Uttar Pradesh

StateCommission

A/1999/2897

Gagan Roadways - Complainant(s)

Versus

M/S Transport Corporation - Opp.Party(s)

Deepak Mehrotra

09 Feb 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1999/2897
( Date of Filing : 20 Oct 1999 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Gagan Roadways
A
...........Appellant(s)
Versus
1. M/S Transport Corporation
A
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vikas Saxena PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 09 Feb 2022
Final Order / Judgement

(सुरक्षित)

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

 

अपील सं0- 2897/1999

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, झांसी द्वारा परिवाद सं0- 566/1998 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 24.07.1999 के विरुद्ध)

 

Gagan Roadways Near Minerva Cinema, Jhansi, through its Proprieter.

                                                                                                ………..Appellant

 

                                                            Versus

 

1. M/s Transport Corporation of India Jhansi Branch, through its Manager Prem Mohan Pandey, Behind Jail, Civil Lines, Jhansi.

2. Suresh savalkar, R/o Outside Saiyar Gate, Near Kalari, Jhansi, Owner of Vehicle No. MBG-9214.

                                                                                            ………Respondents

 

समक्ष:-

    माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

    माननीया डॉ0 आभा गुप्‍ता, सदस्‍य 

 

अपीलार्थी की ओर से       : कोई नहीं।

प्रत्‍यर्थी सं0- 1 की ओर से  : श्री अशोक कुमार राय,

                         विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी सं0- 2 की ओर से  : कोई नहीं।  

 

दिनांक:- 22.03.2022    

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उद्घोषित

 

निर्णय

1.        परिवाद सं0- 566/1998 मै0 ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन आफ इंडिया बनाम गगन रोडवेज व एक अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता आयोग, झांसी द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 24.07.1999 के विरुद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

2.        प्रत्‍यर्थी सं0- 1/परिवादी मेसर्स ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन आफ इंडिया द्वारा प्रत्‍यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 श्री सुरेश सावल्‍कर के माध्‍यम से गगन रोडवेज की एक ट्रक दि0 17.06.1998 को किराये पर ली गई जिसका उद्देश्‍य झांसी से होसंगाबाद सोयाबीन के 414 बोरे प्रेषित किया जाना था। उक्‍त 414 बोरे सोयाबीन के होसंगाबाद में डिलीवरी दी गई जिसमें 16 बोरा सोयाबीन के कम थे। प्रत्‍यर्थी सं0- 1/परिवादी के अनुसार उक्‍त बोरे अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा खुर्द-बुर्द कर दिए गए। माल प्राप्‍त करने वाले एवं 16 बोरा सोयाबीन का दाम कम करते हुए भुगतान किया जिस आधार पर यह परिवाद लाया गया।

3.        विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा इस आधार पर परिवाद आज्ञप्‍त किया गया कि फोरम द्वारा कंसाइनमेंट की कंसाइनी प्रतिलिपि का अवलोकन करने पर यह प्रदर्शित होता था कि 414 बोरे की डिलीवरी भेजी गई थी जब कि इस पत्र के पृष्‍ठ पर डिलीवरी प्राप्‍त करने वाले द्वारा केवल 398 बोरे प्राप्‍त करना अंकित हुआ है। इस प्रकार 16 बोरे की कमी डिलीवरी में होना साबित होता है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने सेवा में त्रुटि मानते हुए उक्‍त बोरों की कीमत मय 18 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज दि0 17.06.1998 से वास्‍तविक अदायगी तक दिलवाये जाने और रू0 2,000/- मानसिक पीड़ा हेतु दिलवाये जाने के आदेश पारित किए गए, जिससे व्‍यथित होकर यह अपील प्रस्‍तुत की गई है।

