राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1160/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम प्रथम, बरेली द्वारा परिवाद सं0- 168/2013 में पारित आदेश दि0 29.04.2016 के विरूद्ध)
मुअज्जिजअली खान पुत्र श्री शाकिर दाद खां निवासी- ग्राम ठिरिया निजावत खां थाना कैन्ट जिला बरेली।
......... अपीलार्थी
बनाम
मै0 टाटा मोटर फाइनेंस कं0लि0 द्वारा प्रबंधक सी0बी0 गंज रोड थाना- किला, जिला- बरेली।
.......... प्रत्यर्थी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री ओ0पी0 दुवेल,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 01.05.2018
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 168/2013 मुअज्जिज अली खान बनाम मै0 टाटा मोटर फाइनेंस कं0लि0 में जिला फोरम प्रथम, बरेली द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 29.04.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है जिससे क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री ओ0पी0 दुवेल और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा उपस्थित आये हैं।
मैंने उभयपक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने वाहन सं0- यू0पी0 25 ए0टी0- 1356 मॉडल टाटा ऐस अपने व अपने परिवार के जीविकोपार्जन हेतु दि0 30.06.2009 को 3,39,000/-रू0 में क्रय किया था और ऋण धनराशि 8,050/-रू0 मासिक की 42 किश्तों में अदा की जानी थी। परिवाद पत्र के अनुसार किश्तों की अदायगी नियमानुसार की जा रही थी और कुल 4,09,330/-रू0 का भुगतान दि0 02.02.2011 तक किया जा चुका था।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी से समय-समय से ऋण खाते का विवरण देने का अनुरोध किया, परन्तु वह टाल-मटोल करता रहा और हजारों रूपये अधिक लेकर लाभ अर्जित करता रहा। इसी बीच उसके अधीनस्थ कर्मचारियों ने बिना किसी सूचना के बल पूर्वक वाहन खींच ले गये और बताया कि उसके जिम्मा 32,000/-रू0 बकाया है। बकाये का भुगतान करने पर ही वाहन छोड़ा जायेगा।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि वाहन खींचे जाने से परिवादी को लगातार आर्थिक व मानसिक क्षति हुई है और उसके द्वारा ऋण की सम्पूर्ण धनराशि अदा करने के बाद भी 32,330/-रू0 की मांग विपक्षी द्वारा की गई है जो अनुचित व्यापार प्रथा है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/विपक्षी ने 20 दिन तक उसका वाहन अनाधिकृत रूप से रोके रखा और परिवादी ने दि0 20.11.2011 को जब 32,330/-रू0 का भुगतान किया और उसकी रसीद प्रस्तुत की तब उन्होंने वाहन उसे दिया। परिवादी का कथन है कि जब वाहन विपक्षी ने उसे दिया तो बहुत से सामान गायब थे जिससे 20,000/-रू0 की क्षति अपीलार्थी/परिवादी को हुई है। इसके साथ ही 20 दिन तक उसका वाहन अनाधिकृत ढंग से रोके जाने से उसे 20,000/-रू0 की आर्थिक क्षति हुई है।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि विपक्षी ने उससे 4,29,000/-रू0 का भुगतान लिया है जो वास्तविक ऋण धनराशि से 90,000/-रू0 अधिक है। परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी ने विपक्षी को रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजा और अधिक वसूली गई धनराशि वापस करने का निवेदन किया, परन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई। अत: विवश होकर अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी ने लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और कहा है कि परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान के विरुद्ध है। जिला फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। संविदा में आर्बीट्रेसन का प्राविधान होने के कारण परिवाद पोषणीय नहीं है। लिखित कथन में विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि वाहन वाणिज्यिक उद्देश्य से क्रय किया गया है। अत: इस आधार पर भी परिवाद पोषणीय नहीं है।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि आर्बीट्रेटर द्वारा एवार्ड घोषित किया जा चुका है। अत: इस आधार पर भी परिवाद ग्राह्य नहीं है।
लिखित कथन में विपक्षी ने कहा है कि अपीलार्थी/परिवादी ने ऋण की किश्तों के भुगतान में चूक की है और अवशेष धनराशि का भुगतान नहीं किया है, अत: वाहन संविदा की शर्तों के अनुरूप नियमानुसार कब्जे में लिया गया है। प्रत्यर्थी/विपक्षी ने सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह उल्लेख किया है कि अपीलार्थी/परिवादी ने पहले परिवाद सं0- 23/2012 जिला फोरम द्वितीय, बरेली में योजित किया था, जिसे जिला फोरम ने गुण-दोष के आधार पर आदेश दि0 28.09.2013 के द्वारा निरस्त कर दिया है। ऐसी स्थिति में जिला फोरम ने यह निष्कर्ष अंकित किया है कि वर्तमान परिवाद दोष पूर्ण है और पोषणीय नहीं है। इसके साथ ही जिला फोरम ने यह भी माना है कि पक्षों के बीच वर्तमान रिट से सम्बन्धित विवाद में आर्बीट्रेटर द्वारा निर्णय किया जा चुका है और आर्बीट्रेटर एवार्ड पारित किया जा चुका है। अत: इस आधार पर भी यह परिवाद जिला फोरम के समक्ष पोषणीय नहीं है। अत: जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय दोष पूर्ण है और विधि विरुद्ध है। इसे अपास्त कर परिवाद स्वीकार किया जाना आवश्यक है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश विधि अनुकूल है और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
जिला फोरम के निर्णय से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा प्रश्नगत वाहन कब्जा में लिए जाने के सम्बन्ध में अपीलार्थी/परिवादी ने पहले परिवाद सं0- 23/2012 जिला फोरम द्वितीय, बरेली के समक्ष प्रस्तुत किया है जो जिला फोरम द्वितीय, बरेली ने गुण-दोष के आधार पर निर्णय दि0 28.09.2013 के द्वारा निरस्त कर दिया है। ऐसी स्थिति में यह द्वितीय परिवाद ग्राह्य नहीं है। जिला फोरम के निर्णय से यह भी स्पष्ट है कि पक्षों के बीच प्रश्नगत ऋण से सम्बन्धित विवाद के सम्बन्ध में आर्बीट्रेटर द्वारा आर्बीट्रेसन एवार्ड पारित किया जा चुका है। अत: इस आधार पर भी अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद जिला फोरम के समक्ष पोषणीय नहीं है।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि जिला फोरम ने परिवाद निरस्त करने का जो आधार उल्लिखित किया है वह उचित और विधि सम्मत है। जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश में हस्तक्षेप हेतु कोई उचित आधार नहीं है। अत: अपील निरस्त की जाती है।
अपीलार्थी/परिवादी, प्रत्यर्थी/विपक्षी को दस हजार रूपया वाद व्यय अदा करेगा।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1