राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1315/2009
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता आयोग, हाथरस द्वारा परिवाद संख्या 104/2005 में पारित आदेश दिनांक 20.06.2009 के विरूद्ध)
एक्जीक्यूटिव इंजीनियर इलैक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन डिवीजन-प्रथम दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0, मुसान गेट, हाथरस
.....................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
मुरारी लाल अग्रवाल पुत्र श्री गिरधारी लाल अग्रवाल, निवासी-नवीपुर रोड, हाथरस
............प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आनन्द भार्गव,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 24.07.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, हाथरस द्वारा परिवाद संख्या-104/2005 मुरारीलाल अग्रवाल बनाम अधिशासी अभियन्ता, विद्युत वितरण खण्ड-प्रथम, उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लि0 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 20.06.2009 के विरूद्ध योजित की गयी। प्रस्तुत अपील लगभग 15 वर्षों से लम्बित है।
अपील की अन्तिम सुनवाई की तिथि पर अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा एवं प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री आनन्द भार्गव को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध
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समस्त प्रपत्रों का सम्यक परीक्षण व परिशीलन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी विद्युत विभाग का उपभोक्ता है तथा विपक्षी के द्वारा आवंटित विद्युत कनैक्शन के माध्यम से स्वत: रोजगार के लिए एक लघु इकाई संचालित करता है।
विपक्षी द्वारा दिनांक 18.08.2004 को परिवादी के विद्युत कनैक्शन के मीटर की चैकिंग की गयी, जिसमें कोई भी कमी नहीं पायी गयी। विपक्षी द्वारा पुन: दो माह के बाद दिनांक 28.10.2004 को परिवादी की अनुपस्थिति में चैकिंग की गयी तथा कोई कमी न होते हुए भी विपक्षी द्वारा अपनी रिपोर्ट में सी0टी0 चैम्बर टेम्पर्ड होना उल्लिखित किया गया।
विपक्षी द्वारा दिनांक 20.07.2005 को परिवादी को नोटिस प्रेषित किया गया तथा परिवादी के यहॉं चैंकिंग का हवाला देकर निर्धारण दर्शाया गया, जो विद्युत आपूर्ति कोड 2005 के प्रावधानों के प्रतिकूल है। विपक्षी की उक्त नोटिस दिनांक 20.07.2005 के संदर्भ में परिवादी द्वारा एक प्रत्यावेदन दिनांक 28.07.2005 को प्रेषित किया गया, परन्तु विपक्षी द्वारा मनमाना व दोषपूर्ण कृत्य का परिचय देते हुए परिवादी पर अंतिम निर्धारण किया गया, जो अवैध व अनुचित है।
परिवादी का कथन है कि सील तीन होती है तथा यदि किसी भी मीटर की सील से छेड़छाड़ होती है है तो तीनों सील टेम्पर्ड हुए बिना विद्युत चोरी नहीं हो सकती है, जबकि विपक्षी द्वारा उक्त निर्धारण में एक सील टेम्पर्ड होना उल्लिखित किया गया। विपक्षी का उपरोक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनुचित व्यापारिक संव्यवहार के अन्तर्गत आता है, जिस कारण परिवादी को मानसिक, शारीरिक व आर्थिक कष्ट पहुँचा। अत: क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षी के विरूद्ध परिवाद योजित करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
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जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षी विद्युत विभाग द्वारा प्रतिवाद पत्र दाखिल किया गया तथा मुख्य रूप से यह कथन किया गया कि परिवादी को वाद प्रस्तुत करने का कोई वाद कारण उत्पन्न नहीं हुआ है। विभागीय अधिकारियों द्वारा परिवादी के संयोजन की चैकिंग दिनांक 28.10.2004 को की गयी, जिसमें परिवादी के कनेक्शन पर लगे मीटर की सी0टी0 चैम्बर टेम्पर्ड पायी गयी, जिस आधार पर निर्धारण सुनिश्चित किया गया। परिवादी को उक्त निर्धारण के संबंध में दिनांक 20.07.2005 को नोटिस प्रेषित किया गया, जिसके विरूद्ध परिवादी द्वारा प्रस्तुत आपत्ति को सही न मानते हुए उक्त आपत्ति निरस्त की गयी, जिसकी सूचना भी दिनांक 10.08.2005 को परिवादी को प्रेषित की गयी। विद्युत आपूर्ति अधिनियम, 2003 की धारा 127 के अनुसार परिवादी को निर्धारण से सन्तुष्ट न होने की दशा में अपील प्रस्तुत की जानी चाहिए थी। जिला फोरम को सुनवाई का अधिकार प्राप्त नहीं है। परिवाद निरस्त होने योग्य है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों/प्रपत्रों पर विचार करने के उपरान्त अपने निर्णय में निम्न तथ्य उल्लिखित किए गए:-
