Uttar Pradesh

StateCommission

A/2005/818

M/s Shishodia Construction - Complainant(s)

Versus

M/s Rajeev Electronics - Opp.Party(s)

S K Sharma

19 Jan 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2005/818
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. M/s Shishodia Construction
a
 
BEFORE: 
 HON'ABLE MR. Alok Kumar Bose PRESIDING MEMBER
 HON'ABLE MR. Sanjay Kumar MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

(राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)

                सुरक्षित                   

अपील संख्‍या 818/2005

 

(जिला मंच गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0 693/2000 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 02/04/2004 के विरूद्ध)

 

मेसर्स सिसोदिया कन्‍सट्रेक्‍शन कंपनी, निवासी- 15/6, राज नगर, गाजियाबाद।

                                                                                                …अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम

मेसर्स राजीव इलेक्‍ट्रानिक्‍स, 137, मालीवारा, बसंत रोड, गाजियाबाद-201001, द्वारा ज्‍यानटस कंज्‍यूमर एजूकेशन व रिसर्च सोसाइटी, गाजियाबाद।

                                                 .........प्रत्‍यर्थी/परिवादी              

समक्ष:

       1. मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्‍य ।

  2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित        : कोई नहीं।

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से उपस्थित       : कोई नहीं।

 

दिनांक  28-01-2015

मा0 श्री संजय कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित ।

निर्णय

     प्रस्‍तुत अपील परिवाद सं0 693/2000 मेसर्स राजीव इलेक्‍ट्रानिक्‍स बनाम मेसर्स सिसोदिया कन्‍सट्रेक्‍शन कंपनी जिला पीठ गाजियाबाद के निर्णय/आदेश दिनांक 02/04/2004 से क्षुब्‍ध होकर प्रस्‍तुत की गई है।

     जिला पीठ ने परिवाद को स्‍वीकार करते हुए विपक्षी को निर्देश दिया कि परिवादी को 12500/ रूपये 09 प्रतिशत ब्‍याज के साथ इस निर्णय के पारित होने के दो माह के अंदर अदा करेगा। ब्‍याज की गणना 19/07/99 से निर्णय पारित होने की तिथि तक की जाएगी। यदि विपक्षी उक्‍त अवधि में आदेश का पालन नहीं करता है तो विपक्षी वादी को उक्‍त दर से ब्‍याज अंतिम भुगतान की तिथि तक अदा करेगा। विरोधी पक्षकार, परिवादी को वाद व्‍यय की मद में 1000/ रूपये भी अदा करेगा।

     संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार है कि विपक्षी निर्माण (सिविल कन्‍स्‍ट्रक्‍शन) करता है। निर्माण कार्य सेवायें उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अधिकार क्षेत्र में आती है। विपक्षी जनता को इस कार्य के लिए उससे चार्जेज लेकर अपनी सेवाएं प्रदान करता है। परिवादी/प्रत्‍यर्थी की 137 मालीवाड़ा बसंत रोड गाजियाबाद स्थित दुकान के एक हिस्‍से में वेसमेंट है जिसमें वर्षा ऋतु में रिसन के कारण पानी भर जाता है। उसने बेसमेंट में पानी का रिसन को रोकने के लिए

2

विपक्षी/अपीलार्थी को जल निरोधक उपचार हेतु 12500/ रूपये का भुगतान कर 29 दिसम्‍बर 1998 से 05/1/99 तक सेवा ली थी। अपीलार्थी ने उसे 05 वर्ष की गारण्‍टी दी थी कि उसके द्वारा उपचार किये गये क्षेत्र में यदि पुन: रिसने की समस्‍या आती है तो वह अपनी सेवा में पुन: नि:शुल्‍क उपलब्‍ध करायेगा। इसके उपरान्‍त बारिश होने पर दुकान के बेसमेंट में पानी भर गया जिससे उसे काफी नुकसान हुआ। अपीलार्थी ने इस पर समुचित उपचार नहीं किया। फलस्‍वरूप उसके द्वारा सेवा में कमी की गई।

