जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, झुन्झुनू (राज0)
परिवाद संख्या - 36/18
अध्यक्ष - महेन्द्र शर्मा
सदस्य - शिवकुमार शर्मा
श्रीराम पुत्र जोदाराम जाति जाट निवासी महरमपुर तहसील चिडावा जिला झुन्झुनू (राज0)
- प्रार्थी/परिवादी
बनाम
1. प्रबन्ध निदेशक राजस्थान आवास विकास लिमिटेड राजस्थान सरकार (राज्य सरकार द्वारा योजना के लिए अधिकृत संस्था) 4 स 24 जवाहर नगर जयपुर तहसील व जिला जयपुर (राज0) हाल संबोधित रूडिस्को 4 स 24 जवाहर नगर जयपुर तहसील व जिला जयपुर (राज0) 302004
2. आयुक्त नगरपरिषद झुन्झुनू कार्यालय नगरपरिषद् झुन्झुनू तहसील व जिला झुन्झुनू (राज0)
3. प्रबन्ध निदेशक असाही इन्फ्रास्ट्रक्चर एण्ड प्रोजक्टस् लि0 शाॅप नं. 13-14 कमल हाईट्स मोदी रोड झुन्झुनू तहसील व जिला झुन्झुनू (राज0)
- अप्रार्थीगण/विपक्षीगण
परिवाद पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1. सर्वश्री शाहिद अली व विक्रम सिंह, एडवोकेट्स - प्रार्थी की ओर से।
2. श्री फूलचन्द सैनी, एडवोकेट - अप्रार्थी सं. 1 की ओर से।
3. श्री महेशचन्द्र शर्मा, एडवोकेट - अप्रार्थी सं. 2 की ओर से।
4. श्री लोकेश कुमार, एडवोकेट - अप्रार्थी सं. 3 की ओर से।
- निर्णय - दिनांक 18.06.2019
प्रार्थी/परिवादी की ओर से दिनांक 30.01.2018 को प्रस्तुत परिवाद अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, (जिसे इस निर्णय में आगे अधिनियम कहा जावेगा) के संक्षिप्त तथ्य इस प्रकार है कि प्रार्थी ने राजस्थान सरकार की जन सहभागिता आवास योजना 2009 के अन्तर्गत अप्रार्थी सं. 1 के अधीन अप्रार्थी सं. 2 के यहां नगरपरिषद क्षैत्र में मण्ड्रेला रोड झुन्झुनू पर अप्रार्थी सं. 3 द्वारा बनाये जा रहे आवासों मे एल.आई.जी. श्रेणी का आवास लेने के बुकलेट प्राप्त करने के पश्चात सलंग्न आवेदन पत्र में वर्णित प्रशासनिक शुल्क 3500/रुपये व पंजियन शुल्क 15000/रुपये परिवाद के चरण सं. 1 में वर्णित आवेदन के साथ जमा करवाया है। परिवाद के चरण सं. 2 में वर्णित सार्वजनिक लाॅटरी निकालने के उपरान्त प्रार्थी को आवास आवंटित कर यह निर्देशित किया गया है कि वह बुकलेट में वर्णित तालिका के अनुसार देय राशि अदा करें। इस बाबत केन्द्रीयकृत बैक से सस्ती ब्याज दर पर ऋण व सब्सिडी़ का प्रावधान था लेकिन अप्रार्थीगण द्वारा किसी प्रकार का ऋण व सब्सिड़ी उपलब्ध नही करवाई गई इस कारण परिवादी ने परिवाद के चरण सं. 1 मंे वर्णित फाईनेन्स कम्पनी से 12.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर पर ऋण लेकर अप्रार्थी सं. 2 को भुगतान किया, जिसकी किश्तें प्रार्थी द्वारा अदा की जा रही है। प्रार्थी को आवास आवंटन के पश्चात 3 वर्ष व्यतीत होने के बावजूद आवास का भौतिक कब्जा नही दिया गया है जबकि बुकलेट की तालिका में वर्णित अनुसार अप्रार्थी सं. 