(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-127/1998
M/s Dhawal Cold Storage (P) Ltd. Through its Director, Sri Dinesh Chandra Sharma, R/o Mohalla Kot, Amroha, District Jyotiba Phule Nagar.
परिवादी
बनाम
1. National Insurance Company, through its Divisional Office, Station Road, Moradabad.
2. National Insurance Company, through its Regional Manager/AGM, through its Regional Office situated at 4th Floor, Halwasiya Court, Hazratganj, Lucknow.
विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
परिवादी की ओर से : श्री आशुतोष कुमार सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से : श्री दीपक मेहरोत्रा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 17.02.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 17 के अन्तर्गत विपक्षीगण, बीमा कम्पनी के विरूद्ध बीमित वस्तु की क्षति के रूप में अंकन 15,75,000/- रूपये, इस राशि पर 24 प्रतिशत प्रतिवर्ष ब्याज, अंकन 50,000/- रूपये प्रताड़ना प्रतिकर और अंकन 15,000/- रूपये परिवाद खर्च प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया गया है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी लाइसेन्सशुदा मैसर्स धवल कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड के रूप में कार्यरत है, जिसमें विभिन्न कृषकों द्वारा उत्पादित आलुओं को रखा जाता है। आलू रखने की कुल क्षमता 17,300.94 क्यूबिक मीटर है, जो 6 मंजिला है। चैम्बर नम्बर 1 में 30000 बैग आ जाते हैं, इस कोल्ड स्टोरेज का बीमा वर्ष 1991 से ही विपक्षीगण के यहां प्राप्त किया जाता है। चैम्बर नम्बर 2 में 48000 आलू बैग रखे जाते हैं, जो दिनांक 08.03.1997 से चालू है, जो न्यू इण्डिया एश्योरेन्स कंपनी से बीमित है।
3. वर्ष 1997 के लिए परिवादी ने चैम्बर नम्बर 1 का बीमा विपक्षीगण से कराया था, जो आलू की क्षति के लिए (D.O.S.) है, जिसमें 30000 आलू बैग रखे गए हैं और प्रत्येक बैग की कीमत अंकन 70/- रूपये है। चैम्बर नम्बर 1 की मशीनरी एवं अग्नि से बीमित होने की व्यवस्था भी पालिसी में मौजूद है। दिनांक 05.03.1997 तक सभी आलू चैम्बर नम्बर 1 में रख दिए गए थे, जो कुल संख्या में 29400 बोरे थे और 36000 बोरे को शीतल रखने का प्लांट चालू कर दिया गया था। दिनांक 05.06.1997, 20.06.1997 तथा दिनांक 07.07.1997 को मशीनरी फेल हो गई, जिसके कारण तापमान ऊँचा हो गया। विपक्षीगण को सूचित किया गया, जिन्होंने सर्वे कराने के पश्चात् बीमा क्लेम अदा कर दिया, परन्तु मशीनरी खराबी के कारण चैम्बर नम्बर 1 में रखा हुआ आलू खराब होने लगा। परिवादी ने टेलिफोन से दिनांक 10.07.1997 तथा दिनांक 11.07.1997 को सूचित किया और उसके बाद उसने दिनांक 13.07.1997 को पत्र लिखा, अखबारों में प्रकाशित कराया कि जिन कृषकों का आलू खराब हुआ है, वह उसे उठाकर ले जाए। जिला मजिस्ट्रेट को भी दिनांक 14.07.1997 एवं दिनांक 01.08.1997 के पत्र द्वारा सूचित किया गया।
4. विपक्षीगण द्वारा दिनांक 13.07.1997 को श्री ए.के. गुम्बर, सर्वेयर के रूप में निरीक्षण करने आए। चैम्बर नम्बर 1 में रखा हुआ 22500 बोरा आलू खराब हो चुका था, इसलिए परिवादी अंकन 15,75,000/- रूपये बीमा राशि प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। बीमा कंपनी द्वारा इस क्लेम को स्वीकार करने के बजाए एक दूसरा सर्वेयर श्री डी.पी. जयरथ को दिनांक 16.07.1997 को नियुक्त किया। परिवादी के निदेशक श्री डी.सी. शर्मा द्वारा समस्त सूचनाएं उपलब्ध करायी गयीं, परन्तु विपक्षीगण ने बीमा क्लेम प्रदान नहीं किया और परिवादी के विभिन्न पत्रों का भी कोई उत्तर नहीं दिया, अंत में 10 माह पश्चात दिनांक 26.05.1998 को क्लेम निरस्त करने का पत्र प्राप्त हुआ। क्लेम इंकार करना अनुचित कृत्य है, इसलिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
