(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 548/2004
मुरादाबाद डेवलपमेंट अथारिटी।
बनाम
श्रीमती लता मिश्रा।
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अभिषेक मिश्रा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
एवं
अपील सं0- 362/2004
श्रीमती लता मिश्रा।
बनाम
मुरादाबाद विकास प्राधिकरण।
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री अभिषेक मिश्रा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 18.08.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 56/2001 श्रीमती लता मिश्रा बनाम मुरादाबाद विकास प्राधिकरण में जिला उपभोक्ता आयोग द्वितीय, मुरादाबाद द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 09.01.2004 के विरुद्ध परिवाद की परिवादिनी की ओर से अपील सं0- 362/2004 तथा परिवाद के विपक्षी की ओर से अपील सं0- 548/2004 प्रस्तुत की गई है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’परिवादिनी का परिवाद इस प्रकार स्वीकार किया जाता है कि परिवादिनी 33010/-रू0 की धनराशि पर 25.8.99 से 01.3.2001 तक 18 प्रतिशत वार्षिक के हिसाब से सूद पाने की अधिकारिणी है तथा 1000 रूपये वाद व्यय भी पाने की अधिकारिणी है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि दो माह के अंदर समस्त धनराशि परिवादिनी को अदा करे।’
परिवादिनी का परिवाद पत्र में संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि परिवादिनी की प्रार्थना पर विपक्षी ने ट्रांसपोर्ट नगर मुरादाबाद में 114.48 वर्ग मीटर भूखण्ड देना स्वीकार किया जिसकी कीमत विभिन्न शुल्कों सहित 95,731/-रू0 थी। विपक्षी के पत्र सं0- 60 दिनांकित 26.03.98 के प्राप्त न होने के कारण कार्यालय द्वारा दी गई मौखिक सूचना के आधार पर दि0 26.03.98 परिवादिनी को दि0 01.04.98 को प्राप्त हुआ तब उसने विपक्षी के कार्यालय में दोबारा सम्पर्क किया और उनके मौखिक निर्देशानुसार बकाया धनराशि 35731/-रू0 दि0 25.08.1999 को केनरा बैंक, मुरादाबाद में जमा कर दी। विपक्षी ने पत्र दिनांकित 03.08.2000 भेजा जिसमें भूखण्ड का क्षेत्रफल 95.48 वर्ग मीटर कर दिया गया और उसकी कीमत 62,721/-रू0 निर्धारित कर दी गई। इस क्षेत्रफल को कम करने में विपक्षी परिवादिनी की स्वीकृति नहीं ली और बकाया धनराशि का भुगतान नहीं किया। काफी दौड़-भाग के बाद विपक्षी ने परिवादिनी को 33,010/-रू0 का भुगतान चेक दिनांकित 08.03.2001 के द्वारा किया। विपक्षी ने अधिक मूल्य अपने पास रखने का कोई कारण प्रस्तुत नहीं किया और भूखण्ड सं0- सी-71 का कोई कब्जा भी नहीं दिया, जिससे व्यथित होकर परिवादिनी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
विपक्षी ने अपने प्रतिवाद पत्र में कथन किया है कि परिवादिनी को विपक्षी के कार्यालय के पत्र सं0- 60 दिनांकित 26.03.98 के द्वारा विभिन्न मदों में 95,731/-रू0 की मांग की गई थी तथा प्रश्नगत भूखण्ड सं0- सी-71 ट्रांसपोर्ट नगर के औसत क्षेत्रफल 72 वर्गमीटर के सापेक्ष 89,200/-रू0 की मांग पत्र सं0- 720 दिनांकित 02.03.96 के माध्यम से की गई थी। इस प्रकार 1,84,931/-रू0 की मांग की गई। परिवादिनी द्वारा 60,000/-रू0 तथा अंकन 35,731/-रू0 की धनराशि जमा किया जाना स्वीकार है। नियोजन विभाग से प्राप्त साईट रजिस्ट्री प्लान के अनुसार 95.49 क्षेत्रफल का संशोधित फ्रीहोल्ड आदि की बाबत पत्र सं0- 39 दिनांकित 03.08.2000 के माध्यम से 62,721/-रू0 की मांग की गई। परिवादिनी को 33,010/-रू0 का भुगतान चेक सं0- 527242 दिनांकित 05.02.2001 के माध्यम से किया जा चुका है और परिवादिनी को दि0 04.01.2002 को सम्बन्धित सम्पत्ति का कब्जा दिया जा चुका है। परिवादिनी को कोई वाद का कारण पैदा नहीं हुआ है। अत: परिवाद खण्डित होने योग्य है।
हमने विपक्षी प्राधिकरण के विद्वान अधिवक्ता श्री अभिषेक मिश्रा को सुना। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। परिवादिनी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवादिनी को धनराशि 33,010/-रू0 मय ब्याज विपक्षी प्राधिकरण से वापस दिलाये जाने के आदेश दिए हैं। पीठ के अनुसार निर्णय में कोई दोष परिलक्षित नहीं होता है, जिस आधार पर उक्त निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने का आधार हो।
