Uttar Pradesh

StateCommission

R/2004/112

A C C Cement Co - Complainant(s)

Versus

Munnu Bajpai - Opp.Party(s)

Arun Tandon

03 May 2023

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2004/2096
( Date of Filing : 01 Nov 2004 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Dhunnar Gupta
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Munnu Bajpai
a
...........Respondent(s)
Revision Petition No. R/2004/112
( Date of Filing : 16 Nov 2004 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. A C C Cement Co
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Munnu Bajpai
a
...........Respondent(s)
First Appeal No. A/2004/2163
( Date of Filing : 04 May 2004 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. ACC Cement
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Munnu Bajpai
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vikas Saxena PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 03 May 2023
Final Order / Judgement

     (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

अपील सं0 :-2096/2004

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, उन्‍नाव द्वारा परिवाद सं0-141/2001 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 25/08/2004 के विरूद्ध)

Dhunnar Gupta aged about 34 years son of Shri Mangla Prasad, Proprietor M/S Dhunnar Traders Kalu Khera Post Kanchanpur Tehsil Purwa District Unnao

                                                      ………….Appellant  

Versus  

  1. Shri Munnu Bajpai alias Prem Shanker Bajpai son of Surya Nath Bajpai resident of village jabraila Post Muktemau Tehsil Purwa District Unnao
  2. Managing Director A.C.C. Cement Limited Cement House 121 M Karvay Road Mumbai
    • Respondents

तथा

अपील सं0 –2163/2004

A.C.C. Cement Co. Ltd, Cement House, 121-M. Carve Road, Bombay, Though its Mng. Director

  1.                                                                   Appellant   

Versus

  1. Munnu Bajpai Alias Prem Shankar Bajpai, S/O Sri Suryanath Bajpai, Resident of Vill. Jabraila, Post Office Sohramau The Purwa, Distt. Unnao
  2. Dhunnar Gupta, Proprietor Dhunnar Traders, Kalukhera, P.O. Kanchanpur, The. Purwa, District Unnao
  3.                                                                      Respondents   

 

 

 

  •  

 

  • सं0 –112/2004
    • जिला उपभोक्‍ता आयोग उन्‍नाव द्वारा विविध वाद सं0 6/2004 में पारित एकपक्षीय आदेश दिनांक 07.10.2004 के विरूद्ध)

A.C.C. Cement Co. Ltd, Cement House, 121-M. Carve Road, Bombay, Though its Local Office 37/17 West Court Building P.B. 167, M.G. Marg, Kanpur, through its Authorised Representative

  1.                                                                   Revisionist

Versus

 

  1. Munnu Bajpai Alias Prem Shankar Bajpai, S/O Sri Suryanath Bajpai, Resident of Vill. Jabraila, Post Office Sohramau The Purwa, Distt. Unnao
  2. Dhunnar Gupta, Proprietor Dhunnar Traders, Kalukhera, P.O. Kanchanpur, The. Purwa, District Unnao
  3.                                   Opp. Parties      

समक्ष

  1. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य
  2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य

उपस्थिति:

अपीलार्थी  धुन्‍नर गुप्‍ता की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-श्री सी0के0   सेठ

प्रत्‍यर्थी सं0 2/ए0सी0सी0 सीमेंट की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता:-श्री अरूण

