Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। परिवाद सं0 :- 57/2012 Javed Aslam major son of Mohammad Hasan resident of Malesiamau Gomti Nagar, Lucknow, (U.P.) India - Complainant
Versus - Yash Construction Equipments Pvt. Ltd, 19/837, Sector 19, Ring Road Indira Nagar, Lucknow, through its Managing Director.
- Telco Construction Equipment Company Limited, KIADB Block II, Belur Industrial Area, Garag Road, Mammigatti, Dharwad-580011. Registered Office: Jubilee Building, 45 Museum Road, Bangalore-580025
- Telco Construction Equipment Company Limited, 19/837, Sector 19, Ring Road, Indira Nagar, Lucknow through its Branch Manager.
- Opp. Parties
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
उपस्थिति: परिवादी के विद्वान अधिवक्ता:- श्री विष्णु कुमार मिश्रा विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता:- कोई नहीं दिनांक:-19-04-2023 माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने हाइड्रोलिक बैकहोई लोडर विद एचडी-टायर बकेट एण्ड इमरजेंसी स्पेयर्स मशीन मशीन नं0 315E 1054 इंजन मॉडल NZY 8 497 TC अर्थ मूविंग मशीन विपक्षी सं0 2 टेल्को कन्स्ट्रक्शन इक्विपमेंट कम्पनी लिमिटेड से खरीदी थी, जिसका ब्रांच आफिस लखनऊ टेल्को कन्स्ट्रक्शन इक्विपमेंट लिमिटेड है तथा विपक्षी सं0 1 यश कन्स्ट्रक्शन इक्विपमेंट प्राइवेट लिमिटेड लखनऊ इसका प्राधिकृत डीलर है। उक्त मशीन की डिलीवरी दिनांक 21.01.2011 को सम्पूर्ण धनराशि प्राप्त करके दी गयी थी। इसको खरीदने के लिए परिवादी ने ऋण श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस कम्पनी से लिया था। इस मशीन की वारण्टी दिनांक 21.01.2011 से दिनांक 20.07.2012 तक अथवा 3004 घण्टों की इनमें से जो भी प्रथम हो, के लिए थी। यह मशीन आर0टी0ओ0 धारवाड़ से अस्थायी रजिस्ट्रेशन से रजिस्टर्ड थी। उसके उपरान्त यह लखनऊ आर0टी0ओ0 में यूपी 32 डीएन 1891 के रूप में पंजीकृत हुई। मशीन ने उचित प्रकार से कार्य नहीं किया और परिवादी ने विपक्षीगण से मशीन वापस लेने को कहा। दिनांक 25.02.2011 को इस लोडर मशीन की बकेट उचित प्रकार से बंद नहीं हो रही थी तथा मशीन बदली गयी, किन्तु यह मशीन भी दिनांक 01.03.2011 को स्टार्ट होने के बाद बंद हो गयी। दिनांक 02.03.2011 को 250 घंटे के चलने के बाद यह मशीन पुन: रिप्लेस की गयी। पुन: दिनांक 03.03.2011 को मशीन ने कार्य करना बन्द कर दिया। अब तक मशीन ने 500 घंटे की सर्विस दे दी थी। दिनांक 04.03.2011 को मशीन ने पुन: कार्य करना बन्द कर दिया तथा उक्त कमी को दूर किया गया। दिनांक 16.03.2011 को परिवादी ने एक शिकायत की कि मशीन बहुत समस्यायें उत्पन्न कर रही है, जिसका स्टेयरिंग अपने आप ही इधर-उधर घूम जाता है तथा नियंत्रण के बाहर हो जाती है, इंजन ऑयल गिर रहा है। पुन: दिनांक 21.03.2011 को शिकायत की गयी। दिनांक 14.04.2011 को उसका वाटर पम्प बदला गया। दिनांक 16.04.2011 को उसका होज पाइप बदला गया। इसके उपरान्त दिनांक 22.08.2011 को लोडर लेवर और हॉर्न तथा साइलेंसर तदोपरांत इंजन ड्रेन प्लग दोषपूर्ण पाये गये। परिवादी के अनुसार यह सभी परेशानियां स्पष्ट करती हैं कि परिवादी को दोषपूर्ण मशीन दी गयी थी। अत: कभी भी मशीन ने उस प्रकार से कार्य नहीं किया। परिवादी ने यह मशीन स्वरोजगार के लिए अपने जीवन-यापन हेतु क्रय की थी। इस पर वह ऋण की धनराशि प्रदान कर रहा है और उसे रूपये 5,000/- प्रतिदिन की हानि हो रही है। मशीन खरीदने के उपरान्त मुश्किल से 1500 घण्टे चली होगी। परिवाद योजन के समय मशीन वारण्टी पीरियड में थी। परिवादी के अनुसार उसने विपक्षी को अनेकों नोटिस व सूचना दी दी, किन्तु विपक्षी ने मशीन बदलने का कोई प्रयत्न नहीं किया, जिस कारण यह परिवाद योजित किया गया है।
