राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद सं0-३२४/२०१६
वरूण लाम्बा पुत्र श्री अजय लाम्बा, निवासी ई-७०३, लागून अपार्टमेण्ट्स, एम्बिऐन्स आइलेण्ड्स, एन.एच.-८, जिला गुड़गॉंव, हरियाणा।
............ परिवादी।
बनाम
१. मै0 स्कोडा आटो इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड, प्लाट नं0-ए-१/१, शेन्द्रा, फाइव स्टार इण्डस्ट्रियल एरिया, एमआईडीसी, औरंगाबाद, महाराष्ट्र द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
२. मै0 नवाब मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड, एफ-१६, शंकर मार्केट, कनाट सर्कस, नई दिल्ली द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
३. मै0 नवाब मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर, सर्विस स्टेशन ई-११, सैक्टर-११, नोएडा, यू0पी0।
४. जय आटो प्राइवेट लिमिटेड द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर, कार्यालय-यूनिट २(मार्केटिंग) बी-४४ साइट-IV, इण्डस्ट्रियल एरिया, शाहिबाबाद, गाजियाबाद (यू.पी.) इण्डिया-२०१०१०.
............. विपक्षीगण।
समक्ष:-
१. मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री रत्नेश चन्द्र विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी सं0-१ की ओर से उपस्थित : श्री विष्णु कुमार मिश्रा एवं श्री एस0एस0 अख्तर
विद्वान अधिवक्तागण।
विपक्षी सं0-२, ३ व ४ की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- ०१-१०-२०२०.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद में, परिवादी का संक्षेप में यह कथन है कि उसने जय आटो प्रा0लि0, जो नई दिल्ली में स्कोडा का अधिकृत डीलर है, से दिनांक २२-०७-२०१४ को एक नई स्कोडा ऑक्टेविया १.८ टीएसआई कार क्रय की। इस वाहन का पंजीकरण सं0-एचआर-२६-सीजे-७००० है तथा निर्माण का महीना व वर्ष जुलाई, २०१४ है। इसका चेसिस नं0-टीएमबीबीडी एफएनई ९ ईए ००६९९७ तथा इंजन नं0-सीजीएस ०६७४२६ है, जो १७०० सी0सी0 का है। इसका पहला नि:शुल्क चेकअप अधिकृत सर्विस स्टेशन जय आटो मोहन को-ऑपरेटिव
-२-
इण्डस्ट्रियल ऐस्टेट, मथुरा रोड, नई दिल्ली से कराया गया तथा दूसरी प्रारम्भिक सर्विस, वाहन मेनुअल के अनुसार विपक्षी सं0-३ स्कोडा अधिकृत सर्विस स्टेशन, नवाब मोटर्स नोएडा से हुई। परिवादी ने वाहन चलाते समय कार के डिस्प्ले पेनल पर चेतावनी प्रकाश को देखा और साथ में संदेश था कि कूलेण्ट चेक करवाऐं। इसके पश्चात् वह कार मेनुअल के निर्देश के अनुसार नवाब मोटर्स नोएडा के सर्विस स्टेशन दिनांक २१-०७-२०१५ को ले गया, जिन्होंने कार का निरीक्षण किया और कहा कि इसमें कोई शिकायत नहीं है और चेतावनी प्रकाश को ठीक करते हुए वाहन २२-०७-२०१५ को वापस किया (संलग्नक-२)। यह शिकायत प्रारम्भिक सर्विस के २० दिन के अन्दर उत्पन्न हुई और इस सर्विस पर परिवादी ने १०,१००/- रू० का भुगतान किया जैसा कि दिनांक ०४-०७-२०१५ के इन्वायस से स्पष्ट है (संलग्नक-३)। कुछ सौ किलोमीटर चलने के उपरान्त दिनांक ०३-०८-२०१५ को पुन: चेतावनी प्रकाश डिस्प्ले पेनल पर दिखाई दिया और वह अपने वाहन को पुन: नवाब मोटर्स नोएडा ले गया जहॉं पर बताया गया कि थर्मोस्टेट वाल्व काम नहीं कर रहा है जिसके कारण इंजन में कूलेण्ट का प्रवाह नहीं हो रहा है जिससे इंजन अत्यन्त गर्म होता है। उन्होंने बताया कि एक नई तकनीक है जिससे दूसरा वाल्व खुलता है और वह कूलेण्ट को धीमे-धीमे निकालता है, जैसा कि हो रहा था। थर्मोस्टेट वाल्व के बदलने की प्रक्रिया की गई जैसा कि इन्वायस दिनांकित १६-०९-२०१५ से स्पष्ट है (संलग्नक-४)। इस बार वाहन परिवादी को डेढ़ माह बाद वापस किया गया। कम्पनी के इंजीनियर ने बताया कि यदि इस दोष को दूर नहीं किया गया तब इंजन को खतरा हो सकता है। थर्मोस्टेट वाल्व को बदला गया किन्तु समस्या का निदान नहीं हुआ। इस डेढ़ माह के दौरान् परिवादी को बताया गया कि इंजन कण्ट्रोल यूनिट कार्य नहीं कर रहा है। इस कारण इंजन में कूलेण्ट का प्रवाह नहीं हो रहा है। सर्विस स्टेशन द्वारा ई.सी.यू. और कूलेण्ट टैंक को अतिरिक्त रूप से बदलने का आदेश दिया गया और तब दिनांक १६-०९-२०१५ को परिवादी को वाहन इस विश्वास के साथ वापस किया गया कि खराबी ठीक हो गई है। पुन: दिसम्बर, २०१५ में यह खराबी उत्पन्न हुई और वाहन के डिस्प्ले पेनल पर ‘ कूलेण्ट चेक करें ’ तथा ‘ इंजन ओवरहीट ’ का संदेश दिखाई पड़ा। सर्विस सेण्टर से बात करने पर उन्होंने वाहन को पुन: लाने को कहा और सर्विस सेण्टर के अधिकृत व्यक्ति द्वारा दिनांक ०७-१२-२०१५
-३-
