जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
ओम प्रकाष उदरीवाल पुत्र श्री रामदेव उदरीवाल, जाति- रेगर, उम्र-45 वर्ष, निवासी-ग्राम व पोस्ट - श्रीनगर, जिला-अजमेर ।
- प्रार्थी
ब्नाम
1. प्रबन्धक/प्रोपराईटर, मुदगल मोटर्स, जयपुर रोड, परबतपुरा बाईपास, अजमेर
2. टाटा मोटर्स लिमिटेड जरिए प्रबन्धक, 5 वीं मंजिल, प्रेस्टीज टॉवर, आम्रपाली सर्किल, वैषालीनगर, जयपुर ।
- अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 392/2012
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री प्रीतम सिंह सोनी, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री राजेन्द्र षर्मा,अधिवक्ता अप्रार्थी सं.1
3.श्री अनिल कुमार ,अधिवक्ता अप्रार्थी सं.2
मंच द्वारा :ः- निर्णय :ः- दिनांकः- 13.05.2016
1. प्रार्थी ( जो इस परिवाद में आगे चलकर उपभोक्ता कहलाएगा) ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम , 1986 की धारा 12 के अन्तर्गत अप्रार्थी संख्या 1 लगायत 2 के विरूद्व संक्षेप में इस आषय का पेष किया है कि उसने अप्रार्थी संख्या 2 के अधिकृत विक्रेता अप्रार्थी संख्या 1 से एक वाहन टाटा वेन्जर ईएक्स वर्ष 2012 का क्रय करने हेतु रू. 20,000/- नगद व ष्षेष राषि रू. 4,83,182/- जरिए डीडी दिनांक 13.1.2012 के अदा की । अप्रार्थी संख्या 1 ने उक्त वाहन की डिलीवरी 10-15 दिन में कर दिए जाने का आष्वासन दिया था किन्तु अप्रार्थी संख्या 1 ने उक्त वाहन दिनांक 2.2.2012 को डिलीवर किया । वाहन डिलीवरी के समय उसका फ्रण्ट ग्लास टूटा हुआ होने की तत्समय ही षिकायत किए जाने पर दुरूस्त करके दे दिया । इसी प्रकार वाहन की आरसी व बीमा जब उसे उपलब्ध कराए गए तो आरसी को देखने से पता चला कि वाहन एक वर्ष पुराना है । जिसकी षिकायत अप्रार्थी संख्या - 1 से करने पर उसने कोई ध्यान नहीं दिया । दिनांक 10.4.2012 को गियर में खराबी आने पर उसे दुरूस्त करवाया । किन्तु दुरूस्ती के समय अप्रार्थी संख्या - 1 के कर्मचारियों ने वाहन का हैण्डब्रेक तोड़ दिया, जिसकी भी षिकायत की गई तो उसके साथ अभद्र व्यवहार किया गया ।
उपभोक्ता का आगे कथन है कि दिनांक 26.4.2012 को वाहन के चलते चलते गियर बाक्स में खराबी उत्पन्न हो गई और खराबी को दुरूस्त करने हेतु वाहन को अप्रार्थी संख्या 1 को सुपुर्द किया । जिसे उसे कुषल कारीगरों से दुरूस्त नहीं करवा कर अकुषल श्रमिकों से दुरूस्त करवा कर दिया गया जो बार बार खराब हो रहा है । इसकी षिकायत अप्रार्थी संख्या 2 के टोल फ्री नम्बर पर भी की गई किन्तु कोई सुनवाई नहीं की । उपभोक्ता का कथन है कि उसे 2012 के मॉडल के बजहाय 2011 का मॉडल एवं निमार्णीय दोषयुक्त वाहन विक्रय कर अप्रार्थीगण ने सेवादोष किया है । परिवाद प्रस्तुत करते हुए उपभोक्ता ने वर्ष 2011 के मॉडल के वाहन को बदल कर वर्ष 2012 के मॉडल का नया वाहन देने , मानसिक, षारीरिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में उपभोक्ता ने स्वयं का षपथपत्र पेष किया ।
