जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, लखनऊ।
वाद संख्या 631/2013
श्री लक्ष्मी नारायण, आयु लगभग 72 वर्ष,
पुत्र स्व श्री छेदी लाल,
निवासी-505/5, जोशी टोला,
डालीगंज, लखनऊ।
......... परिवादी
बनाम
जन सूचना अधिकारी,
कार्यालय नगर आयुक्त,
नगर निगम, लखनऊ।
..........विपक्षी
उपस्थितिः-
श्री विजय वर्मा, अध्यक्ष।
श्रीमती अंजु अवस्थी, सदस्या।
निर्णय
परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी से सूचना व अभिलेख, दौड़-धूप में व्यय किये गये रू.50,000.00, क्षतिपूर्ति हेतु रू.45,000.00 तथा वाद व्यय दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
संक्षेप में परिवादी का कथन है कि उसकी नियुक्ति दिनांक 12.02.1969 में रोलर क्लीनर के पद पर हुई थी। परिवादी को दिनांक 01.06.1988 से अर्ह हेड फिटर के पद वेतनमान 1200-1800 में पदोन्नत किया गया था। परिवादी दिनांक 31.10.2000 को अर्ह हेड फिटर के पद से सेवानिवृत्त हुआ था। परिवादी को अभी तक चयनित वेतनमान (सलेक्शन ग्रेड), पदोन्नत वेतनमान, सुपर सलेक्शन ग्रेड एवं सुपन पदोन्नत वेतनमान नहीं दिया गया है। परिवादी ने सूचना अधिकार अधिनियम के तहत एक आवेदन पत्र दिनांक 30.05.2011 द्वारा विपक्षी से सूचना मांगी थी कि परिवादी को बताया जाये कि परिवादी के चयनित वेतनमान, पदोन्नत वेतनमान, सुपर सलेक्शन ग्रेड एवं सुपर पदोन्नत वेतनमान के संबंध में क्या कार्यवाही की गयी। परिवादी को अब तक क्यों नहीं दिया गया। संबंधित आदेश की प्रति दें। यह भी
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बताये कि उपरोक्त के आधार पर याची की पेंशन पुनरीक्षित हुई है। यदि हां तो आदेश की प्रति दें। उक्त सूचना के लिये परिवादी ने निर्धारित शुल्क रू.10.00 का भारतीय पोस्टल आर्डर दिनांकित 27.05.2011 जमा किया था, परंतु विपक्षी द्वारा कोई सूचना नहीं दी गयी। अतः परिवादी ने प्रथम अपील अपीलीय अधिकारी/नगर आयुक्त को दिनांक 15.07.2011 को प्रस्तुत की तथा स्मृति पत्र दिनांक 12.09.2011 को दिया। प्रथम अपील में कोई कार्यवाही न होने पर द्वितीय अपील मुख्य सूचना आयुक्त, राज्य सूचना आयोग के समक्ष दिनांक 13.12.2011 को प्रस्तुत की। मुख्य सूचना आयुक्त ने विपक्षी को नोटिस भेजा कि वे सूचनाओं एवं अभिलेखों के साथ उपस्थित हों, परंतु विपक्षी मा0 आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए और न ही कोई सूचना ही दी। तब आयोग ने विपक्षी पर रू.25,000.00 का दंड लगाया तथा दंड की राशि को सरकारी कोष में जमा करने के आदेश दिनांक 30.08.2012 को दिये। इस प्रकार परिवादी को मांगी गयी सूचना व अभिलेख आज तक प्रदान नहीं किये गये। विपक्षी द्वारा निर्धारित फीस प्राप्त करने के उपरांत भी परिवादी द्वारा मांगी गयी सूचना व अभिलेखों की प्रतियां न देकर सेवा में कमी की है। अतः परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी से सूचना व अभिलेख, दौड़-धूप में व्यय किये गये रू.50,000.00, क्षतिपूर्ति हेतु रू.45,000.00 तथा वाद व्यय दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी की ओर से अपना जवाबदावा दाखिल किया गया जिसमें मुख्यतः यह कथन किया गया है कि परिवादी की प्रथम नियुक्ति रोलर क्लीनर के पद पर अस्थाई रूप से दिनांक 12.02.1969 को हुई थी। तत्पश्चात् उन्हें दिनांक 01.06.1988 से प्रधान फिटर के पद पर पदोन्नति करने के साथ ही वेतनमान रू.1,200.00-1,800.00 प्रदान