Uttar Pradesh

StateCommission

C/2001/73

M/S Maharaja Seeds - Complainant(s)

Versus

N I Co. Ltd. - Opp.Party(s)

S. K. Srivastava

27 Jan 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. C/2001/73
( Date of Filing : 10 May 2001 )
 
1. M/S Maharaja Seeds
Distt Aligarh
...........Complainant(s)
Versus
1. N I Co. Ltd.
Aligarh
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 27 Jan 2021
Final Order / Judgement

(मौखिक)

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

परिवाद संख्‍या-73/2001

 

M/S Maharaja Seeds, Village-Ukawli, P.O. Pilakhna, Distt-Aligarh through its Proprietor, Dhirendra Pal Singh.

परिवादी

                                               बनाम        

1. The New India Assurance Company Ltd, Through the Divisional Manager, The New India Assurance Company Ltd, Aligarh.

2. The Area Manager, The New India Assurance Company Ltd, Aligarh.

3. The Canara Bank, Through its Manager, Branch Jalali, Distt.-Aligarh.

                                                   विपक्षीगण

समक्ष:-                                                   

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य

2. माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

परिवादी की ओर से       - श्री एस0के0 श्रीवास्‍तव, विद्वान अधिवक्‍ता।

विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से  - श्री जफर अजीज, विद्वान अधिवक्‍ता।

विपक्षी सं0-3 की ओर से       - कोई नहीं।

दिनांक:  27.01.2021 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.         यह परिवाद, विपक्षीगण से अंकन 6,82,048/- रूपये तथा इस राशि पर दिनांक 01.10.1999 से भुगतान की तिथि तक 24 प्रतिशत प्रति वर्ष का ब्‍याज प्राप्‍त करने के लिए प्रस्‍तुत किया गया है।

2.         परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी द्वारा अंकन 19,00,000/- रूपये का ऋण अपने व्‍यापार के संचालन के लिए प्राप्‍त किया था। विपक्षी संख्‍या-3, बैंक द्वारा भवन तथा मशीनरी दोनों का बीमा क्रमश: 4.00 लाख

-2-

रूपये और 2.00 लाख रूपये का कराया गया था। दिनांक 27/28 जून 1999 की रात्रि में आग के कारण सीड्स का समस्‍त स्‍टॉक, भवन तथा मशीनरी जलकर राख हो गए, जिसके कारण परिवादी को कुल 19,94,429/- रूपये का नुकसान हुआ।

2.         बीमा कम्‍पनी के समक्ष क्‍लेम प्रस्‍तुत किया गया। क्‍लेम के निस्‍तारण के समय बीमा कम्‍पनी द्वारा केवल अंकन 13,12,381/- रूपये का भुगतान सीधे बैंकर को किया गया और अंकन 6,82,048/- रूपये का भुगतान बकाया रहा। जैसा कि स्‍वंय बीमा कम्‍पनी के सर्वेयर द्वारा निरीक्षण के पश्‍चात् आंकलन किया गया था।

3.         विपक्षी का कथन है कि सम्‍पूर्ण समझौते के तहत अंतिम रूप से परिवादी द्वारा अंकन 13,12,381/- रूपये प्राप्‍त कर लिए गए और इस राशि की प्राप्ति के पश्‍चात् दोनों पक्षकारों के मध्‍य सेवाप्रदाता और सेवा ग्राह्यता का संबंध समाप्‍त हो गया है।

4.         परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री एस0के0 श्रीवास्‍तव तथा विपक्षी संख्‍या-1 व 2 के विद्वान अधिवक्‍ता श्री जफर अजीज उपस्थित आए। विपक्षी संख्‍या-3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। दोनों विद्वान अधिवक्‍ताओं की मौखिक बहस सुनी गई तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।

5.         परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि बीमा कम्‍पनी द्वारा उत्‍पीड़क व्‍यवहार अपनाते हुए एक पत्र पर परिवादी के हस्‍ताक्षर प्राप्‍त कर लिए और परिवादी बाध्‍यतावश हस्‍ताक्षर करने के लिए बाध्‍य हुआ है, यह कृत्‍य उसकी स्‍वेच्‍छा का परिणाम नहीं है, इसलिए इस उत्‍पीड़न के कारण जो पत्र परिवादी द्वारा लिखा गया है, उसको कोई महत्‍व नहीं दिया जाना चाहिए। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता ने         अपने तर्क के समर्थन में United India Insurance Vs. Ajmer Singh