2. अप्रार्थी संख्या 1 ने जवाब प्रस्तुत करते हुए दर्षाया है कि उपभोक्ता को उत्तरदाता अप्रार्थी ने वर्ष 2011 व 2012 के वाहन उपलब्ध कराने का प्रस्ताव दिया था। किन्तु उपभोक्ता ने वर्ष 2011 के उत्पादित वाहन पर रू. 25,000/- की अंतिरिक्त छूट प्राप्त करते हुए प्रष्नगत वाहन क्रय किया और इस तथ्य को उल्लेख बिल, बीमा व प्राप्ति रसीद में किया गया हैं । दिनांक 1.3.2012 को उपभोक्ता वाहन 1498 कि.मी. वाहन चलाने के बाद फ्रण्ट ग्लास बदलने की षिकायत लेकर आया जिसकी निवारण कर दिया गया । इसी प्रकार दिनांक 10.4.2012 को वाहन के गियर, दिनांक 26.4.2012 को वाहन के गियर बाक्स व हैण्ड ब्रेक के केबिल को दुरूस्त किया गया ।
उत्तरदाता अप्रार्थी का कथन है कि उपभोक्ता ने उसके विरूद्व दिनांक 3.12.2012 को अन्तर्गत धारा 420,384, 406 भारतीय दण्ड सहिंता के अन्तर्गत पुलिस थाना आदर्ष नगर, अजमेर में प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 207/12 दर्ज करवाई । जिसमें बाद अनुसंधान पुलिस ने संबंधित न्यायालय में एफ.आर प्रस्तुत कर दी थी। वाहन में कोई भी निर्माणीय दोष नहीं है । उनके स्तर पर कोई सेवा में कमी नहीं की गई । अपने अतिरिक्त कथनों में भी इन्हीं प्रतिवादों को दोहराते हुए अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना करते हुए परिवाद के समर्थन में श्री रमाकान्त मुदगल का षपथपत्र पेष किया है
3. अप्रार्थी संख्या 2 ने जवाब प्रस्तुत कर उपभोक्ता द्वारा प्रष्नगत वाहन क्रय किए जाने के तथ्य को स्वीकार करते हुए दर्षाया है कि वाहन की पूर्ण तकनीकी जांच कर विक्रय हेतु बाजार में उपलब्ध कराया जाता है । उपभोक्ता द्वारा क्रय किए गए प्रष्नगत वाहन का दिनांक 1.3.2012 को 1498 कि.मी. पर एक्सीडेंट हो गया था ओर उपभोक्ता द्वारा एक्सीडेण्टल वाहन जिसका फ्रण्ट ग्लास व यूटिलिटी बॉक्स टूटा हुआ था, लेकर अप्रार्थी संख्या 1 के यहां आया था । जिसे इन्ष्योरेंस क्लेम में रिप्लेस कर वाहन को पूर्ण रूप से सही कर उपभोक्ता की सन्तुष्टी पर उसे दे दिया गया था । वाहन क्रय करते समय उपभोक्ता को एक सीमित वारण्टी दी थी । यह भी कथन किया है कि वाहन में त्रुटि की विषेषज्ञ से जांच करवा कर प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया है । उपभोक्ता द्वारा वाहन स्वयं न चला कर अपने ड्राईवर से वाहन चलवाता है । अतः वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है । उसने वाहन स्वयं के प्रयोग में न लेकर इसका वार्णिज्यिक प्रयोजन हेतु उपयोग किया है । फलतः वह उपभोक्ता नहीं हैं ।
