Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :- 1403/2017 (जिला उपभोक्ता आयोग, बलिया द्वारा परिवाद सं0-154/2016 एवं परिवाद सं0 213/2016 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 24/06/2017 के विरूद्ध) Indusind Bank Ltd. Branch Office Balia Vamukam, Vishunipur, Near-wad Hotel, City, Pargana & district-Balia Regional/State office Saran Chamber-II, Park Road, Hazratganj, Lucknow Through It’s Manager Legal - Appellant
Versus - MurliDhar Singh S/O Late Tapeshwar Singh, R/O Surahi, Post-Surahi, P.S. Narhi, District-Balia.
- Smt. Poonam Singh W/O Brijkumar Singh R/O Mauja-Bakhar, P.S. Rewati, District Balia
- Respondents
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री बृजेन्द्र चौधरी प्रत्यर्थी सं0 1 की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री जय कुमार प्रत्यर्थी सं0 2 की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- कोई नहीं। दिनांक:-10.02.2023 माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - जिला उपभोक्ता आयोग, बलिया द्वारा परिवाद सं0 154/2016 एवं परिवाद सं0 213/2016 मुरलीधर सिंह बनाम इण्डसइंड बैंक लिमिटेड व अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांकित 24.06.2017 के विरूद्ध योजित किया गया है, जिसके माध्यम से विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद सं0 154/2016 व 213/2016 स्वीकार करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी के ट्रक सं0 यू0पी0 60 टी 2862 को निरस्त करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी को उसका कब्जा व दखल देने के निर्देश दिये गये। उक्त दोनों परिवाद को फोरम के द्वारा पारित आदेश दिनांक 26.05.2017 के जरिए एक्जाई करके परिवाद सं0 213/2016 को परिवाद सं0 154/2016 के साथ शामिल करके परिवाद सं0 154/2016 को लिडिंग परिवाद करार दिया गया तथा दोनों परिवाद एक साथ निस्तारित किये।
- उपरोक्त दोनों परिवाद इन अभिकथनों के साथ प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रश्नगत ट्रक रूपये 12,16,000/- रू0 में खरीदा गया था, जिसके लिए ऋण विपक्षी इण्डसइण्ड बैंक से लिया गया। उक्त ऋण के संबंध में प्रश्नगत वाहन बैंक के साथ बंधक रखा गया। उक्त ऋण की अदायगी 04 वर्षों में होनी थी। मय ब्याज ऋण का आंकलन रूपये 17,77,008/- रूपये किया गया, जिसकी अदायगी 48 किश्तों मे की जानी थी। परिवादी ने ऋण की अदायगी माह फरवरी 2016 तक की थी। मार्च 2016 की किश्त की अदायगी परिवादी के शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण नहीं कर सका। इस बीच विपक्षी के कर्मियों द्वारा दिनांक 16.03.2016 को जबरदस्ती वाहन सीज करके वाहन ड्राइवर मनु यादव से जबरदस्ती अपने कब्जे में ले लिया और सीजर प्रमाण पत्र ड्राइवर मनु यादव को दे दिया। परिवादी ने उक्त वाहन विपक्षी के यहां जांकर आरजू विन्नत किया कि परिवादी से बकाया ऋण जमा कराकर उक्त वाहन को मुक्त करके परिवादी के कब्जे में दे दें, किन्तु उक्त वाहन वापस नहीं दिया गया। जिससे यह वाद प्रस्तुत किया गया।
- अपीलार्थी/विपक्षी बैंक द्वारा परिवाद पत्र में समस्त अभिकथनों को इंकार करते हुए जवाबदावा दाखिल किया गया एवं कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने माह मार्च सन 2016 के किश्तों की अदायगी नहीं की है। प्रत्यर्थी/परिवादी कभी भी समयानुसार नियत तिथि पर ई.एम.आई. की अदायगी नहीं करता था, जिस कारण उसपर ब्याज देय हो गया। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा शपथ पत्र दिनांक 05.12.2015 को रूपये 50,000/- की धनराशि दिनांक 21.12.2015 तक जमा करने तक अण्डटेकिंग दी थी, जिससे स्पष्ट होता है कि परिवादी डिफाल्टर है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने उक्त अण्डरटेकिंग का पालन नहीं किया, जिस कारण शर्तों के अनुसार ट्रक को सीज करके फाइनेंसर ने अपने कब्जे में ले लिया। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ऋण का डिफाल्टर होने के कारण उसे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की गाइडलाईन के अनुसार पर्याप्त अवसर दिया गया कि वह ऋण की अदायगी कर दे, किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने कोई कार्यवाही नहीं की। वाहन अवमुक्त किया जा चुका है तथा इसकी नीलामी भी की जा चुकी है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने समस्त तथ्यों को देखे बिना परिवाद आज्ञप्त किया है।
- विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने परिवादी एवं विपक्षी को सुनकर प्रश्नगत निर्णय देते हुए वाद आज्ञप्त किया, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- अपील में मुख्य रूप से यह कथन किया गया है कि परिवाद सं0 154/2016 योजित होने पर अपीलकर्ता ने अपने वादोत्तर में स्पष्ट रूप से कथन किया था कि यह प्रश्नगत वाहन नीलामी में बेच दिया गया है किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में कोई संशोधन या परिवर्तन नहीं किया। प्रश्नगत निर्णय अवैध एवं अनियमित है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ऋण की अदायगी में डिफाल्ट किया गया, किन्तु इस तथ्य को विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग ने नहीं देखा। प्रश्नगत वाहन को ऋण की शर्तों के अनुसार पर्याप्त सूचना एवं नोटिस देकर अपीलकर्ता/विपक्षी अपने कब्जे में लिया था और इसकी नीलामी की थी। अत: बैंक द्वारा की गयी कोई भी कार्यवाही अभिहित नहीं है और प्रत्यर्थी/परिवादी किसी अनुतोष को पाने के अधिकारी नहीं है। वाहन को कब्जे में लिया जाये और नीलामी के पूर्व परिवादी एवं ऋण की गारंटर को पर्याप्त नोटिस व सूचना दी गयी, किन्तु परिवादी ने कोई कार्यवाही नहीं की थी। अत: बैंक द्वारा किया गया कार्य विधि अनुसार एवं ऋण की शर्तों के अनुसार है। अत: प्रश्नगत निर्णय अवैध एवं अनुचित है, जो अपास्त होने योग्य है। इस आधार पर यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र चौधरी एवं प्रत्यर्थी सं0 1 के विद्धान अधिवक्ता श्री जय कुमार को विस्तृत रूप से सुना गया। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का अवलोकन किया गया।
- प्रत्यर्थी/परिवादी का आक्षेप परिवाद पत्र में अपीलकर्ता बैंक पर यह है कि प्रत्यर्थी/परिवादी शारीरिक रूप अस्वस्थ होने के कारण ऋण की किश्तों की अदायगी नहीं कर सकता। इस प्रकार स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने अभिकथनों में किश्तों की अदायगी न होने के तथ्य को स्वीकार किया है दूसरी ओर विपक्षी का कथन यह है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने ऋण की मासिक किश्तें नियमित रूप से अदा नहीं की, जिस कारण समय समय पर उन किश्तों के संबंध में ब्याज जमा होता रहा, जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा देय धनराशि बढ़ गयी और प्रत्यर्थी/परिवादी ने इस धनराशि को बैंक द्वारा नोटिस दिेये जाने के बावजूद अदा नहीं किया, जिस कारण बैंक को वाहन सीज करने एवं तदोपरांत उसे बेच देने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस संबंध में पुन: पक्षकारों के मध्य के करार का देखा जाना आवश्यक है। वाहन की बीमा पॉलिसी की शर्त सं0 15.10 में स्पष्ट रूप से अंकित है स्वयं उधार लेने वाला व्यक्ति प्रश्नगत वाहन का कब्जा बैंक को डिफाल्ट की दशा में स्वत: दे देगा। शर्त सं0 15.10 निम्नलिखित प्रकार से है:-
On demand being made by the lender, or if required by the lender upon happening of any events of defaults, the borrower shall:- - Give immediate and actual possession of the hypothecated asset to the lender, its nominees or agents (as the case may be)
- Transfer, deliver and endorse all registrations, policies, certificates and document relating to the hypothecated asset to the lender, its nominees or agents (as the case may be)
- इसी प्रकार बीमा पॉलिसी की शर्त सं0 15.3 के अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार से शर्त दी गयी है:-