किया गया जो कि नये वेतनमान दिनांक 01.01.1996 से रू.4000-6000 में परिवर्तित हुआ जो कि फोरमैन/प्रकाश निरीक्षक आदि पर का वेतनमान है। परिवादी दिनांक 31.10.2000 को प्रधान फिटर के पद से सेवा निवृत्त हुए, सेवा निवृत्त के समय उक्त पद हेतु जो भी प्रचलित वेतनमान थे इनको प्रदान किये जा चुके है जिसके अनुसार इनकी पेंशन का पुनरीक्षण भी पूर्व में हो चुका है जिसका भुगतान परिवादी को दिनांक 08.01.2007 को प्राप्त कराया जा चुका है। वर्तमान समय में
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परिवादी का कोई भी भुगतान विभाग में लंबित नहीं है। परिवादी को नियमानुसार जो लाभ मिलने थे दिये गये। परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है जिस कारण मा0 न्यायालय को उक्त वाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादी को सेवानिवृत्त के समय जो उक्त पद हेतु जो प्रचलित वेतनमान थे प्रदान किये गये। प्रश्नगत तथ्यों के संबंध में सूचना आयोग से वाद एकपक्षीय निर्णीत किया जा चुका है। राज्य मुख्य सूचना आयुक्त के आदेश के विरूद्ध मा0 न्यायालय को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादी प्रधान फिटर के पद से सेवानिवृत्त हुआ। सेवानिवृत्ति के समय उक्त पद हेतु जो भी प्रचलित वेतनमान थे परिवादी को प्रदान किये गये जिसके अनुसार उसकी पेंशन की पुनरीक्षण भी पूर्व में हो चुका है जिसका भुगतान परिवादी को दिनांक 08.01.2007 को प्राप्त कराया जा चुका है। वर्तमान में परिवादी का कोई भी भुगतान विभाग में लंबित नहीं है। परिवादी कोई भी उपशम पाने का अधिकारी नहीं है तथा परिवादी का वाद विशेष व्यय के साथ खारिज होने योग्य है।
परिवादी की ओर से विपक्षी के जवाबदावे का प्रतिउत्तर दाखिल किया गया।
परिवादी द्वारा अपना शपथ पत्र मय संलग्नक 7 तथा 5 संलग्नक अपने परिवाद पत्र के साथ दाखिल किये गये। विपक्षी की ओर से श्री रमेश यादव, अधिशासी अभियंता, नगर निगम का शपथ पत्र दाखिल किया गया।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी गयी, जबकि विपक्षी की ओर से बहस हेतु कोई उपस्थित नहीं था। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
इस प्रकरण में सर्वप्रथम यह देखा जाना है कि क्या इस फोरम को इस वाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है या नहीं। यदि क्षेत्राधिकार है तो यह देखा जाना है कि क्या विपक्षी द्वारा परिवादी को मांगी गयी सूचना देने में कोई सेवा में कमी की गयी है अथवा नहीं।
विपक्षी के अनुसार इस प्रकरण में इस फोरम को यह वाद सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है क्योंकि प्रश्नगत तथ्यों के संबंध में सूचना आयुक्त द्वारा इस वाद को एकपक्षीय रूप से निर्णित किया जा चुका है और राज्य मुख्य सूचना आयुकत आदेश के विरूद्ध इस न्यायालय/फोरम को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। यह तथ्य
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निर्विवादित है कि परिवादी ने सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत एक आवेदन दिनांक 30.05.2011 के माध्यम से विपक्षी से सूचना मांगी थी कि परिवदी के चयनित वेतनमान, पदोन्नत वेतनमान, सुपर सलेक्शन ग्रेड एवं सुपर पदोन्नत वेतनमान के संबंध में क्या कार्यवाही की गयी। परिवादी द्वारा यह भी चाहा गया कि संबंधित आदेश की प्रति दी जाए और यह भी बताया जाये कि उपरोक्त के आधार पर याची