उत्तरदाता का कथन है कि उपभोक्ता दिनांक 26.4.2012 को ब्रेक इनसफिसियन्ट की षिकायत लेकर आया जिसे अप्रार्थी संख्या 1 के कुषल एवं एक्सपर्ट मैकेनिकों ने वाहन का ब्रेक पेडल व ब्रेक सेट कर उपभोक्ता की सन्तुष्टी पर वाहन उसे दिया गया किन्तु उपभोक्ता ने उक्त दिनांक को गीयर संबंधी कोई षिकायत दर्ज नहीं कराई थी । उपभोक्ता जब भी वाहन अप्रार्थी संख्या 1 के पास लेकर आया उसकी सन्तुष्टी के आधार पर वाहन सही किया गया । वाहन उपभोक्ता द्वारा अच्छी तरह जांच परख कर व वाहन की परफोरमेन्स से पूर्णतया सन्तुष्ट होकर ही वाहन क्रय किया था जिसमें कोई खराबी नही ंथी। अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त करने की प्रार्थना करते हुए जवाब परिवाद के समर्थन में षालिनी सिन्हा, डिवीजनल मैनेजर(लॉ) ने अपना षपथपत्र पेष किया है ।
4. उपभोक्ता के विद्वान अधिवक्ता ने प्रमुख रूप से तर्क प्रस्तुत किया है कि वर्ष 2012 के मॉडल की मांग के अनुरूप वाहन की सप्लाई नहीं की गई अपितु धोखाधड़ी करते हुए वर्ष 2011 का वाहन उपलब्ध करवाया गया । वाहन में बार बार खराबी आती रही । उसे पुराना एक्सीडेण्टषुदा यान्त्रिक त्रुटियुक्त वाहन विक्रय किया गया । इस प्रकार अप्रार्थीगण के स्तर पर सेवा में कमी रही, जिसके लिए अप्रार्थीगण पूर्णरूपेण जिम्मेदार है ।
5. अप्रार्थीगण की ओर से खण्डन में तर्क प्रस्तुत किया गया कि उपभोक्ता द्वारा सोच समझ कर वर्ष 2011 का मॉडल क्रय किया गया है । वाहन में कोई यान्त्रिक खराबी नहीं थी । स्वयं उपभोक्ता की वजह से वाहन में समय समय पर खराबी आई, जिसे उपभोक्ता की सन्तुष्टी सीमा तक सही किया गया । परिवाद किसी भी सूरत में स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है व उनकी ओर से किसी प्रकार की कोई कमी अथवा दोषपूर्ण सेवा का परिचय नहीं दिया गया है । परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने का निवेदन किया ।
6. हमने उभय पक्ष द्वारा दिए गए तर्को पर पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों के संदर्भ में मनन किया व बिन्दुवार विवेचन निम्नानुसार है ।
7. उपभोक्ता द्वारा क्रय किए गए वाहन के मॉडल के संबंध में सम्पूर्ण पत्रावली में ऐसा कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है जिससे यह सिद्व होता हो कि उपभोक्ता द्वारा वर्ष 2011 के मॉडल की मांग की गई हो । उपभोक्ता ने अप्रार्थी की मांग के अनुरूप प्रष्नगत वाहन की क्रयषुदा कीमत बाबत् पावती रसीदों में भी ऐसा कोई विरोधस्वरूप उल्लेख नहीं किया है, कि उसने 2011 के मॉडल की मांग की एवं इसके अनुरूप वाहन की बिक्री नही ंकी गई है । जो टैक्स इन्वाईस की उपभोक्ता को प्रति दी गई है , इसमें भी समस्त विवरण का उल्लेख है। यह प्रति वह है जो वक्त वाहन डिलीवरी क्रयकर्ता को सर्वप्रथम दी जाती है । इसमें भी उपभोक्ता ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवाई है कि वाहन वर्ष 2011 मॉडल का नहीं हैं । खरीद के समय जो वाहन की बीमा पॉलिसी जारी हुई है और जो उपभोक्ता को मिली है, में भी मॉडल 2011 का ही उल्लेख है । वाहन की आर.