रार्थीगण ने अपने जववाब के समर्थन में स्वयं के ष्षपथपत्र पेष किए । प्रार्थीया की ओर से वाहन का आर.सी., टैक्स इन्वाईस, बीमा पाॅलिसी , अस्थायी रजिस्ट्रेषन आदि पेष किए साथ ही प्रार्थीया द्वारा अप्रार्थीगण को दिए गए नोटिस की फोटोप्रति तथा प्रार्थीया ने इस वाहनके संबंध में जो ईमेल अप्रार्थीगण को भेजे की प्रतिया पेष की है ।
5. अप्रार्थी संख्या 1 की ओर से गेट पास दिनांक 12.12.2013 व सन्तुष्टी प्रमाण पत्र दिनंाक 12.1.2.2012 व जाॅब स्लिप दिनंाक 12.12.2013 तथा वाहन डिलीवरी जो प्रार्थीया द्वारा नागौर में ली गई की फोटो की फोटोप्रति पेष की है ।
6. प्रकरण में अप्रार्थी संख्या 2 की ओर से एक आवेदन प्रष्नगत वाहन की जांच आॅटोमोबाईल्स रिसर्च इन्स्टीट्यूट आफ इण्डिया के द्वारा किए जाने का पेष हुआ । मंच द्वारा इस संबंध में अभिनिर्धारित किया गया कि आवेदन के संबंध में अप्रार्थी अपनी बहस के वक्त निवेदन कर सकेगा तथा उक्त आवेदन को इसी अनुरूप निर्णित किया गया ।
7. इस परिवाद के निर्णय हेतु हमारे समक्ष निम्नांकित बिन्दु तय करने के लिए है:-
8. (1) क्या प्रार्थीया अप्रार्थीगण की उपभोक्ता है ?
(2) क्या परिवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार इस मंच को नहीं है ?
(3) क्या अप्रार्थी संख्या 1 ने वाहन के बीमा हेतु वाहन की कीमत रू. 5,42,000/- के लिए राषि ली किन्तु बीमा रू. 5,14,900/- का ही करवाया । इस प्रकार रू. 27,100/- का कम बीमा करवा कर अप्रार्थीगण ने सेवा में कमी कारित की है ?
(4) क्या अप्रार्थी संख्या 1 ने प्रार्थीया को नए माॅडल की जगह पुराने माॅडल का वाहन दे कर सेवा में कमी कारित की है ?
(5) परिवाद में वर्णित अनुसार प्रार्थीया के इस वाहन में जो दिनंाक 24.7.2013 को क्रय किया गया, में क्रय करने के बाद से ही एवं मात्र 4-5 माह में जो खराबियां यथा - वाहन क्रय करने के तीसरे दिन ही ब्रेक फेल हो जाना, 3-4 दिन बाद ही पिछले बायी तरफ का दरवाजा खुलना व बंद हो जाना, एवरेज कम होना, इंजन ज्यादा अवाज करना, दरवाजों व डिक्की का एलाइनमेंट सहीं नहीं होना, पिकअप काफी कम होना , अगले दरवाजे को खोलने से अंदर की लाईट नहीं जलना तथा अन्य खराबियों के कारण वाहन सर्वेयर मोटर्स, अजमेर ने जो वाहन में कार्य किया गया व पूर्जे बदले गए आदि तथ्यों से क्या प्रष्नगत वाहन एक दोषपूर्ण वाहन है ?