2 द्वारा सम्पूर्ण आवास राशि प्राप्त करने के उपरांत दिनांक 04.05.2015 तक आवास का भौतिक कब्जा देना था। सम्बन्धित अप्रार्थी से सम्पर्क करने पर उसे यह बताया गया है कि अप्रार्थी सं. 3 द्वारा कार्य पूर्ण नही किया गया है। अप्रार्थी सं. 3 से सम्पर्क करने पर उसे यह बताया गया है कि अप्रार्थी सं. 1, 2 व 3 द्वारा सरकारी स्तर पर त्रिपक्षीय अनुबंध पत्र निष्पादित किया गया था लेकिन अप्रार्थी सं. 2 ने आज तक अपना कार्य पूर्ण नही किया है और अप्रार्थी सं. 1 द्वारा अप्रार्थी सं. 2 के विरूद्व किसी प्रकार की कार्यवाही नही की गई है। अप्रार्थी सं. 2 ने विधि विरूद्व रुप से आवासो में विधुत आपूर्ति के लिए जी.एस.एस. स्थापित किये जाने के उपबन्ध को काट दिया जिस कारण आवासों में विधुत का प्रबन्ध नही होगा। अप्रार्थी सं. 2 ने राज्य सरकार के आदेशों के अनुसरण में दिनांक 30.09.2016 तक व्यतिक्रमी आवंटियों के आवास जानबुझकर निरस्त नही किये है इस कारण अप्रार्थी सं. 3 ने आवासों का निर्माण कार्य बंद कर दिया है। दिनांक 19.01.2018 को प्रार्थी ने अप्रार्थी सं. 2 के कार्यालय मंें जाकर अप्रार्थी सं. 3 द्वारा दी गई सूचना से अवगत करवाया और आवास का भौतिक कब्जा देने अथवा आवास हेतु जमा करवाई गई राशि 3,75,000/रुपये मय ब्याज वापिस अदा करने का निवेदन किया। प्रार्थी की जानकारी के अनुसार जन सहभागिता आवास योजना के अन्तर्गत 100 आवंटियों को सब्सिडी मिल चुकी है लेकिन प्रार्थी को सब्सिडी नही मिली है। इन तथ्यो के परिपेक्ष में प्रार्थी ने अप्रार्थी सं. 2 के यहां जमा करवाये गये 3,75,000/रुपये, इस राशि पर ब्याज, हर्जाने स्वरुप 1,00,000/रुपये व परिवाद व्यय बाबत 5,000/रुपये दिलाये जाने की प्रार्थना की है।
2 अप्रार्थी सं. 1 की ओर से प्रस्तुत जवाब में यह अभिवाक किया गया है कि उसने प्रार्थी से कोई सेवा शुल्क नही लिया गया है। प्रार्थी से समस्त भुगतान अप्रार्थी सं. 2 द्वारा प्राप्त किया गया है। आवास पूर्ण करने की तिथी 30.11.2017 नियत थी विधुत सम्बन्धी कार्य अप्रार्थी सं. 2 व 3 द्वारा किया जाना था। पंजीयन व लाॅटरी उपरांत समस्त रिकार्ड अप्रार्थी सं. 2 के कार्यालय मे स्थानान्तरित कर दिया गया है। स्वंय के विरूद्व परिवाद खारिज किये जाने की प्रार्थना की गई है।
3 अप्रार्थी नं. 2 की ओर से प्रस्तुत जवाब में इस आशय की प्रारम्भिक आपत्ति ली गई है कि उसे गलत रुप से पक्षकार बनाया गया है अप्रार्थी सं. 2 की सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नही रही है। आवास बनाने की जिम्मेदारी अप्रार्थी सं. 1 व 3 की है। अप्रार्थी सं. 2 द्वारा आवास प्राप्त होने पर कब्जा आवंटन के अनुसार सम्भलाना है। सम्बन्धित योजना के अन्तर्गत मण्डेªला रोड पर 1536 आवासों का निर्माण होना था, जिस हेतु अप्रार्थीगण के बीच ़ित्रपक्षीय इकरारनामा दिनांक 01.08.2014 को निष्पादित हुआ था। अप्रार्थी सं. 2 द्वारा पत्र जारी करने के बावजूद अप्रार्थी सं. 3 द्वारा आवासो को तैयार नही किया गया है। अप्रार्थी सं. 3 को निर्धारित 5,208.08 लाख रुपये में 4,449.40 लाख रुपये का भुगतान किया जा चुका है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने की प्रार्थना की गई है।