- विपक्षी सं0 1 ने प्राथमिक आपत्ति दी एवं यह कहा कि परिवाद के समय सर्विस रिकार्ड के अनुसार प्रश्नगत मशीन वारण्टी अवधि के बाहर है क्योंकि मशीन की गारण्टी 01 साल 6 महीने की थी अथवा 3,000 घण्टे की। यह परिवाद उक्त अवधि निकलने के उपरान्त योजित किया गया है। स्वयं परिवादी के अभिकथनों से स्पष्ट है कि परिवादी व्यवसायिक उद्देश्य मे संलग्न है तथा खरीदी गयी मशीन हाइड्रोलिक वैकोलोडर केवल व्यवसायिक उद्देश्य से लाभ कमाने के लिए ही प्रयोग की जाती है। यह मशीन कान्ट्रैक्टर द्वारा प्रयोग होती है और एक कान्ट्रैक्टर किसी भी दशा से स्वरोजगार एवं जीवन यापन हेतु कार्य करने वाला नहीं कहा जा सकता है। प्रश्नगत मशीन निर्माण संबंधी किसी दोष से ग्रसित नहीं थी या नहीं रखती थी। इस तथ्य को परिवादी द्वारा साक्ष्य से साबित किया जाना था, जो परिवादी ने नहीं किया है। इन अभिकथनों के साथ विपक्षी सं0 1 ने प्रारंभिक आपत्ति प्रस्तुत की गयी है।
- विपक्षी सं0 2 व 3 की ओर से आपत्ति पत्र प्रस्तुत किया गया है, जिसमें पुन: उपरोक्त तथ्यों को दोहराते हुए मशीन को वारण्टी पीरियड के बाहर बताया है, इसके अतिरिक्त मशीन को व्यवसायिक उद्देश्य से प्रयोग किया जाना कथन किया गया है एवं परिवादी को उपभोक्ता की श्रेणी में न होने का कथन धारा 2(1) (डी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत दर्शाया गया है। यह भी कथन दोहराया गया है कि मशीन में कोई भी निर्माण संबंधी दोष नहीं था। उक्त अभिकथनों के साथ परिवाद अपास्त किये जाने की मांग की गयी है।
- परिवादी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री विष्णु कुमार मिश्रा को सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का अवलोकन किया गया।
- परिवादी द्वारा लोडर मशीन जो परिवादी के भवन निर्माण के कार्य में उपयोग की जानी है, के संबंध में यह उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी का मुख्य रूप से यह कथन आया है कि परिवादी का भवन निर्माण का कार्य व्यवसायिक उद्देश्य से किया जा रहा कार्य है एवं इसके लिए जो लोडर मशीन खरीदी गयी है, इस क्रय के संबंध में परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता क्योंकि यह सम्व्यवहार व्यवसायिक उद्देश्य से किया गया है।
- इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय लक्ष्मी इन्जीनियरिंग वर्क्स प्रति पीएसजी इण्डस्ट्रियल इंस्टीट्यूट प्रकाशित II (1995) CPJ page 1 (S.C.) का उल्लेख करना उचित होगा। निर्णय के प्रस्तर 10 तथा 11 में यह दिया गया है कि परिवादी का यह लिखना पर्याप्त नहीं है कि वह जीवन यापन हेतु स्वरोजगार के माध्यम से कार्य कर रहा है, जिसके लिए सेवा अथवा वस्तु क्रय की गयी है और उसको उपभोक्ता माना जाये। वास्तव में यह क्रय व्यवसायिक उद्देश्य के लिए है अथवा नहीं यह देखा जाना आवश्यक है।
Controversy has, however, arisen with respect to meaning of the expression “commercial purpose”. It is also not defined in the Act. In the absence of a definition, we have to go by its ordinary meaning. “Commercial” denotes “pertaining to commerce” (Chamber’s Twentieth Century Dictionary); it means “connected with, or engaged in commerce; mercantile; having profit as the main aim” (Collins English Dictionary) whereas the word “commerce” means “financial transactions especially