9. कायम किए गए निर्णय बिन्दुओं पर हमने पक्षकारान को सुना । प्रार्थीया की ओर से अप्रार्थी संख्या 1 व 2 क संबंध में लिखित तर्क पेष किए तथा उसकी ओर से जबानी बहस भी की गई । प्रार्थीया की ओर से जो लिखित तर्क पेष हुए है उनमें प्रार्थीया की ओर से अप्रार्थी संख्या 1 के संबंध में प्रकरण के तथ्यों का वर्णन करते हुए कार त्रुटिपूर्ण होने के संबंध में तर्क दिए है कि कार के ब्रेक कार क्रए किए जाने के 3 दिन बाद ही फेल हो गए कार का पिछला बायी तरफ का दरवाजा भी 3-4 दिन बाद खुलना बन्द हो गया साथ ही नागौर मोटर्स के सर्विस सेन्टर पर प्रार्थीया के पिता की मौजुदगी में इस कार के संबंध में जो कार्य किया गया जिसका विवरण लिखित की (ब) हेड में किया है, गे आधार पर दर्षाया है कि ऐसी खराबियां त्रुटिपूर्ण कार में ही हो सकती है । इसी तरह से अजमेर के सेर्वस सेन्टर पर जो कार्य हुआ उसकेो देखने से भी ये सारी खराबियां नई कार में नहीं आ सकती थी तथा लिखित बहस में जो वर्णन प्रार्थीया का रहा है उसके आधार पर प्रार्थीया की ओर से बहस की गई है कि यह कार त्रुटिपूर्ण थी एवं माडल भी पुराना था । अप्रार्थी ने इ समंच को क्षेत्राधिकार नहीं होने का जो आक्षेप लगाया है, के संबंध में प्रार्थीया ने अपनी लिखित बहस की हेड (इ) में दर्षाया है जिसके अनुसार रूप्यों का लेन देन अजमेर में ही हुआ था तथा अप्रार्थी ने अपने ड्राईवर से कार अजमेर छुडवाई । अतः इनत थ्यों से स्पष्ट है किम वादकरीण अजमेर मंच के क्षेत्राधिकार में उत्पन्न हुआ है । कार लेने प्रार्थीया के पिता नागौर गए लेकिन नागौर से कार अजमेर छुडाने का दायित्व व जिम्मा अप्रार्थी का ही था एवं इस अप्रार्थी ने अपनी निर्धारित योजना के तहत उन्हें नागौर चलने का आग्रह किया एवं कार की डिलीवरी के फोटो खिचवाएं ताकि प्रार्थीया कोई भी मामाला बनाए तो नागौर का बन सके । अपेने लिखित तर्क के हेड(ब्) में प्रार्थीया के साथ छल के संबंध में उल्लेख किया है जिसमें वर्णित अनुंसार प्रार्थीया की ओर से बहस रही है कि प्रार्थीया को जिस माॅडल की कार देने की बात हुई उस माॅडल की कार नहीं दी जाकर दूसरे माॅडल की दी गई सही अपने लिखित तर्क में यह भी बतलाया कि अप्रार्थी ने प्रदर्ष अ ार-3 सन्तुष्टी पत्र फर्जी तैयार किया है तथा पवन नामक व्यक्ति को प्रार्थीया के पिता के साथ ड्राईवर आना दर्षाया है । कार की डिलीवरी के साथ म्समबजतवदपब ैमबनतपजल ैलेजमउ व्ूदमतष्े डंदनंस इववा दिया जाता है वह भी प्र्रार्थीया को नहीं दिया गया । प्रार्थीया की ओर से अप्रार्थी संख्या 2 के संबंध में लिखित तर्क पेष किए है । जिनका समावेष लिखित तर्क के हेड ।, ठ व ब् के सब हेड ं से द में किया है तथा हेड क् से भ् में भी उल्लेख किया है ।
10. अप्रार्थी संख्या 1 व 2 के अधिवक्तागण की बहस भी उनके अभिवचनों के अनुसार ही रही है तथा उनके अभिवचनों में उल्लेेखित दृष्टान्तों के अनुसार प्रार्थीया को पूराना एवं त्रुटिपूर्ण कार दिया जाना प्रार्थीया की ओर से सिद्व नहीं हुआ है ।