Upon occurrence of an event of Default, the borrower shall be bound to return the asset to the lender at such location, as the lender may designate, in the same condition in which it was originally delivered to the borrower, ordinary wear and tear excepted. The borrower shall not prevent or obstruct the lender form taking the possession of the Asset. For this purpose the borrower covenants & confirms that the lender’s authorized representatives, servants officers and agents by due process of law will have unrestricted right of entry and shall be entitled to forthwith, or at any time without notice to the borrower subject to the guidelines prescribed form time to time by the regulatory authorities in this regard, to enter upon the premises or garage or go down where the vehicles(s)/asset(s) are lying or kept and to take possession or recover and receive the same and if necessary to break open any such place. The lender will be well within its rights to us to van or any carrier to carry away the asset. The borrower shall be liable to pay towing charges and other such expenses incurred by the lender for taking the possession of the asset, cost of safe keeping of the asset and for its sale etc. - उक्त शर्तों से स्पष्ट होता है कि किश्तों के डिफाल्ट होने पर ऋण लेने वाले व्यक्ति का ही यह उत्तरदायित्व शर्तों के अनुसार है कि वह स्वयं बंधक रखी सम्पत्ति अर्थात वाहन को ऋणदाता अर्थात बैंक के कब्जे में स्वयं प्रदान करेगा। प्रस्तुत मामले में उक्त शर्तों का अनुपालन करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी बैंक ने प्रश्नगत वाहन को अपने कब्जे में लिया। अत: इसे शर्तों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
- इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय मैसर्स मैग्मा फिनकार्प लिमिटेड प्रति राजेश कुमार तिवारी प्रकाशित 10 (एस.सी.सी.) पृष्ठ 399 का उल्लेख करना होगा। इस निर्णय में यह निर्णीत किया गया है कि वाहन के ऋण के संबंध में नोटिस के उपरान्त वाहन को फाइनेंसर द्वारा वापस लिया जा सकता है। निर्णय के प्रस्तर 52 में उक्त तथ्य का उल्लेख किया गया है।
- मा0 सर्वोच्च न्यायलय का एक अन्य निर्णय सूर्यपाल सिंह प्रति सिद्धि विनायक मोटर प्रकाशित II (2012) CPJ Page 8 (S.C.) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया है कि वाहन के ऋण के संबंध में यदि वाहन को वापस लेने की शर्त फाइनेंसर द्वारा रखी गयी है तो ऋण की मासिक किश्तें अदा न होने की दशा में फाइनेंसर प्रश्नगत सम्पत्ति को वापस ले सकता है।
- मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा निर्णय धर्मपाल शर्मा प्रति टाटा मोटर्स लिमिटेड प्रकाशित I (2013) CPJ page 203 (N.C.) में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्णीत किया है कि ऋण/बंधक करार में यदि ऋणी द्वारा ऋणों की किश्त अदा करने में अवरोध किया जाता है तो ऋणदाता को यह अधिकार है कि वह वाहन को अपने कब्जे मे ले सकता है।
- माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित एक अन्य निर्णय सिटीकार्प मारूति फाइनेंस लिमिटेड प्रति एस0 विजय लक्ष्मी प्रकाशित IV (2011) CPJ page 67 (S.C.) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि वाहन के ऋण के करार में शर्तों के अनुसार ऋणदाता को वाहन कब्जे में लेने का अधिकार है यदि ऋण की अदायगी में यदि अवरोध होता है तो ऋणदाता को यह अधिकार है कि वाहन को कब्जे में ले ले, किन्तु यह अधिकार विधि अनुसार होना चाहिए। वाहन को कब्जे में लेने में हिंसा अथवा बल का प्रयोग अनुचित है, न ही गुंडो के माध्यम से इस प्रकार की कार्यवाही होनी चाहिए।