     जिला पीठ ने उभय पक्षों के साक्ष्‍य का अवलोकन करते हुए गुणदोष के आधार पर परिवाद को निर्णीत किया है। उभय पक्ष की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।

     यह अपील विलंब से प्रस्‍तुत की गई है। जिला पीठ के निर्णय/आदेश की प्रति दिनांक 20/04/2005 को प्राप्‍त की गई है तथा यह अपील 09/05/2005 को प्रस्‍तुत की गई है। अपील मेमो के साथ विलंब क्षमा प्रार्थना पत्र में यह आधार प्रस्‍तुत नहीं किया गया है कि किन कारणों से निर्णय की कांपी एक साल के बाद प्राप्‍त कर अपील प्रस्‍तुत किया गया है।

     आर.बी. रामलिंगन बनाम आर.बी. भवनेश्‍वरी 2009 (2) Scale 108 के मामले में तथा अंशुल अग्रवाल बनाम न्‍यू ओखला इण्‍डस्ट्रियल डवपमेंट अथॉरिटी,v (2011) सी.पी.जे. 63 (एस.सी.) में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह आधारित किया गया है कि न्‍यायालय को प्रत्‍येक मामले में यह देखना है और परीक्षण करना है कि क्‍या अपील में हुई देरी को अपीलार्थी ने जिस प्रकार से प्रस्‍तुत किया है क्‍या उसका कोई औचित्‍य है, क्‍योंकि देरी को क्षमा किये जाने के संबंध में यही मूल परीक्षण जिसे मार्गदर्शक के रूप में अपनाया जाना चाहिए कि क्‍या अपीलार्थी ने उचित विद्वता एवं सदभावना के साथ कार्य किया है और क्‍या अपील में हुई देरी स्‍वाभाविक देरी है। उपभोक्‍ता संरक्षण मामलों में अपील योजित किये जाने में हुई देरी को क्षमा किये जाने के लिए इसे देखा जाना अति आवश्‍यक है, क्‍योंकि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 में अपील प्रस्‍तुत किये जाने के जो प्राविधान दिये गये हैं उन प्राविधानों के पीछे मामलों को तेजी से निर्णीत किये जाने का उद्देश्‍य रहा है और यदि अत्‍यन्‍त देरी से प्रस्‍तुत की गई अपील को बिना स्‍वाभाविक देरी के प्रश्‍न पर विचार किये हुए अंगीकरण कर लिया जाता है तो इसे उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान के अनुसार उपभोक्‍ता के अधिकारों का संरक्षण संबंधी उद्देश्‍य ही विफल हो जायेगा।

    

 

3

      उपरोक्‍त विधि व्‍यवस्‍था के आलोक में तथ्‍यों एवं परिस्थितियों के आधार पर हम इस निष्‍कर्ष पर पहुंचते हैं कि अपीलार्थी ने जिला पीठ के निर्णय की प्रति एक वर्ष के उपरान्‍त प्राप्‍त कर यह अपील काल सीमा के उपरान्‍त दिनांक 09/05/2005 को प्रस्‍तुत किया है। अपील दाखिल करने में हुई विलंब क्षमा योग्‍य नहीं है। विलंब के आधार पर भी यह सारहीन अपील निरस्‍त करने योग्‍य है।

आदेश

         अपील सारहीन एवं समय सीमा से बाधित होने के कारण निरस्‍त की जाती है।

         उभय पक्ष अपना अपीलीय व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

         उभय पक्ष को इस निर्णय की सत्‍य प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्‍ध कराई जाय।

 

 

 

                                 

                                                              (आलोक कुमार बोस)

                                                            पीठासीन सदस्‍य

 

                                                                    

                                                                                 

                                                   (संजय कुमार)

                                                     सदस्‍य                                                  

                                                    

  

                                                                            

 सुभाष चन्‍द्र आशु0 ग्रेड 2                                                        

  कोर्ट नं0 4                                              

 

 

 

    

 

 

 
 
[HON'ABLE MR. Alok Kumar Bose]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'ABLE MR. Sanjay Kumar]
MEMBER

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