को परिवादी के कार्यस्थल से वाहन ले जाया गया। इस निर्माण दोष को देखते हुए परिवादी ने जनरल मैनेजर श्री राठौर से वाहन को बदलने अथवा वाहन की पूरी धनराशि लौटाने की मांग की। परिवादी को बताया गया कि उसकी मांग पर विचार किया गया और उसे अस्वीकृत किया गया। इसके पश्चात् कार को ठीक करके परिवादी को वापस किया गया। उसे बताया गया कि कूलेण्ट चेम्बर भली-भांति कार्य नहीं कर रहा है और इसे बदलने की आवश्यकता है। परिवादी ने यह कहा कि यह चेम्बर नया है जो सितम्बर, २०१५ में बदला गया था जिस पर अधिकृत सर्विस सेण्टर के लोगों ने कोई उत्तर नहीं दिया। परिवादी ने विपक्षी से सम्पूर्ण सर्विस रिकार्ड को मांगा जो उसे नहीं दिया। परिवादी ने एक ई-मेल भेजा जैसा कि संलग्नक-५ से स्पष्ट है।
वाहन में दोषयुक्त बैटरी लगी थी। दिनांक ०६-०४-२०१६ को वाहन स्टार्ट नहीं हुआ। इसके पश्चात् नवाब मोटर्स से बात कर वाहन वहॉं ले जाया गया और उन्होंने बताया कि यह बैटरी ठीक नहीं है और फिर स्कोडा इण्डिया से नई बैटरी मंगाई गई (संलग्नक-६)। पुन: मई, २०१६ में कूलेण्ट समस्या फिर से उत्पन्न हुई और वह वाहन को पुन: नवाब मोटर्स नोएडा ले गया जहॉं बताया गया कि इंजन आयल यूनिट में दोष है जिससे इंजन आयल कूलेण्ट से मिल जाता है और इसे ठीक करना होगा। इसका कोई इन्वायस नहीं दिया गया। स्पष्ट है कि वाहन का कई बार निरीक्षण अधिकृत सर्विस सेण्टर द्वारा किया गया और कमी के ठीक होने का विश्वास दिलाया गया। तदोपरान्त विशेषज्ञ का भी महत्व नहीं रह गया क्योंकि नवाब मोटर्स इण्डिया ने खुद कमी को दूर करने की कोशिश करना माना है किन्तु इस कमी को दूर नहीं कर पाये। दिनांक १३-०८-२०१५ और दिनांक ०१-०९-२०१५ को विपक्षी सं0-३ से ई-मेल प्राप्त हुए जो संलग्नक-७ हैं। निश्चित तौर से कमी केवल इंजन में नहीं है बल्कि कोई अंदरूनी निर्माण से सम्बन्धित त्रुटि है जिसे परिवादी से न सिर्फ छिपाया गया बल्कि गलत व्यापार भी किया गया। विपक्षीगण ने एक दूषित वाहन परिवादी को उपलब्ध करया जिसके लिए परिवादी ने २०,४०,०००/- रू० का भुगतान किया जिसमें पंजीयन और बीमा की धनराशि भी शामिल है। परिवादी कई बार विपक्षीगण के कार्यालय अपने वाहन को बदलवाने के लिए गया किन्तु उन्होंने केवल बहाने बनाए। तब परिवादी ने दिनांक १५-०२-२०१६ को पंजीकृत
-४-
डाक से एक विधिक नोटिस भेजी जिसका उत्तर दिनांक ०१-०३-२०१६ को विपक्षी सं0-१ से प्राप्त हुआ जिसमें उसने परिवादी के कथनों से इन्कार किया। विपक्षी ने इसके पश्चात् इस मामले में चुप्पी साध ली। छ: माह बीतने के बाद भी विपक्षी से कोई सन्तोषजनक उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। इस प्रकार परिवादी ने प्रतिफल दे कर प्रश्नगत वाहन विपक्षी सं0-४ से खरीदा जो विपक्षी सं0-१ द्वारा निर्मित किया गया था और विपक्षी सं0-३ द्वारा इसकी सर्विस की गई। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा २(डी) के अन्तर्गत वह उपभोक्ता है ओर सभी विपक्षीगण अलग-अलग एवं सामूहिक रूप से उत्तरदायी हैं। विपक्षी द्वारा एक त्रुटियुक्त वाहन परिवादी को दिया गया और उनके द्वारा सेवा में कमी भी की गई और इस कारण परिवादी को यहॉं से वहॉं बार-बार दौड़ना पड़ा। उपभोक्ता आयोग को धारा-१७ के अन्तर्गत क्षेत्राधिकार प्राप्त है। वाद का कारण पहली बार दिनांक २१-०७-२०१५ को उत्पन्न हुआ, दोबारा दिनांक ०३-०८-२०१५ को, फिर ०७-१२-२०१५ को, फिर ०६-०४-२०१६, ०९-०५-२०१६ एवं १५-०२-२०१६ को उत्पन्न हुआ। वाद का मूल्यांकन २०,४०,०००/- रू० है जिस पर नियमानुसार वाद शुल्क अदा किया गया है। अत: विपक्षीगण को आदेश दिया जाय कि वे परिवादी के वाहन बदले उसे नया वाहन दें अथवा २०,४०,०००/- रू० मय २४ प्रतिशत वार्षिक ब्याज के उसकी वास्तविक भुगतान की तिथि तक अदा करें। इसके अतिरिक्त विपक्षीगण से हर्जाना के रूप में १०.०० लाख रू० मय ब्याज के मानसिक उत्पीड़न के लिए परिवादी को दिलाए जायें।
विपक्षी सं0-१ ने अपने लिखित कथन में कहा कि वह मिस अमृता जैन मैनेजर-लीगल, मै0 स्कोडा आटो इण्डिया प्रा0लि0 की ओर से न्यायालय में उपस्थित हो रही है और यह कम्पनी, कम्पनीज एक्ट १९५६ के अन्तर्गत पंजीकृत है जो ए-१/१, एमआईडीसी, फाइव स्टार इण्डस्ट्रियल एरिया, औरंगाबाद, महाराष्ट्र में स्थित है। उसे इस प्रकरण से सम्बन्धित सभी तथ्य और परिस्थितियॉं मालूम हैं। वह वाहन संख्या-एचआर-२६-सीजे-७००० का निर्माता है। परिवाद कालबाधित है और यह परिवाद वाहन क्रय करने के दो साल के बाद प्रस्तुत किया गया है। परिवाद दाखिल करते समय वाहन की वारण्टी समाप्त हो चुकी थी और इस आयोग को इसे सुनने का आर्थिक क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। वाहन के बिना यांत्रिक परीक्षण के वाहन चलने योग्य नहीं है। विपक्षी बिना शर्त
-५-
