(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-11/2005
मैसर्स दि गोयल राइस ऑयल एण्ड कॉटन गिनिंग मिल्स बनाम दि न्यू इण्डिया एश्योरेन्स कं0लि0
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
दिनांक: 28.10.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. यह परिवाद, विपक्षी बीमा कंपनी के विरूद्ध अंकन 19,32,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया गया है साथ ही अंकन 10 लाख रूपये मानसिक प्रताड़ना की मद में मांग की गई है तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 10,000/-रू0 की मांग की गई है।
2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी द्वारा अपने व्यापारिक परिसर की सुरक्षा के लिए दिनांक 27.10.2001 से दिनांक 26.10.2002 तक की अवधि के मध्य Standard fire and Special Perils Policy प्राप्त की गई थी, जिसमें स्टॉक एवं उत्पाद शामिल था। दिनांक 12.8.2002 को भारी बरसात के कारण नाले में पानी का भराव होने तथा पड़ोसी के मकान की कच्ची छत के बहाव के कारण टीन शेड में पड़ोसी द्वारा दुर्भावनापूर्वक पानी का बहाव परिवर्तित करने या अन्य कारण से बरसात का पानी उसकी इकाई में गिरने लगा और कुल 805 बैग बासमती चावल खराब हो गया, जिसका मूल्य अंकन 19,32,000/-रू0 था। इस घटना की सूचना दिनांक 12.8.2002 को ही पुलिस थाने पर दी गई तथा बीमा कंपनी को भी सूचित किया गया, जिनके द्वारा सर्वेयर श्री बी.बी. गर्ग को नियुक्त किया गया, जिनके द्वारा केवल फोटोग्राफ ली गयी और सर्वेयर मौके से चला गया। पुन: दिनांक 20.8.2002 को निरीक्षण किया गया, जिन्होंने डैमेज हुए चावल के बैग देखे। दिनांक 21.9.2002 के पत्र द्वारा बीमा क्लेम के शीघ्र निस्तारण का
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अनुरोध किया गया, परन्तु बीमा कंपनी द्वारा बीमा क्लेम दिनांक 30.12.2002 के पत्र द्वारा नकार दिया गया, इसके बाद परिवादी ने व्यक्तिगत रूप से विपक्षी से सम्पर्क किया और सर्वेयर रिपोर्ट पर आपत्ति की गई, क्योंकि श्री बी.बी. गर्ग मैकेनिकल एवं आटोमोबाइल इंजीनियर थे। प्रश्नगत क्षति के आंकलन का उन्हें कोई अनुभव नहीं था, इस आपत्ति पर विपक्षी बीमा कंपनी दूसरा सर्वेयर नियुक्त करने के लिए सहमत हो गई, परन्तु सर्वेयर नियुक्त नहीं किया गया। दिनांक 14.7.2003 के पत्र का भी कोई जवाब नहीं दिया गया, इसके बाद भी अनेक प्रयास बीमा क्लेम प्राप्त करने के लिए किए गए। दिनांक 3.2.2005 के पत्र द्वारा सूचित किया गया कि उच्च अधिकारियों ने दूसरा सर्वेयर नियुक्त करने की अनुमति नहीं दी है, इसलिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया तथा सुसंगत दस्तावेज प्रस्तुत किए गए।
4. बीमा कंपनी का कथन है कि यथार्थ में पड़ोसियों ने दुर्भावनावश क्षति कारित की है, इसलिए बीमा क्लेम देय नहीं है तथा समयावधि से बाधित परिवाद दाखिल करने का अभिवाक लिया गया है।
5. लिखित कथन के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया तथा सुसंगत दस्तावेज प्रस्तुत किए गए।
6. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री एम.एच. खान तथा विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता श्री अशोक कुमार राय को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों एवं साक्ष्यों का अवलोकन किया गया।
7. पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत अभिवचनों तथा मौखिक तर्कों के आधार पर इस परिवाद के निस्तारण के लिए प्रथम विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या प्रश्नगत परिवाद समयावधि से बाधित है ?
8. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 24क के अनुसार कोई भी परिवाद वादकारण उत्पन्न होने से दो वर्ष की अवधि के पश्चात स्वीकार
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नहीं किया जाएगा। इस धारा के परन्तुक के अनुसार उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत करने में कारित देरी माफ की जा सकती है यदि समुचित कारण दर्शित किए गए हैं। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता को यह स्थिति स्वीकार है कि उपभोक्ता परिवाद देरी से प्रस्तुत किया गया है, परन्तु उनका कथन है कि देरी माफ करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया है, जो पत्रावली पर मौजूद है, इसलिए देरी माफ करते हुए परिवाद का निस्तारण गुणदोष पर किया जाए।
9. विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि उनके द्वारा लिखित कथन में यह आपत्ति की गई थी कि उपभोक्ता परिवाद समयावधि से बाधित है, इसके पश्चात परिवाद प्रस्तुत करने के अनेक वर्षों के बाद देरी माफ करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया था, जो संधारणीय नहीं है। परिवाद प्रस्तुत करते समय ही देरी माफ करने का आवेदन प्रस्तुत किया जाना चाहिए था और देरी माफ करने के पश्चात उपभोक्ता परिवाद दर्ज रजिस्टर्ड किया जाना चाहिए था, इसलिए बाद में देरी माफ करने का आवेदन प्रस्तुत करने का वैधानिक औचित्य नहीं है।
10. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा देरी माफ करने के बिन्दु पर नजीर, City Life Developers Vs Vencillous Fernandes & Anr III (2013) CPJ 272 (NC) प्रस्तुत की गई है, जिसमें यह व्यवस्था दी गई है कि अपील प्रस्तुत करने में देरी माफ करने का आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है। यह नजीर अपील प्रस्तुत करने में कारित देरी को माफ करने के संबंध में है, परन्तु अधिनियम की धारा 24क के प्रावधान आज्ञात्मक हैं। कोई भी उपभोक्ता परिवाद जो समयावधि से बाधित है, को विचारण के लिए उपभोक्ता परिवाद को ग्रहण नहीं किया जाएगा, इसलिए देरी को माफ करने के लिए आवेदन उपभोक्ता परिवाद को पंजीकृत होने से पूर्व प्रस्तुत किया जाना चाहिए और उस पर आदेश होने के बाद देरी माफ करने के बाद ही उपभोक्ता परिवाद दर्ज रजिस्टर्ड होना चाहिए। प्रस्तुत केस में चूंकि बीमा क्लेम को नकारने का पत्र दिनांक 30.12.2002 को जारी हुआ है, जिसकी
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समुचित सूचना परिवादी को प्राप्त हुई है। परिवादी द्वारा इस पत्र को प्राप्त करने के पश्चात क्लेम पाने का अतिरिक्त प्रयास किया गया, इसलिए वादकारण उत्पन्न होने की पूर्ण जानकारी परिवादी को थी, परन्तु समयावधि में परिवाद प्रस्तुत न करने के कारण उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है। परिवाद प्रस्तुत हो जाने के पश्चात देरी माफी के लिए प्रस्तुत किए गए आवेदन का वैधानिक महत्व नहीं है, क्योंकि देरी माफ पूर्व में होती है, उसके पश्चात परिवाद ग्राह्य होता है। ऐसा नहीं हो सकता कि पहले परिवाद ग्राह्य हो और उसके पश्चात देरी माफ की जाए, इसलिए देरी के कारण यह परिवाद खारिज होने योग्य है।
11. परिवादी की ओर से नजीर, Oriental Insurance Co. Ltd Vs Sathyanarayana Setty & Sons II (2012) CPJ 456 (NC), M/s Modern Insulations Ltd Vs The Oriental Insurance Co. Ltd 2000 (1) CPR 93 (SC) तथा United India Insurance Co.Ltd Vs M.K.J. Corporation III (1996) CPJ 8 (SC) प्रस्तुत की गई हैं। यह तीनों नजीरें क्लेम के संबंध में हैं न कि देरी के संबंध में, इसलिए इन नजीरों का कोई लाभ परिवादी को प्राप्त नहीं हो सकता। चूंकि परिवाद देरी से प्रस्तुत किया गया है, इसलिए संधारणीय नहीं है। तदनुसार खारिज होने योग्य है।
आदेश
12. प्रस्तुत परिवाद खारिज किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2