सी.में भी मॉडल वर्ष 2011 का ही उल्लेख है । सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात वाहन की प्राप्ति रसीद दिनांक 02.02.2012 है जिसमें नीचे बीच में विषिष्ट तौर पर ’’ उत्पादन वर्ष 2011 ’’ का उल्लेख किया है तथा इस रसीद की समस्त षर्तो को पढ, सुन व समझ कर क्रयकर्ता उपभोक्ता ने वाहन प्राप्त कर प्राप्तिस्वरूप अपने हस्ताक्षर किए हैं । यदि उसे वर्ष 2012 का मॉडल ही लेना होता तो वह इसकी तत्समय ही डिलीवरी नहीं लेता । सामान्यतया वाहन खरीदते समय क्रयकर्ता का प्रमुख रूप से ध्यान वाहन के रंग व उसके मॉडल पर जाता है । इन्ही विषिष्टताओं को ध्यान में रखते हुए वह इच्छित वाहन क्रय करता है । माल की खरीद फरोख्त के समय माल विक्रय अधिनियम के तहत ’’ क्रेता सावधान रहे ’’ ’’ब्ंअमंज मउचजवत ’’ का सिद्वान्त भी लागू होता है जिसके तहत क्रेता को माल खरीदते समय सभी सावधानियां बरतते हुए वस्तुओं का खरीदना होता है जिसके लिए उसकी स्वयं की जिम्मेदारी निहित है ।
8. इस प्रकार उपरोक्त विवेचन के प्रकाष में उपभोक्ता का यह अभिवाक है कि उपभोक्ता ने मॉडल वर्ष 2011 का मांगा था व अप्रार्थी ने मॉण्डल वर्ष 2012 का दे दिया , स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है ।
9. प्रार्थी की ओर से अगला तर्क प्रस्तुत किया गया है कि वाहन पूर्व में दिनांक 14.7.2011 को दुर्घटनाग्रस्त हुआ था तथा क्रय किए जाने के बाद समय समय पर यान्त्रिक खराबी के कारण अप्रार्थी द्वारा त्रुटिपूर्ण पुराना वाहन विक्रय किया गया है व ऐसा कृत्य सेवा में कमी का परिचायक है ।
10. अप्रार्थी की ओर से इन तर्को का खण्डन किया गया है व वाहन का लम्बी दूरी तक चलने व स्वयं उपभोक्ता के कारण समय समय पर वाहन में आई खराबियों को उनके द्वारा दुरूस्त किए जाने से यह नहीं माना जा सकता है कि वाहन पूर्व में दुर्घटनाग्रस्त व यान्त्रिक खराबी का क्रय किया गया हो ।
11. हालांकि इस मंच द्वारा आदेष दिनांक 8.4.02015 के तहत अप्रार्थी के उैमआवेदन पत्र को निरस्त किया गया है जिसके तहत उसके द्वारा दुर्घटना की तिथि दिनांक 14.7.2011 को सहवन से लिखना बताया गया था । किन्तु पक्षकारों के अभिवचनों से यह प्रकट होता है कि वास्तव में उक्त तिथि 1.3.2012 रही थी । बहरहाल इस बिन्दु को उक्त आदेष पर किसी प्रकार का कोई प्रष्नचिन्ह नहीं लगाते हुए पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों से यह प्रकट होता है कि उपभोक्ता ने वाहन को समय समय पर ठीक करवाने के लिए अप्रार्थी से सम्पर्क किया व वर्कषाप में उक्त वाहन को दुरूस्त करवाया । पत्रावली में उपलब्ध अप्रार्थी के वे सन्तुष्टी नोट क्रमषः दिनांक 1.3.2012, 11.10.2012 उपलब्ध हैं । जिसमें उपभोक्ता अथवा उसके प्रतिनिधि ने प्रष्नगत वाहन को अप्रार्थी की कम्पनी में ठीक करवा कर सन्तुष्ट होते हुए डिलीवरी प्राप्त की । यदि