अपनी इच्छा को व्यक्त करता है कि वाहन का निरीक्षण किसी स्वतन्त्र विशेषज्ञ द्वारा कराया जाय जैसा कि धारा १३(१)(सी) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ में बताया गया है और मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा स्वराज माजदा लिमिटेड बनाम पी0के0 चक्काप्पोरे व अन्य, II (2005) CPJ 72 (NC) के मामले में व्यक्त किया गया है। वाहन की सर्विसिंग की जा चुकी है और अब कोई भी कार्यवाही बाकी नहीं है। जॉब इन्वायस दिनांक २८-०७-२०१६ संलग्न है। परिवादी कथित वाहन के बदले नया वाहन अथवा उसकी धनराशि पाने का अधिकारी नहीं है क्योंकि कथित वाहन में कोई निर्माण सम्बन्धी दोष नहीं है और वाहन का बदला जाना वारण्टी के अन्तर्गत नहीं आता। कथित वाहन २५००० किलोमीटर से ज्यादा चल चुका है और जुलाई, २०१६ में उसका मीटर २५२९७ किलोमीटर पर था। स्पष्ट है कि उसकी कमी दूर की जा चुकी थी। कथित वाहन का रख-रखाव मेनुअल के अनुसार नहीं किया गया।
कथित वाहन पहली नि:शुल्क सर्विस के लिए दिनांक ०४-०७-२०१५ को सर्विस सेण्टर लायी गयी थी तब तक वह १२००० कि0मी0 से अधिक चल चुकी थी। नियमानुसार सर्विस की गई और उसे वापस किया गया। वाहन दिनांक २१-०७-२०१५ को चेतावनी प्रकाश दिखने के कारण सर्विस सेण्टर लायी गयी जिसको ठीक करके दिनांक २२-०७-२०१५ को वापस किया गया। कथित वाहन में कोई निर्माण सम्बन्धी दोष नहीं था। दिनांक ०३-०८-२०१५ को वाहन में कूलेण्ट की समस्या आयी और उसका समुचित निरीक्षण करके निराकरण किया गया। सर्विसिंग के दौरान् परिवादी को लोन कार प्रयोग करने के लिए दी गई। कार का हुड कुछ समय चलने के बाद गर्म हो जाता है। रेडिएटर और इंजन भी गर्म हो जाते हैं और यदि इस गर्मी को ठीक प्रकार से रोका नहीं जाय तो इंजन ओवरहीट हो जाता है। कूलिंग सिस्टम इसी को ठण्डा रखता है। कूलिंग सिस्टम में पाइप और ट्यूब लगे होते हैा जो इंजन के चारों ओर होते हैं। जब कूलेण्ट इन पाइपों के अन्दर से गुजरता है तब इंजन की गर्मी को कम करता है। कूलेण्ट एक प्लास्टिक बोतल में रेडिएटर के पास होता है। रेडिएटर कैप प्रैशर कुकर के एयर रिलीज सिस्टम की तरह होता है। जब रेडिएटर गर्म होता है तब दवाब के कारण कुछ कूलेण्ट कैप में निकल जाता है और यह इंजन को ठण्डा रखता है। जब सिस्टम ठण्डा होता है तब कूलेण्ट रेडिएटर में
-६-
वापस आता है। जब कोई लीक या रिसाव होता है तब इंजन अत्यधिक गर्म हो जाता है। चूँकि रिजरवायर प्लास्टिक का होता है इसलिए इसमें कभी-कभी क्रैक हो जाता है। सर्विसिंग के समय थर्मोस्टेट वाल्व भली-भांति कार्य नहीं कर रहा था जिस पर उत्तरदाता विपक्षी ने सारे पार्ट्स को बदल दिया जो वारण्टी के अन्तर्गत नि:शुल्क किया गया। इसके बाद से यह कार लगातार चल रही है और २५००० कि0मी0 की यात्रा तय कर चुकी है। कथित वाहन की सर्विसिंग प्रशिक्षित इंजीनियर्स द्वारा की गई और यह वाहन इस समय हजारों किलोमीटर चल चुकी है जिससे स्पष्ट है कि इसमें कोई निर्माण सम्बन्धी दोष नहीं है। वाहन को दिनांक ०७-१२-२०१५ को जब लाया गया तब वह १७००० कि0मी0 से अधिक चल चुकी थी और कूलेण्ट रिजर्व वायरका कैप ढीला था, इसे बदल दिया गया। परिवादी ने अपनी पीड़ा बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बताई है। उसके वाहन में कोई दोष नहीं है। उसे सबसे अच्छी सेवा दी गई। जॉब इन्वायस दिनांकित १९-१२-२०१५ में सन्तुष्टि टिप्पणी मौजूद है। वाहन की बैटरी दोषपूर्ण नहीं थी। बैटरी डिस्चार्ज हो चुकी थी और बैटरी की वारण्टी मात्र एक वर्ष की होती है फिर भी इसे बदल दिया गया। दिनांक ०९-०५-२०१६ को कूलेण्ट समस्या के लिए जब वाहन सर्विस सेण्टर पर लाया गया तब उसका कूलेण्ट आयल टैंक और डिस्टिल्ड वाटर खाली था। स्पष्ट है कि बिना कूलेण्ट की परवाह किए वाहन से लम्बी यात्रा की गई। ३३ दिन में वाहन ६००० कि0मी0 मेनुअल के निर्देशों का पालन न करते हुए चलाया गया। परिवादी को इसके बारे में जानकारी दी गई और वाहन के इस दोष को ठीक किया गया और सब नि:शुल्क किया गया ताकि कम्पनी की गुडविल अच्छी रहे। वाहन उपेक्षापूर्ण चलाया गया। विपक्षी द्वारा कोई गलत व्यापार नहीं किया गया और न ही कोई बहानेबाजी की गई, बल्कि वाहन के सारे दोषों को कुशल इंजीनियरों द्वारा दूर किया गया। वाहन में कोई निर्माण सम्बन्धी दोष नहीं है। यह वाहन उच्च तकनीकी वाला नवीन मॉडल है जो आटोमोटिव रिसर्च एसोशिएसन आफ इण्डिया, पुणे द्वारा अनुमोदित है। परिवादी को वाद का कोई कारण उत्पन्न नहीं हुआ है। वाहन की सर्विसिंग भली-भांति कराई गई। परिवादी का परिवाद पत्र खारिज होने योग्य है। वह कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है। अपने कथनों के समर्थन में विपक्षी सं0-१ ने सुश्री अमृता जैन मैनेजर लीगल का शपथ पत्र भी संलग्न किया है।
-७-