                                                                                                              टंडन

 दिनांक:-16.05.2023

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.      यह अपीलें जिला उपभोक्‍ता आयोग, उन्‍नाव द्वारा परिवाद सं0 141/2001 मुन्‍नू बाजपेयी उर्फ प्रेम शंकर बाजपेई प्रति धुन्‍नर गुप्‍ता व अन्‍य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 25.08.2004 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी है एवं पुनरीक्षण सं0 112/2004 विविध वाद सं0 6/2004 एस0सी0सी0 सीमेंट प्रति मुन्‍नू बाजपेई व अन्‍य के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी है। उपरोक्‍त अपीलें एवं पुनरीक्षण एक ही तथ्‍य से संबंधित हैं इसलिए तीनों का निस्‍तारण एक ही निर्णय से निर्णीत किया जा रहा है। 
  2.           संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने व्‍यापारी विपक्षी सं0 1 से विपक्षी सं0 2 द्वारा निर्मित ए0सी0सी0 सीमेंट सितम्‍बर 2000 में विभिन्‍न तिथ्यिों में 128 रू0 प्रति बोरी की दर से 162 बोरी कुल कीमत 20,736/-रू0 अदा कर क्रय की। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने उपरोक्‍त सीमेंट के साथ लोहा और मोरंग भी क्रय किया एवं प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने उपरोक्‍त सीमेंट से 42X34 फुट के प्‍लाट की 5 फीट ऊंची फांउडेशन, फांउडेशन पर दोहरा लिन्‍टर एवं उपरोक्‍त प्‍लाट के साढे 900 वर्ग फीट क्षेत्र में कमरों, जीना, लैट्रिन एवं बाथरूम का निर्माण कराया । प्‍लाट का शेष भाग खाली पड़ा है। उपरोक्‍त निर्माण पर प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी की कुल लागत अंकन 1,85,000/- आयी। माह मार्च 2001 से प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने उपरोक्‍त भवन में रहना प्रारंभ कर दिया। दिनांक 26/27 जून 2001 की रात में लगभग 4 बजे अचानक दो कमरे, लेट्रिन, जीना एवं बाथरूम गिर गये और शेष भाग भी क्षतिग्रस्‍त हो गया। संयोग वश उस रात ध्‍वस्‍त कमरे में कोई भी लेटा नहीं था। परिवार का कोई सदस्‍य हताहत नहीं हुआ। क्षतिग्रस्‍त निर्माण की लागत 60,000/-रूपया एवं अवशेष क्षतिग्रस्‍त मकान में रहने लायक बनाने के लिए की जाने वाली मरम्‍मत लगभग 30,000/-रूपया खर्च होने की सम्‍भावना है। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने जानकार लोगों से जब बताया कि एक अभियंता ने मसाला एवं सीमेंट की जांच करके यह बताया कि सीमेंट में असली तत्‍व मात्र 20 प्रतिशत थे, शेष नकली सीमेंट थी। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने विपक्षी सं0 1 से नकली सीमेंट होने की शिकायत की परंतु विपक्षी सं0 1 ने कोई समुचित उत्‍त्‍र नहीं दिया अत: परिवाद पत्र की धारा 8 में दिये विवरण के अनुसार क्षतिपूर्ति प्राप्‍त करने हेतु यह परिवाद योजित किया है।
  3.            अपील सं0 2096/2004 में अपीलार्थी/विपक्षी सं0 1 ने प्रतिवाद पत्र दाखिल किया जिसमें कथन किया गया है कि सितम्‍बर 2000 में केवल 105 बोरी ए0सी0सी0 सीमेंट प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी उपभोक्‍ता द्वारा क्रय किया जाना स्‍वीकार किया गया है। यह भी स्‍वीकार किया गया है कि प्रश्‍नगत सीमेंट की कीमत 128 रूपये प्रति बोरी था। सीमेंट के साथ-साथ लोहा और मोरंग भी प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा खरीदा जाना स्‍वीकार किया है। इस बात से विपक्षी सं0 1 ने अ‍नभिज्ञता जताई कि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा 42X34 फुट के प्‍लाट की फाउंडेशन बनायी गयी और जीना, कमरे व लेट्रिन का निर्माण किया गया। प्रश्‍नगत भवन क्षतिग्रस्‍त होने की बात भी विपक्षी सं0 1 ने इंकार किया। विपक्षी सं0 1 के अनुसार परिवाद ग्रस्‍त सीमेंट में किसी प्रकार की कोई मिलावट या कमी नहीं थी। यह भी कहा गया कि विपक्षी सं0 1 को प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा थाने में कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाने की जानकारी नहीं है। विपक्षी उत्‍तरदाता से भी प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने कभी कोई शिकायत नहीं की है। यह भी कहा गया कि यदि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा कथित निर्माण क्षतिग्रस्‍त हुआ हो तो उसका सम्‍पूर्ण उत्‍तरदायित्‍व  प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी पर है। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने तालाब पटवा कर निर्माण करवाया है। ए0सी0सी0 सीमेंट सील बंद बोरियां प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने स्‍वयं देखने व संतुष्‍ट होने के पश्‍चात विपक्षी से क्रय की गयी थी। विपक्षी द्वारा प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी की सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। अत: परिवाद खारिज होने योग्‍य  है।
  4.           अपील सं0 2163/2004 में अपीलार्थी/विपक्षी सं0 2 द्वारा कथन किया गया है कि वह एक लिमिटेड कम्‍पनी है जो ए0सी0सी0 सीमेंट के नाम से सुविख्‍यात फैक्ट्रियों में उच्‍च श्रेणी की सीमेंट निर्मित करती है परिवाद पत्र में यह भी स्‍पष्‍ट नहीं है कि निर्माण में या ध्‍वस्‍त मलबे में ए0सी0सी0 सीमेंट का प्रयोग किया गया है। विपक्षी सं0 1 ए0सी0सी0 सीमेंट का अधिकृत डीलर नहीं है। उन्‍नाव में ए0सी0सी0 सीमेंट के अधिकृत डीलर मै0 सुरेश इण्‍डस्‍ट्रीज ही है। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी का यह कथन गलत है कि दिनांक 26/27-06.2001 को प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी का निार्मण ए0सी0सी0 सीमेंट की वजह से क्षतिग्रस्‍त हो गया। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी का कथित निर्माण क्षतिग्रस्‍त होने का सम्‍पूर्ण उत्‍तरदायित्‍व प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी पर है क्‍योंकि उक्‍त  निर्माण पोली मिट्टी में करवाया गया तथा अन्‍य प्रकार की सीमेंट एवं कमजोर बिल्डिंग मटेरियल का प्रयोग कर निर्माण किया गया और उक्‍त निर्माण में बिना किसी अनुपात का अनुपालन किये हुए लापरवाही, दोषपूर्ण एवं असावधानी पूर्वक निर्माण कराया गया है। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी विपक्षी सं0 2 से किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है। अत: परिवाद खारिज होने योग्‍य है।
  5.           उभय पक्ष को विस्‍तार से सुनने के उपरान्‍त जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवाद स्‍वीकार कर निम्‍न आदेश पारित किया है:-

