राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील सं0- 309/2004
Kirloskar Oil Engines Limited, through its Manager, Situated at Laxman Rao, Kirloskar Road, Khadki, Pune-411003.
…………Appellant
V/s
1. N.S. Ice and Cold Storage (Private) Limited, Dalupur Road, Sothra, Varnahal, District Mainpuri.
2. A.J. Brothers and Company, 77/151, Latu Road, Kanpur-200800.
…….Respondents
समक्ष:-
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री रामराज के सहयोगी अधिवक्ता
श्री पीयूष मणि त्रिपाठी।
प्रत्यर्थी सं0- 1 की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 गुप्ता,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 2 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 15.11.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 189/2003 एन0एस0 आइस एण्ड कोल्ड स्टोरेज प्रा0लि0 बनाम ए0जे0 ब्रदर्स एण्ड कम्पनी व एक अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, मैनपुरी द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 02.01.2004 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है, जिसके माध्यम से विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद आज्ञप्त करते हुए अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया है।
2. प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी का परिवाद में कथन इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षीगण से एक डीजल जनरेटर सेट दि0 03.05.2003 को खरीदा था। प्रत्यर्थी सं0-1/परिवादी के अनुसार उसे अल्टीनेटर सहित जनरेटर भेजा जो त्रुटिपूर्ण व एक सप्ताह चला हुआ था। दि0 05.05.2003 को खराबी आ गई, उसे शिकायत पर ठीक किया गया। दि0 18.05.2003 को उक्त जनरेटर बुरीतरह से बन्द हो गया तब अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा भेजी गई टीम ने आकर जनरेटर में रिपेयरिंग का काम किया। रिपेयर होने के बाद भी जनरेटर में आवाज आना बंद नहीं हुई जिसकी सूचना सम्बन्धित व्यक्तियों को दी गई। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी के अनुसार उसे पुराना एवं दोषपूर्ण जनरेटर दिया गया जिसके अनुसार कोल्ड स्टोरेज में आलू सड़ता रहा, जिस कारण परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 1 की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत प्रतिउत्तर में कथन किया गया है कि जनरेटर सेट खरीदते समय 24 माह की गारंटी नहीं दी गई थी न ही निर्माण दोष होने पर कम्पनी पूरीतरह जिम्मेदार होगी और न ही पुराना चला हुआ जनरेटर सेट की आपूर्ति की गई है। जनरेटर सेट के खराब होने की सूचना प्राप्त होने पर प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 1 की टीम ने चेक किया और उसे ठीक किया तथा चालू हालत में पुन: जनरेटर सेट किया गया। विपक्षी के अनुसार बार-बार जनरेटर खराब होने का कारण जनरेटर सही स्थान पर नहीं रखा गया था, कहने के बावजूद भी प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी ने सही स्थान पर जनरेटर सेट को सेट नहीं कराया, इसलिए उसमें बार-बार खराबी आती रही और उसे सही कराया गया तथा प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी को चेतावनी भी दी गई कि वह जनरेटर को सही ढंग से इस्तेमाल करे, परन्तु उसने ऐसा नहीं किया। विपक्षी का यह भी कथन है कि व्यापार हेतु जनरेटर लिया गया था जिसका उपयोग प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी अपने कोल्ड स्टोरेज में कर रहा है जिससे उसका व्यापार चलता है। इसलिए प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा -2डी के अंतर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है और विपक्षी सेवा में कमी का दोषी नहीं है। अत: परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है।
4. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष एक प्राथमिक आपत्ति यह भी उठायी गई कि जनरेटर व्यवसाय हेतु क्रय किया गया है, किन्तु विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने यह कथन किया कि जनरेटर सेट पुन: विक्रीत करने के लिए क्रय नहीं किया गया, बल्कि कोल्ड स्टोरेज से अपनी आजीविका चलाने हेतु क्रय किया गया है। इसलिए प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में आता है। इन आधारों पर परिवाद आज्ञप्त किया गया जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
5. अपील में अन्य आधारों के साथ यह तथ्य भी कहा गया है कि प्रश्नगत जनरेटर प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी द्वारा व्यावसायिक उद्देश्य से क्रय किया गया है। अत: प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं अता है।
6. हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री रामराज के सहयोगी अधिवक्ता श्री पीयूष मणि त्रिपाठी एवं प्रत्यर्थी सं0- 1 के विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 गुप्ता को सुना। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। प्रत्यर्थी सं0- 2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
7. उक्त तर्क के सम्बन्ध में प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह कथन आया कि यह जनरेटर न तो पुन: विक्रय करने के लिए खरीदा गया न ही किराये पर देने के लिए सीधे जनरेटर से लाभ कमाने के उद्देश्य से प्रयोग किया गया। अत: प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में आयेगा। इस सम्बन्ध में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)(घ) इस प्रकार प्रदान करता है कि-