विपक्षी सं0-२ व ३ ने अपने लिखित कथन में कहा है कि परिवादी उपभोक्ता नहीं है। क्योंकि उसने हम विपक्षीयों से वाहन क्रय नहीं किया है बल्कि वाहन विपक्षी सं0-३ से क्रय किया है। अत: हम विपक्षीयों का कोई उत्तरदायित्व नहीं है। चेतावनी लाइट का जलना इंजन के अत्यधिक गर्म होने से सम्बन्धित है। कार की वारण्टी अवधि में नि:शुल्क कार्य किया गया। कार की ई.सी.यू. यूनिट भी नि:शुल्क बदली गई। इसका दोष निर्माण सम्बन्धी दोष नहीं है बल्कि आमतौर की तोड़-फोड़ है। प्रत्येक अवसर पर वाहन की सर्विसिंग की गई और आवश्यक पार्ट्स को बदला भी गया जिससे परिवादी पूर्णत: सन्तुष्ट था वह विपक्षी सं0-१ का अधिकृत सर्विस सेण्टर है और विपक्षी सं0-१ के दिशा निर्देशों के अन्तर्गत कार्य करता है। उसके द्वारा ई.सी.यू. यूनिट, बैटरी, कूलेण्ट बोतल की कमी को दूर किया गया या बदले गये और इस प्रकार उसके द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई। विपक्षी उत्तरदाता वाहन के दोषों को दूर करने के लिए हमेशा तत्पर एवं तैयार रहे। वाहन में निर्माण सम्बन्धी कोई दोष नहीं था। चूँकि कार परिवादी ने उनसे नहीं खरीदी थी इसलिए उनके द्वारा प्रश्नगत वाहन के बदले नया वाहन देने का कोई औचित्य नहीं था। उसे किसी प्रकार की कोई नोटिस दिनांकित १५-०२-२०१६ प्राप्त नहीं हुई। वह किसी भी प्रकार की धनराशि अदा करने के उत्तरदायी नहीं हैं। परिवादी के साथ कोई भी गलत व्यापार सम्बन्धी कार्यवाही नहीं की गई। उत्तरदाता विपक्षी और परिवादी के बीच उपभोक्ता का कोई सम्बन्ध नहीं है और उसके विरूद्ध परिवादी को कोई वाद कारण उत्पन्न नहीं हुआ है। परिवादी का परिवाद चलने योग्य नहीं है और खारिज होने योग्य है।
परिवादी की ओर से अपने कथन के समर्थन में परिवाद पत्र के साथ निम्नलिखित अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किए गये :-
कस्टमर इन्वायस दिनांकित २२-०७-२०१४ (संलग्नक-१), पंजीयन प्रमाण पत्र संलग्नक-१(२), रिटेल इन्वायस नवाब मोटर्स प्रा0लि0 दिनांकित २२-०७-२०१५(संलग्नक-२), रिटेल इन्वायस नवाब मोटर्स प्रा0लि0 दिनांकित ०४-०७-२०१५ (संलग्नक-३), रिटेल इन्वायस नवाब मोटर्स प्रा0लि0 दिनांकित १६-०९-२०१५ (संलग्नक-४), ई-मेल द्वारा वरूण लाम्बा दिनांकित ०९-१२-२०१५ (संलग्नक-५), रिटेल इन्वायस नवाब मोटर्स प्रा0लि0
-८-
दिनांकित २२-०७-२०१५ (संलग्नक-६), ई-मेल द्वारा अमित धींगरा दिनांकित १३-०८-२०१५ (संलग्नक-७), ई-मेल द्वारा जी.एम. सर्विस दिनांकित १०-०९-२०१५ (संलग्नक-७(२)), लीगल नोटिस द्वारा एडवोकेट परिवादी (संलग्नक-८), उत्तर नोटिस द्वारा स्कोडा आटो इण्डिया प्रा0लि0 दिनांकित ०१-०३-२०१६ (संलग्नक-९)।
इसके अतिरिक्त परिवादी की ओर से प्रार्थना पत्र दिनांकित २९-०५-२०१८ द्वारा निम्नलिखित अभिलेख प्रस्तुत किए गये :-
रिटेल इन्वायस विशाल कार्स दिनांकित ०७-०२-२०१७ तथा टैक्स इन्वायस नवाब मोटर्स प्रा0लि0 दिनांकित २०-०८-२०१७.
परिवाद के अभिकथनों के समर्थन में परिवादी की ओर से साक्ष्य के रूप में अपना स्वयं का शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी सं0-१ की ओर से निम्नलिखित अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किए गये हैं :-
रिटेल इन्वायस नवाब मोटर्स प्रा0लि0 दिनांकित २८-०७-२०१६ (२५२९७ कि0मी0), रिटेल इन्वायस नवाब मोटर्स प्रा0लि0 दिनांकित १६-०९-२०१५ (१३५८८ कि0मी0), रिटेल इन्वायस नवाब मोटर्स प्रा0लि0 दिनांकित १९-१२-२०१५ (१७४५४ कि0मी0), रिटेल इन्वायस नवाब मोटर्स प्रा0लि0 दिनांकित २२-०४-२०१६ (१७८२० कि0मी0), रिटेल इन्वायस नवाब मोटर्स प्रा0लि0 दिनांकित १३-०५-२०१६ (२३८२१ कि0मी0)।
विपक्षी सं0-१ स्कोडा आटो इण्डिया प्रा0लि0 की ओर से अधिकृत प्रबन्धक विधि सुश्री अमृता जैन ने शपथ पत्र पर अपना साक्ष्य प्रस्तुत किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि वह विपक्षी संख्या-१ की ओर से लिखित साक्ष्य प्रस्तुत कर रही हैं तथा उसे इस प्रकरण से सम्बन्धित समस्त जानकारी है। परिवाद पत्र प्रश्नगत वाहन खरीदने के ०२ वर्ष पश्चात् प्रस्तुत किया गया है और तब तक वारण्टी अवधि समाप्त हो चुकी थी। अत: परिवाद विधि का दुरूपयोग है। इस आयोग को वाद सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। वह स्वतन्त्र एजेन्सी द्वारा वाहन का निरीक्षण कराए जाने की संस्तुति करती हैं। जैसा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा-१३(१)(सी) तथा मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा स्वराज माजदा लिमिटेड बनाम पी0के0 चक्काप्पोरे व अन्य, II (2005) CPJ 72 (NC) के मामले में व्यक्त किया गया है। वाहन की सर्विसिंग हो चुकी है और अब वाद का
-९-