4.        अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 गगन रोडवेज द्वारा अपील इन आधारों पर प्रस्‍तुत की गई है कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 ट्रांसपोर्ट के व्‍यवसाय में ब्रोकर की भांति काम करता है जिसका काम केवल ट्रक उपलब्‍ध कराना है तथा वह ब्रोकरेज प्राप्‍त करके वाहन उपलब्‍ध कराता है। उसके द्वारा यही कार्य संव्‍यवहार में किया गया है जब कि प्रत्‍यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 सुरेश सावल्‍कर प्रश्‍नगत वाहन सं0- एमबीजी 9214 का मालिक है जिसके द्वारा डिलीवरी में कमी करके सेवा में त्रुटि की गई है। माल रसीद में प्रत्‍यर्थी सं0- 1/परिवादी का उल्‍लेख ब्रोकर के रूप में किया गया है तथा प्रत्‍यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 वाहन स्‍वामी के रूप में दर्शाया गया है। माल की रसीद से यह दर्शित है कि सोयाबीन के बीज जो प्रेषित किए गए वे ''नेशनल सीड कार्पोरेशन'' के थे। प्रत्‍यर्थी सं0- 1/परिवादी ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन आफ इंडिया कंसाइनमेंट निवारी से बबाई भेजने के लिए सम्‍पर्क किया था जिससे स्‍पष्‍ट होता है कि ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन आफ इंडिया भी ब्रोकर/मध्‍यस्‍थ का कार्य कर रहा था जिससे एक ब्रोकर अर्थात अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 की सेवायें ली थी। इस प्रकार इस संव्‍यवहार में ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन आफ इंडिया एवं अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 ब्रोकर तथा सब ब्रोकर की हैसियत रखते हैं। टी0सी0आई0 प्रत्‍यर्थी सं0- 1/परिवादी स्‍वयं लाभ के उद्देश्‍य से ट्रक का कार्य कर रहा था, अत: यह संव्‍यवहार उपभोक्‍ता व सेवा प्रदाता के मध्‍य नहीं है और टी0सी0आई0 अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है, अत: वाद पोषणीय नहीं है। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 द्वारा ऐसी कोई जिम्‍मेदारी भेजे गए माल को सुरक्षित पहुंचाने की नहीं ली गई थी, इसलिए उसका कोई उत्‍तरदायित्‍व इस सम्‍बन्‍ध में नहीं बनता है। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के अनुसार इस सम्‍बन्‍ध में प्रत्‍यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 सुरेश सावल्‍कर की पूर्ण जिम्‍मेदारी है एवं अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 का इसमें कोई उत्‍तरदायित्‍व नहीं बनता है। इन आधारों पर यह अपील प्रस्‍तुत की गई है।

5.        प्रत्‍यर्थी सं0- 1 के विद्वान अधिवक्‍ता श्री अशोक कुमार राय को सुना गया। प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का सम्‍यक परिशीलन किया गया।  

6.        अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 गगन रोडवेज की ओर से एक तर्क यह दिया गया है कि वह इस संव्‍यवहार में सब ब्रोकर की हैसियत रखता है, क्‍योंकि उसके द्वारा प्रश्‍नगत माल भि‍जवाये जाने के लिए ट्रक के स्‍वामी सुरेश सावल्‍कर से सम्‍पर्क करते हुए मात्र कमीशन के लिए प्रश्‍नगत ट्रक को इंगेज किया गया था, अत: उसका उत्‍तरदायित्‍व इस सम्‍बन्‍ध में नहीं बनता है, किन्‍तु अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के इस तर्क में बल प्रतीत नहीं होता है। स्‍वयं अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 ने अपने मेमो आफ अपील के प्रस्‍तर 1 में यह स्‍वीकार किया है कि प्रत्‍यर्थी सं0- 1/परिवादी मै0 ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन आफ इंडिया ने ट्रक अरेंज करने के लिए सम्‍पर्क किया था। इस प्रकार स्‍वीकार रूप में यह करार/संविदा अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 एवं प्रत्‍यर्थी सं0- 1/परिवादी के मध्‍य हुई थी। इसके अतिरिक्‍त ट्रक सम्‍बन्‍धी सेवायें भी अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 गगन रोडवेज द्वारा ही प्रदान की गई थी, इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि ट्रक स्‍वामी ही सेवा में कमी का उत्‍तरदायित्‍व रखता है, क्‍योंकि यह संविदा अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 और प्रत्‍यर्थी सं0- 1/परिवादी के मध्‍य हुई थी। इस सम्‍बन्‍ध में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय किरन ट्रांसपोर्ट कम्‍पनी बनाम न्‍यू इंडिया इंश्‍योरेंस कं0लि0 II(1992) C.P.J. पृष्‍ठ 349 (N.C.) तथा ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन आफ इंडिया बनाम देवग्रा काटन मिल्‍स लि0 II(1998) C.P.J. पृष्‍ठ 16 (N.C.) जिसमें इन दोनों निर्णयों में यह निर्णीत किया गया है कि माल भेजने वाले कंसाइनर को ट्रांसपोर्टर के विरुद्ध सेवा में कमी होने पर उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपचार उपलब्‍ध है।