(i) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है, और भागत: वचन दिया गया है, या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन किसी माल का क्रय करता है और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से भिन्न जो ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है या भागत: वचन दिया गया है या आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन माल का क्रय करता है ऐसे माल का कोई प्रयोगकर्ता भी है, जब ऐसा प्रयोग ऐसे व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है किन्तु इसके अंतर्गत ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो ऐसे माल को पुन: विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अभिप्राप्त करता है: और
(ii) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है, या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उनका उपभोग करता है) और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से भिन्न जो ऐसे किसी प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है और वचन दिया गया है और भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उनका उपभोग करता है) ऐसी सेवाओं का कोई हिताधिकारी भी है जब ऐसी सेवाओं का उपयोग प्रथम वर्णित व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है, (किन्तु इसके अंतर्गत ऐसा व्यक्ति नहीं आता है जो किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए ऐसी सेवाएं प्राप्त करता है।)
स्पष्टीकरण - इस खंड के प्रयोजनों के लिए, ''वाणिज्यिक प्रयोजन'' के अंतर्गत किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे माल या सेवाओं का उपयोग नहीं है जिन्हें वह स्व:नियोजन द्वारा अपनी जीविका उपार्जन के प्रयोजनों के लिए अनन्य रूप से लाया है और जिनका उसने उपयोग किया है और उसने जो सेवाएं प्राप्त की हैं।''
8. उपरोक्त धारा से स्पष्ट होता है कि यदि कोई व्यक्ति जो पुन: विक्रय करने के लिए अथवा किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए किसी वस्तु को क्रय करता है तो दोनों दशाओं में वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आयेगा। इस प्रकार न केवल विक्रय करने के लिए बल्कि किसी भी वाणिज्यिक प्रयोजन से क्रय किए जाने पर उस माल के सम्बन्ध में उपभोक्ता सम्बन्धी शिकायत इस अधिनियम के अंतर्गत नहीं लायी जा सकती है।
9. प्रस्तुत मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय पी0पी0एस0 इंटरनेशनल व अन्य बनाम पंजाब नेशनल बैंक प्रकाशित III(2022) C.P.J. 133 (N.C.) लागू होता है। इस मामले में पंजाब नेशनल बैंक द्वारा अपने कार्य के लिए जनरेटर सेट खरीदे गए। यद्यपि यह जनरेटर सेट बैंक ने पुन: विक्रय करने के लिए या किसी किराये पर देने के लिए नहीं खरीदे थे, किन्तु मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि जनरेटर व्यावसायिक उद्देश्य से खरीदे गए हैं एवं इससे सम्बन्धित परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं होगा। इसी सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित एक अन्य निर्णय Anand Mundra Vs. Shelter Makers (I) Pvt. Ltd. IV (2022) C.P.J. 88 (N.C.) के वाद में भी यही बिन्दु सम्मिलित था। निर्णय के प्रस्तर 9 की अन्तिम पंक्ति में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्णीत किया कि बिल्डर द्वारा अपने व्यवसाय को बढ़ाने के उद्देश्य से यदि जनरेटर क्रय किया गया है तो वह व्यावसायिक उद्देश्य से क्रय किया माना जायेगा एवं इससे सम्बन्धित विवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं होगा।
10. इस मामले में भी प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी द्वारा यह कथन किया गया है कि उसने कोल्ड स्टोरेज को चलाने के लिए जनरेटर सेट खरीदा था। परिवाद के प्रस्तर 6 में स्पष्ट रूप से कथन किया गया है कि ''क्योंकि उक्त जनरेटर सेट में विपक्षीगण ने धोखाधड़ी करके पुराना सेट दिया जिसके कारण आये दिन परेशानी व व्यापार में लाखों रूपये का नुकसान प्रार्थी को झेलना पड़ा।'' परिवाद पत्र के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि कहीं भी प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी ने इस आशय का कथन नहीं किया है कि उक्त जनरेटर का क्रय जीवनयापन अथवा रोजी-रोटी के उद्देश्य से क्रय किया गया था जो उपरोक्त अधिनियम की धारा 2(1)(घ) के स्पष्टीकरण के अनुसार अपवाद की श्रेणी में आता है। अत: मा0 राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णयों को दृष्टिगत करते हुए पीठ इस मत की है कि उपरोक्त जनरेटर व्यावसायिक उद्देश्य से क्रय किया गया। अत: प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है और परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है एवं इसी आधार पर निरस्त किए जाने योग्य है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने गलत प्रकार से इसे पोषणीय मानते हुए परिवाद स्वीकार किया है। तदनुसार प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त होने योग्य एवं अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
11. अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है तथा परिवाद खारिज किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3