          ‘’परिवाद इस प्रकार स्‍वीकार किया जाता है कि विपक्षीगण आज से दो माह में प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी को अंकन 1,18,864/-रू0 अदा करे अन्‍यथा विपक्षीगण उक्‍त धनरशि पर परिवाद योजन करने के दिनांक 02.07.2001 से भुगतान की तिथि तक 18 प्रतिशत प्रतिवर्ष ब्‍याज भी अदा करने का उत्‍तरदायी होगा। विपक्षीगण प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी को अंकन 1,000/-रू0 वाद व्‍यय के रूप में भी अदा करें।‘’’

  1.           उपरोक्‍त निर्णय/आदेश से क्षुब्‍ध होकर प्रस्‍तुत अपीलें योजित की गयी है।   
  2.           पुनरीक्षण सं0 112/2004 में परिवाद से संबंधित विविध वाद सं0 6 सन 2007 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 07.10.2004 के विरूद्ध योजित किया गया है, जिसके माध्‍यम से विद्धान जिला उपभोक्‍ता  आयोग ने मूल वाद सं0 141 सन 2001 मुन्‍नू बाजपेई बनाम धुन्‍नर गुप्‍ता  व अन्‍य में पारित एकपक्षीय आदेश दिनांक 25.08.2004 को अपास्‍त किये जाने का प्रार्थना पत्र निरस्‍त कर दिया गया। निगरानी में मुख्‍य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि परिवाद प्रस्‍तुत करने के उपरान्‍त निगरानीकर्ता द्वारा परिवाद को कन्‍टेस्‍ट किया गया किन्‍तु वादोत्‍तर प्रस्‍तुत करने के उपरान्‍त  अपीलकर्ता का प्रतिनिधि केस में प्रतिभाग नहीं कर सका क्‍योंकि उसका स्‍थानांतरण हो गया था एवं निगरानीकर्ता की ओर से नियुक्‍त अधिवक्‍ता द्वारा भी प्रतिनिधित्‍व करना छोड़ दिया गया था, जिस कारण कम्‍पनी के विरूद्ध एकपक्षीय आदेश पारित कर दिया गया किन्‍तु जैसे ही कम्‍पनी को एकपक्षीय आदेश की जानकारी हुइ उसको अपास्‍त किये जाने हेतु कम्‍पनी की ओर से प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत किया गया, किन्‍तु जिला उपभोक्‍ता  आयोग उन्‍नाव ने उक्‍त प्रार्थना पत्र को अस्‍वीकार करके आवेदन निरस्‍त कर दिया।
  3.           प्रश्‍नगत आदेश आधारहीन है और बिना कारणों के पारित किया गया है जो विधिक रूप से उचित नहीं है। निगरानी कर्ता की ओर से बिना समय व्‍यतीत किये हुए तुरंत ही एकपक्षीय आदेश को निरस्‍त किये जाने का प्रार्थना पत्र दिया था, जिस कारण निगरानीकर्ता को पर्याप्‍त अवसर अपना पक्ष प्रस्‍तुत करने का नहीं मिल सका। इन आधारों पर यह निगरानी एकपक्षीय आदेश दिनांक 07.10.2004 को निरस्‍त किये जाने एवं इस संबंध में निगरानीकर्ता का आवेदन आदेश दिनांक 07.10.2004 के माध्‍यम से अपास्‍त किया गया है। उक्‍त आदेश को अपास्‍त किये जाने हेतु प्रस्‍तुत किया गया है।    
  4.                         अपील सं0 2096/2004 मे अपीलार्थी धुन्‍नर गुप्‍ता जो सीमेंट का डीलर है उसके द्वारा यह कथन किया गया है कि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने जो सीमेंट खरीदना बताया है उनमें से 162 बोरी में से 105 बोरी ही उससे खरीदी गयी थी, जिससे स्‍पष्‍ट  होता है कि अन्‍य सीमेंट प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने अन्‍य किसी डीलर से खरीदी है।  विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम द्वारा निर्णय के प्रस्‍तर 5 पर यह निष्‍कर्ष दिया गया है कि स्‍वयं प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत किये गये साक्ष्‍य के आधार पर 162 बोरी सीमेंट मे से 105 बोरी सीमेंट विपक्षी सं0 1 अपीलार्थी धुन्‍नर गुप्‍ता से क्रय किया जाना स्‍पष्‍ट होता है, निश्‍चय ही निर्माण में अन्‍य स्‍थान से लिये गये सीमेंट प्रयुक्‍त होगी।