4 अप्रार्थी सं. 3 की ओर से प्रस्तुत जवाब में यह अभिवाक किया गया है कि प्रार्थी उसका उपभोक्ता नही है। अप्रार्थी सं. 1 ने अप्रार्थी सं. 2 के माध्यम से परिवादी से निर्धारित राशि प्राप्त की है। इसलिए प्रार्थी उसका उपभोक्ता है। अप्रार्थी सं. 1 व 2 ने त्रिपक्षीय अनुबंध की पालना अप्रार्थी सं. 3 के निवेदन के बावजूद नही की है। अप्रार्थी सं. 2 ने विधि विरूद्व रुप से आवासो में विधुत आपूर्ति जी.एस.एस. स्थापित किये जाने के उपबन्ध को अनाधिकृत रुप से काट दिया। राज्य सरकार के आदेशानुसार अप्रार्थी सं. 2 ने दिनांक 30.09.2016 तक व्यतिक्रमी आवंटियों के आवंटन जानबुझकर निरस्त नही किये, जिस कारण अप्रार्थी सं. 3 को अत्यधिक नुकसान हो रहा है। अप्रार्थी सं. 2 द्वारा अनुबंध पत्र में वर्णित अपने दायित्वों की पालना की जाती तो प्रार्थी को परिवाद प्रस्तुत करने की आवश्यकता नही होती, स्वंय के विरूद्व परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने की प्रार्थना की गई है।
5. उभय पक्षो को सुना गया एंव एंव पत्रावली का परिशीलन किया गया।
6. प्रार्थी की ओर से हमारा ध्यान माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा उपभोक्ता प्रकरण सं. 1922/2017, प्रकरण सं. 567/2017, माननीय हिमाचल प्रदेश राज्य आयोग द्वारा अपील सं. 307/2017 में पारित निर्णय दिनांक 13.07.2018, माननीय पश्चिम बंगाल राज्य आयोग द्वारा परिवाद सं. 81/2015 मंे निर्णय दिनांक 10.03.2015, माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा प्रकरण सं. 436/2015, माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा शालिनी लंब बनाम मैसर्स यूनिटेक व अन्य में पारित निर्णय दिनांक 05.10.2017, माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा राकेश मेहता बनाम एम्मार एमजीएफ लैण्ड लिमिटेड़ में पारित निर्णय दिनांक 16.10.2017, माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा प्रकरण सं. 1145/2014 में पारित निर्णय दिनंाक 13.10.2017, पूजन सलुजा बनाम मैसर्स यूनिटेक लि. के निर्णय दिनांक 21.09.2017 के निर्णयो की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है।
7. हमने उपरोक्त न्यायिक निर्णयो में प्रतिपादित सिद्वान्तो से सादर मार्गदर्शन प्राप्त किया है, जिनमें सभी मामले आवास आवंटन से सम्बन्धित है, जिनमे सम्बन्धित प्रार्थी आवंटी द्वारा उसे जमा राशि ब्याज सहित लौटाने तथा मानसिक संताप व परिवाद व्यय लौटाने के आदेश पारित किये गये है।
8. अप्रार्थी नं. 2 की ओर से यह आपत्ति की गई है कि परिवादी का परिवाद समयावधि से परे है जिसका प्रार्थी की ओर से विरोध किया गया। र्निविवादित रूप से प्रार्थी को आवास का आवंटन दिनांक 10.06.2013 को किया गया है एंव सम्पूर्ण राशि ले लेने के बावजूद अप्रार्थीगण ने एक दुसरे पर दोषारोपण करते हुए प्रार्थी को उसे आवंटित आवास का कब्जा नही दिया गया है जिसके सम्बन्ध में उसे लगातार वादहेतुक जारी है। अतः यह नही माना जा सकता है कि प्रार्थी का परिवाद समयावधि से परे हो।
9. मौजूदा मामले में राज्य सरकार की जन सहभागिता आवास योजना 2009 के अन्तर्गत अप्रार्थी सं. 2 के यहां नगरपरिषद क्षेत्र में मण्डेªला रोड़ पर अप्रार्थी सं. 1 के अधीन अप्रार्थी सं. 3 द्वारा एल.आई.जी. श्रेणी के आवास बाबत बुकलेट प्रकाशित की गई थी, जिस बुकलेट के प्रावधानो के अनुसार परिवाद के चरण सं. 1 में वर्णित प्रशासनिक व पंजियन शुल्क जमा कराने, लाॅटरी द्वारा प्रार्थी को परिवाद के चरण सं. 2 में वर्णित आवास आवंटित करने, परिवाद में उल्लेखित राशि अप्रार्थी सं. 2 को जमा कराने व बुकलेट में वर्णित तिथी तक प्रार्थी को आवास आवंटित नही करने बाबत पक्षकारो के बीच कोई विवाद नही है। आवास निर्माण में देरी बाबत अप्रार्थी सं. 2 ने अप्रार्थी सं. 1 व 3 को जिम्मेदार बताया है वहीं अप्रार्थी सं. 3 द्वारा अप्रार्थी सं. 1 व 2 को जिम्मेदार बताया गया है जबकि अप्रार्थी सं. 1 द्वारा अपने जवाब में यह प्रकट किया गया है कि प्रार्थी से समस्त भुगतान अप्रार्थी सं. 2 द्वारा प्राप्त किया गया है और आवासों मंे विधुत सम्बन्धी कार्यवाही अप्रार्थी सं. 2 व 3 द्वारा ही की जानी है तथा पंजिकरण व लाॅटरी उपरांत समस्त रिकाॅर्ड उसने अप्रार्थी सं. 2 के कार्यालय में अन्तरित कर दिया है।
10. हमारे सुविचारित मत में अप्रार्थीगण के द्वारा एक दुसरे पर किये गये दोषारोपण के आधार पर प्रार्थी को उसके द्वारा जमा करवाई गई राशि व उस पर अदा किये जा रहे ब्याज को लगातार वहन करते रहने के लिए असहाय नही छोडा जा सकता है। चूंकि प्रार्थी द्वारा किया गया भुगतान अप्रार्थी सं. 2 ने प्राप्त किया है और आवास आंवटन के पश्चात भौतिक कब्जा भी अप्रार्थी सं. 2 द्वारा ही प्रार्थी को किया जाना था। अतः प्रार्थीे का यह परिवाद अप्रार्थी सं. 2 के विरूद्व स्वीकार किये जाने योग्य है एंव अप्रार्थीगण के बीच निष्पादित इकरार के सम्बन्ध में अप्रार्थी सं. 2 व्यतिक्रमी अप्रार्थी/अप्रार्थीगण के विरूद्व समीचीन विधिक कार्यवाही कर उक्त राशि वसूल करने के लिए स्वतन्त्र है।
आदेश
11. परिणामतः प्रार्थी का यह परिवाद अप्रार्थी सं. 2 के विरूद्व स्वीकार कर उसे प्रार्थी द्वारा उसके कार्यालय में जमा कराई गई 3,75,000/रुपये की राशि, प्रार्थी द्वारा ऋण लेने की तिथी से ऋण अदायगी तक का 12.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज, 25,000/रुपये मानसिक संताप व 3,300/रुपये परिवाद व्यय एक माह की अवधि में प्रार्थी को अदा करने का आदेश पारित किया जाता है।
निर्णय आज दिनांक 18 जून, 2019 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
शिवकुमार शर्मा महेन्द्र शर्मा