-3-

Cotton & General Mills & Ors. Etc 1999 (3) CPR 53 (SC) प्रस्‍तुत की है, जिसमें माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह व्‍यवस्‍था दी गई है कि पूर्ण एवं अंतिम समझौते के बावजूद भी उपभोक्‍ता हमेशा उपभोक्‍ता अदालतों के समक्ष परिवाद प्रस्‍तुत करने से अपवर्जित नहीं हो जाता यदि वह यह साबित कर सकता है कि धोखा, द्वापदेश, उत्‍पीड़न या असमयक प्रभाव के कारण उसने अंतिम समझौता किया था। अत: इस नजीर में दी गई व्‍यवस्‍था के अनुसार परिवादी पर इस तथ्‍य को साबित करने का भार है कि वह पूर्ण एवं अंतिम समझौता उसके द्वारा उपरोक्‍त वर्णित किसी एक या अनेक परिस्थितियों के अन्‍तर्गत किया गया। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता की ओर से केवल उत्‍पीड़न का आधार लिया गया है और इसी आधार को इस रूप में वर्णित किया गया है कि विपक्षी ने धमकी दी थी कि यदि आप पूर्ण एवं अंतिम समझौता नहीं करेगें तब आपको यह राशि भी अदा नहीं की जाएगी। यह तर्क किसी भी प्रज्ञावान व्‍यक्ति के लिए ग्राह्य नहीं हो सकता। परिवादी शिक्षित व्‍यक्ति है, वह इन सभी तथ्‍यों से भली-भांति अवगत है कि बीमा कम्‍पनी अकारण क्‍लेम नहीं नकार सकती और यदि ऐसा किया जाता है तब उसके पास क्‍लेम प्राप्‍त करने के लिए विधिक उपचार उपलब्‍ध है, इसलिए उपरोक्‍त नजीर में दी गई व्‍यवस्‍था परिवादी के पक्ष में किसी भी दृष्टि से लागू नहीं हो सकती।

6.         भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 63 में व्‍यवस्‍था दी गई है कि किसी भी संविदा के पक्षकार उस राशि को अदा करने के लिए तथा प्राप्‍त करने के लिए सहमत हो सकते हैं, जो यथार्थ में देय है। इसी धारा के अन्‍तर्गत एक उदाहरण दिया गया है कि यदि परिवादी को विपक्षी से 5,000/- रूपये लेना है, परन्‍तु वह 2,000/- रूपये लेने पर सहमत हो जाता है तब विपक्षी अदायगी के भार से पूर्णतया विमुक्‍त हो जाता है। यह विधिक  सिद्धान्‍त  प्रस्‍तुत केस में लागू होता है। परिवादी द्वारा स्‍वेच्‍छा से

-4-

एक पत्र बीमा कम्‍पनी को लिखा गया है, जो इस पत्रावली पर उपलब्‍ध है, जिससे साबित होता है कि उसने भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 63 की व्‍यवस्‍था के अनुसार पूर्ण एवं अंतिम रूप से अंकन 13,12,381/- रूपये प्राप्‍त की है। यह उल्‍लेख भी समीचीन होगा कि कोई भी व्‍यवस्‍था क्‍लेम करने से न्‍यून राशि इस आधार पर प्राप्‍त हो जाएगी कि यह राशि उसे त्‍वरित रूप से बगैर किसी बाधा के तथा बगैर किसी विवाद के प्राप्‍त हो जाएगी और संभवंत: वह इस स्थिति से भी वाकिफ है कि उसे किसी भी फोरम या न्‍यायालय में वाद प्रस्‍तुत कर वर्षों तक जैसा कि इस केस से दृष्टिगोचर होता है कि (यह परिवाद वर्ष 2001 से लंबित है।) फोरम या न्‍यायालयों के धक्‍के खाने होंगे तथा अन्‍य अनुसांगिक खर्चें आदि भी करने होंगे।

7.         उपरोक्‍त विवेचना का निष्‍कर्ष यह है कि परिवादी द्वारा अंतिम एवं पूर्णतया के साथ एक क्‍लेम राशि प्राप्‍त कर ली गई है, इसलिए विपक्षी पूर्णतया उसी समय अपने दायित्‍व से उनमुक्‍त हो चुका है, जिस समय अंकन 13,12,381/- रूपये की राशि परिवादी या उनके बैंकर को अदा करके दी गई थी, इसलिए परिवाद अग्राह्य है तदुनसार खारिज होने योग्‍य है।

आदेश

8.         प्रस्‍तुत परिवाद खारिज किया जाता है।

9.         परिवाद में उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय स्‍वंय वहन करेंगे।

 

                     

     (विकास सक्‍सेना)                           (सुशील कुमार)

            सदस्‍य                                   सदस्‍य

 

 

 

 

 लक्ष्‍मन, आशु0,

    कोर्ट-2  

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.