कोई कारण नहीं है। परिवादी अपने वाहन को नये वाहन से बदलने अथवा उसकी कुल धनराशि वापस पाने का अधिकारी नहीं है क्योंकि प्रश्नगत वाहन किसी निर्माण दोष से ग्रसित नहीं है। परिवादी ने इस सम्बन्ध में कोई अभिलेखीय साक्ष्य नहीं दी है। प्रश्नगत वाहन २५००० कि0मी0 से अधिक चल चुका है। दो साल में मीटर रीडिंग २५२९७ कि0मी0 है। अत: परिवादी के दावा में कोई बल नहीं है। वाहन का रख-रखाव मेनुअल के अनुसार नहीं किया गया। जब वाहन पहली बार सर्विसिंग के लिए दिनांक ०४-०७-२०१५ को लाया गया था तब वह १२००० कि0मी0 से अधिक चल चुकी थी। वाहन की सर्विसिंग, प्रक्रिया के अनुसार की गई। दोबारा वाहन दिनांक २१-०७-२०१५ को डिस्प्ले पेनल पर चेतावनी प्रकाश के जलने बुझने की समस्या को लेकर आयी थी और उसे भी ठीक किया गया। विपक्षी सं0-३ द्वारा दिनांक ०३-०८-२०१५ को वाहन का व्यापक निरीक्षण किया गया और परिवादी को लोनर कार भी दी गई तथा उसके वाहन की कमियों का निराकरण भी कर दिया गया। अपने लिखित कथन में व्यक्त किए गये कूलेण्ट की प्रक्रिया को पुन: शपथ पत्र में दोहराया गया है। वाहन का कूलेण्ट सिस्टम तथा अन्य प्रकार की कमियॉं नि:शुल्क दूर की गईं और वाहन परिवादी को प्रदान किया गया। वाहन के निरीक्षण और सर्विसिंग का कार्य प्रशिक्षित इंजीनियर द्वारा किया गया और उसके बाद से परिवादी अपने वाहन को लगातार चला रहा है। वाहन में किसी प्रकार का दोष नहीं हौ और दिनांक ०७-१२-२०१५ को कूलेण्ट चेक करने के लिए वाहन लाया गया तब तक वह १७००० कि0मी0 से अधिक चल चुका था। कूलेण्ट रिजरवायर के ढीले कैप को ठीक किया गया। परिवादी ने अपने वाहन की कमियों को अत्यन्त बढ़ा-चढ़ा कर कहा है। अगर वाहन में निर्माण दोष होता तब वाहन २५००० कि0मी0 से अधिक नहीं चलता। वाहन की बैटरी दोषयुक्त नहीं थी। बैटरी डिस्चार्ज पाई गई थी और इसको नि:शुल्क बदल दिया गया था जबकि बैटरी की वारण्टी एक वर्ष की होती है और वह दो वर्ष बाद लाई गई थी। दिनांक ०९-०५-२०१६ को कूलेण्ट समस्या के कारण वाहन विपक्षी सं0-३ के यहॉं लाया गया था और यह पाया गया कि कूलेण्ट टैंक और डिस्टिल्ड वाटर खाली थे। बिना कूलेण्ट का निरीक्षण किए वाहन चलाया गया था जो मेनुअल का उल्लंघन था। इसके पश्चात् इस सब को बदला गया और ठीक किया गया और यह कार्य भी नि:शुल्क किया गया।
-१०-
परिवादी का यह कृत्य घोर लापरवाही का परिचायक है। वाहन की सारी कमियों का निराकरण कर दिया गया था और वह वर्तमान समय में परिवादी द्वारा प्रयोग में लाया जा रहा है। अत: वाहन के बदले नया वाहन देने या उसकी राशि को ब्याज सहित वापस करने का कोई औचित्य नहीं है। परिवादी को कोई वाद का कारण उत्पन्न नहीं होता है ओर उसका परिवाद खारिज होने योग्य है।
विपक्षी सं0-२ व ३ की ओर से प्रस्तुत किए गये लिखित कथन के समर्थन में श्री विकेन्द्र गिरी पुत्र श्री रामफल गिरी, मैनेजर नवाब मोटर्स प्रा0लि0 द्वारा अपना शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी सं0-४ पर नोटिस की तामीला के बाबजूद उसकी ओर से परिवाद की कार्यवाही में भाग लेने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
विपक्षी सं0-१ द्वारा प्रस्तुत लिखित कथन के सम्बन्ध में परिवादी ने अपना प्रत्युत्तर दिनांक ०३-०८-२०१७ प्रस्तुत किया जिसमें उसने परिवाद के कथनों को दोहराया है। परिवादी द्वारा विपक्षी सं0-२ व ३ के लिखित कथन का भी प्रत्युत्तर दिनांकित २०-०७-२०१७ शपथ पत्र के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने अपने परिवाद पत्र के तथ्यों को दोहराया है।
हमने परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री रत्नेश चन्द्र तथा विपक्षी सं0-१ की ओर से विद्वान अधिवक्तागत श्री विष्णु कुमार मिश्रा और श्री एस0एस0 अख्तर के तर्क सुने तथा पत्रावली का परिशीलन किया। विपक्षी सं0-२, ३ व ४ की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
परिवादी की ओर से लिखित बहस दिनांक ३१-०८-२०२० प्रस्तुत की गई जबकि विपक्षी सं0-१ की ओर से लिखित बहस दिनांक ०८-०९-२०२० प्रस्तुत की गई।
परिवादी की ओर से अपनी लिखित बहस के साथ निम्नलिखित न्यायिक दृष्टान्त प्रस्तुत किए गये हैं :-
१. अम्बरीश कुमार शुक्ला व २१ अन्य बनाम फेर्रस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा0लि0, २०१६ एससीसी ऑनलाइन एनसीडीआरसी १११७ : (२०१७) १ सीपीजे १ (एनसी).
२. कुसुम इनगोट्स एण्ड एलॉयज लि0 बनाम यूनियन आफ इण्डियाव अन्य, (२००४)
-११-
६ सुप्रीम कोर्ट केसेज २५४.
३. इण्डोकेम इलैक्ट्रॉनिक व अन्य बनाम एडीशनल कलैक्टर आफ कस्टम्स, ए0पी0, सिविल अपील नं0-१२७३ (एस एल पी (सिविल) नं0.२४६९९/२००३ से उत्पन्न) में मा0 उच्तम न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय दिनांकित २४-०२-२००६.
विपक्षी सं0-१ की ओर से अपनी लिखित बहस के साथ निम्नलिखित न्यायिक दृष्टान्त प्रस्तुत किए गये हैं :-
१. मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा मोहम्मद हसन खालिद हैदर बनाम जनरल मोटर्स इण्डिया प्रा0लि0 व अन्य, रिवीजन पिटीशन सं0-५२५/२०१८ में दिया गया निर्णय दिनांकित ०८-०६-२०१८.
२. मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा हुण्डई मोटर्स इण्डिया लि0 बनाम सुरभि गुप्ता व अन्य, रिवीजन पिटीशन सं0-२८५४/२०१४ में दिया गया निर्णय दिनांकित १४-०८-२०१४.