तत्समय किसी प्रकार की कोई यान्त्रिक गडबड़ी अथवा खराबी रही होती तो उसी समय उपभोक्ता पक्ष की ओर से आपत्ति उठाई गई होती, जो कि नहीं है । वाहन सामान्य दूरी से कहीं अधिक लम्बी दूरी तक चला है एवं इस दौरान हुई टूट फूट को उसने उपरोक्त अनुसार सुधरवाया भी है, ऐसा होना स्वाभाविक भी है । प्रष्नगत वाहन ट्रक है और इसमें रोड़ पर आवागमन के कारण व रोड की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए छोटीमोटी टूटफूट होना स्वाभाविक है । ऐसी टूटफूट को यान्त्रिक खराबी की संज्ञा नहीं दी जा सकती। जिस वारण्टी के तहत वाहन को क्रय किया गया है, को देखने से भी प्रकट होता है कि यह वारण्टी भी निर्माणीय दोष के लिए थी, न कि सामान्य रिपेयर अथवा रिप्लेसमेंट के लिए थी । एक तर्क यह भी प्रस्तुत किया गया है कि वाहन वाणिज्यिक उद्देष्य के लिए क्रय किया गया था । अतः उपभोक्ता इन हालात में ’’उपभोक्ता’’ की श्रेणी में नहीं कहा जा सकता । इस संबंध में इतना ही लिखना पर्याप्त होगा कि मात्र ट्रक जैसे भारी वाहन को खरीद कर इसे चलाना वाणिज्यिक उद्देंष्य हेतु नहीं माना जा सकता । यदि ऐसा था तो इसको सिद्व करने का भार अप्रार्थी पर था जो कि उसके द्वारा साबित नहीं किया गया है ।
12. स्वीकृत रूप से उपभोक्ता द्वारा वाहन को क्रय किए जाने के बाद समय समय पर आई खराबियों के प्रकाष में उक्त वाहन का किसी यान्त्रिक विषेषज्ञ से परीक्षण नहीं करवाया गया है। माननीय राष्ट्रीय आयोग ने कई विनिष्चयों में यह प्रतिपादित किया है कि प्रष्नगत वस्तु में त्रुटि के मामलां में विषय विषेषज्ञ का प्रतिवेदन आज्ञापक है। ऐसे प्रतिवेदन के अभाव में वाहन में निर्माण संबंधी त्रुटि को प्रमाणित नहीं माना जा सकता । इस संबंध में विनिष्चय क्रमषः 1;2011द्धब्च्श्र 461 न्ण्च्ण् ैजंजम बवदेनउमत क्पेचनजमे त्मकतमेंस ब्वउउपेपवदण् डंदंअ ज्ञंसलंद च्तंजीपेजींद टे त्ंरतंदए 1;2010द्धब्च्श्र 235;छब्द्ध ब्सेंपब ।नजवउवइपसमे टे स्पसं छंदक डपेतं - ।दतण् प्प्;2008द्धब्च्श्र 111;छब्द्ध ज्म्स्ब्व्-।दतण् टे ैनदपस ठींपद - ।दतण् में प्रतिपादित सिद्वान्त मार्गदर्षक कहे जा सकते है ।
13. कुल मिलाकर उपरोक्त विवेचन के प्रकाष में जो तथ्यात्मक स्थिति सामने आई है, के अनुसार उपभोक्ता ने वर्ष 2011 के मॉडल की मांग की , ऐसा वह सिद्व करने में असफल रहा है । वाहन में किसी प्रकार की कोई खरीद पूर्व यान्त्रिक खराबी रही हो, ऐसा भी उपभोक्ता सिद्व करने में असफल रहा हैं । फलस्वरूप उसकी ओर से प्रस्तुत यह परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है, एवं अस्वीकार किया जाकर खारिज होने योग्य है । अतः आदेष है कि
-ःः आदेष :ः-
14. उपभोक्ता का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 13.06.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
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