5. विपक्षीगण द्वारा लिखित कथन प्रस्तुत करते हुए उल्लेख किया गया है कि चैम्बर नम्बर 1 में रखे गए आलुओं की हानि का बीमा किया गया था, जो किसी दुर्घटना के कारण विनष्ट हुआ हो और ऐसा मशीनरी खराब होने के कारण तापमान में वृद्धि होने से हुआ हो। विद्युत आपूर्ति या अधिक आलू भरने से हुई क्षति के लिए बीमा नहीं किया गया। प्रथम सर्वेयर द्वारा सर्वे किया जाना स्वीकार किया गया। परिवादी द्वारा माल भरने की गलत तिथि की सूचना दी गई। दिनांक 05.06.1997, 20.06.1997 और दिनांक 10.07.1997 को मशीनरी फेल होना प्रश्नगत विवाद के लिए उपर्युक्त नहीं है। परिवादी द्वारा प्रथम एवं एक मात्र सूचना दिनांक 13.07.1997 को दी गई। मौखिक या दूरभाषिक सूचना से इंकार किया गया। सूचना देने से 4-5 दिन पहले से ही आलू खराब होना प्रारम्भ हो गया था। अत: परिवादी का यह आचरण बीमा पालिसी की शर्तों के विपरीत है। परिवादी ने किसानों को आलू उठाने के लिए प्रथम सूचना दिनांक 13.07.1997 को दी गई और बीमा कम्पनी को भी दिनांक 13.07.1997 को सूचना दी गई तब सर्वेयर नियुक्त किया गया। परिवादी ने 22500 आलू बोरे नुकसान होने का कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया। अंतिम सर्वेयर द्वारा जो सूचनाएं एकत्रित की गई हैं, वे सूचनाएं परिवादी के कथन को झुठलाती हैं। यह भी आपत्ति की गई कि प्रकरण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत संचालित होने योग्य नहीं है, क्योंकि विस्तृत साक्ष्य की आवश्यकता इस विवाद को तय करने के लिए होगी।
6. दोनों पक्षकारों की ओर से अपने कथनों के समर्थन में शपथपत्र एवं दस्तावेज प्रस्तुत किए गए। सुसंगत दस्तावेजों का उल्लेख इस निर्णय के अगले भाग में किया जाएगा।
7. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री आशुतोष कुमार सिंह तथा विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा की बहस सुनी गई तथा पत्रावली का अवलोकन कया गया।
8. बीमा कम्पनी को यह स्थिति स्वीकार है कि परिवादी के कोल्ड स्टोरेज के चैम्बर नम्बर 1 में रखे हुए आलुओं में क्षति होने पर क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए बीमा पालिसी जारी की गई थी, यह बीमा पालिसी इस शर्त पर आधारित थी कि आलुओं को क्षति मशीनरी ब्रेकडाउन होने के कारण तापमान में बढ़ोत्त्री होने पर बीमा कम्पनी क्षतिपूर्ति करेगी। अधिक ओवर लोडिंग या विद्युत आपूर्ति भंग होने के संबंध में यह पालिसी नहीं थी।
9. विपक्षीगण का मुख्य कथन यह है कि परिवादी द्वारा चैम्बर नम्बर 1 में रखे हुए आलुओं की संख्या के बारे में सही जानकारी नहीं दी गई और आलुओं को नुकसान प्रारम्भ होने के पूर्व ही बीमा कम्पनी को समय पर सूचना नहीं दी गई, जिस तिथि को सूचना दी गई, उससे 4-5 दिन पूर्व ही आलू खराब होना शुरू हो चुके थे।
10. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि मशीनरी ब्रेकडाउन के कारण तापमान में वृद्धि हुई, जिसके कारण आलू खराब हुए, इसलिए बीमा कम्पनी क्षतिपूर्ति देने के लिए उत्तरदायी है। बीमा कम्पनी का कथन है कि परिवादी द्वारा मशीनरी, कम्प्रेशर और मोटर 1991 में क्रय किए गए थे, जिनसे चैम्बर नम्बर 1 को ठण्डा किया जाना था, परन्तु उन्हीं मशीनरी और मोटर्स के साथ वर्ष 1997 को चैम्बर नम्बर 2 को चालू करना भी प्रारम्भ कर दिया, जिसके कारण ओवर लोडिंग हुई और तापमान बढ़ गया और दोनों चैम्बर्स में रखे हुए आलू एक ही साथ नष्ट हो गए।