11. क्षेत्राधिकार के संबंध में अप्रार्थी संख्या 1 की बहस रही है कि प्रार्थीया ने कार नागौर से ही खरीदी थी तथा बीमा के संबंध में आईआरडीए के अनुसार वाहन की क्रय राषि के 95 प्रतिषत भाग का ही बीमा हो सकता है । प्राथीर्रया ने अपने जवाब में कई सारी खामियां वाहन में बतलाई है किन्तु वाहन जब दिनंाक 12.12.2013 को इस अप्राथी्र के वर्कषाॅप पर लाया गया तब उसकी सर्विस की गई थी इससंबंध में जाॅब स्लिप भी तैयार हुई है तथा वाहन उपरान्त सन्तुष्ट होकर प्रार्थीया की ओर से प्राप्त किया गया है तथा जाॅब स्लिप तथा गेट पास भी पत्रावली पर है । अधिवक्ता की बहस है कि वाहन की डिलीवरी नागौर में दीग ई तथा डीलवर के समय लिए गए फोटो की प्रति इस पत्रावली पर पेष हुई है । अधिवकता ने प्रार्थीया द्वारा वाहीर में जो दोष बतलाए उनके संबंध में किसी भी विषेषज्ञ की राय प्रस्तुत नहीं हुई है जबकि उनके जवाब में वर्णित दृष्टान्त अनुसार वाहन में कोई दोष है या वाहन त्रुटिपूर्ण हो , तथ्य सिद्व करने हेतु विषेषज्ञ की राय होना दर्षाया हे । वाहन में कार्य सर्वेष्वर मोटर्स से कराया गया है । इस अप्रार्थी के पास जब वाहन लाया गया था तब वाहन में कोई दोष नही ंथा तथा वाहन की सर्विस उनके द्वारा की गई थी । सर्वेष्वर मोटस की सेवाओं के संबंध में यह अप्रार्थी जिम्मेदार नहीं है ऐसा भी दर्षाया है । रिमोट वाली चाबी के संबंध में दर्षाया है कि रिमोट वाली चाबी एक ही दी जाती है । इस तरह से अप्रार्थी संख्या 1 के अधिवक्ता की बहस रही है कि प्रार्थीया को प्रष्नगत वाहन जो विक्रय किया वह सही वाहन था । वाहन में कोई निर्माणीय दोष नहीं था ।
12. अप्रार्थी संख्या 2 के अधिवक्ता की बहस उनके जवाब के अनुरूप् ही रही एवं उनका कथन है कि वाहन में निर्माणीय दोष संबंधी तथ्य सिद्व करने के लिए विषेषज्ञ की रायि आवष्यक है जो प्रार्थीया द्वारा पेष नही ंहुई है । उनकी यह भी बहस है कि दोषयुक्त वाहन या वाहन में बनावटी संबंधी कोई दोष हैै, के संबंध में जांच हेतु आॅटोमोबाईल्स रिसर्च इन्स्टीट्यूट आफ इण्डिया अधिकृत है एवं निर्माण संबंधी दोष सिद्व करने का भार प्रार्थीया पर है लेकिन प्रार्थीया द्वासरा इस वाहन की जांच आॅटोमोबाईल्स रिसर्च इन्स्टीट्यूट आफ इण्डिया से नहीं करवाई है । उक्त संस्थान से जांच के बाद ही वाहन को विक्रय हेतु खुले बाजार में उतारा जाता है । इस अप्रार्थी द्वारा अपने डीलर्स को सही वाहन ही विक्रय हेतु बेचा जाता है । अप्रार्थी डीलर के कृत्यों के लिए स्वयं को जिम्मेदार नहीं होना इस अप्रार्थी की ओर से दर्षाया है । अधिवक्ता अप्रार्थी की यह भी बहस है कि उनके जवाब में वर्णित तथ्यों के परिपेक्ष्य में प्रार्थीया का मामला सिद्व नहीं है एवं इस अप्रार्थी के विरूद्व सेवा में कमी का बिन्दु सिद्व नहीं है ।
13. हमने बहस पर गौर किया एवं कायम किए गए निर्णय बिन्दुओं का निर्णय निम्न तरह से किया जा रहा है:-
14 (1) निर्णय बिन्दु संख्या 1:- जहां तक इस निर्णय बिन्दु का प्रष्न हेै, प्रथमतः अप्रार्थीगण की प्रार्थीया उपभोक्ता न हो, संबंधी को एतराज नहीं है । इसके अतिरिक्त प्रष्नगत वाहन अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा निर्मित था जो अप्रार्थी संख्या 1 डीलर से क्रय किया गया एवं इस परिवाद में इसी वाहन के संबंध में विवाद लाया गया है । अतः हम पाते है कि प्रार्थीया अप्रार्थीगण की उपभोक्ता है ।