  5.           परिवाद के स्‍तर पर प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा केन्‍द्रीय भवन अनुसंधान संस्‍थान, रूड़की की रिपोर्ट दिनांकित 28.01.2003 पर आधारित किया गया है, जिसमें प्रयुक्‍त सीमेंट की शक्ति को आंका गया है, जिसमें सैम्‍पल 1 तथा सैम्‍पल 2 में सीमेंट की शक्ति को कम पाया गया। इस संबंध में अपीलार्थी धुन्‍नर गुप्‍ता का तर्क यह आया कि उसके द्वारा क्रय की गयी 105 बोरी सीमेंट के अतिरिक्‍त प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी द्वारा अन्‍य स्‍थान से सीमेंट प्राप्‍त करना साबित होता है। अत: सीमेंट का आंकलन जो केन्‍द्रीय भवन अनुसंधान संस्‍थान द्वारा किया गया है, उससे यह निष्‍कर्ष नहीं निकलता कि अपीलार्थी धुन्‍नर गुप्‍ता द्वारा बेची गयी सीमेंट का ही आंकलन है एवं इससे यह तथ्‍य भी साबित नहीं होता है कि विक्रेता द्वारा बेची गयी सीमेंट दोषपूर्ण थी क्‍योंकि इसमें अन्‍य सीमेंट भी निर्माण में मिली हुई है।
  6.           जहां तक असमय निर्माण के गिरने का प्रश्‍न है इसके संबंध में भी अपीलकर्ता द्वारा तर्क प्रस्‍तुत किया गया है कि यह निर्माण दलदली अर्थात तालाब की नम भूमि पर बनायी गयी है, जिससे निर्माण गिरने का जोखिम उत्‍पन्‍न होता है।
  7.           अपीलकर्ता की ओर मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय होटल नन्‍दादीप प्रति रामचन्‍द्र बाबू राव कोकिल व अन्‍य प्रकाशित II (1994) CPJ page 34 (N.C.) प्रस्‍तुत किया गया। निर्णय के प्रस्‍तर 9 में यह दिया गया है कि उपरोक्‍त मामले में भी सीमेंट के दोषपूर्ण होने का आक्षेप लगाया गया था। सीमेंट विक्रेता द्वारा यह आधार प्रस्‍तुत किये गये, जिनको मा0 राष्‍ट्रीय आयोग ने यह स्‍वीकार किया है, जिनमें से निम्‍नलिखित आधार प्रस्‍तुत मामले में भी लागू होते हैं:-
  1. निर्माण गिरने के लिए स्‍लैब की शटरिंग की गुणवत्‍ता भी महत्‍वपूर्ण है। शटरिंग दोषपूर्ण होने पर भी भवन निर्माण गिरने का जोखिम रहता है।
  2. सीमेंट में मोरंग, बालू मिलायी जाती हैं जिसकी गुणवत्‍ता पर भी भवन की मजबूत व स्‍थायित्‍व निर्भर करता है।
  3. भवन निर्माण होने में बनाये गये मलबे का नमूना प्रेषित किया जाता है। प्रस्‍तुत मामले में यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि किस स्‍थान का मलबा विश्‍लेषण हेतु प्रेषित किया गया। जहां पर विक्रेता द्वारा दी गयी सीमेंट ही प्रयुक्‍त हुई थी अथवा नहीं यह स्‍पष्‍ट नहीं है।
  1.           अपीलकर्ता की ओर से रिपोर्ट के संबंध में यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया है कि विश्‍लेषण हेतु नमूना अपीलकर्ता की उपस्थिति में नहीं लिया गया है, जिस सीमेंट की बोरी से नमूना भरा गया। यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि यह उसी बोरी का था, जो अपीलकर्ता से क्रय किया गया था। अत: इन तथ्‍यों के अभाव में उक्‍त रिपोर्ट को साक्ष्‍य में ग्रहण नही किया जा सकता है।
