(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-357/2013
लखनऊ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक व अन्य
बनाम
मै0 त्रिदेव कन्स्ट्रक्शन कम्पनी
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री विकास अग्रवाल, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री हरिकांत, विद्धान अधिवक्ता
दिनांक :23.08.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-5/2009, मेसर्स त्रिदेव कान्स्ट्रक्शन कम्पनी बनाम शाखा प्रबंधक लखनऊ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में विद्वान जिला आयोग, बहराइच द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 08.01.2013 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है। जिला उपभोक्ता मंच ने परिवादी द्वारा करायी गयी एफ0डी0आर0 की राशि अंकन 4,80,000/-रू0 09 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करने का आदेश पारित किया है।
2. अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल एवं प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री हरिकांत को सुना गया। पत्रावली एवं प्रश्नगत निर्णय/आदेश का अवलोकन किया गया।
3. अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि यथार्थ में प्रत्यर्थी/परिवादी कन्स्ट्रक्शन कम्पनी द्वारा अंकन 4,80,000/- रूपये कभी भी बैंक में जमा नहीं किये गये। शाखा प्रबंधक के साथ मिलकर एक फर्जी एफ0डी0आर0 तैयार करायी गयी है, इसलिए एफ0डी0आर0 में वर्णित राशि को अदा करने का आदेश नहीं दिया जा सकता।
4. प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा वैधानिक रूप से धन जमा करने के पश्चात एफ0डी0आर0 प्राप्त की है, इसलिए एफ0डी0आर0 में वर्णित राशि को प्राप्त करने के लिए अधिकृत है, यद्यपि प्रत्यर्थी/परिवादी के अधिवक्ता द्वारा पीठ द्वारा इस आशय की जानकारी देने के बावजूद कि बैंक में धनराशि नकद जमा की गयी, या खाते से ट्रांसफर कराकर एफ0डी0आर0 बनवायी गयी, के संबंध में कोई जवाब नहीं दिया गया और असमर्थता प्रकट की गयी। अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि प्रबंधक श्री दिलीप कुमार श्रीवास्तव के साथ मिलकर धोखाधड़ी की गयी, जिसके संबंध में एफ0आइ0आर0 दर्ज की गयी थी और विवेचना में दिलीप कुमार श्रीवास्तव प्रबंधक को धोखा देने के लिए दोषी पाया गया था, उसकी सेवा समाप्त कर दी गयी थी। सत्र न्यायाधीश, श्रावस्ती द्वारा जमानत अवैध निरस्त किया गया। उसे जेल भेजा गया था, चूंकि प्रस्तुत केस धोखे से संबंधित है, इसलिए जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष परिवाद संधारणीय नहीं है, उनके द्वारा अपने तर्क के समर्थन में गुरजीत सिंह बनाम बैंक आफ पंजाब IV (2008) CPJ (NC) प्रस्तुत की गयी है, इस नजीर में व्यवस्था दी गयी है कि जहां धोखे का मामला जाहिर होता हो, वहां उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है।
5. प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि लिखित कथन में एफ0डी0आर0 प्रमाणिकता को बैंक द्वारा स्वीकार किया गया है, इसलिए इस एफ0डी0आर0 को धोखे से निर्मित कराया गया नहीं माना जा सकता। लिखित कथन के अवलोकन से जाहिर होता है कि लिखित कथन में केवल परिवाद पत्र के पैरा सं0 1 में 1,10,000/-रू0 राशि के संबंध में किये गये उल्लेख को स्वीकार किया गया है। दिनांक 24.01.2004 को 4,80,000/-रू0 की एफ0डी0आर0 के तथ्य को स्वीकार नहीं किया गया है, बल्कि उल्लेख किया है कि फर्म के प्रोपराइटर श्री सलीम सिद्दीकी, सनाउर्ररहमान, शमसुद्दीन के दुरभि संधि के कारण फर्जी एफ0डी0आर0 बनायी गयी। अत: यह उल्लेख सही नहीं है कि एफ0डी0आर0 की प्रमाणिकता को बैंक द्वारा स्वीकार किया गया है, बल्कि स्पष्ट कथन किया गया है कि दिनांक 24.01.2004 को बैंक के अभिलेखों के अनुसार केवल 4,800/-रू0 की धनराशि जमा की गयी थी। 4,800/-रू0 के अलावा एफ0डी0आर0 के लिए कोई राशि प्राप्त नहीं की गयी। परिवादी के खाते में इस तिथि को 78,353/-रू0 52 पैसे जमा थे, इसलिए 4,80,000/- रूपये की एफ0डी0आर0 नहीं बन सकती थी। परिवादी के चालू खाते में भी 4,80,000/-रू0 की कोई प्रविष्टि अंकित नहीं है, इसलिए एफ0डी0आर0 की राशि प्राप्त करने के लिए प्रत्यर्थी/परिवादी अधिकृत नहीं है।
6. परिवाद पत्र के तथ्य के अवलोकन से जाहिर होता है कि पैरा सं0 1 में यह उल्लेख किया गया है कि दिनांक 04.06.2003 को कृषि उत्पादन मंडी परिषद, बहराइच के नाम से 1,10,000/-रू0 एफ0डी0आर0 बनवायी गयी और दिनांक 24.01.2004 को 4,80,000/-रू0 एफ0डी0आर0 बनवायी गयी, परंतु यह उल्लेख नहीं है कि दिनांक 24.01.2004 को परिवादी के बैंक खाते में कितना रूपया जमा था, जिसे निकालकर एफडीआर बनवायी गयी, यह भी उल्लेख नहीं है कि परिवादी द्वारा नकद धनराशि बैंक में जमा की गयी। उसके बदले में एफडीआर बनवायी गयी, यथार्थ में अंकन 4,80,000/- रूपये बैंक को सुपुर्द करने या बैंक में पूर्व से जमा होने और जमा खाते से निकालने का कोई सबूत प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है और केवल एफ0डी0आर0 के उल्लेख के आधार पर जिला उपभोक्ता मंच ने भुगतान का आदेश जारी कर दिया, जबकि बैंक का यह कथन साक्ष्य से स्थापित हो रहा है कि प्रस्तुत केस में धोखे का तथ्य मौजूद है, क्योंकि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा 4,80,000/-रू0 जमा करने का कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है। ऐसे किसी सबूत का उल्लेख जिला उपभोक्ता मंच ने अपने निर्णय में भी नहीं किया है, चूंकि धोखे पर आधारित किसी विवाद का निस्तारण जिला उपभोक्ता मंच द्वारा नहीं किया जा सकता, जैसा कि उपरोक्त नजीर गुरजीत सिंह में व्यवस्था दी गयी है। अत: अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है। चूंकि प्रस्तुत केस में उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है, इसलिए परिवाद खारिज किया जाता है, यद्यपि प्रत्यर्थी/परिवादी सक्षम न्यायालय के समक्ष अपने लिए वांछित अनुतोष की याचना के लिए मुकदमा दायर कर सकता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुशील कुमार)(राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
23.08.2023
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2