(2) निर्णय बिन्दु संख्या 2:- इस निर्णय बिन्दु के संबंध में हुई बहस पर हमने गौर किया । अप्रार्थी का कथन है कि अप्रार्थी संख्या 1 का संस्थान नागौर में है तथा अप्रार्थी संख्या 2 का कार्यालय आदि गुडगांव(हरियाणा) में है । वाहन नागौर से क्रय किया गया तथा वाहन की डिलीवरी भी नागौर से ली गई । अतः विवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार मंच को नहीं है एवं इस मंच के क्षेत्र में कोई वादकारण उत्पन्न नहीं हुआ है ।
प्रार्थीया की ओर से इस ंसबंध में जो बहस हुई उस पर हमने गौर किया जिसके अनुसार वाहन क्रय करने की बात अजमेर में तय हुई थी तथा अग्रिम राषि रू. 30,000/- की राषि का चैक भी अजमेर से बैंक आफ इण्डिया, षाखा बांदरा सिंदरी से दिया जाना बतलाया है । वाहन की डिलीवरी के संबंध में उनका कथन है कि वाहन की डिलीवरी लेते वक्त प्रार्थीया के पिता नागौर अवष्य गए थे लेकिन वाहन की डिलीवरी अजमेर में ही देनी थी एवं उक्त वाहन को अप्रार्थी संख्या 1 के आदमी द्वारा ही अजमेर लाया गया है । वाहन की अग्रिम राषि अजमेर में दिया जाना बतलाया है तथा वाहन क्रय किए जाना भी अजमेर में ही तय हुआ था, ये तथ्य प्रार्थीया ने बतलाए है । अतः इन सभी तथ्यों को देखते हुए वादकरण अंषतः अजमेर क्षेत्र में भी उत्पन्न हुआ है । इसके अतिरिक्त वाहन का संचालन अजमेर में हुआ है एवं इसमें आई कमियों भी अजमेर क्षेत्र में ही उत्पन्न हुई है । अतः हम पाते है कि इस विवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार अजमेर मंच को है ।
(3) निर्णय बिन्दु संख्या 3:- प्रार्थीया का कथन है कि अप्रार्थी द्वारा वाहन की क्रय राषि रू. 5,42,000/- पर बीमा किष्त प्राप्त की गई थी जबकि बीमा रू. 5,14,900/- की राषि का ही करवाया है । इस प्रकार अप्रार्थी ने सेवा में कमी कारित की है । इस संबंध में अप्रार्थी के जवाब में जो स्पष्टीकरण आया है उसके अनुसार प्त्क्। के नियमानुसार वाहन का बीमा वाहन की कीमत की 95 प्रतिषत राषि का ही किया जाता है । अतः बीमा रू. 5,14,900/- की राषि का करवाया है जो सही करवाया है । इसके विपरीत इस संबंध में प्रार्थीया की ओर से कोई तथ्य नहीं बतलाए गए है । अतः यह निर्णय बिन्दु प्रार्थीया की ओर से सिद्व नही ंहोना पाया गया है ।
(4) निर्णय बिन्दु संख्या 4:- अप्रार्थी संख्या 1 ने प्रार्थीया को नए माॅडल की जगह पुराना माॅडल दे देकर सेवा में कमी कारित की है । इस निर्णय बिन्दु पर सुना गया । प्रार्थीया को जो वाहन दिया गया उसका बिल अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा जारी हुआ है । तत्पष्चात् सेल सर्टिफिकेट भी जारी हुआ है । वाहन का रजिस्ट्रेषन भी प्रार्थीया ने करवाया है तथा वाहन का बीमा भी प्रार्थीया द्वारा करवाया गया है । जो विवरण टैक्स इन्वाईस व सेल सर्टिफिकेट में दिए गए है उन विवरणों के अलावा का वाहन प्रार्थीया को दिया गया है, यह प्रार्थीया का