राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-225/2017
(सुरक्षित)
1. Dr. Prem Prakash Sinha,
aged about 70 years, son of Sri Sant Ram,
resident of 6/655, Vikas Nagar,
Lucknow-226022.
2. Ankit Sinha,
aged about 31 years, son of Dr. Prem Prakash Sinha,
resident of 6/655, Vikas Nagar,
Lucknow-226022.
Presently residing at 11023, Tower D,
16th Avenue, Gaur City II,
Greator Noida West, U.P.-201308.
....................परिवादीगण
बनाम
M/s. Unitech Ltd.,
UGCC Pavilion, Sector-96, Express Way,
(Near Amity Management School),
Noida-201305 (U.P.) India.
Registered Office: 6, Community Centre, Saket,
New Delhi-110017 India.
...................विपक्षी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
परिवादीगण की ओर से उपस्थित : श्री अशोक शुक्ला,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्री मोहम्मद रफी खान,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 27-03-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह परिवाद परिवादीगण डॉ0 प्रेम प्रकाश सिन्हा और अंकित
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सिन्हा ने धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत विपक्षी मै0 यूनिटेक लि0 के विरूद्ध राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है:-
(1) To hand over the possession of the Apartment bearing No. 0406 on Floor No. 4 in Tower B4 in UNIHOMES-3 at GHP0001, Sector 113, Noida, (U.P.) at the earliest within shortest stipulated period by this Hon’ble Commission.
AND
(2) To pay interest @ 18% per annum on the money received form the complainants with effect from the dates it has been received and till the date the possession of the Apartment in question is handed over to the Complainants.
OR
Refund the money received from the complainants with interest @ 18% per annum with effect from the dates it has been received and till the date of refund to the Complainants.
(3) To pay @ Rs. 10700/- per month towards the rent paid by the Complainant no. 2 with effect form May 2015 along with intrest till the date of handing over
-3-
the possession of the Apartment in question to the complainants or refund of money whichever is directed.
(4) To pay the compensation amounting to Rs. 10,00,000/- towards the mental and physical harassment.
(5) To award the cost of litigation to the tune of Rs. 50,000/-.
(6) To award any other relief which this Hon’ble Commission may deem just, fit and proper in the facts and circumstances of the case and in the interest of justice.
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि उन्होंने विपक्षी की आवासीय योजना यूनिहोम्स-3, सेक्टर-113, नोएडा में एक फ्लैट के आवंटन हेतु आवेदन पत्र दिनांक 10.04.2012 को विपक्षी के एजेन्ट श्री मुकुल के माध्यम से प्रस्तुत किया और चेक के द्वारा बुकिंग एमाउण्ट 3,00,000/-रू0 जमा किया। तदोपरान्त विपक्षी ने परिवादीगण को कस्टमर कोड नं0 UE 0716 एलाट किया और उन्हें प्रोविजनल एलाटमेन्ट लेटर अपार्टमेन्ट नं0 0406, चतुर्थ तल, टावर बी4 उक्त योजना यूनिहोम्स-3 GHP0001, सेक्टर 113, नोएडा में आवंटित किया। प्रोविजनल एलाटमेन्ट लेटर के अनुसार फ्लैट का कुल मूल्य 44,48,320/-रू0 था और भुगतान
