राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१६६१/२००३
(जिला फोरम, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-२४६/२००१ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ०५-०६-२००३ के विरूद्ध)
१. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सैक्रेटरी पोस्टल सैक्रेटरेट, नई दिल्ली।
२. दी पोस्ट मास्टर जनरल, गोरखपुर।
३. दी पोस्ट मास्टर एच.क्यू. गोरखपुर।
..................... अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम्
मै0 रामदेव सीड कम्पनी, १८ टाउन हॉल बिल्डिंग, गोरखपुर द्वारा फूल चन्द वर्मा प्रौपराइटर।
...................... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित :- डॉ0 उदयवीर सिंह विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : ०१-०५-२०१५
मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी डाक विभाग की ओर से यह अपील जिला फोरम, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-२४६/२००१ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ०५-०६-२००३ के विरूद्ध योजित की गयी है।
दिनांक १६-०४-२०१५ को अपील सुनवाई हेतु ली गयी। उस दिन अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदयवीर सिंह उपस्थित आये परन्तु प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। प्रत्यर्थी को वर्ष २००३ के बाद एकाधिक बार आपत्ति दाखिल करने हेतु नोटिस भेजी गयी तथा इस आयोग के निबन्धक द्वारा भी उन्हें अलग से नोटिस भेजी गयी। फिर भी प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया और न ही कोई आपत्ति योजित की गयी। चूँकि यह यह अपील पिछले ०८ वर्ष से भी अधिक समय से निस्तारण हेतु सूचीबद्ध होती चली आ रही है अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६
(अधिनियम सं० ६८ सन् १९८६) की धारा-३० की उपधारा (२) के अन्तर्गत निर्मित उत्तर
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प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली १९८७ के नियम ८ के उप नियम (६) में दिये गये प्राविधान को दृष्टिगत रखते हुए पीठ द्वारा यह समीचीन पाया गया कि पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य/अभिलेख के आधार पर इस अपील में न्यायोचित आदेश पारित किया जाय। अत: पीठ द्वारा दिनांक १६-०४-२०१५ को अपीलार्थीगण/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता को एक पक्षीय रूप से सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख/साक्ष्य का गहनता से परिशीलन किया गया।
पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी मै0 रामदेव सीड कम्पनी ने विभिन्न तिथियों में अपने ग्राहकों को मु० ९,२८०/- रू० का बीज वी.पी.पी. द्वारा भेजा जिसका मूल्य डाक विभाग द्वारा ग्राहकों से वसूल किया गया परन्तु विभाग द्वारा उक्त वसूल की गयी धनराशि को प्रत्यर्थी/परिवादी को वापस नहीं किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने भेजे गये उपरोक्त वी.पी.पी. का विवरण अपने वाद पत्र में विस्तारपूर्वक दिया है जिसके अनुसार उसने दिनांक ०२-०६-१९९४, तत्पश्चात् २३-०५-१९९५, ११-०७-१९९५, ११-०८-१९९५, १५-०७-१९९६, २६-०७-१९९६, २७-०८-१९९६, १०-०९-१९९६, १८-०५-१९९८, ३१-०८-१९९८, ०१-०९-१९९८, १४-०६-१९९९, १९-०६-१९९९, ०७-०७-१९९९, २४-०७-१९९९, ०७-०८-१९९९, २४-०८-१९९९, २९-०९-१९९९, २३-०६-२०००, ०५-०७-२०००, १७-०७-२०००, २१-०७-२००० एवं ०५-०८-२००० को प्रश्नगत वी.पी.पी. भेजे थे परन्तु इस बाबत् वसूल की गयी धनराशि को डाक विभाग द्वारा उसे अदा नहीं किया गया। उपरोक्त कृत्य को सेवा में कमी मानते हुए परिवादी/प्रत्यर्थी ने अधीनस्थ फोरम में परिवाद सं0-२४६/२००१ संस्थित किया।
अपीलार्थीगण का कहना है कि परिवाद में वाद कारणों का कुसंयोजन (mis-joinder of cause of action) का दोष है एवं क्रम संख्या ०१ ता १९ में उल्लिखित सभी मामले धारा २४-ए में दिये गये काल सीमा से बाधित हैं क्योंकि परिवाद वर्ष र्ष२००१ में दायर किया गया था जबकि ये सभी आरोप वर्ष १९९९ के व उससे पहले से सम्बन्धित हैं। परिवादी/प्रत्यर्थी ने न तो मूल रसीदें दाखिल की हैं और न ही जॉंच हेतु निर्धारित शुल्क अदा किया है। उनका यह भी कहना है कि क्रम सं0-०१ ता ०६ तथा ०८, १०, १२ व १३ से सम्बन्धित अभिलेख काल सीमा के उपरान्त नष्ट कर दिये गये हैं एवं