7.        मा0 राष्‍ट्रीय आयोग के उपरोक्‍त निर्णयों पर आधारित करते हुए यह पीठ भी इस मत की है कि प्रस्‍तुत मामले में अपीलार्थी गगन रोडवेज जिसने सामान को भेजने का करार किया है सेवा में त्रुटि का उत्‍तरदायित्‍व रखता है।

8.        अपीलार्थी की ओर से दूसरी आपत्ति निर्णय में यह ली गई है कि मै0 ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन आफ इंडिया ने यह संव्‍यवहार व्‍यवसाय हेतु किया है, अत: यह संव्‍यवहार उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत नहीं आयेगा एवं उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत इस सम्‍बन्‍ध में परिवाद नहीं लाया जा सकता है।

9.        उक्‍त तर्क के सम्‍बन्‍ध में मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय इकनॉमिक ट्रांसपोर्ट आर्गनाइजेशन बनाम चरन स्पिनिंग मिल्‍स प्रकाशित I(2010) C.P.J. पृष्‍ठ 4 (S.C.) उल्‍लेखनीय है। इस निर्णय के प्रस्‍तर 23 में यह निर्णीत किया गया है कि यह सेवा उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयेगी एवं इसका उपचार उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत माना जायेगा। इस निर्णय में यह भी निर्णीत किया गया है कि धारा 9 कैरियर अधिनियम के प्रकाश में यह सेवा भी बीमा दावा की भॉंति व्‍यावसायिक संव्‍यवहार में भी उपभोक्‍ता एवं सेवा प्रदाता का प्रभाव रखती है, क्‍योंकि व्‍यवसाय में भी माल के परिवहन को सीधे लाभ कमाने के उद्देश्‍य से नहीं किया जाता है, बल्कि यह व्‍यवसाय हेतु ली गई एक सेवा है, अत: माल के परिवहन की सेवा का संव्‍यवहार उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के क्षेत्राधिकार में आयेगा।

10.            उपरोक्‍त विवेचना से स्‍पष्‍ट है कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने उचित प्रकार से इस संव्‍यवहार में ट्रांसपोर्टर एवं वाहन स्‍वामी दोनों को दोषी मानते हुए क्षतिपूर्ति का आदेश दिए हैं। अपील में उठाये गए बिन्‍दुओं से यह मामला उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की परिसीमा के बाहर नहीं जाता है एवं प्रत्‍यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 की भॉंति अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 भी क्षतिपूर्ति हेतु उत्‍तरदायित्‍व रखते हैं। अत: प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश में कोई दोष प्रतीत नहीं होता है, अतएव प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश पुष्‍ट होने एवं प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।                           

आदेश

11.            अपील निरस्‍त की जाती है। प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है।

          अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।                 

          आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

                            

   (विकास सक्‍सेना)                             (डॉ0 आभा गुप्‍ता)           

       सदस्‍य                                                 सदस्‍य           

 

शेर सिंह, आशु0,

कोर्ट नं0-3

 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA]
MEMBER
 

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