विपक्षी प्राधिकरण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अन्य तर्कों के साथ-साथ यह भी कथन किया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने विपक्षी प्राधिकरण द्वारा परिवादिनी को 18 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज अदा करने हेतु आदेशित किया है, जो अत्यधिक है।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि प्रश्नगत निर्णय व आदेश साक्ष्य पर आधारित है, जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, परन्तु परिवादिनी को देय राशि पर ब्याज 18 प्रतिशत साधारण वार्षिक अत्यधिक उच्च दर से लगायी गयी है। ब्याज अधिनियम की धारा 2 व 3 को देखते हुये तथा वर्तमान प्रचलित ब्याज बैंक दर को देखते हुये ब्याज दर 10 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से सुनिश्चित किया जाना विधिसम्मत है। तदनुसार विपक्षी प्राधिकरण द्वारा प्रस्तुत अपील सं0- 548/2004 आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
अपील सं0- 362/2004 विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा आदेशित क्षतिपूर्ति की धनराशि को बढ़ाये जाने के सम्बन्ध में प्रस्तुत की गई है, परन्तु जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा आदेशित क्षतिपूर्ति की धनराशि को बढ़ाये जाने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है। इस अपील में अपीलार्थी/परिवादिनी लता मिश्रा द्वारा निम्नलिखित अनुतोष की प्रार्थना की गई है:-
‘’(अ) भूखण्ड C/71 का क्षेत्रफल 114.48 वर्गमीटर को कम करके 95.48 वर्गमीटर करने से हुई मानसिक वेदना के लिये क्षतिपूर्ति रू0 10,000/-
(ब) भूखण्ड सं0- C/71 का अधिक मूल्य जमा कराकर वापस न करने से हुई क्षतिपूर्ति रू0 20,000/-
(स) भखण्ड सं0- C/71 के दखल लेने के सम्बन्ध में परिवादिनी द्वारा समस्त औपचारिकतायें पूरी करने के उपरांत भी भूखण्ड C/71 का कब्जा न देने से हो रही मानसिक वेदना के लिये क्षतिपूर्ति के लिये रू0 10,000/-
(द) वाद व्यय परिवादिनी को विपक्षी से रू0 1500/- दिलाया जाये।‘’
उपरोक्त सभी अनुतोष मानसिक वेदना क्षतिपूर्ति, कब्जा न देने से हो रही मानसिक वेदना एवं क्षतिपूर्ति हेतु मांगे गये हैं। इसके अतिरिक्त 1500/-रू0 वाद व्यय दिलवाये जाने की प्रार्थना की गई है। प्रस्तुत मामले में पृथक से परिवादिनी की धनराशि पर 10 प्रतिशत ब्याज दिलवाये जाने का अनुतोष दिया गया है। अत: पृथक से क्षतिपूर्ति ब्याज के अतिरिक्त दिलवाये जाने का कोई औचित्य इस मामले में नहीं है। इसके अतिरिक्त मूल निर्णय में 1,000/-रू0 वाद व्यय विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा आज्ञप्त किया गया है जो उचित है। अतएव अपील में मांगे गये अनुतोष दिलाया जाना उचित नहीं है। तदनुसार परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत अपील सं0- 362/2004 निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील सं0- 548/2004 आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा सम्बन्धित अपील सं0- 362/2004 निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 09.01.2004 इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि विपक्षी प्राधिकरण द्वारा परिवादिनी को देय राशि पर ब्याज 18 प्रतिशत के स्थान पर ब्याज 10 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से देय होगी। शेष निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है।
प्रस्तुत अपील सं0- 548/2004 एवं सम्बन्धित अपील सं0- 362/2004 में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
इस निर्णय व आदेश की मूल प्रति अपील सं0- 548/2004 में रखी जाये एवं इसकी प्रमाणित प्रति सम्बन्धित अपील सं0- 362/2004 में रखी जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3