  2.           अपीलकर्ता के उपरोक्‍त तर्क में भी बल प्रतीत होता है। समस्‍त  परिस्थितियों को देखते हुए केन्‍द्रीय भवन अनुसंधान संस्‍थान के द्वारा की गयी रिपोर्ट के आधार पर अपीलकर्ता विक्रेता द्वारा प्रदान की गयी सीमेंट को दोषपूर्ण नहीं माना जा सकता है।
  3.           जहां तक अपीलकर्ता ए0सी0सी0 सीमेंट लिमिटेड का प्रश्‍न है, उसके द्वारा यह तर्क दिया गया है कि उक्‍त धुन्‍नर गुप्‍ता  ए0सी0सी0 सीमेंट का डीलर जिला उन्‍नाव में नहीं है, उसका डीलर भिन्‍न है। अत: अनाधिकृत स्‍थान से यदि सीमेंट प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादी ने क्रय की है तो उस सीमेंट के लिए निर्माणकर्ता ए0सी0सी0 सीमेंट लिमिटेड उत्‍तरदायित्‍व नहीं रखती है। अपीलकर्ता ए0सी0सी0 सीमेंट द्वारा यह तर्क भी चलने योग्‍य है कि एक ओर विक्रेता धुन्‍नर गुप्‍ता द्वारा बेची गयी सीमेंट में ही दोष प्रमाणित साक्ष्‍य से साबित नहीं है। दूसरी ओर यह भी साबित नहीं होता है कि यह अधिकृत रूप से ए0सी0सी0 सीमेंट थी, जिसके आधार पर निर्माणकर्ता को निर्माण संबंधी दोष हेतु दोषी ठहराया जा सके और क्षतिपूर्ति के लिए उत्‍तरदायित्‍व माना जा सके। उपरोक्‍त आधार पर अपील सं0 2096/2004 एवं अपील सं0 2163/2004 स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है। प्रश्‍नगत निर्णय अपास्‍त किये जाने योग्‍य है।
  4.           निगरानी सं0 112/2004 परिवाद के दौरान निगरानीकर्ता के विरूद्ध एकपक्षीय आदेश को निरस्‍त किये जाने के संबंध में है, किन्‍तु यह निर्णय उपरोक्‍त अपीलों के दौरान निस्‍तारित किया गया है। अत: एकपक्षीय आदेश का कोई महत्‍व नहीं रह जाता है। अत: निगरानी निष्‍प्रयोज्‍य हो जाने के आधार पर निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।     
  5.  

अपील सं0 2096/2004 एवं अपील सं0 2163/2004 स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता आयोग, उन्‍नाव द्वारा परिवाद सं0 141/2001 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 25.08.2004 अपास्‍त किया जाता है।

उपरोक्‍त अपील से संबधित निगरानी सं0 112/2004 निष्‍प्रयोज्‍य होने के आधार पर निरस्‍त की जाती है।

इस निर्णय व आदेश की मूल प्रति अपील सं0-2096/2004 में रखी जाये एवं इसकी प्रमाणित प्रतिलिपि सम्‍बंधित अपील सं0-2163/2004 में एवं निगरानी सं0 112/2004 में भी रखी जाये।

प्रस्‍तुत अपीलों में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्‍त जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।

               आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

        (सुधा उपाध्‍याय)                         (विकास सक्‍सेना)

            सदस्‍य                                 सदस्‍य

 

         संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-3  

 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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