(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-633/2009
(जिला उपभोक्ता आयोग, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या-271/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 26.07.2008 के विरूद्ध)
दि ओरियण्टल इंश्योरेन्स कंपनी लिमिटेड, (रजिस्टर्ड आफिस ओरियण्टल हाउस पोस्ट बॉक्स नं0-7037 ए 25/27, असाफ अली रोड, नई दिल्ली 110002) ब्रांच आफिस-2, भगवती काम्पलेक्स, निकट नंदन सिनेमा, गृह रोड, मेरठ।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
मैसर्स साई कम्प्यूटर प्रा0लि0, साई धाम विक्टोरिया पार्क, मेरठ सिटी द्वारा गिरीश कुमार मैनेजिंग डायरेक्टर मैसर्स साई कम्प्यूटर्स प्रा0लि0।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 15.12.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-271/2006, मैसर्स साई कम्प्यूटर प्रा0लि0 बनाम दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कंपनी लि0 में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, मेरठ द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 26.07.2008 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय एवं आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए बीमित धनराशि अंकन 3,59,000/- रूपये 12 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है।
2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी एक लिमिटेड कंपनी है। दिनांक 30.04.2005 से दिनांक 29.04.2006 तक नकद धनराशि की सुरक्षा का बीमा कराया गया था। फर्म के अधिकृत अकाउण्टेंट श्री इंदर बोहरा ने आईसीआईसीआई बैंक से अंकन 3,59,000/- रूपये निकाले और जैसे ही फर्म के गेट के पास मोटर साईकिल खड़ी की तब बदमाशों ने कट्टा लगाकर रूपयो से भरा बैग छीन लिया और भाग गए। घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट मुकदमा अपराध संख्या-204/2005 अन्तर्गत धारा 392 आईपीसी के तहत दर्ज कराई गई। दोनों लुटेरे एनकाउंटर में मारे गए, लेकिन लूटी हुई धनराशि नहीं मिल सकी। दिनांक 07.11.2005 को बीमित धनराशि को प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया, लेकिन बीमा क्लेम निरस्त कर दिया गया।
3. विपक्षी पर तामील पर्याप्त होने के बावजूद उनकी ओर से कोई लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया, इसलिए एकतरफा साक्ष्य पर विचार करते हुए उपरोक्त वर्णित निर्णय एवं आदेश पारित किया गया।
4. इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने विधि विरूद्ध निर्णय एवं आदेश पारित किया है। देरी माफ करने के लिए सशपथ आवेदन भी अपील के ज्ञापन के साथ प्रस्तुत किया गया है।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
6. परिवाद पत्र में निर्णय एवं आदेश दिनांक 26.07.2008 को पारित किया गया, जबकि अपील दिनांक 22.04.2009 को प्रस्तुत की गई है। निर्णय एवं आदेश में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि विपक्षी पर नोटिस की पर्याप्त तामील है, परन्तु इस तामील के बावजूद भी बीमा कंपनी कोई उत्तर देने के लिए उपस्थित नहीं हुई। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि दिनांक 24.08.2006 की आर्डरशीट में नोटिस जारी करने का उल्लेख है, परन्तु यथार्थ में नोटिस जारी की गई हो, इसका कोई उल्लेख आर्डरशीट पर नहीं है। अपीलार्थी की ओर से आर्डरशीट की प्रमाणित प्रतिलिपि भी प्रस्तुत की गई हैं, जिसके अवलोकन से ज्ञात होता है कि दिनांक 23.04.2008 को दोनों पक्षकार उपस्थित थे, यह आदेश एक अर्द्ध न्यायिक कार्यवाही के दौरान अंकित किया गया है, जिसकी सत्य होने की उपधारणा की जाती है। फिर यह भी कि अपीलार्थी पर विधिनुसार नोटिस की तामील कराई गई, परन्तु अपीलार्थी ने कोई उत्तर देना भी उचित नहीं समझा, इसलिए देरी माफ करने का जो आधार वर्णित किया गया है, वह अपर्याप्त है। यथार्थ में परिवाद लम्बन होने की जानकारी होने के बावजूद अपीलार्थी द्वारा कोई पैरवी नहीं की गई, इसलिए एकतरफा सुनवाई की गई। देरी माफ करने का पर्याप्त आधार दर्शित नहीं किया गया है। अत: अपील प्रस्तुत करने में हुई देरी को माफ करने के लिए प्रस्तुत किए गए आवेदन में कोई बल नहीं नहीं है, यह आवेदन खारिज होने एवं अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
7. अपील प्रस्तुत करने में हुई देरी को माफ करने के लिए प्रस्तुत किया गया आवेदन खारिज किया जाता है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय स्वंय वहन करेंगे।
अपील प्रस्तुत करते समय अपील में जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित विधि अनुसार एक माह में संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3