(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1858/2008
Laxmi Ratan Trivedi S/O Shri Durga Shankar Trivedi
Versus
The New India Assurance Company Ltd.
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री आलोक सिन्हा, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री जे0एन0 मिश्रा, विद्धान अधिवक्ता
दिनांक :12.03.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0 170/2004, लक्ष्मी रतन त्रिवेदी बनाम न्यू इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी में विद्धान जिला आयोग, कानपुर नगर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.08.2008 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने केवल अंकन 2,000/-रू0 क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार दिनांक 28.01.1999 को 1 वर्ष की अवधि के लिए बीमा पॉलिसी प्राप्त की गयी थी, जो दिनांक 27.01.2000 तक प्रभावी थी। पॉलिसी लेने से पूर्व स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया था। कोई बीमारी नहीं छिपायी गयी। दिनांक 08.06.1999 को बीमाधारक के पेट में दर्द हुआ। दिनांक 15.06.1999 को अल्ट्रासाउण्ड कराया गया था तब पत्थरी का ज्ञान हुआ। इसके बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया और दिनांक 26.06.1999 को अस्पताल से छुट्टी दी गयी। इस दौरान इलाज में 4,416/-रू0 23 पैसे खर्च हुए, परंतु 12.07.1999 को अस्पताल में दिखाया गया और 04.08.1999 को छुट्टी हुई। इस ऑपरेशन में 47,576/-रू0 खर्च हुए, परंतु बीमा कम्पनी द्वारा बीमा क्लेम नहीं दिया गया।
4. बीमा कम्पनी का कथन है कि इलाज के खर्च की राशि बढ़ा-चढ़ाकर दिखायी गयी है। अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट में पत्थरी 8 एमएम चौड़ी बतायी गयी है। अत: यह पत्थरी पहले से मौजूद थी, जिसे छिपाया गया।
5. जिला उपभोक्ता मंच ने केवल अंकन 2,000/-रू0 की रसीद पर विश्वास करते हुए 2,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया।
6. अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि यथार्थ में जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष समस्त खर्चे की रसीद प्रस्तुत की गयी थी, परंतु जिला उपभोक्ता आयोग ने केवल 2,000/-रू0 की रसीद पर विचार किया और बाकी धन पर विचार नहीं किया गया। इस आयोग के समक्ष धन अदा करने की जो रसीद अदा की गयी है, उसमें प्रथम रसीद अंकन 2,000/-रू0 की है। जो रसीदें प्रस्तुत की गयी हैं वह दस्तावेज सं0 33/1 लगायत 33/34 है, जिनका भुगतान शपथ पत्र द्वारा साबित किया गया है। अत: परिवादी परिवाद पत्र में वर्णित राशि बतौर मेडिक्लेम प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। परिवादी ने कुल 57,576/-रू0 खर्च किये थे। अत: परिवादिनी इस राशि को प्राप्त करने के लिए अधिकृत है, परंतु मानसिक प्रताड़ना के मद में इस राशि पर ब्याज के बिन्दु पर कोई निर्णय पारित नहीं किया जा रहा है क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि जिला मंच के समक्ष केवल 2,000/-रू0 की रसीद प्रस्तुत की गयी है, इसलिए जिला उपभोक्ता आयोग ने अन्य किश्तों पर कोई विचार नहीं किया, इसलिए ब्याज अदा करने का आदेश देने का कोई औचित्य नहीं है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि बीमा कम्पनी, अपीलार्थी/परिवादी को कुल 57,576/-रू0 की राशि अदा करे, इस राशि पर ब्याज बीमा कम्पनी द्वारा देय नहीं होगा।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 3