11. बीमा कम्पनी का यह भी कथन है कि वर्ष 1991 से मार्च 1997 तक कभी भी चैम्बर नम्बर 1 में तापमान का स्तर ऊचा नहीं हुआ, क्योंकि उस समय तक चैम्बर नम्बर 1 को ठण्डा रखने के लिए पर्याप्त मशीनरी मौजूद थी, इसलिए दिनांक 08.03.1997 से दूसरा चैम्बर चालू होने के पश्चात ओवर लोडिंग के कारण मशीनरी फेल होने की घटनाएं होने लगी। स्वंय परिवाद पत्र में भी परिवादी ने इस तथ्य का उल्लेख किया है कि कई तिथियों पर मशीनरी खराब हुई हैं। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों से यह तथ्य भी साबित हुआ है कि चैम्बर नम्बर 2 भी 1997 में बना है। सर्वेयर द्वारा पाया गया है कि दोनों चैम्बर्स को एक ही मशीन और मोटर से ठण्डा करने का प्रयास किया गया और यह मशीनरी केवल चैम्बर नम्बर 1 को ठण्डा करने के लिए पर्याप्त थी। विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में पर्याप्त बल प्रतीत होता है। अत: इस बिन्दु पर विचार किया जाना आवश्यक है कि क्या परिवादी द्वारा दूसरा चैम्बर चालू करने के लिए नयी मशीन खरीदी गई या एक ही मशीन से दूसरा चैम्बर चलाने के कारण ओवर लोडिंग हुई ? परिवादी ने रिज्वाइंडर शपथपत्र में चैम्बर नम्बर 2 के लिए स्थापित किए गए उपकरणों का विवरण प्रस्तुत किया है, जिसका कोई खण्डन पत्रावली पर मौजूद नहीं है। अत: इस साक्ष्य से साबित होता है कि दूसरे चैम्बर के लिए नये उपकरण स्थापित किए गए थे और ओवर लोडिंग के कारण चैम्बर नम्बर 1 में रखे गए आलू खराब नहीं हुए, जिसका बीमा विपक्षीगण के कार्यालय द्वारा जारी किया गया।
12. परिवादी का कथन है कि चैम्बर नम्बर 1 में 29400 बोरे आलू रखे गए थे, जबकि सर्वे रिपोर्ट के अवलोकन से जाहिर होता है कि इस चैम्बर में 29119 बोरे आलू रखे गए थे। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 13500 बोरे आलू मामूली रूप से नष्ट हुए थे। यह निरीक्षण दिनांक 16.07.1997 को किया गया। दिनांक 25.07.1997 तक विक्रय किए जाने योग्य माल का विक्रय कर दिया जाना चाहिए था, इसलिए इस अवधि में 50 प्रतिशत अधिक माल खराब हो गया और सर्वेयर द्वारा आंकलन किया गया है कि 50 प्रतिशत माल इस तिथि को भी विक्रय योग्य बना रहा। इस प्रकार 50 प्रतिशत माल की क्षति मानते हुए वैचारिक रूप से अंकन 9,28,463/- रूपये का बीमा दायित्व माना जा सकता है, ऐसा उल्लेख सर्वे रिपोर्ट में किया गया है।
13. सर्वे के समय लोडिंग रजिस्टर उपलब्ध नहीं था। श्री शर्मा द्वारा बताया गया कि चैम्बर नम्बर 1 में 29500 बोरे रखे गए थे। रिपोर्ट तैयार करते समय श्री शर्मा द्वारा सर्वेयर के समक्ष यह स्वीकार किया गया है कि 7000 बोरे पूर्ण रूप से नष्ट हो गए थे तथा 13500 बोरे मामूली रूप से नष्ट हुए थे। बीमा कम्पनी द्वारा दिनांक 18.07.1997 को एक पत्र लिखा गया, जिसकी प्रति पत्रावली पर मौजूद है, जिसमें परिवादी को कहा गया कि चम्बर नम्बर 1 में जो आलू खराब हो चुके हैं, उन्हें तुरन्त चैम्बर से बाहर निकाल दिया जाए। बीमाधारक द्वारा दिनांक 27.07.1997 तक उन सब निर्देशों का कोई जवाब नहीं दिया गया, जिनका उल्लेख दिनांक 18.07.1997 के पत्र में किया गया था। द्वितीय भ्रमण के दौरान भी सर्वेयर के साथ श्री शर्मा उपस्थित नहीं थे और इस तिथि को भी समस्त दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए गए, अनुपस्थिति का कारण मौके पर किसानों की भीड़ जुटना बताया, जबकि सर्वेयर द्वारा पाया गया कि मौके पर किसानों की कोई भीड़ नहीं थी। अत: स्पष्ट है कि श्री शर्मा द्वारा सर्वे रिपोर्ट तैयार करने में