- प्रस्तुत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में कथन किया है कि दिनांक 16.03.2016 को विपक्षी बैंक ने प्रत्यर्थी/परिवादी के ड्राइवर मनु यादव से जबरदस्ती वाहन अपने कब्जे में ले लिया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने केवल शब्द ‘’जबरदस्ती’’ कब्जे में लेने का कथन किया है, किसी प्रकार का बल प्रयोग अथवा हिंसा का कोई कथन अथवा आक्षेप परिवादी ने नहीं लगाया है।
- मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय मैसर्स मैग्मा फिनकार्प लिमिटेड प्रति राजेश कुमार तिवारी प्रकाशित 10 (एस.सी.सी.) पृष्ठ 399 में यह निर्णीत किया गया है कि वाहन को कब्जे में लेने के पूर्व सूचना का दिया जाना आवश्यक है अथवा नहीं, यह उभय पक्ष के मध्य करार से स्पष्ट हो सकता है। यदि करार मे यह तथ्य उल्लेखित है अथवा करार के उपबन्धों से यह स्पष्ट होता है कि नोटिस की आवश्यकता नहीं है तो ऋण की किश्त का अवरोध होने पर ऋणदाता बिना नोटिस के भी वाहन को कब्जे में ले सकता है।
- उपरोक्त निर्णय को दृष्टिगत करते हुए प्रस्तुत मामले में अभिलेख का अवलोकन करने से स्पष्ट होता है कि ऋणदाता अपीलार्थी ने दिनांक 10.12.2015 को ऋण की अदायगी हेतु सूचना देने के पत्र की प्रतिलिपि अभिलेख पर रखी है, जिसमें उल्लेखित है कि ऋण की अदायगी न होने पर वाहन को कब्जे में लिया जा सकता है, इसके उपरान्त पत्र दिनांक 19.01.2016 मे भी ऋण की अदायगी करने एवं डिफाल्ट की दशा में वाहन को कब्जे में लिये जाने का उल्लेख किया गया। पत्र दिनांकित 10.12.2015 से संबंधित रजिस्ट्री रसीद दिनांकित 11.12.2015 एवं पत्र दिनांकित 19.01.2016 से संबंधित रजिस्ट्री रसीद, दिनांकित 19.01.2016 की प्रति अभिलेख पर है। इसी प्रकार दिनांक 03.03.2016 को प्रेषित पत्र जिसमें वाहन से संबंधित ऋण की अदायगी हेतु नोटिस दिये जाने का वर्णन है एवं यह सूचना भी है कि यदि ऋण की अदायगी ऋणी द्वारा नहीं की जाती है तो वाहन को कब्जे में लिय जा सकता है। उक्त 03 नोटिस दिये जाने के उपरान्त दिनांक 16.03.2016 को वाहन को कब्जे मे लिया गया, जिससे स्पष्ट है कि पूर्ण नोटिस दिये जाने एवं ऋणी प्रत्यर्थी/परिवादी को ऋण अदा करने का पूर्ण अवसर दिये जाने जाने की सूचना अपीलार्थी बैंक द्वारा दी गयी। इसके बावजूद प्रत्यर्थी/परिवादी ऋणी ने ऋण की अदायगी नहीं की। उल्लेखनीय है कि अपीलार्थी बैंक ने स्पष्ट किया है कि नियमित अदायगी न होने पर दाण्डिक ब्याज जो करार के अनुसार था। परिवादी पर बकाया हो गया था, किन्तु बार-बार नोटिस दिये जाने पर भी इस ऋण की अदायगी प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा नहीं की गयी। अत: ऐसी दशा में अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के पास बीमा की शर्तों के अनुसार वाहन को अपने कब्जे में लेकर ऋण की अदायगी हेतु इसका विक्रय करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं था।
- इस प्रकार समस्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि अपीलार्थी बैंक द्वारा बीमा की शर्तों के अनुसार कार्य करते हुए वाहन को अपने कब्जे में लिया और ऋण की अदायगी हेतु इसका विक्रय किया। अत: अपीलार्थी बैंक द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं मानी जा सकती है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने यह माना है कि वित्त पोषित बैंक द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को बिना युक्ति-युक्त करार एवं अवैधानिक रूप से प्रश्नगत वाहन को सीज करके नीलाम व विक्रय किये गये हैं। यह निष्कर्ष उचित नहीं कहा जा सकता है। अत: निर्णय अपास्त होने योग्य है एवं प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद 154 सन 2016 एवं परिवाद स0 213 सन 2016 निरस्त किये जाने योग्य एवं अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
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अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाता है। धारा 15 के अंतर्गत अपीलार्थी द्वारा अपील में जमा की गयी धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को नियमानुसार वापस की जाये। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) संदीप आशु0कोर्ट नं0 2 | |