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कान्सट्रक्शन लिंक प्लान ‘बी’ के अनुसार होना था। फ्लैट का क्षेत्रफल 1192 वर्ग फीट (110.74 वर्ग मीटर) था और उसका बेसिक सेल प्राइस 40,88,560/-रू0 था, जिसमें पी0एल0सी0, कार पार्किंग और लीज रेन्ट शामिल कर कुल मूल्य 44,48,320/-रू0 था।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि विपक्षी ने उन्हें पत्र दिनांक 10.04.2012 के द्वारा एक दूसरा प्रोविजनल एलाटमेन्ट लेटर प्रेषित किया और अपार्टमेन्ट नं0 0406, चतुर्थ तल, टावर बी4 में 110.74 वर्ग मीटर (1192 वर्ग फीट) यूनिहोम्स-3 योजना में आवंटित किया। इस आवंटन पत्र में उल्लेख था कि अपार्टमेन्ट सब-लीज बेसिस पर संलग्न शर्तों के अनुसार ट्रांसफर किया जायेगा। इसके साथ ही परिवादीगण को टर्म्स एण्ड कण्डीशन पर हस्ताक्षर कर वापस करने को कहा गया था। अत: परिवादीगण ने टर्म्स एण्ड कण्डीशन को हस्ताक्षरित कर विपक्षी को प्रेषित किया और उसके बाद विपक्षी ने उस पर हस्ताक्षर कर ओरिजनल बुकलेट पत्र दिनांक 08.03.2013 के साथ उन्हें वापस किया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण ने विपक्षीगण को कुल 22,75,844/-रू0 का भुगतान दिनांक 20.04.2012 से दिनांक 01.11.2014 की अवधि में किया है, जिसका विवरण निम्न है:-
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Sr. No. | Cheque No. | Date | Amount (In Rs.) |
1. | 683803 | 20.04.2012 | 300000.00 |
2. | 683808 | 07.07.2012 | 108856.00 |
3. | 683809 | 23.07.2012 | 474304.00 |
4. | 683810 | 06.08.2012 | 461670.00 |
5. | 141334 | 31.12.2012 | 511693.00 |
6. | 141336 | 18.02.2013 | 13000.00 |
7. | 051502 | 01.11.2014 | 406321.00 |
| | Total - | 2275844.00 |
परिवाद पत्र के अनुसार टर्म्स एण्ड कण्डीशन की धारा 5.A.(i) में उल्लिखित था कि कब्जा 36 महीने के अन्दर आफर किया जाना सम्भावित है, परन्तु यह फोर्स मेज्योर के अधीन होगा। इस प्रकार कब्जा अप्रैल 09, 2015 तक दिया जाना था, परन्तु परिवादीगण को आवंटित फ्लैट का न तो कब्जा दिया गया है और न ही उसके सम्बन्ध में विपक्षी ने कोई सूचना दी है, जबकि 62 महीने से अधिक का समय बीत चुका है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि वे विपक्षी को सम्पूर्ण अवशेष धनराशि का आवंटन करार के अनुसार भुगतान करने को तैयार और तत्पर हैं।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी संख्या-1 ने विपक्षी को दिनांक 19.09.2016 को पत्र लिखा, परन्तु उसका कोई उत्तर नहीं
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दिया गया। तब दिनांक 08.04.2017 को उसने मौके पर जाकर निर्माण कार्य की प्रगति के सम्बन्ध में जानकारी की तो उसे पता चला कि उससे सम्बन्धित टावर का निर्माण मात्र प्रथम फ्लोर के स्तर तक ही किया गया है और आगे का कोई कार्य नहीं हो रहा है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि उन्हें प्रश्नगत फ्लैट का कब्जा न मिलने के कारण लखनऊ में रहना पड़ रहा है, जिससे प्रति माह 10,700/-रू0 परिवादी संख्या-2 को किराया देना पड़ रहा है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि विपक्षी ने उन्हें आवंटित फ्लैट के सम्बन्ध में अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस की है और समय के अन्दर निर्माण पूरा कर कब्जा न देकर सेवा में कमी की है। अत: विवश होकर परिवादीगण ने परिवाद राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत कर उपरोक्त अनुतोष चाहा है।
विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया है। अत: उसके विरूद्ध परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से की गयी है।