कथन नहीं है । प्रार्थीया ने वाहन खरीदने के बाद इस वाहन का बीमा करवाया है एवं रजिस्ट्रेषन भी करवाया है एवं प्रार्थीया ने वाहन की डिलीवरी भी प्राप्त की है । इन सभी तथ्यों को देखते हुए जब प्रार्थीया को जो वाहन बुक करवाया है वह वाहन नहीं देकर दूसरा पुराना वाहन दे दिया, संबंधी कोई कारण प्रार्थीया की ओर से नहीं दिए गए हो, नहीं पाया गया है । प्रार्थीया ने किस माॅडल का वाहन बुक करवाया । पत्रावली पर कोई बुकिंग आदेष उपलब्ध नहीं है । अतः प्रार्थीया का यह कथन कि उसे नए माॅडल की जगह पुराने माॅडल का वाहन दे दिया , प्रार्थीया की ओर से सिद्व नहीं हुआ हे । अतः इस निर्णय बिन्दु का निर्णय इसी अनुरूप किया जाता है ।
(5) निर्णय बिन्दु संख्या 5:- इस निर्णय बिन्दु के संबंध में हुई बहस पर हमने गौर किया । प्रार्थीया की ओर से अपने परिवाद, लिखित तर्क व नोटिस दिनंाक 3.1.2014 जो अप्रार्थीगण को दिए, मे वर्णित खराबियों के आधार पर दर्षाया है कि ऐसी खराबियां दोषपूर्ण वाहन में ही हो सकती है। अतः प्रष्नगत वाहन एक दोषपूर्ण वाहन है । अप्रार्थीगण की ओर से जो जवाब पेष हुए एवं जो बहस की गई, के संबंध में वाहन संबंधी दोष जब तक सिद्व नहीं माने जा सकते जब तक कि ऐसे वाहन का निरीक्षण किसी सक्षम विषेषज्ञ से नहीं हो जाता ।
15. हमने गौर किया । प्रष्नगत वाहन एक दोषपूर्ण वाहन है इस तथ्य को सिद्व करने का भार प्रार्थीया पर है । इसी तरह से अप्रार्थीगण के जवाब व बहस में जो दृष्टान्त यथा - (1) क्तण् ज्ञण् ज्ञनउंत ।कअपेवत;तदहपदममतपदहद्धए डंतनजप न्कलवह स्जक टे क्तण् ।ण् ैण् छंतंलंद त्ंव - ।दत प् ;2010द्ध ब्च्श्र 19;छब्द्ध (2) ज्म्स्ब्व् टे ैनदपस ठींेपद ;2008द्ध प्प् ब्च्श्र 11;छब्द्ध में अभिनिर्धारित अनुसार एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग व राज्य आयोग के कई निर्णयों में अभिनिर्धारित अनुसार जब तक ऐसे वाहन की विषेषज्ञ द्वारा जाचं नहीं हो जाती तब तक ऐसी जांच के अभाव में तथाकथित वाहन दोषपूर्ण वाहन हो , नहीं माना जा सकता । हस्तगत प्रकरण में प्रार्थीया द्वारा वाहन में कोई निर्माण संबंधी दोष हो, के संबंध में कोई जांच नहीं करवाई गई है एवं इस आषय की कोई रिर्पोट पत्रावली पर भी नहीं है । अतः प्रार्थीया का यह कथन कि चूंकि वाहन के क्रय करने के बाद से ही एवं मात्र 5 माह की अवधि मे ंही कई तरह की खराबियां आई जिससे यह मान लिया जावे कि वाहन दोषपूर्ण है, उपर विवेचनानुसार नहीं माना जा सकता । वाहन में जिन खराबियों का वर्णन किया गया है, के अनुसार कुछ खराबियां यथा- दरवाजे का लाॅक नहीं होना, अन्दर की लाईट नहीं जलना, बे्रक नहीं लगना ,फ्यूल टेंक के नट का गिर जाना, पिछले संसमेंषन का ग्रीस किया जाना, अगले षोकर के नटों का ढीला हो जाने से उन्हें टाइर्ट करना, दरवाजे, बोनट आदि के एलाइनमेंट को सही करना आदि से संबंधित थी । ये सभी खराबियां वाहन के इंजन या महत्वपूर्ण हिस्से से संबंधित नहीं थी । इसके अतिरिक्त ऐसी खराबियां वाहन के सहीं रूप से संचालन नहीं किए जाने या वाहन किसी उबड खाबड रास्ते पर चलाए जाने से भी आ जाने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है । अतः हमारे विनम्र मत में हम उपरोक्त खराबियों मात्र के आधार पर वाहन एक दोषपूर्ण वाहन था, नहीं मान सकते एवं इस निर्णय बिन्दु का निर्णय इसी अनुरूप किया जाता है । माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णय 2014 छब्श्र 466;छब्द्ध किषनपाल सिंह बनाम टाटा मोटर्स के तथ्य हस्तगत प्रकरण के तथ्यों से एक तरह से हबहु मेल खा रहे है एवं इस दृष्टान्त के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने इस प्रकार की आई खराबियों के आधार मात्र पर वाहन का दोषपूर्ण नहीं माना है ।
16. प्रष्नगत वाहन में प्रार्थीया के कथानानुसार उपर वर्णित खराबियां आई जिसके संबंध में वाहन की पहले नागौर में सर्विस करवाई फिर टाटा मोटर्स के यहां अप्रार्थी संख्या 2 के इंजीनियर के कहे अनुसार करवाई किन्तु ये खराबियां दूर नहीं हुई, ये प्रार्थीया ने बतलाया है । परिवाद के पैरा संख्या 14 में वर्णित अनुसार प्रार्थीया ने यह वाहन दिनांक 28.12.2013 को टाटा मोटर्स के इंजीनियर नितिन पाराषर के आष्वासन पर सर्वेष्वर संेटर पर दिया । दिनांक 31.12.2013 को प्रार्थीया के पिता कार सहीं कर दिए जाने की सूचना पर जब कार लेने गए तब 1-2 दिन बाद आकर ले जाने के लिए कहा । उसके बाद प्रार्थीया की ओर से कोई वाहन लेने गया या नहीं , स्पष्ट नहीं किया गया है । प्रार्थीया ने यह दर्षाया है कि वाहन सर्विस सेन्टर पर ही खडा है ।
17. निर्विवाद रूप से वाहन में ये खराबियां वारण्टी अवधि में आई है । अप्रार्थी संख्या 1 वाहन डीलर है एवं अप्रार्थी संख्या 2 वाहन निर्माता है । उपरोक्त परिस्थितियों में प्रार्थीया इस कार की सम्पूर्ण रूप से एवं संतोषप्रद रूप से मरम्मत करवाने की अधिकारणी पाई जाती है । इस क्रम में यदि वाहन के कोई भाग जो खराब हो जोन से दुरूस्त होने योग्य नहीं है तो उन्हें भी बदलवाकर नए लगवाए जाने की अधिकारणी पाई जाती है सम्पूर्ण सर्विस पष्चात् प्रार्थीया इस वाहन के संबंध में दी गई वारण्टी को भी बढवाने की अधिकारणी पाई जाती है । इस वाहन में खराबियां वाहन के क्रय करने के बाद से ही एवं 4-5 माह में ही उत्पन्न हुई है, के तथ्यों को देखते हुए प्रार्थीया इस संबंध में हर्जोने के रूप में समुचित राषि प्रापत करने की अधिकारणी है ।
18. अब हमें यह निर्धारित करना है कि इन कार्याे हेतु अप्रार्थी संख्या 1 अकेले ही जिम्मेदार है या अप्रार्थी संख्या 1 व 2 दोनों संयुक्त रूप से जिम्मेदार होते है । निर्विवाद रूप से वाहन में खराबी वारण्टी अवधि में आई है । अप्रार्थी संख्या 2 के जवाब में आया है कि वह वाहन का निर्माता है । अप्रार्थी संख्या 1 व 2 के मध्य प्रिंसीपल टू प्रिंसीपल के संबंध हे । वाहन में निर्माण संबंध दोष नहीं पाया गया है एवं जो भी जिम्मेदारी होगी वो अप्रार्थी संख्या 1 की होगी । वाहन में खराबी वारण्टी अवधि में आई है एवं वाहन क्रय करने के बाद से ही षुरू हो गई एवं उपर वर्णित खराबियाॅं 5 माह की अवधि में ही आई है । हस्तगत प्रकरण के तथ्यों से ही मिलते जुलते मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने किषनपाल सिंह बनाम टाटा मोटर्स(उपरोक्त) में निर्माता कम्पनी टाटा ने डीलर के संबंध में प्रिंसीपल टू प्रिंसीपल का संबंध होने संबंधी एतराज लिया किन्तु माननीय राष्ट्रीय आयोग ने निर्माता टाटा कम्पनी का भी उत्तरदायित्व माना है । हमारे विनम्र मत में प्रार्थीया के इस वाहन में आई खराबियों को दुरूस्त करवाने का दायित्व दोनों ही अप्रार्थीगण पर है ।