वर्तमान मामले में विपक्षी ने बहस करते हुए कहा कि इस मामले में न्यायालय को परिवाद सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है। हमने परिवाद पत्र का अवलोकन किया। परिवादी ने अपने कथन और साक्ष्य में स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने यह वाहन जय आटो प्रा0लि0, नई दिल्ली से दिनांक २२-०७-२०१४ को क्रय किया था। इस वाहन की सर्विसिंग नवाब मोटर्स प्रा0लि0, नोएडा में हुई थी। प्रत्येक नये वाहन की खरीद के उपरान्त उसकी सर्विसिंग या तो विक्रय करने वाली कम्पनी अपने यहॉं करती है अथवा किसी दूसरे को अपनी ओर से सर्विसिंग के लिए अधिकृत करती है। शूरू की दो या तीन सर्विस नि:शुल्क होती हैं। परिवादी द्वारा वाहन क्रय करने के पश्चात् उसके सिर्विसिंग नवाब मोटर्स प्रा0लि0, नोएडा में कराई और यह दोनों पक्षों को मान्य है। उभय पष की ओर से इस सम्बन्ध में रिटेल इन्वायस भी प्रस्तुत किए गये। लिखित कथन और साक्ष्य से स्पष्ट है कि नवाब मोटर्स प्रा0लि0, नोएडा में प्रश्नगत स्कोडा वाहन की सर्विसिंग की गई है और जिस हिस्से में दोष पाया गया उसे नि:शुल्क बदला भी गया है जिससे स्पष्ट होता है कि यह नवाब मोटर्स प्रा0लि0 नोएडा, स्कोडा कम्पनी का अधिकृत सर्विस सेण्टर है जो उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। अत: क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार इस राज्य आयोग को प्राप्त है।
-१२-
विपक्षी की ओर से आर्थिक क्षेत्राधिकार पर भी आपत्ति की गई। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में वाद का मूल्यांकन २०,४०,०००/- रू० कहा है तथा साथ ही साथ १०.०० लाख रू० हर्जाना मय ब्याज के भी मांगा है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित न्यायिक दृष्टान्त को देखना समीचीन होगा :-
अम्बरीश कुमार शुक्ला व २१ अन्य बनाम फेर्रस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा0लि0, २०१६ एससीसी ऑनलाइन एनसीडीआरसी १११७ : (२०१७) १ सीपीजे १ (एनसी) के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि धारा-२१ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत जिस सेवा अथवा सामान के लिए हर्जाने की मांग की गई है वह एक करोड़ रूपये से ऊपर है वहॉं वस्तु या सेवा का मूल्य तथा हर्जाने की धनराशि को देखना होगा। यदि दोनों का संयुक्त मूल्य एक करोड़ रूपये से ऊपर है तब क्षेत्राधिकार मा0 राष्ट्रीय आयोग का होगा और यदि वस्तु या सेवा तथा क्षतिपूर्ति का संयुक्त योग २०.०० लाख रू० से ऊपर है किन्तु एक करोड़ रूपये से अनधिक है तब राज्य आयोग को परिवादी की सुनवाई का आर्थिक क्षेत्राधिकार है।
कुसुम इनगोट्स एण्ड एलॉयज लि0 बनाम यूनियन आफ इण्डियाव अन्य, (२००४) ६ सुप्रीम कोर्ट केसेज २५४ के मामले में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने वाद कारण उत्पन्न होने वाले स्थान के बारे में कहा कि जहॉं पर अपीलीय या पुनरीक्षण आदेश पारित किया जाता है वहॉं पर ऐसा स्थान वाद के कारण का भाग होता है। यद्यपि मूल आदेश क्षेत्र से बाहर का है जहॉं पर अपीलीय या पुनरीक्षण आदेश पारित किया गया हो। मा0 न्यायालय ने कहा कि वाद के कारण का तात्पर्य वाद प्रस्तुत करने के अधिकार से है। वाद का कारण किसी विधि से परिभाषित नहीं है और यह न्यायिक रूप से परिभाषित किया गया है। चॉंद कौर बनाम परताब सिंह (१८८७-८८) १५ प्रथम अपील १५६ में मा0 न्यायालय ने कहा कि वाद के कारण का कोई सम्बन्ध प्रतिवादी द्वारा प्रतिरक्षा पर आधारित नहीं होता और न ही वादी द्वारा मांगे गये अनुतोष पर होता है। यह पूर्ण रूप से वाद पद पत्र में प्रस्तुत किए गये आधार पर निर्भर होता है या वह माध्यम जिस पर वादी न्यायालय से अपने पक्ष में किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए निवेदन करता है। मा0 उच्चतम न्यायालय ने ऑयल एण्ड नेचुरल गैस कमीशन बनाम उत्पल कुमार बसु (१९९४) ४
-१३-
एससीसी ७११ के मामले में यह कहा कि यह प्रश्न कि न्यायालय का क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार है अथवा नहीं वह याचिका में याची द्वारा कहे गये कथनों पर आधारित होता है।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि इस मामले में राज्य आयोग को क्षेत्रीय तथा आर्थिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
वर्तमान मामले में मुख्य विवाद यह है कि परिवादी ने अपने वाहन में निर्माण सम्बन्धी दोष होना बार-बार कहा है और आयोग से यह अनुतोष मांगा है कि उसे इस वाहन के बदले नया वाहन दिलाया जाय अथवा उसका सम्पूर्ण मूल्य मय रजिस्ट्रेशन शुल्क सहित वापस किया जाय। परिवादी ने अपने कथन और साक्ष्य में यह कहा है कि उसके द्वारा प्रश्नगत स्कोडा वाहन दिनांक २२-०७-२०१४ को क्रय किया गया। उसने यह भी कहा कि जब वाहन चलाते समय डिस्प्ले पेनल पर उसने चेतावनी प्रकाश देखा और यह संदेश पाया कि कूलेण्ट का परीक्षण किया जाय तब वह कार मेनुअल के आधार पर अपना वाहन दिनांक २१-०७-२०१५ को नवाब मोटर्स प्रा0लि0, नोएडा में परीक्षण हेतु ले गया जिन्होंने इसकी कमियों को दूर करते हुए वाहन दिनांक २२-०७-२०१५ को वापस कर दिया। संलग्नक-२ से स्पष्ट है कि जब यह वाहन २१-०७-२०१५ को चेतावनी प्रकाश देखने के बाद नवाब मोटर्स प्रा0लि0, नोएडा ले जाया गया तब तक यह वाहन १३०८९ कि0मी0 चल चुका था और वाहन खरीदे लगभग ०१ वर्ष बीत चुका था। इसके पहले दिनांक ०४-०७-२०१५ को यह वाहन नवाब मोटर्स प्रा0लि0, नोएडा में पहली सर्विस के लिए गया था और तब तक यह १२५०९ कि0मी0 चल चुका था जैसा कि संलग्नक-३ से स्पष्ट है और इस समय तक वाहन में किसी प्रकार का कोई दोष दृष्टिगोचर नहीं हुआ था। दिनांक २१-०७-२०१५ को जब दोष दूर कर दिया गया तब परिवादी के अनुसार इसके कुछ दिन बाद पुन: चेतावनी प्रकाश के दिखने पर वाहन को दिनांक ०३-०८-२०१५ को नवाब मोटर्स प्रा0लि0, नोएडा ले जाया गया जहॉं पर इसका निरीक्षण कर वाहन को ठीक किया गया और जो हिस्से बदले गये वे नि:शुल्क बदले गये।
