(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1970/2013
(जिला उपभोक्ता आयोग, कासगंज द्वारा परिवाद संख्या-64/2012 में पारित निणय/आदेश दिनांक 26.04.2013 के विरूद्ध)
दि न्यू इण्डिया एश्योरेन्स कंपनी लिमिटेड, डिप्टी मैनेजर, लीगल सेल-94, महात्मा गांधी मार्ग, हजरतगंज, लखनऊ।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1
बनाम
1. मुसर्रत अली पुत्र श्री मुशर्रफ अली, निवासी अलीपुर, दादर पटियाली, जिला काशीराम नगर (कासगंज)।
2. सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, द्वारा ब्रांच मैनेजर, 37/2/4, द्वितीय तल, संजय पैलेस, आगरा।
3. सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, ब्रांच पटियाली, द्वारा ब्रांच मैनेजर।
प्रत्यर्थीगण/परिवादी/विपक्षी सं0-2 व 3
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री जे.एन. मिश्रा।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी सं0-2 व 3 की ओर से उपस्थित : श्री अरविन्द कुमार श्रीवास्तव।
दिनांक: 18.11.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-64/2012, मुसर्रत अली बनाम दि न्यू इण्डिया इंश्योरेंस कं0लि0 तथा दो अन्य में विद्वान जिला आयोग, कासगंज द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 26.4.2013 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी तथा प्रत्यर्थी सं0-2 व 3 के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद विपक्षी सं0-1, बीमा कंपनी के विरूद्ध स्वीकार करते हुए अंकन 12,50,000/-रू0 बीमा राशि अदा करने, क्षतिपूर्ति की मद में अंकन 25,000/-रू0 तथा परिवाद व्यय के रूप में अंकन 2,000/-रू0 कुल 12,77,000/-रू0 अदा करने के लिए आदेशित किया है।
3. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी मैसर्स कासिफ टोबैको कंपनी के नाम से कारोबार करता है। वर्ष 2004 में व्यापार के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त की थी और तम्बाकू का गोदाम विपक्षी सं0-2 एवं 3 के पास बंधक रखा था। विपक्षी सं0-3 द्वारा बंधक माल का बीमा तथा ऋण का बीमा कराया जाना था, जिसके प्रीमियम का भुगतान परिवादी के खाते से होना था। दिनांक 6.12.2010 को परिवादी के गोदाम में आग लग गई तथा समस्त तम्बाकू का स्टॉक जलकर नष्ट हो गया, जिसकी सूचना विपक्षी सं0-3 को दी गई तथा परगना मजिस्ट्रेट पटियाली ने रिपोर्ट के अनुसार जांच कर अपना प्रमाण पत्र दिया। बीमा क्लेम विपक्षी सं0-1 के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिनके द्वारा सूचित किया गया कि बैंक ने बीमा की किस्त बीमा कंपनी को अदा नहीं की है, इसलिए कोई पालिसी जारी नहीं की गई, जबकि इस संबंध में बैंक से पूछा गया तब बैंक के अधिकारियों ने अपने स्तर से देखने की बात कही, परन्तु बीमा कंपनी द्वारा बीमा क्लेम नकार दिया गया, इसलिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
4. विपक्षी सं0-2 एवं 3, बैंक का कथन है कि परिवादी को ऋण दिया गया तथा माल बंधक रखा गया था। परिवादी का तम्बाकू का गोदाम अलीपुर दादर पटियाली में स्थित था, जो अलीगंज, रोड पर है। आग लगने के समय बीमा प्रभावी था। बैंक द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई है।
5. विपक्षी सं0-1, बीमा कंपनी का कथन है कि परिवाद गलत तथ्यों पर आधारित है। विपक्षी सं0-1 द्वारा परिवादी को अलीपुर दादर तहसील पटियाली का कोई बीमा नहीं किया गया। मैसर्स कासिफ टोबैको कंपनी का पटियाली स्थित दुकान का बीमा अंकन 6,600/-रू0 प्रीमियम लेकर किया गया था। अलीपुर दादर स्थित किसी फैक्ट्री या गोदाम का बीमा नहीं किया गया। यदि इस गोदाम का प्रयोग परिवादी द्वारा किया जा रहा है तब यह बीमा के अंतर्गत सुरक्षित नहीं है और बीमा का अस्तित्व न होने के कारण बीमा कंपनी का कोई उत्तरदायित्व बीमा राशि अदा करने का नहीं है। यह गोदाम पटियाली से तीन किलोमीटर से दूर है, इसी गोदाम में आग लगना बताया है, जबकि बीमा पालिसी कासिफ तम्बाकू कंपनी पटियाली स्थित दुकान के लिए जारी की गई है।
