(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद सं0- 201/2016
Rahul shukla, aged about 53 years, S/o Late Uma shanker shukla, R/o V.B.-95, Shreevatsa gardens, Mettupalayam road, Thudivalur, Coimbatore-641034.
……Complainant
Versus
M/s Parasvnath developers limited, Corporate office: 6th floor, Arunachal building 19, Bara khamba road, New Delhi-110001. Through its Appropriate authority.
……..Opposite Party.
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव ,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 08.01.2020
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
यह परिवाद परिवादी राहुल शुक्ला ने धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत विपक्षी मे0 पार्श्वनाथ डेवलपर्स लि0 के विरुद्ध राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और निम्न अनुतोष चाहा है:-
Wherefore, it is most respectfully prayed that this Hon’ble State Commission may kindly be pleased to allow the present complaint by awarding the following reliefs:-
(a) To direct to opposite party to handover the possession of the flat duly completed forthwith to the complainant, demanding no more amount. and
(b) To direct the opposite party to pay an amount of loss of Rs. 20,74,459.70 as articulated in para no. 13 of Complaint alongwith interest @ 24% per annum as as compensation from the relevant date i.e. 03.08.2015 till the date of giving possession to the complaiant and
(C) To award cost of throughout in favour of the complainant. And/or
(d) Any other relief which may be deemed just @ proper in the circumstances of the case to meet the ends of Justice.
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसे मार्च व अप्रैल 2009 में यह ज्ञात हुआ कि फैजाबाद रोड पर लखनऊ में विपक्षी पार्श्वनाथ सिटी पार्श्वनाथ रॉयल फ्लोर्स के नाम से विकसित कर रहा है। अत: उसने विपक्षी से सम्पर्क किया तो उसे बताया गया कि उनके पास आवासीय यूनिट उपलब्ध नहीं है, परन्तु कुछ एलॉटीज हैं जो अपनी यूनिट को निकालना चाहते हैं तब परिवादी, विपक्षी के एलॉटी श्री सुनील मिश्रा से मिला और विपक्षी की सहमति से श्री सुनील मिश्रा के स्थान पर परिवादी को आवश्यक चार्जेज का भुगतान करने पर पुनर्स्थापित किया गया। पुनर्स्थापन के बाद परिवादी को फ्लैट नं0- A-26-G, 1792 स्क्वायर फिट सुपर एरिया का ग्राउण्ड फ्लोर पर रॉयल फ्लोर्स पार्श्वनाथ सिटी में आवंटित किया गया जिसका कुल मूल्य 24,27,712/-रू0 था। Miscellaneous Charges एवं स्टाम्प ड्यूटी व रजिस्ट्रेशन फीस आदि का व्यय उपरोक्त मूल्य के अलावा था।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसने सम्पूर्ण धनराशि Miscellaneous Charges सहित विपक्षी को फ्लैट प्राप्त करने हेतु अदा कर दिया है। उसने कुल धनराशि विपक्षी को 29,13,665/-रू0 अदा किया है जिसका विवरण परिवाद पत्र की धारा 06 में दिया गया है। परिवाद पत्र के अनुसार उपरोक्त धनराशि प्राप्त करने के बाद विपक्षी ने परिवादी को नो ड्यूज सार्टीफिकेट दि0 28.04.2015 को दिया और उपरोक्त यूनिट का बैनामा भी उसके पक्ष में दि0 03.08.2015 को निष्पादित कर दिया, परन्तु बैनामा निष्पादित करने के बाद भी उसे आवंटित यूनिट पर भौतिक कब्जा नहीं दिया गया और भौतिक कब्जा दिये जाने हेतु नये-नये बहाने किये गये, फिर भी भैतिक कब्जा उसे नहीं दिया गया। इसके साथ ही विपक्षी द्वारा उससे 51,748/-रू0 की बिना किसी कारण के और मांग की जा रही है जो अनुचित व्यापार पद्धति है। अत: क्षुब्ध होकर परिवादी ने परिवाद राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया है और उपरोक्त अनुतोष चाहा है।
विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया गया है और कहा गया है कि एक व्यक्ति सुनील मिश्रा ने दि0 07.03.2007 को आवासीय भवन हेतु एडवांस रजिस्ट्रेशन विपक्षी की प्रश्नगत परियोजना में 2,25,000/-रू0 जमा कर कराया था। अत: उसे विपक्षी की प्रश्नगत परियोजना में आवासीय तल A-12-G एलाटमेंट लेटर दि0 25.02.2009 के द्वारा आवंटित किया गया और फ्लैट बायर एग्रीमेंट आवंटी सुनील मिश्रा के पक्ष में निष्पादित किया गया। आवंटी सुनील मिश्रा ने कंस्ट्रक्शन लिंक प्लान भुगतान हेतु चुना।