''पत्रावली पर उपलब्ध तथ्यों के अनुसार विपक्षी के कथनानुसार परिवादी के कनैक्शन की कथित चैकिंग के समय परिवादी के कनेक्शन पर लगे मीटर की सी०टी० चैम्बर टेम्पर्ड पाई गई थी इसी आधार पर उक्त निर्धारण किया गया है। विपक्षी द्वारा उक्त चैकिंग रिपोर्ट को पत्रावली पर प्रस्तुत किया गया है। उक्त चैकिंग दि० 28.10.2004 को दर्शायी गयी है।
फोरम द्वारा उक्त चैकिंग रिपोर्ट का अवलोकन किया गया। उक्त चैकिंग रिपोर्ट में उपभोक्ता के हस्ताक्षर के स्थान पर किसी के भी हस्ताक्षर नहीं है। लेकिन यह नहीं दर्शाया गया है कि उपभोक्ता या उसके प्रतिनिधि के हस्ताक्षर चैकिंग के समय क्यों नहीं कराये गये है। जबकि नियमानुसार किसी भी चैकिंग रिपोर्ट पर उपभोक्ता या उसके प्रतिनिधि के हस्ताक्षर होना आवश्यक है।
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अन्यथा की दशा में उपभोक्ता या प्रतिनिधि के हस्ताक्षर न करने की दशा में चैकिंग रिपोर्ट पर टिप्पणी अंकित की जानी चाहिए अथवा किसी अन्य
गवाह के हस्ताक्षर उक्त चैकिंग रिपोर्ट पर करवाये जाने चाहिए। विपक्षी द्वारा यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि उक्त चैकिंग दो माह बाद पुनः किस उद्देश्य से की गई थी।
विपक्षी द्वारा उक्त प्रकरण में परिवादी के विरूद्ध कोई भी त्वरित कार्यवाही यथा शमन शुल्क जमा कराया जाना अथवा प्राथमिकी आदि दर्ज नहीं करायी गयी थी। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर ही फोरम द्वारा अपने आदेश दिनांक 13.12.2005 के द्वारा परिवादी द्वारा प्रस्तुत अन्तरिम अनुतोष प्रार्थना-पत्र स्वीकार करते हुए उक्त विवादित निर्धारण नोटिस की धनराशि की वसूलयाबी दौरान परिवाद स्थगित की थी।
परिवादी द्वारा पत्रावली पर लगभग दो माह पूर्व विपक्षी द्वारा की गई चैकिग रिपार्ट प्रस्तुत की गयी है उक्त रिपोर्ट के अवलोकन से यह विदित होता है कि उक्त चैकिग के समय मीटर में कोई भी कमी नहीं पाई गई थी। परिवादी द्वारा अपने तर्क में यह भी उल्लेख किया गया है कि विपक्षी परिवादी से मीटर किराया प्राप्त करते है तदनुसार मीटर को सही रखना विपक्षी का ही दायित्व है। परिवादी के मीटर की चैकिग जब विपक्षी द्वारा माह दो माह पूर्व ही की गई थी और कोई भी कमी नही पाई गयी थी तब ऐसी स्थिति में में दो माह बाद ही चैकिंग करना विद्वेषपूर्ण एवं मनमानी कारगुजारी का द्योतक है। सील तीन होती है यदि किसी भी मीटर की सीलसील से छेडछाड हो तो तो तीनों सील टेम्पर्ड हुए बिना विद्युत चोरी नही हो सकती है। जबकि उक्त निर्धारण में एक सील टैम्पर्ड होने की बात कही गई है। विपक्षी द्वारा यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि उक्त चैकिंग दो माह बाद पुनः किस उद्देश्य से की गई थी। फोरम परिवादी द्वारा उठाये गये इस तर्क से पूर्ण रूप से सहमत है।
परिवादी द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षी द्वारा विद्युत आपूर्ति के नियम-6.8 में दी गयी व्यवस्था का अनुपालन भी निर्धारण के सम्बन्ध में नहीं किया गया है।
फोरम द्वारा उपरोक्त संदर्भ में विद्युत आपूर्ति संहिता, 2005 के नियम 6.8 का अवलोकन किया गया। उक्त नियम के अनुसार परिवादी को कथित चैकिंग के तीन दिन के अन्दर एक सात दिवसीय कारण बताओ नोटिस दिया जाना आवश्यक था, किन्तु उक्त प्रकरण में कथित चैकिंग दिनांक 28.10.2004 में दर्शायी गयी है एवं विपक्षी द्वारा दि० 20.7.2005 को लगभग 9 माह बाद
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नोटिस दिया गया है। उक्त विलम्ब का समुचित कारण भी विपक्षी द्वारा नहीं दर्शाया गया है।
उक्त नियमानुसार परिवादी की आपत्ति प्राप्त होने की दशा में विद्युत आपूर्ति संहिता 2005 के प्रावधानानुसार विपक्षी द्वारा परिवादी के प्रकरण को सुनने का प्रावधान है किन्तु परिवादी के उक्त प्रकरण में बिना नियमानुसार सुनवाई किये हुए एकपक्षीय रूप में परिवादी का प्रत्यावेदन/आपत्ति भी निरस्त कर दी गयी थी।
विपक्षी द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया है कि गलत निर्धारण के विरूद्ध परिवादी को इलैक्ट्रीसिटी एक्ट 2003 की धारा 126 के अन्तर्गत अपील प्रस्तुत करनी चाहिए तथा वाणिज्यक कनैक्शन होने के कारण फोरम को सुनवाई का अधिकार प्राप्त नहीं है।
