ARUN KUMAR WISHWAKARMA filed a consumer case on 30 Dec 2020 against MUNSHI WISHWAKARMA in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/111/2013 and the judgment uploaded on 12 Jan 2021.
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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 111 सन् 2013
प्रस्तुति दिनांक 13.08.2013
निर्णय दिनांक 30.12.2020
अरूण कुमार विश्वकर्मा उम्र लगभग-52 वर्ष पुत्र श्री रामदेव विश्वकर्मा, निवासी- डॉक बंगला रोड, ठेकमा, पोस्ट- ठेकमा, तहसील- लालगंज, जिला- आजमगढ़।
.........................................................................................परिवादी।
बनाम
मुंशी विश्वकर्मा उम्र लगभग 38 वर्ष पुत्र श्री नन्दलाल विश्वकर्मा निवासी ग्राम- भैसखुर, पोस्ट- मुडहर, तहसील- लालगंज, जिला- आजमगढ़।
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि वह शिल्पकार है तथा ग्राहकों की मांग पर चारपाई, पलंग, बेड तथा भवन निर्माण में प्रयुक्त होने वाले दरवाजे, जंगले, पल्ले आदि का निर्माण करता है और उसको बेंचकर अपना व अपने परिवार का भरण-पोषण करता है। परिवादी उक्त कार्य के लिए ग्राहकों से लकड़ी प्राप्त होने पर मजदूरी पर भी करता है। विपक्षी लकड़ी का व्यवसायी है और चौखट, बाजू, पटरा, फ्रेम आदि की लकड़ियां बेचने का कार्य करता है। विपक्षी आरा मशीनों से लकड़ियां क्रय करके कारपेन्टरों की मांग एवं आवश्यकता पर मूल्य के एवज में उन्हें लकड़ियों की आपूर्ति करता है। परिवादी ने विपक्षी से 20000/- रुपया मूल्य की लकड़ी क्रय की और उसकी आपूर्ति करने की बात तय किया जिसमें पांच दरवाजे 8 बड़ा जंगला और 5 छोटा जंगला था और बैंक से मुo 30000/- रुपया निकाल कर विपक्षी को दिनांक 17.10.2012 को 20000/- रुपये दे दिया। इसलिए परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता है। परिवादी ने विपक्षी को उक्त धनराशि मुo 20000/- का भुगतान श्री सुरेश यादव पुत्र श्री भूलन यादव निवासी ग्राम- केदलीपुर, पोस्ट- ठेकमा, जिला- आजमगढ़ के समक्ष दिया था जो मौके पर मौजूद थे रुपया लेने के बाद विपक्षी अगले दिन अर्थात् 18.10.2012 को परिवादी के यहाँ लकड़िया भेज देने का आश्वासन दिया, किन्तु आज तक भेजा नहीं। परिवादी अन्त में थक-हार कर दिनांक 06.08.2013 को विपक्षी से मिला और लकड़ियों की आपूर्ति अथवा 20000/- रुपया वापस करने को कहा तो विपक्षी ने वापस करने से इन्कार कर दिया। अतः विपक्षी को दिया गया रुपया वापस दिलवाया जाए
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तथा आर्थिक व मानसिक कष्ट हेतु भी धनराशि दिलवाया जाए।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने बैंक की रसीद प्रस्तुत किया है जिसके अवलोकन से यह स्पष्ट है कि परिवादी ने बैंक से 30000/- रुपया निकाला था। उसके द्वारा सुरेश यादव द्वारा अरूण कुमार विश्वकर्मा का शपथ पत्र भी दाखिल किया है। इस पत्रावली में कागज संख्या 14ग राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उत्तर प्रदेश लखनऊ का आदेश भी संलग्न है, जिसमें उभय पक्षों को दिनांक 14.08.2017 को उपस्थित होने का निर्देश दिया गया था और विपक्षी को 15 दिन की अवधि जवाबदावा दाखिल करने हेतु दी थी और यह भी कहा गया था कि उसके बाद समय प्रदान नहीं किया जाएगा, लेकिन परिवादी ने दिनांक 29.08.2017 को जवाबदावा दाखिल किया। अतः उसके द्वारा समय से जवाबदावा प्रस्तुत कर दिया गया। इस जवाबदावा में परिवादी ने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है और अतिरिक्त कथन में यह कहा है कि सम्पूर्ण कथानक झूठ व कपट के साथ गलत तथ्यों पर आधारित है। याचिका का सम्पूर्ण कथानक असत्य है। विपक्षी एक अत्यन्त गरीब भूमिहीन व्यक्ति है। मजदूरी करके किसी प्रकार से अपना व अपने परिवार का गुजारा करता है। याची काफी सम्पन्न व पैसे वाले व्यक्ति हैं इनका ठेकमा बाजार में फर्नीचर के सामानों का बहुत बड़ा शोरूम है। जहां पर फर्नीचर का काम करने वाले कई मजदूर काम करते हैं। विपक्षी भी याची के शोरूम में मजदूरी का काम दैनिक मजदूरी पर करता था। विपक्षी की मजदूरी समय पर नहीं दी जाती थी जिस कारण विपक्षी का 12000/- रुपया याची के पास बकाया हो गया था। जिसके बाबत विपक्षी कई बार याची से तगादा करता रहा परन्तु याची द्वारा न तो विपक्षी की मजदूरी का पैसा ही दिया गया और न ही हिसाब किया गया। अपनी बकाया मजदूरी याची द्वारा चुकता नहीं किए जाने तथा समय से मजदूरी न दिए जाने से क्षुब्ध होकर विपक्षी ने याची के यहां काम करने से इन्कार कर दिया। विपक्षी मजदूरी का काम करता है न तो विपक्षी लकड़ी का कोई कारोबार करता है और न ही किसी प्रकार से लकड़ी की सप्लाई इत्यादि करता है। अतः परिवादी कोई भी अनुतोष पाने का हकदार नहीं है। अतः परिवाद खारिज किया जाए।
विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
उभय पक्षों को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी द्वारा कागज संख्या 12 जो बैंक की रसीद प्रस्तुत की गयी है उसके अवलोकन से यह स्पष्ट है कि परिवादी ने बैंक से 30000/- रुपया आहरित किया था,
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जिसमें 20000/- रुपए वह विपक्षी को दिया, लेकिन विपक्षी ने तयशुदा सामान को याची को नहीं दिया गया। जिसके सामने याची ने विपक्षी को मुo 20000/- रुपया अदा किया था उनका भी शपथ पत्र दाखिल है। अतः हमारे विचार से याची अपने याचना पत्र के कथनों को सिद्ध करने में सफल रहा है। अतः याचना स्वीकार की जाती है।
आदेश
परिवाद-पत्र स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी से लिया गया रुपया 20,000/- (रुपया बीस हजार मात्र) परिवादी को अन्दर 30 दिन अदा करें, जिस पर परिवाद पत्र प्रस्तुत करने व अन्तिम भुगतान तक 09% वार्षिक ब्याज देय होगा। विपक्षी को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को मुo 2,000/- रुपया (रुपया दो हजार मात्र) आर्थिक व मानसिक कष्ट के लिए अदा करे।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 30.12.2020
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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