19. प्रार्थीया ने इस वाहन की सर्विस नागौर सर्विस सेन्टर से करवाई जिससे प्रार्थीया सन्तुष्ट नहीं हुई हे । कार में आई खराबियों के लिए अप्रार्थी संख्या 1 व 2 दोनों का दायित्व माना गया है । अतः हमारे विनम्र मत में यह उचित होगा कि अप्रार्थी संख्या 2 टाटा मोटर्स प्रार्थीया के इस वाहन में आई खराबियों को सम्पूर्ण रूप से दुरूस्त करवा कर प्रार्थीया को सौपें । साथ ही दृष्टान्त किषनपाल सिंह बनाम टाटा मोटर्स(उपरोक्त) में दिए गए निर्देषानुससार टाटा मोटर्स यह वाहन बाद मरम्मत(सर्विस कार्य) के सम्पूर्ण रूप से दुरूस्त कर दी गई है , संबंधी एक प्रमाण पत्र भी जारी कर प्रार्थीया को सौंपे साथ ही वाहन की वारण्टी भी अगले 12 माह हेतु बढावे । प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए प्रार्थीया अप्रार्थीगण से उपयुक्त राषि बतौर मानसिक संताप व वाद व्यय के मद में भी प्राप्त करने की अधिकारणी होगी । अतः आदेष है कि
:ः- आदेष:ः-
20. (1) अप्रार्थी संख्या 2 टाटा मोटर्स इस निर्णय की तिथी के भीतर 30 रोज में प्रार्थीया के इस वाहन संख्या आर.जे.01.सी.सी.1018 को सम्पूर्ण रूप से मरम्मत(सर्विस कार्य) करवा कर प्रार्थीया को सौंपे । वाहन की मरम्मत(सर्विस कार्य) सही रूप से कर दिया गया है एवं अब वाहन में कोई खराबी नहीं है, संबंधी एक प्रमाण पत्र भी अपने किसी अधिकारी यथासम्भव कम्पनी के जनरल मैनेजर के हस्ताक्षर से जारी करें एवं उक्त प्रमाण पत्र की एक प्रति प्रार्थीया को भी सौंपे साथ ही अप्रार्थी संख्या 2 टाटा मोटर्स इस वाहन की वारण्टी अवधि भी अगले 12 माह तक बढावे ।
(2) प्रार्थीया अप्रार्थी संख्या 1 व 2 से मानसिक संताप के मद में राषि रू. 50,000(अक्षरे रू. पचास हजार मात्र) एवं वाद व्यय के मद में राषि रू. 10,000/- (अक्षरे रू. दस हजार मात्र) प्राप्त करने की अधिकारणी होगी ।
(3) क्रम संख्या 2 में वर्णित राषि अप्रार्थी संख्या 1 व 2 संयुक्त व पृथक पृथक रूप से इस आदेष से दो माह की अवधि में अदा करें अथवा आदेषित राषि डिमाण्ड ड््राफट से प्रार्थीया के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावें।
(4) दो माह में आदेषित राषि का भुगतान नहीं करने पर प्रार्थीया अप्रार्थी संख्या 1 व 2 संयुक्त व पृथक पृथक रूप से उक्त राषियों पर निर्णय की दिनांक से ताअदायगी 09 प्रतिषत वार्षिक दर से ब्याज भी प्राप्त कर सकेगी ।
(विजेन्द्र कुमार मेहता) (श्रीमती ज्योति डोसी) (गौतम प्रकाष षर्मा)
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21. आदेष दिनांक 03.03.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
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