राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-1313/2015
(जिला मंच, दि्वतीय मुरादाबाद द्धारा परिवाद सं0-09/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 16.10.2014 के विरूद्ध)
1- डी0आर0एम0 नार्दन रेलवे सिविल लाइन्स इमली लेन मुरादाबाद।
2- चीफ क्लेम ऑफिसर नार्दन रेलवे, सी0सी0ओ0एन0डी0सी0आर0 बिल्डिंग, एस्टेट एण्ट्री रोड, नई दिल्ली।
........... अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
मुनव्वर अली खॉ पुत्र श्री मुजफ्फर अली खॉ, प्रोपराइटर मैसर्स खान स्पोर्टस, मोहल्ला सीधी सराय, राजो वाली गली, मुरादाबाद।
…….. प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य
मा0 गोवर्धन यादव, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री पी0पी0 श्रीवास्तव
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक :-24-10-2018
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील परिवाद संख्या-09/2012 में जिला मंच, दि्वतीय मुरादाबाद द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांकित 16.10.2014 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार प्रत्यर्थी/परिवादी मैसर्स खान स्पोर्टस के नाम से स्वारोजगार के अन्तर्गत स्पोर्टस आईटम बनाकर विभिन्न ग्राहकों को उनकी आवश्यकतानुसार सप्लाई करता है। परिवादी को स्पोर्ट आईटम (गोल्डन मैडल्स) अपने ग्राहक को जम्मू में देने थे। आईटम्स 36 किलोग्राम का एक बण्डल
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बनाकर दिनांक 27.2.2011 को परिवादी ने मुरादाबाद रेलवे के पार्सल घर से जम्मूतवी के लिए बुक कराया था तथा भाड़ा अदा किया था। यह बण्डल परिवादी को जम्मू जाकर स्वयं छुड़ा कर अपनी पार्टी को देना था। परिवादी दिनांक 28.02.2011 को जब अपना माल (बण्डल) रेलवे से छुड़ाने के लिए व्यक्तिगत रूप से जम्मू पहुंचा तो जम्मू रेलवे स्टेशन पर उसे बताया गया कि उसका उक्त पार्सल अभी मुरादाबाद से जम्मूतवी नहीं पहुंचा है, दो-तीन दिन और प्रतीक्षा करने के लिए कहा गया। उसके बाद दिनांक 02.3.2011 को जब परिवादी पुन: जम्मूतवी स्टेशन पर पहुंचा तो उसे बताया गया कि उसका पार्सल नहीं आया है। अत: निराश होकर परिवादी मुरादाबाद लौट आया और मुरादाबाद में पार्सल बुकिंग आफिस से पार्सल न पहुंचने के विषय में सम्पर्क किया, किन्तु कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। परिवादी ने दिनांक 17.3.2011 को अपीलार्थी को शिकायत भेजी की उसका पार्सल मुरादाबाद से जम्मूतवी नहीं पहुंचा है। उसके बाद परिवादी को अपीलार्थी सं0-2 का एक पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें क्लेम नम्बर दिया गया था, किन्तु अपीलार्थीगण द्वारा उसका पार्सल वापस नहीं किया गया और न ही परिवादी का दावा निर्णीत किया गया, जब परिवादी की शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं की गई, तब परिवादी द्वारा अपने अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस दी गई। नोटिस की प्राप्ति के बाद अपीलार्थी सं0-2 द्वारा मूल रेलवे रसीद (पार्सल के बिल) मूल ट्रेड इन्वाइस तथा अण्डरटेकिंग की मॉग की गई। परिवादी द्वारा उक्त अभिलेख उपलब्ध कराये गये, जिसके बावजूद भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। अत: परिवाद जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
अपीलार्थीगण द्वारा जिला मंच के समक्ष प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया तथा यह आपत्ति की गई कि प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार जिला मंच को प्राप्त नहीं है। रेलवे दावा अधिकरण, 1987 की धारा-13, 15 व 28 के अनुसार परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार रेलवे दावा अधिकरण को है, अन्य किसी मंच को नहीं है।
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विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवादी का परिवाद स्वीकार करते हुए 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से जम्मू जाने-आने की मद में 2500.00 रू0, मानसिक कष्ट की मद में 2500.00 रू0 तथा कन्साइनमेंट की नॉन डिलिवरी के कारण आर्थिक लाभ से वंचित हो जाने की मद में 2500.00 रू0 इस प्रकार 7500.00 रू0 अपीलार्थीगण से परिवादी को दिलाये जाने हेतु निर्देशित किया गया तथा 2500.00 रू0 वाद व्यय के रूप में भी परिवादी को दिलाये जाने हेतु आदेशित किया गया।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर अपील योजित की गई है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री पी0पी0 श्रीवास्तव के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ। आदेश दिनांक 01.6.2017 के द्वारा प्रत्यर्थी पर नोटिस की तामील पर्याप्त मानी जा चुकी है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रश्नगत प्रकरण की सुनवाई के क्षेत्राधिकार के सम्बन्ध में रेलवे दावा अधिकरण की धारा-13 एवं धारा-15 की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया गया। रेलवे दावा अधिकरण,1987 की धारा-13 निम्नवत् है:-
13. Jurisdiction, powers and authority of Claims Tribunal
(1) The Claims Tribunal shall exercise, on and from the appointed day, all such jurisdiction, powers and authority as were exercisable immediately before that day by any civil court or a Claims Commissioner appointed under the provisions of the Railways Act,-
(a) Relating to the responsibility of the railway administrations as carriers under Chapter VII of the Railways Act in respect of claims for-
(i) Compensation for loss, destruction, damage, deterioration or non-delivery of animals or goods entrusted to a railway administration for carriage by railway;
(ii) Compensation pay able under section 82A of the Railways Act or the rules made there under; and
(b) In respect of the claims for refund of fares or part there of or for refund of any freight paid in respect of animals or goods entrusted to a railway administration to be carried by railway.
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रेलवे दावा अधिकरण,1987 की धारा-15 निम्नवत् है:-
15. Bar of jurisdiction.—On and from the appointed day, no court or other authority shall have, or be entitled to, exercise any jurisdiction, powers or authority in relation to the matters referred to in 4 [(1) and (1-A)] of section 13.
अपने तर्क के समर्थन में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा Union of India Thr. General Manager, Northern Railway Vs. Medical Systems & Services Through its Partner Mr. V.K. Monga I (2012) CPJ 380 (NC) के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित उपरोक्त निर्णय का हमने अवलोकन किया। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये इस निर्णय में समान परिस्थितियों में परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार उपभोक्ता मंच का नहीं माना गया।
रेलवे दावा अधिकरण,1987 के उपरोक्त प्राविधान के आलोक में एवं मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित उपरोक्त वर्णित निर्णय के आलोक में प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार जिला मंच को नहीं था, किन्तु जिला मंच ने इस विधिक स्थिति पर उचित विचार न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। अत: प्रश्नगत निर्णय क्षेत्राधिकार के अभाव में पारित होने के कारण अपास्त किए जाने और अपील तद्नुसार स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच, दि्वतीय मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या-09/2012 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांकित 16.10.2014 को अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपीलीय व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-2