Rajasthan

Nagaur

281/2012

Chandan Kumar Gour - Complainant(s)

Versus

Nagar Parishad - Opp.Party(s)

Sh SC Pareek

28 Jan 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 281/2012
 
1. Chandan Kumar Gour
Nagaur
...........Complainant(s)
Versus
1. Nagar Parishad
Nagaur
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Brijlal Meena PRESIDENT
 HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya MEMBER
 HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya MEMBER
 
For the Complainant:Sh SC Pareek, Advocate
For the Opp. Party: Sh TP Rathi, Advocate
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर

 

परिवाद सं. 281/2012

 

चन्दनकुमार पुत्र श्री कैलाषचन्द्र, जाति-गौड ब्राह्म्ण, निवासी- पीपली गली, नागौर, तहसील व जिला-नागौर (राज.)।                                                                                                                                                                                                                                                     -परिवादी     

बनाम

 

1.            नगर परिशद (नगरपालिका) जरिये सभापति/अध्यक्ष, नागौर।

2.            नगर परिशद (नगरपालिका) जरिये आयुक्त/अधिषाशी अधिकारी, नागौर।     

               

                                          -अप्रार्थीगण     

 

समक्षः

1. श्री बृजलाल मीणा, अध्यक्ष।

2. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।

 

उपस्थितः

1.            श्री विक्रम जोषी व षिवचन्द पारीक, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।

2.            श्री ठाकुरप्रसाद राठी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी।

 

    अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986

 

                      आ  दे  ष                        दिनांक 28.01..2016

 

 

1.            परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी को अप्रार्थी की जयनारायण व्यास आवासीय योजना में जरिये लाॅटरी ब्लाॅक संख्या 2 में भूखण्ड संख्या 70, 108 वर्गगज आवंटित हुआ। परिवादी ने दिनांक 18.04.1998 को धरोहर राषि के रूप में 2,000/- रूपये अप्रार्थी के यहां जमा कराये।

परिवादी से आवंटन षुद्दा भूखण्ड की राषि जमा नहीं की गई है और ना ही उसे कब्जा दिया गया है। रजिस्ट्री भी नहीं करवाई गई है जबकि परिवादी ने बार-बार अप्रार्थी को निवेदन किया है। जबकि अप्रार्थी ने भूखण्ड संख्या 2/82 सरिता देवी, 2/153 जीवराजसिंह व 2/264 विमलेष के नाम से आवंटियों को राषि प्राप्त कर कब्जा दिया गया व रजिस्ट्री करवा दी गई है परन्तु परिवादी के साथ भेदभाव किया जा रहा है।

परिवादी ने दिनांक 08.01.2004 को, 07.01.2005 को एवं दिनांक 16.06.2005 को उक्त कार्रवाई हेतु अप्रार्थीगण को निवेदन किया। अंततः नगरपालिका मण्डल की साधारण बैठक दिनांक 30.04.2008 में प्रस्ताव संख्या 7 के अनुसार परिवादी से 25,044/- रूपये प्राप्त करने के सम्बन्ध में बोर्ड के हित में नियमितिकरण के लिए राज्य सरकार को प्रेशित करने का निर्णय सर्वसम्मति से पारित किया गया।

अंततः अप्रार्थीगण ने अपने पत्र दिनांक 11.11.2011, क्रमांक-न.पा.ना./भू.वि./2011/6105 के द्वारा अतिरिक्त निदेषक स्थानीय निकाय, जयपुर को भूखण्ड की राषि जमा करवाने की स्वीकृति प्रदान करने हेतु प्रेशित किया। जिसके क्रम में आज दिन तक अप्रार्थीगण द्वारा न तो राषि प्राप्त की गई है ना ही भूखण्ड का कब्जा दिया गया है।                                          अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य अनफेयर प्रेक्टिस की श्रेणी में आता है। परिवादी को गौर मानसिक पीडा पहुंची है, अनावष्यक रूप से उसे परिवाद प्रस्तुत करना पडा है। अतः परिवादी का परिवाद मय हर्जा-खर्चा के व मानसिक क्षतिपूर्ति के स्वीकार किया जावे।

 

2.            अप्रार्थीगण की ओर संक्षेप में जवाब निम्न प्रकार हैः- अप्रार्थीगण का मुख्य रूप से कहना है कि अप्रार्थीगण द्वारा ब्लाॅक संख्या 2 में भूखण्ड संख्या 70, क्षेत्रफल 20 फीट गुणा 49 फीट का आवंटन परिवादी के नाम से किया गया था परन्तु परिवादी ने अप्रार्थीगण द्वारा बार-बार नोटिस देने के उपरान्त भी बकाया राषि जमा नहीं करवाई। जिसके परिणामस्वरूप उक्त भूखण्ड का आवंटन स्वतः निरस्त हो जाता है परन्तु परिवादी के आवेदन पर प्रकरण मण्डल की बैठक में रखा गया जहां से आवंटन को दस माह से ज्यादा समय पूर्ण हो जाने के कारण राज्य सरकार से स्वीकृति हेतु भेजे जाने का प्रस्ताव पारित हुआ। मामला राज्य सरकार को भेजा जा चुका है परन्तु वहां से अभी तक कोई स्वीकृति नहीं आई है।

