राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, शाहजहांपुर द्वारा परिवाद संख्या 181/06 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 24.01.2008 के विरूद्ध)
अपील संख्या 349 सन 2008
राजेन्द मोहन गुप्ता पुत्र जगदम्बा प्रसाद गुप्ता निवासी भारद्वाजी, शाहानपुर।
............अपीलार्थी
बनाम
1 नार्दन रेलवे, बरौदा हाउस, नई दिल्ली द्वारा जनरल मैनेजर।.
2 नार्दन रेलवे, द्वारा स्टेशन मास्टर सण्डीला, रेलवे स्टेशन सण्डीला,
हरदोई ।
.............प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
1 मा0 श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2 मा0 श्री राजकमल गुप्ता , सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री महाजन विनय ।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री पी0पी0 श्रीवास्तव ।
दिनांक: 21-11-15
श्री चन्द्रभाल श्रीवास्तव, सदस्य (न्यायिक) द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, शाहजहांपुर द्वारा परिवाद संख्या 181/06 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 24.01.2008 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है जिसके द्वारा जिला फोरम ने परिवाद को यह कहते हुए निरस्त कर दिया है कि उपभोक्ता फोरम को परिवाद सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है।
अभिलेख के अनुशीलन से यह स्पष्ट है कि परिवादी का यह कथन है कि वह सण्डीला रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने के लिए पहुंचा तो ट्रेन चल पड़ी और वह दौड़कर गार्ड के डिब्बे में चढ़ गया जिससे नाराज होकर गार्ड ने धक्का दे दिया और परिवादी गिर गया जिससे उसे गम्भीर चोटें आयी।
हमारे मत से परिवाद के उपबंधों के आधार पर ही यह प्रकरण उपभोक्ता वाद के अन्तर्गत नहीं आता है । गार्ड द्वारा कोई अपराधिक कृत्य किया गया है तो उसके संबंध में सक्षम न्यायालय में केस दर्ज कराया जा सकता है और यदि दुर्घटना घटित हुयी है तो उसके संबंध में भी सक्षम न्यायालय/अधिकरण के समक्ष वाद प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने यह तर्क भी किया है कि यह प्रकरण रेल अधिनियम 1989 की धारा 124-ए से बाधित है। अभिलेख के अनुशीलन से यह भी स्पष्ट है कि इस संबंध में परिवादी द्वारा इसके पूर्व भी परिवाद प्रस्तुत किया गया था और राज्य आयोग द्वारा अपील निर्णीत की गयी थी जिसके विरूद्ध परिवादी ने मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष पुनरीक्षण संख्या 1119/14 प्रस्तुत किया था जिसे मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने अपने आदेश दिनांक 05.9.2014 द्वारा यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि रेलवे द्वारा सेवा में कोई असावधानी नहीं वरती गयी है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इस अपील में कोई बल नहीं है और यह अपील आयोग को भ्रमित करने के उद्देश्य से प्रस्तुत की गयी है। जिला फोरम ने समस्त तथ्यों को विवेचित करते हुए परिवादी के परिवाद को निरस्त किया है, जिसमें हस्तक्षेप किए जाने का कोई औचित्य स्थापित नहीं होता है।
परिणामत:, यह अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील तद्नुसार निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध करा दी जाए।
चन्द्र भाल श्रीवास्तव राज कमल गुप्ता
पीठा0 सदस्य सदस्य
कोर्ट-2