की पेंशन पुनरीक्षित हुई या नहीं। परिवादी के अनुसार जनसूचना अधिकारी द्वारा निर्धारित फीस के भुगतान के बाद भी उसे कोई सूचना नहीं दी गयी जिस पर उसने प्रथम अपीलीय अधिकारी/नगर आयुक्त को अपील प्रस्तुत की तथा कोई कार्यवाही न होने पर द्वितीय अपील मुख्य सूचना आयुक्त, राज्य सूचना आयोग के समक्ष दिनांक 13.12.2011 को प्रस्तुत की। आयोग ने विपक्षी पर रू.25,000.00 का दंड लगाया और राशि को सरकारी कोष में जमा करने का आदेश दिनांक 30.08.2012 को दिया। स्पष्ट है कि परिवादी को सूचना विपक्षी से न मिलने पर उसके द्वारा न केवल प्रथम अपील दायर की गयी अपितु द्वितीय अपील मुख्य सूचना आयुक्त, राज्य सूचना आयोग के समक्ष दायर की गयी जिसमें उसके पक्ष में आदेश भी पारित किया गया। परिवादी के अनुसार उसे सूचना अभी तक प्राप्त नहीं हुई और न ही दंड की धनराशि प्राप्त हुई, अतः उसके द्वारा यह वाद फोरम में दायर किया गया। इस संबंध में मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा पुनरीक्षण याचिका सं.3146/12 संजय कुमार मिश्रा बनाम जनसूचना अधिकारी व अन्य में दिनांक 08.01.2015 को यह निर्णीत किया गया है कि सूचना अधिकार अधिनियम के प्राविधानों के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति सूचना प्राप्त करना चाहता है तो उसे पब्लिक अथारिटी या जनसूचना अधिकारी के विरूद्ध परिवादी नहीं कहा जा सकता और ऐसे प्रकरणों में उपभोक्ता फोरम का क्षेत्राधिकार नहीं रह जाता है। मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा उपरोक्त निर्णय में जो विधि व्यवस्था प्रतिपादित की गयी है उसका मुख्य अंश निम्नलिखित हैः-
“We hold that (i) the person seeking information under the provisions of RTI Act cannot be said to be a consumer vis-à-vis the Public Authority concerned or CPIO/PIO nominated by it and (ii) the jurisdiction of the Consumer Fora to intervene in
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the matters arising out of the provisions of the RTI Act is barred by necessary implication as also under the provisions of Section 23 of the said Act. Consequently no complaint by a person alleging deficiency in the services rendered by the CPIO/PIO is maintainable before a Consumer Forum.”
मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के उपरोक्त निर्णय से स्पष्ट है कि सूचना अधिकार अधिनियम के प्राविधानों के अंतर्गत किसी भी प्रकरण को सुनने का क्षेत्राधिकार किसी भी फोरम को नहीं है और चूंकि प्रस्तुत प्रकरण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधानों के अंतर्गत परिवादी को विपक्षी द्वारा सूचना न दिये जाने के तथ्यों पर आधारित है, अतः उपरोक्त विधि व्यवस्था के अनुसार यह प्रकरण इस फोरम में चलने योग्य नहीं है। परिणामस्वरूप, यह परिवाद इसी आधार पर निरस्त किये जाने योग्य है। चूंकि इस प्रकरण को इस फोरम को सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है, अतः परिवाद को गुण दोष के आधार पर निस्तारित करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। परिवादी अपना परिवाद सक्षम न्यायालय में दाखिल करने हेतु स्वतंत्र है।
आदेश
परिवाद निरस्त किया जाता है।
उभयपक्ष अपना-अपना व्ययभार स्वयं वहन करेंगे।
(अंजु अवस्थी) (विजय वर्मा)
सदस्या अध्यक्ष
दिनांकः 3 सितम्बर, 2015