buying and selling of merchandise, on a large scale” (Concise Oxford Dictionary). The National Commission appears to have been taking a consistent view that where that where a person purchases goods “with a view to using such goods for carrying on any activity on a large scale for the purpose of earning profit” he will not be a “consumer”. - मा0 सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इस मामले में परिवादी ने एक लघु उद्योग इकाई के लिए सेण्ट्रल टर्निंग मशीन खरीदी थी एवं उपभोक्ता परिवाद में यह उल्लेख किया कि यह लघु उद्योग उसके द्वारा स्वरोजगार हेतु जीवन-यापन के उद्देश्य से किया जा रहा है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया कि वास्तव में यह लघु उद्योग भी लाभ कमाने के उद्देश्य से किया जा रहा है और यह कहने से कि परिवादी स्वरोजगार हेतु जीवन-यापन के लिए कार्य कर रहा है। परिवादी को उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।
- प्रस्तुत मामले पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय लागू होता है। इस मामले में यद्यपि परिवादी ने स्वयं को उपभोक्ता इस आधार पर बताया है कि उसके द्वारा अपना भवन निर्माण का कार्य स्वरोजगार के उद्देश्य से जीवन-यापन हेतु किया जा रहा है, किन्तु स्पष्ट रूप से भवन निर्माण का कार्य लाभ कमाने के उद्देश्य से व्यवसायिक प्रकृति का है एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के अनुसार परिवादी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत संरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
- इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित एक अन्य निर्णय राजीव मेटल वर्क्स प्रति मिनेरल एण्ड मेटल ट्रेडिंग कारपोरेशन आफ इण्डिया प्रकाशित 1996 वाल्यूम 9 एस.सी.सी. पृष्ठ 422 तथा ए.आई.आर. 1996 एस.सी. पृष्ठ 1083 भी इस संबंध में दिशा-निर्देशन देता है जिसमें परिवादी ने जनपद उन्नाव उत्तर प्रदेश में जिला उद्योग केन्द्र के माध्यम से एक उद्योग स्थापित किया, इससे संबंधित सम्व्यवहार को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यवसायिक उद्देश्य से किया गया कार्य माना तब इस संबंध में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित नकौदा मशीनरी प्राइवेट लिमिटेड प्रति जॉन क्रस्टा व अन्य निगरानी सं0 3517 सन 2016 भी इस मामले में उल्लेखनीय है। इस मामले में परिवादी ने एक जे0सी0बी0 मशीन तथा रॉक अपने कम्पनी के लिए खरीदा, जिसमें परिवादी ने जीवन यापन हेतु बताया किन्तु माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि कार्य की प्रकृति के अनुसार परिवादी को उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।
- प्रस्तुत मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय में उल्लिखित सिद्धांतों के आधार पर प्रस्तुत मामले में भी परिवादी ने अपने निर्माण कार्य के व्यवसाय के लिए प्रश्नगत मशीन का खरीदना बताया, जिसे जीवन-यापन एवं स्वरोजगार हेतु नहीं माना जा सकता है। परिवादी का क्रय का सम्व्यवहार व्यवसायिक उद्देश्य से होने के कारण परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है। अत: परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है। परिवादी उचित फोरम में अथवा सिविल न्यायालय में अपना परिवाद प्रस्तुत कर सकता है। उक्त निर्देश के साथ परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश परिवाद पोषणीय न होने के कारण निरस्त किया जाता है। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-3 | |