अभिलेखों से स्पष्ट होता है कि यह वाहन दिनांक १६-१२-२०१५ को पुन: नवाब मोटर्स प्रा0लि0, नोएडा ले जाया गया और उस समय यह १७४५४ कि0मी0 चल चुका था। दिनांक २२-०४-२०१६ को यह पुन: नवाब मोटर्स प्रा0लि0, नोएडा गया। दिनांक २२-०४-
-१४-
२०१६ को वाहन की बैटरी भी नि:शुल्क बदली गई। इससे पहले दिनांक ०७-१२-२०१५ को कूलेण्ट रिजरवायर ढीला पाया गया था और इसको सर्विस सेण्टर पर ठीक किया गया।
विपक्षी की ओर से टैक्स इन्वायस जय आटो व्हीकल्स दिनांक ३१-०७-२०१९ का प्रस्तुत किया गया है जिसमें वाहन उक्त तिथि तक ५५७१९ कि0मी0 चल चुका था।
परिवादी का मुख्य कथन है कि वाहन में निर्माण सम्बन्धी दोष था इसलिए वाहन को या तो बदला जाय या फिर वाहन के बदले वाहन क्रय की धनराशि और पंजीयन शुल्क वापस किया जाय।
विपक्षी ने कहीं भी यह नहीं माना है कि वाहन में कोई निर्माण सम्बन्धी दोष था। जितने भी दोष वाहन में पाये गये वे ज्यादातर कूलेण्ट से सम्बन्धित पाये गये और सर्विस सेण्टर द्वारा उनको ठीक किया गया। अगर वाहन में निर्माण सम्बन्धी दोष होता तब वाहन क्रय करने के पश्चात् एक साल तक वाहन निर्बाध रूप से नहीं चल पाता। इसके अतिरिक्त दिनांक २८-०६-२०१९ तक प्रश्नगत वाहन ५५००० कि0मी0 से ऊपर चल चुका था। स्पष्ट है कि वाहन में अब किसी प्रकार की कोई कठिनाई उत्पन्न नहीं हो रही है और वह भली-भांति चल रहा है। विपक्षी द्वारा इस सम्बन्ध में निम्नलिखित न्यायिक दृष्टान्त प्रस्तुत किए गये हैं :-
मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा मोहम्मद हसन खालिद हैदर बनाम जनरल मोटर्स इण्डिया प्रा0लि0 व अन्य, रिवीजन पिटीशन सं0-५२५/२०१८ में दिये गये निर्णय दिनांकित ०८-०६-२०१८ में अपने पूर्व निर्णय टाटा मोटर्सबनाम राजेश त्यागी व अन्य निर्णीत दिनांक ०३-१२-२०१३ (आर पी नं0-१०३०/२००८) का सन्दर्भ लेते हुए कहा गया कि टाटा मोटर्स के वाहन में कमियॉं वाहन प्राप्त करने के कुछ दिन के ही अन्दर उत्पन्न हुईं और परिवादी को पता चला कि कार के अन्दर फर्श के क्षेत्र और सामान वाले यात्री सीट के नीचे पानी जमा हो गया है और इसका निराकरण विपक्षी द्वारा नहीं हो सकता जबकि मोहम्मद हसन खालिद हैदर बनाम जनरल मोटर्स इण्डिया प्रा0लि0 व अन्य के मामले में वाहन में समस्या उसको लेने के नौ-दस माह बाद आयी जबकि वाहन इस बीच २५००० किलोमीटर चल चुका था। मा0 राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि यदि वाहन में निर्माण सम्बन्धी दोष होता तब यह दोष वाहन खरीदने के तुरन्त बाद ही दृष्टिगोचर होता और
-१५-
परिवादी ऐसे दोषयुक्त वाहन के साथ २५००० कि0मी0 की यात्रा नहीं कर सकता और जो दोष बताये गये थे उनका उचित निराकरण भी कर दिया गया। मा0 राष्ट्रीय आयोग ने एक अन्य मामले बलजीत कौर बनाम डिवाइन मोटर्स व अन्य निर्णीत दिनांक ०८-०६-२०१७, आर पी नं0-१३३६/२०१७ [III(2017) CPJ 599(NC)] में कहा कि जब कभी निर्माण सम्बन्धी दोष का कथन किया जाता है तब इसको सिद्ध करने का भार परिवादी पर होता है। इस मामले में याची/परिवादी ने निर्माण सम्बन्धी कथित दोष के सम्बन्ध में अपना और सात-आठ अन्य साक्षीयों के शपथ पत्र दिए। जिला फोरम व राज्य आयोग ने कहा कि ये शपथ पत्र किसी विशेषज्ञ की आख्या का स्थान नहीं ले सकते हैं।
सुरेश चन्द जैन बनाम सर्विस इंजीनियर एण्ड सेल्स सुपरवाइजर, एम आर एफ लि0 व अन्य, निर्णीत दिनांक १६-१२-२०१०, आर पी नं0-३८४६/२००६ [I(2011) CPJ 63 (NC)] के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा कहा गया कि टायरों में निर्माण सम्बन्धी दोष सिद्ध करने का भार परिवादी का है जो वह किसी समुचित साक्ष्य से सिद्ध नहीं कर सका। परिवादी किसी विशेषज्ञ का भी साक्ष्य नहीं दे सका। परिवादी यह सिद्ध करने में असफल रहा कि उसके द्वारा खरीदे गये टायर में निर्माण सम्बन्धी दोष था।
एनईजीआई साइन सिस्टमएण्ड सप्लाईज कं0 बनाम रिजुलाइज जैकब, निर्णीत दिनांक ०७-०१-२०१६, आर पी नं0-२६७७/२०१५ [ II (2016) CPJ 19 (NC) ] के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा कहा गया कि यह सिद्ध करने का भार परिवादी पर है कि उसके द्वारा क्रय की गई मशीन/प्रिण्टर में निर्माण सम्बन्धी दोष है। उसके द्वारा कोई तकनीकी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया। स्थानीय कमीशन नियुक्त करने से पहले वह निर्माण सम्बन्धी दोष स्थापित नहीं कर सका। यदि प्रिण्टर का कोई एक हिस्सा दोषयुक्त है तब परिवादी उस हिस्से को बदलवाने का अधिकारी है न कि पूरी मशीन की कीमत पाने का।
मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा हुण्डई मोटर्स इण्डिया लि0 बनाम सुरभि गुप्ता व अन्य, रिवीजन पिटीशन सं0-२८५४/२०१४ में दिये गये निर्णय दिनांकित १४-०८-२०१४ में कहा गया कि वह निर्माता हुण्डई मोटर्स इण्डिया लि0 के इस कथन से सहमत हैं कि अगर वाहन में कोई अन्दरूनी निर्माण सम्बन्धी दोष होता तब साड़े तीन वर्षों में वाहन
-१६-