इसके खण्डन में परिवादी द्वारा जो विधि व्यवस्था प्रस्तुत की गयी हैं, उनमें यह सिद्धान्त अवधारित किया गया है कि विद्युत चोरी के सम्बन्ध में विभाग द्वारा यदि अनियमिततायें बरती जाती है तथा गलत रूप से विधि का अनुपालन न करते हुये निर्धारण किया जाता है तो परिवादी को गलत निर्धारण के विरूद्ध मंच के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त है तथा उपभोक्ता द्वारा चैकिंग रिपोर्ट पर हस्ताक्षर न किये जाने की दशा में चैकिंग रिपोर्ट को संदिग्ध माना गया है। साथ ही साथ विधिक निर्णय 1 (1992) CPJ 127 यह विधि अवधारित की गई है कि मीटर की सील टूटना विद्युत चोरी का निश्चयात्मक प्रमाण नही माना जा सकता है। यह निर्धारित विधि है कि यदि विपक्षी द्वारा प्रदत्त सेवा का उपयोग स्वतः रोजगार के लिए किया जाता है तो ऐसी परिस्थिति में परिवाद को सुनने का फोरम को पूर्ण अधिकार है।
फोरम की राय में विपक्षीगण का उक्त कार्य पूर्वागृह से ग्रसित था और चैकिंग रिपोर्ट फर्जी रूप से किसी अन्य उद्देश्य के तहत तैयार की गयी थी। विपक्षी द्वारा विद्युत आपूर्ति संहिता-2005 के नियमानुसार निर्धारण के पूर्व सभी औपचारिकतायें विधिक रूप से पूर्ण नहीं की गयी हैं। उपरोक्त परिस्थिति में विपक्षी द्वारा दाखिल चैकिंग रिपोर्ट संदिग्ध प्रतीत होती है।
उक्त वाद में विपक्षी अधिशासी अभियन्ता द्वारा स्वयं का कोई शपथपत्र भी प्रस्तुत नहीं किया है और न ही चैकिंग करने वाले अधिकारी/कर्मचारी का ही शपथपत्र प्रस्तुत किया है।
विपक्षी का उक्त कृत्य अनुचित व्यापारिक संव्यवहारयुक्त तथा उपभोक्ता शोषणकारी है। उक्त दशा में उपभोक्ता को विपक्षी के शोषण तथा दोषपूर्ण
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सेवाओं से संरक्षण हेतु उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम द्वारा स्थापित फोरम से अपने विधिक अधिकारों के अनुरूप संरक्षण प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है।
परिवादी द्वारा प्रस्तुत विधिक निर्णयों को अवलोकित करते हुए फोरम इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि विद्युत चोरी के नाम पर विधि और प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के प्रतिकूल कृत्य में उपभोक्ता संरक्षण फोरम अनुतोष देकर उपभोक्ता के अधिकारों को संरक्षित कर सकता है।
विद्युत विभाग द्वारा परिवादी के ऊपर गलत/विधि विरूद्ध निर्धारण किया गया है उपरोक्त दशा में फोरम परिवादी के विरूद्ध किये गये निर्धारण को निरस्त किया जाना उचित समझता है तथा साथ ही साथ विपक्षी से परिवादी को विद्युतधारा पूर्ववत प्रदान करवाया जाना उचित समझता है। गलत निर्धारण के बाद यदि विद्युत बिलों में कोई अधिभार भी लगाया गया हो तो वह भी विपक्षी विद्युत विभाग पाने का अधिकारी नहीं है। उपरोक्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुये फोरम की राय में परिवादी का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।''
तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवाद निर्णीत करते हुए निम्न आदेश पारित किया गया:-
''परिवादी का परिवाद विपक्षी विद्युत विभाग के विरूद्ध इस आशय से स्वीकार किया जाता है कि विपक्षी विद्युत विभाग द्वारा परिवादी को भेजा गया विवादित अनुचित एवं कालातीत निर्धारण नोटिस/बिल दिनांक 10.8.2005 बाबत धनराशि रुपया 254583.00 समाप्त/निरस्त किया जाता है। विपक्षी विद्युत विभाग को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह उक्त गलत नोटिस के आधार पर परिवादी से कोई भी वसूलयावी न करें साथ ही साथ विपक्षी परिवादी को विद्युतधारा पूर्ववत प्रदान करते रहें। परिवाद वाद व्यय के रूप में रूपया 1000.00(एक हजार मात्र) भी विपक्षी विद्युत विभाग से एक माह की अवधि में पाने का अधिकारी होगा।''
उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुनने तथा समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का सम्यक अवलोकन/परिशीलन व
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परीक्षण करने के उपरान्त विधि अनुसार समस्त तथ्यों को विस्तार से उल्लिखित करते हुए निर्णय पारित किया, जिसमें मेरे विचार से हस्तक्षेप हेतु पर्याप्त आधार नहीं हैं। अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा भी अपील सुनवाई के समय किसी प्रकार का अन्य साक्ष्य व विवरण भी उल्लिखित नहीं किया गया।
तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1