कोई सहयोग प्रदान नहीं किया गया और विक्रय करने योग्य आलुओं को विक्रय करने का कोई प्रयास नहीं किया गया, इसलिए बीमा कम्पनी केवल सर्वे रिपोर्ट में वर्णित क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी है। अंकन 70/- रूपये प्रति बोरे के हिसाब से आलुओं की क्षति का कुल मूल्य सर्वेयर द्वारा आवश्यक कटौती करने के पश्चात् अंकन 9,28,463/- रूपये आंका गया है, इस मूल्य की इस सीमा तक क्षतिपूर्ति बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी को प्रदान कर दी जानी चाहिए थी, परन्तु बीमा कम्पनी द्वारा समस्त क्लेम नकार दिया गया। अत: स्पष्ट है कि उनके द्वारा सेवा में कमी की गई है। बीमा कम्पनी की ओर से नजीर II (2010) CPJ 177 (NC) प्रस्तुत की गई है, जिसमें यह व्यवस्था दी गई है कि यदि शीतगृह का तापमान शीतल कैपेसिटी को प्रभावित करता है और क्षति को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया गया तब बीमा कम्पनी उत्तरदायी नहीं है। प्रस्तुत केस में दी गई व्यवस्था आंशिक रूप से बीमा कम्पनी के पक्ष में और आंशिक रूप से बीमा कम्पनी के विरूद्ध लागू होती है। प्रस्तुत केस में परिवादी की ओर से क्षति को कम करने का प्रयास नहीं किया गया, इसलिए वह केवल सर्वे रिपोर्ट के अनुसार आंकलित की गई क्षति राशि प्राप्त करने के लिए अधिकृत है, परन्तु चूंकि कोल्ड स्टोरेज का तापमान सही रखने के उद्देश्य से किसी प्रकार की त्रुटि जाहिर नहीं होती, इसलिए बीमा कम्पनी सम्पूर्ण बीमा क्लेम नहीं नकार सकती है। यद्यपि परिवादी द्वारा केवल 22500 प्रति बोरे की क्षति की मांग की गई है, परन्तु जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है और साक्ष्य से साबित है कि परिवादी की लापरवाही एवं समस्त सूचनाएं समय पर उपलब्ध न कराने के कारण केवल 50 प्रतिशत क्षति राशि आवश्यक कटौती के पश्चात प्राप्त करने के लिए परिवादी अधिकृत है। इस राशि का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है।
14. अब इस बिन्दु पर विचार किया जाता है कि क्या परिवादी इस राशि पर 24 प्रतिशत ब्याज पाने के लिए अधिकृत है। ब्याज राशि उच्च श्रेणी की दर्शायी गई है। प्रस्तुत केस में 08 प्रतिशत की दर से ब्याज दिए जाने का आदेश देना उचित होगा।
15. परिवादी द्वारा मानसिक प्रताड़ना एवं वाद खर्च के रूप में क्रमश: अंकन 50,000/- रूपये एवं अंकन 15,000/- रूपये की मांग की गई है, यह मांग भी अत्यधिक उच्च स्तर की है। वाजिब बीमा क्लेम स्वीकार न करने के कारण परिवादी को जो पीड़ा कारित हुई है, उसके लिए अंकन 25,000/- रूपये तथा वाद खर्च के लिए अंकन 5,000/- रूपये प्राप्त करने लिए परिवादी अधिकृत है। परिवाद तदनुसार आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
16. परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद इस प्रकार एवं इस सीमा तक स्वीकार किया जाता है कि बीमा कम्पनी परिवादी को अंकन 9,28,463/- रूपये बतौर प्रतिकर अदा करे तथा इस राशि पर परिवाद प्रस्तुत किए जाने की तिथि से अंतिम अदायगी की तिथि तक 08 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज अदा किया जाए।
17. परिवादी को कारित मानसिक प्रताड़ना के मद में अंकन 25,000/- रूपये एवं वाद खर्च के मद में अंकन 5,000/- रूपये परिवादी को अदा किए जाए। उपरोक्त धनराशि की अदायगी 03 माह के अन्दर की जाए। इस राशि पर भी परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 08 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से साधारण ब्याज देय होगा।
(गोवर्द्धन यादव) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2