6. दोनों पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि बैंक द्वारा जो गोदाम बंधक रखा गया, वह आग लगने वाला गोदाम है और इसी गोदाम का बीमा कराया गया था, इसलिए बीमा नकारने का निर्णय अनुचित है। तदनुसार उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।
7. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील के ज्ञापन तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि विद्वान जिला आयोग ने साक्ष्य के विपरीत निर्णय/आदेश पारित किया है। दिनांक 7.12.2009 से दिनांक 6.12.2010 तक की अवधि के लिए बीमा पालिसी कासिफ टोबैको कंपनी पटियाली, एटा के नाम जारी की गई थी, जबकि प्रश्नगत गोदाम पटियाली से 3.5 किलोमीटर दूर है, जो ग्राम अलीपुर में स्थित है, इसलिए जिस परिसर का बीमा नहीं हुआ, उस परिसर में आग लगने के कारण कारित क्षति की पूर्ति का उत्तरदायित्व बीमा कंपनी का नहीं है।
8. प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ, कोई लिखित बहस भी दाखिल नहीं की गई, इसलिए प्रत्यर्थी सं0-1 की बहस नहीं सुनी
जा सकी।
9. पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत अभिवचनों, विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश का अवलोकन करने तथा अपीलार्थी एवं प्रत्यर्थी सं0-2 व 3 के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनने के पश्चात इस अपील के निस्तारण के लिए एक मात्र विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या बीमा कंपनी द्वारा यथार्थ में प्रश्नगत गोदाम का बीमा किया गया या नहीं, यदि हां तब परिवादी क्षतिपूर्ति के रूप में किस राशि को प्राप्त करने के लिए अधिकृत है ?
10. इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्य स्वंय बीमा पालिसी है, जो पत्रावली पर अनेक्जर सं0-4 के रूप में मौजूद है, इस पालिसी के अवलोकन से ज्ञात होता है कि शॉप कीपर पालिसी परिवादी के पक्ष में जारी की गई है और बीमाधारक का नाम मैसर्स कासिफ टोबैको कंपनी है, जिसका पता पटियाली एटा है। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में जिस स्थान पर आग लगने का कथन किया है, वह स्थान गोदाम बताया है, जिसमें आग लगी और तम्बाकू स्टॉक जल गया। इस प्रकार बीमा पालिसी में जो स्थान संरक्षित किया गया, आग उस स्थान पर नहीं लगी, बल्कि अग्निकाण्ड किसी दूसरे स्थान पर हुआ है, इसलिए बीमा क्लेम नकारने का आधार विधिसम्मत है। विद्वान जिला आयोग ने इस परिसर को भी बीमित होने का जो निष्कर्ष दिया है, वह तथ्यात्मक नहीं है। चूंकि बीमा पालिसी में अलीपुर स्थित गोदाम की सुरक्षा का कोई उल्लेख नहीं है, इसलिए केवल इस आधार पर इस गोदाम को बीमित मान लेना कि बैंक द्वारा इस गोदाम का सर्वे किया गया और इसे अपने पास बंधक रखा गया तब इसका बीमा माना जाना अनुचित है। बैंक के पास सम्पत्ति बंधक होना तथा व्यापार की बीमा पालिसी प्राप्त करना दो भिन्न-भिन्न विषय हैं। चूंकि बीमा पालिसी में गोदाम शामिल नहीं है, इस तथ्य की जानकारी परिवादी को बीमा पालिसी प्राप्त करते समय ही हो चुकी थी, इस बीमा पालिसी में गोदाम शामिल कराने का कोई प्रयास नहीं किया गया न ही संशोधन के लिए कोई आवेदन प्रस्तुत किया गया, इसलिए बीमा पालिसी गोदाम शब्द का अभाव होने के कारण गोदाम में आग लगने के कारण कारित क्षति की पूर्ति के लिए बीमा कंपनी को उत्तरदायी नहीं माना जा सकता। अत: विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने और प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
11. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2