द्वारा ४८६८९ कि0मी0 की यात्रा करना सम्भव नहीं होता। ऐसी मामलों में यह सम्भावना हो सकती है कि वाहन के कुछ हिस्सों में दोष हो किन्तु वाहन इस दोष के रहते हुए चलने योग्य है और यदि संदिग्ध दोष गम्भीर होता तब वाहन स्वामी इस वाहन को ४८६८९ कि0मी0 नहीं चला सकता। सर्विस मैनेजर ने अपना शपथ पत्र दिया कि वाहन के कुछ हिस्सों में दोष था जिसका निराकरण उन हिस्सों को बदलकर कर दिया गया। टैस्ट ड्राइव कम्पनी के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किया गया और उसे ठीक पाया गया। परिवादी द्वारा उसके बाद यह कहना कि वाहन में अभी दोष है, स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है।
उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्तों को देखने से स्पष्ट होता है कि परिवादी ने किसी भी स्वतन्त्र विशेषज्ञसे अपने वाहन की जांच नहीं कराई है और न ही ऐसी कोई आख्या पत्रावली पर उपलब्ध है। मात्र निर्माण सम्बन्धी दोष कह देने से उसे निर्माण सम्बन्धी दोष नहीं माना जा सकता है। वाहन क्रय करने के एक साल तक उसमें किसी भी प्रकार की कोई खराबी नहीं पाई गई। अगर निर्माण सम्बन्धी दोष होता तब वाहन क्रय करते ही चलने योग्य नहीं होता। कभी वाहन का कूलेण्ट समाप्त हो गया जिससे इंजन अत्यधिक गर्म हुआ अथवा कूलेण्ट रेजरवार का ढक्कन ढीला हो गया जिससे चेतावनी प्रकाश जला। इन सभी कमियों का निराकरण सर्विस सेण्टर द्वारा किया गया और परिवादी सन्तुष्ट हुआ तथा वह लगातार वाहन का उपयोग कर रहा है और दिनांक २८-०६-२०१९ तक वाहन ५५००० कि0मी0 से अधिक चला है। वाहन के जिन पार्ट्स में दोष पाया गया उन्हें सर्विस सेण्टर ने नि:शुल्क बदल दिया।
इस प्रकार समस्त तथ्यों को देखने से स्पष्ट होता है कि वाहन में किसी प्रकार का निर्माण सम्बन्धी दोष नहीं है और वाहन को बदलने या उसके बदले क्रय धनराशि को वापस दिए जाने का कोई औचित्य नहीं है। पत्रावली पर उपलब्ध उभय पक्ष का साक्ष्य देखने से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी को नये वाहन चलाते समय कई बार डिस्प्ले पेनल पर चेतावनी प्रकाश दिखाई पड़ा। इसके अतिरिक्त अलग-अलग समय पर कूलेण्ट की समस्या, थर्मोस्टेट वाल्व का काम न करने, इंजन कण्ट्रोल यूनिट का कार्य न करने की समस्यों के कारण उसे बार-बार स्कोडा जैसी नामी वाहन को ठीक कराने के लिए
-१७-
सर्विस सेण्टर ले जाना पड़ा। कूलेण्ट की समस्या कई बार गाड़ी में आयी। स्कोडा उच्च प्रतिष्ठा वाली कम्पनी जिसके वाहन में कोई भी इस प्रकार की समस्याओं का आना नहीं सोच सकता। स्पष्ट है कि इस प्रकार दिनांक २१-०७-२०१५ को पहली बार और उसके बाद कई बार किसी न किसी समस्या को ठीक कराने के लिए वाहन को सर्विस सेण्टर ले जाया गया। इंजन कण्ट्रोल यूनिट का भी नये वाहन में एक साल बाद काम न करना उचित नहीं है। अगर कोई व्यक्ति किसी नामी कम्पनी से ऐसा वाहन क्रय करता है और उसे बार-बार कमियों के निराकरण के लिए सर्विस सेण्टर नोएडा, गुड़गॉंव से ले जाना पड़ता है तब स्पष्ट है कि उसका मानसिक उत्पीड़न हो रहा है। वाहन के बदले नया वाहन देना उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्तों के परिप्रेक्ष्य में समीचीन नहीं है किन्तु इस तथ्य से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि बार-बार नये वाहन में खराबी को देखकर वाहन स्वामी को कितना मानसिक क्लेश और खीज उत्पन्न हुई होगी। सर्विस सेण्टर जब भी वाहन गयी है तब उसमें कुछ न कुछ कमियों का निराकरण भले ही नि:शुल्क किया गया हो लेकिन उससे मानसिक क्लेश कम नहीं होगा क्योंकि ऐसी गाड़ी को गुड़गॉंव से नोएडा ले जाना फिर सर्विस सेण्टर पर मरम्मत के लिए वाहन का छोड़ना मानसिक क्लेश को जन्म देता है। वाहन २०१५ में कई दिन तक मरम्मत के लिए सर्विस सेण्टर पर छोड़ी गई जिससे स्पष्ट होता है कि वाहन में कुछ कमी अवश्य उत्पन्न हुई जिससे वाहन स्वामी को मानसिक क्लेश उत्पन्न हुआ और बार-बार सर्विस सेण्टर वाहन ले जाने से उसका मानसिक उत्पीड़न भी हुआ।
इस प्रकार परिवादी को वाहन के बदले नया वाहन देने अथवा उसका मूल्य देने की याचना स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है किन्तु परिवादी को बार-बार अपने वाहन को सर्विस सेण्टर ले जाने के कारण जो मानसिक क्लेश और मानसिक उत्पीड़न हुआ उसके लिए वह उचित हर्जाना पाने का अधिकारी है।
तद्नुसार परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0-१ को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादी को अकारण मानसिक क्लेश और उत्पीड़न के
-१८-
लिए निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर १,००,०००/- रू० (एक लाख रूपया) बतौर हर्जाना प्रदान करे, जिस पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से ०९ प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी देय होगा। यदि हर्जाना की धनराशि निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर परिवादी को अदा नहीं की गई तब ब्याज की धनराशि परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से १८ प्रतिशत वार्षिक की दर से देय होगी। इसके अतिरिक्त परिवाद व्यय के मद में भी १०,०००/- रू० (दस हजार रूपया) उपरोक्त निर्धारित अवधि में विपक्षी सं0-१, परिवादी को अदा करे।
उभय पक्ष को इस आदेश की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह) (न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह) (न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-१.