परिवादीगण की ओर से परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में परिवादी संख्या-1 डॉ0 प्रेम प्रकाश सिंह का शपथ पत्र संलग्नकों सहित प्रस्तुत किया गया है।
अन्तिम सुनवाई की तिथि पर परिवादीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अशोक शुक्ला और विपक्षी की ओर से
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विद्वान अधिवक्ता श्री मोहम्मद रफी खान उपस्थित आये हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
परिवादीगण की ओर से परिवाद पत्र के साथ प्रोविजनल एलाटमेन्ट लेटर दिनांक 10.04.2012 प्रस्तुत किया गया है, जो परिवाद पत्र का संलग्नक-2 है, जिससे यह स्पष्ट है कि परिवादीगण को अपार्टमेन्ट नं0 0406, चतुर्थ तल, टावर बी4 यूनिहोम्स-3 GHP0001, सेक्टर 113, नोएडा में विपक्षी द्वारा आवंटित किया गया है और उसका भुगतान कान्सट्रक्शन लिंक प्लान के अनुसार किया जाना था। परिवाद पत्र का संलग्नक-5 और 8 परिवादीगण द्वारा विपक्षी को अदा गयी धनराशि की रसीदें हैं। इन रसीदों और परिवाद पत्र एवं परिवादी संख्या-1 के शपथ पत्र से यह स्पष्ट है कि परिवादीगण ने विपक्षी को अपने आवंटित फ्लैट के लिए दिनांक 20.04.2012 से दिनांक 01.11.2014 तक की अवधि में कुल 22,75,844/-रू0 का भुगतान किया है।
विपक्षी की ओर से लिखित कथन अथवा शपथ पत्र प्रस्तुत कर परिवाद पत्र एवं परिवादी संख्या-1 के शपथ पत्र का खण्डन नहीं किया गया है। अत: परिवाद पत्र और परिवादी संख्या-1 के शपथ पत्र पर विश्वास न करने का कोई कारण नहीं है। परिवाद पत्र और परिवादी संख्या-1 के शपथ पत्र से यह स्पष्ट है कि अब तक विपक्षी ने परिवादी को आवंटित फ्लैट का निर्माण पूरा कर कब्जा अन्तरित नहीं किया है और निर्माण अधूरा है। इतना अधिक समय
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बीतने के बाद भी विपक्षी द्वारा निर्माण पूरा न किया जाना और कब्जा परिवादीगण को हस्तान्तरित न किया जाना निश्चित रूप से सेवा में कमी है और अनुचित व्यापार पद्धति है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि परिवादीगण द्वारा जमा धनराशि परिवादीगण को विपक्षी से ब्याज सहित वापस दिलाया जाना ही उचित और युक्तिसंगत अनुतोष है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा के0ए0 नागमणि बनाम हाउसिंग कमिश्नर, कर्नाटका हाउसिंग बोर्ड III (2016) CPJ 16 (SC) में दिये गये निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए परिवादीगण द्वारा जमा धनराशि जमा की तिथि से 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित परिवादीगण को विपक्षी से वापस दिलाया जाना उचित है।
चूँकि परिवादीगण द्वारा जमा धनराशि जमा की तिथि से अदायगी की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित उन्हें वापस दिलाया जाना उचित प्रतीत होता है ऐसी स्थिति में परिवादीगण द्वारा परिवाद पत्र में याचित अन्य अनुतोष प्रदान किया जाना उचित और युक्तिसंगत नहीं प्रतीत होता है, परन्तु परिवादीगण को वाद व्यय के रूप में 10,000/-रू0 दिलाया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि
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वह परिवादीगण की जमा धनराशि 22,75,844/-रू0 की प्रत्येक धनराशि जमा करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ दो मास के अन्दर उन्हें वापस करे। साथ ही 10,000/-रू0 वाद व्यय भी परिवादीगण को दे।
यदि दो मास के अन्दर विपक्षी द्वारा उपरोक्त धनराशि का भुगतान परिवादीगण को नहीं किया जाता है तो परिवादीगण विधि के अनुसार निष्पादन की कार्यवाही करने हेतु स्वतंत्र होंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1