राजस्थान राज्य आवष्यक पक्षकार है, जिसे पक्षकार नहीं बनाया गया है इसलिए पक्षकारों के असंयोजन के आधार पर परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।

 

3.            बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अध्ययन एवं मनन किया गया। अप्रार्थी के जवाब एवं प्रदर्ष 1, 2 से यह निर्विवाद है कि अप्रार्थीगण द्वारा परिवादी को विवादित भूखण्ड का आवंटन हुआ परन्तु उक्त भूखण्ड के सम्बन्ध में प्रार्थी से वांछित राषि नहीं ली गई। जबकि प्रार्थी ने पूर्ण प्रयास किये। इसके अलावा उक्त योजना में श्रीमती राजलक्ष्मी, श्रीमती अरूणलता को जो भूखण्ड आवंटित हुए थे उक्त आवंटियों के प्रकरण भी प्रार्थी के जैसे थे परन्तु उक्त दोनों आवंटियों को भूखण्ड का आवंटन हो चुका है। वांछित राषि जमा हो चुकी है, कब्जा भी दिया जा चुका है। ऐसी सूरत में प्रष्न उत्पन्न होता है कि परिवादी के साथ क्यों भेदभाव किया गया।

अप्रार्थीगण का यह भी कहना सही नहीं है कि परिवादी ने नियत अवधि में वांछित राषि जमा कराने का प्रयास नहीं किया गया हो। क्योंकि प्रार्थी ने बार-बार अप्रार्थीगण के यहां काराजोही की परन्तु अप्रार्थीगण के द्वारा कोई सुनवाई नहीं की गई। पत्रावली पर ऐसा एक भी नोटिस प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे अप्रार्थीगण के इस कथन की पुश्टि होती हो कि प्रार्थी को वांछित राषि जमा कराने के लिए नोटिस दिया गया हो फिर भी परिवादी ने राषि जमा नहीं कराई हो।

जब एक बार अप्रार्थीगण के मुताबिक परिवादी को आवंटन निरस्त कर दिया तो पुनः उनके द्वारा राज्य सरकार के स्थानीय निकाय विभाग को परिवादी की राषि जमा करवाने की स्वीकृति हेतु प्रस्ताव सक्षम अधिकारी को क्यों भेजा गया।

इसके अलावा यहां इस बात का उल्लेख करना भी सुसंगत एवं आवष्यक होगा कि प्रदर्ष 4 के मुताबिक अधिषाशी अधिकारी, नगरपालिका मण्डल, नागौर ने अतिरिक्त निदेषक, स्थानीय निकाय विभाग, राजस्थान, जयपुर को सम्बन्धित योजना में अन्य आवंटियों की राषि जमा करवाने की स्वीकृति हेतु पत्र लिखा था। जिसमें परिवादी चन्दन कुमार का भी नाम था परन्तु श्रीमती राजलक्ष्मी एवं श्रीमती अरूणलता को राषि जमा करवाने की स्वीकृति मिल गई परन्तु परिवादी के केस में स्वीकृति नहीं दी गई ऐसा क्यो? इसका कोई संतोशजनक जवाब अप्रार्थीगण नहीं दे पाये हैं।

इस प्रकरण में राज्य सरकार को पृथक से पक्षकार बनाने की कोई आवष्यकता नहीं थी, सम्बन्धित पक्षकारों को अप्रार्थी बनाया जाना पर्याप्त है। प्रार्थी के उपभोक्ता होने के बारे में कोई संदेह नहीं है क्योंकि उक्त योजना का प्रार्थी अन्य लोगों/आवंटियों की तरह लाभान्वित होने वाला व्यक्ति है। इसके अलावा उसने आवंटन के लिए निष्चित धरोहर राषि जमा कराई थी और उसे इसके तहत ही भूखण्ड का आवंटन हुआ था। परन्तु जान बुझकर उसे कब्जा नहीं दिया गया और ना ही रजिस्ट्री कराई गई। यह पूर्णतः सेवा दोश है।

अतः परिवादी का परिवाद विरूद्ध अप्रार्थीगण स्वीकार किये जाने योग्य है। परिवादी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध निम्न प्रकार से स्वीकार किया जाता है तथा आदेष दिया जाता है कि:-

 

 

आदेश

 

4.            अप्रार्थीगण, परिवादी को ब्लाॅक संख्या 2  में आवंटित भूखण्ड संख्या 70 अर्थात् 2/70, जयनारायण व्यास काॅलोनी, नागौर का कब्जा भौतिक रूप से सुपुर्द करें एवं आवष्यक हक विलेख के दस्तावेज निस्पादित करें। अप्रार्थीगण, प्रार्थी से निर्धारित राषि 2,302/- रूपये प्रति वर्गगज के हिसाब से 25,044/- रूपये प्राप्त करें। साथ ही अप्रार्थीगण, परिवादी को परिवाद व्यय के 5,000/- रूपये एवं मानसिक क्षति के 5,000/- रूपये भी अदा करें।

 

 

                आदेश आज दिनांक 28.01.2016 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

             ।बलवीर खुडखुडिया।                               ।बृजलाल मीणा।              

                                   सदस्य                                        अध्यक्ष                          

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Brijlal Meena]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya]
MEMBER

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