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ऊपर वर्णित क्रम संख्या में अंकित शेष से सम्बन्धित धनराशि के सम्बन्ध में यह विधि अनुसार मान्य (presumption) है कि उनका भुगतान समय से किया गया होगा।
उभय पक्ष को सुनने के उपरान्त अधीनस्थ फोरम द्वारा परिवाद को स्वीकार करते हुए अपीलार्थीगण को धनराशि मु० ९,२८०/- रू० एक माह के भीतर अदा करने हेतु निर्देशित किया गया है। इसी आदेश से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत अपील दाखिल की गयी है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का कहना है कि क्रम सं0-०१ से १९ तक दर्शायी गयी शिकायतें काल बाधित हैं एवं अधिकांश मामलों में काल सीमा के उपरान्त विभाग द्वारा नियमानुसार अभिलेख नष्ट कर दिये गये हैं। उनका यह भी कहना है कि प्रत्यर्थी द्वारा मूल रसीदें दाखिल नहीं की गयीं हैं और न ही उसने विधि द्वारा निर्धारित जांच शुल्क अदा किया है। इसके अतिरिक्त इस मामले में धारा-६ भारतीय डाक अधिनियम १८९८ एवं क्लॉज ८४ पोस्ट आफिस गाइड, पार्ट-I की बाधा है परन्तु अधीनस्थ फोरम द्वारा इन बिन्दुओं पर कोई निष्कर्ष नहीं दिया गया है। पीठ द्वारा उपरोक्त तर्क के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली का परिशीलन किया गया। प्रस्तुत मामले में विभाग के किसी अधिकारी या कर्मचारी पर कोई व्यक्तिगत द्वेष अथवा भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है। अत: इस मामले में धारा-६ भारतीय डाक अधिनियम १८९८ में दिये गये प्राविधान लागू होते हैं। इसके अतिरिक्त स्वीकृत रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी ने मूल वी.पी.पी. रसीदें दाखिल नहीं की हैं एवं उसके द्वारा विलम्ब से परिवाद दाखिल करने का कोई कारण दर्शाया नहीं गया है। इसके अतिरिक्त इस मामले में वाद कारण से सम्बन्धित वाद कारणों का कुसंयोजन (mis-joinder of cause of action) का भी दोष है। उल्लेखनीय है कि भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-६ में निम्नवत् प्राविधान है कि -
Section 6 of the Indian Post Office Act. 1898 reads as under :
“6. Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage - The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no
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officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or by his willful act or default.”
उपरोक्त प्राविधान तथा मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा टीकाराम बनाम इण्डियन पोस्टल डिपार्टमेण्ट IV (2007) CPJ 123 (NC) के अतिरिक्त I (2014) CPJ 97 (NC) रवीन्द्र नाथ उपाध्याय बनाम सीनियर सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज व अन्य, IV (2013) CPJ 565 (NC) पोस्ट मास्टर, सब पोस्ट आफिस बनाम अजय गोयल एवं (2000) NCJ 142 पोस्ट मास्टर इम्फाल बनाम जामिनी देवी सगोलबन्द में दिये गये विधिक सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए हमारे विचार से अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि अनुरूप नहीं है। विद्वान फोरम द्वारा तथ्यों एवं विधि के विरूद्ध आदेश पारित किया गया है जो किसी भी दृष्टिकोण से पोषणीय नहीं है। वर्णित परिस्थिति में अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथ्य एवं विधि के विपरीत होने के कारण अपास्त होने तथा अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला फोरम गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0-२४६/२००१ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ०५-०६-२००३ अपास्त किया जाता है। पक्षकार अपीलीय व्यय-भार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(आलोक कुमार बोस)
पीठासीन सदस्य
(संजय कुमार)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-४.