लिखित कथन में कहा गया है कि फ्लैट बायर एग्रीमेंट के क्लाज 9(a) के अनुसार करार पत्र हस्ताक्षरित किये जाने या निर्माण प्रारम्भ होने की तिथि से 24 महीने में कब्जा दिया जाना प्रस्तावित था। इसके साथ ही छ: महीने का ग्रेस पीरियड भी था। लिखित कथन के अनुसार विपक्षी का कथन है कि मूल आवंटी श्री सुनील मिश्रा ने आवंटित फ्लैट में अपना अधिकार परिवादी को अंतरित किया है और इस संदर्भ में अभिलेख निष्पादित किया है तथा परिवादी व सुनील मिश्रा दोनों ने शपथ पत्र दि0 13.05.2009 को दिया है जिसके आधार पर आवंटित फ्लैट परिवादी को दि0 25.05.2009 को आवंटित किया गया है। परिवादी ने भी एलाटमेंट में आवंटन की टर्म्स एण्ड कंडीशन को स्वीकार किया है। लिखित कथन के अनुसार परिवादी व उसके पूर्व आवंटी ने किश्तों के भुगतान में विलम्ब किया है।
लिखित कथन के अनुसार विपक्षी का कथन है कि पोजेशन लेटर दि0 16.09.2014 फाइनल स्टेटमेंट ऑफ एकाउंट के साथ परिवादी को भेजा गया है जिसमें उससे अवशेष धनराशि का भुगतान कब्जा लेने के पूर्व करने का निवेदन किया है।
लिखित कथन में विपक्षी ने कहा है कि निर्माण में विलम्ब विभिन्न कारणों से हुआ है जो उसके नियंत्रण से बाहर है। विलम्ब हेतु विपक्षी ने परिवादी को 2,16,475/-रू0 स्पेशल रिबेट भी दिया है।
लिखित कथन में विपक्षी की ओर से कहा गया है कि परिवादी के पक्ष में विक्रय पत्र दि0 15.05.2015 को निष्पादित किया गया है, परन्तु 52,748/-रू0 यू0पी0 वैट टैक्स की धनराशि उसके जिम्मा अवशेष है जिसके भुगतान हेतु उसे कई पत्र भेजा गया है, परन्तु उसने भुगतान नहीं किया है। यू0पी0 वैट टैक्स की यह धनराशि परिवादी द्वारा देय है।
लिखित कथन में विपक्षी ने कहा है कि परिवादी ने परिवाद बिना किसी उचित आधार के प्रस्तुत किया है। परिवाद विशेष हर्जा के साथ निरस्त किये जाने योग्य है।
परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में परिवादी राहुल शुक्ला का शपथ पत्र संलग्नकों सहित प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी की ओर से श्री रमेश थापर सीनियर जनरल मैनेजर का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
उल्लेखनीय है कि आयोग के आदेश दि0 04.06.2018 के अनुपालन में परिवादी ने वैट की धनराशि 52,748/-रू0 आयोग के समक्ष जमा कर दिया है, परन्तु परिवादी ने प्रश्नगत फ्लैट का कब्जा आदेश दि0 04.06.2018 के अनुपालन में प्राप्त नहीं किया है। उसका कथन है कि फ्लैट में अनेकों कमियां थीं जिसे परिवादी ने विपक्षी के सम्बन्धित कर्मचारी व अधिकारी को नोट कराया है। इसी कारण उसने कब्जा नहीं लिया है।
विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रश्नगत फ्लैट पूर्ण रूप से तैयार है और उसमें कोई कमी नहीं है। परिवादी ने कब्जा न लेने का गलत आधार दर्शित किया है।
इस प्रकार उभय पक्ष के बीच आदेश दि0 04.06.2018 के अनुसार कब्जा लेने पर सहमति नहीं बनी। अत: परिवाद का निस्तारण गुण-दोष के आधार पर किया जा रहा है।
परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव और विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा परिवाद की अन्तिम सुनवाई के समय उपस्थित हुए हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
विपक्षी ने परिवादी के पक्ष में फ्लैट का विक्रय पत्र निष्पादित किया है जिसकी प्रति परिवादी ने परिवाद पत्र के साथ संलग्नक- 02 के रूप में प्रस्तुत किया है जो अविवादित है। यह विक्रय पत्र दि0 03.08.2015 को पंजीकृत कराया गया है। इस विक्रय पत्र में स्पष्ट उल्लेख है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार फ्लैट की बिक्री पर वैट देय है जिसकी अदायगी करने हेतु क्रेता सहमति व्यक्त करता है। अत: वैट की धनराशि 52,748/-रू0 की मांग विपक्षी द्वारा किया जाना विक्रय पत्र के अनुसार उचित है।
विक्रय पत्र के प्रस्तर 14 में स्पष्ट उल्लेख है कि क्रेता को विक्रीत सम्पत्ति का कब्जा विक्रेता के पूर्ण Satisfaction में दिया जा चुका है, परन्तु स्वीकृत रूप से फ्लैट का भौतिक कब्जा परिवादी को नहीं दिया गया है। विक्रय पत्र दि0 03.08.2015 के बाद दि0 23.09.2015 के पत्र के द्वारा विपक्षी ने परिवादी से वैट की धनराशि 52,748/-रू0 की मांग की है। विपक्षी के अनुसार वैट की यह धनराशि परिवादी ने अदा नहीं किया है। इस कारण उसे फ्लैट का कब्जा नहीं दिया गया है।
यह तथ्य निर्विवाद है कि विक्रय पत्र दि0 03.08.2015 को पंजीकृत कराये जाने के पूर्व परिवादी ने सम्पूर्ण प्रतिफल अदा कर दिया है और विक्रय पत्र में उल्लिखित है कि फ्लैट का कब्जा परिवादी को दे दिया गया है। अत: ऐसी स्थिति में पत्र दि0 23.09.2015 के द्वारा मांगी गई वैट की धनराशि 52,748/-रू0 के लिए परिवादी को फ्लैट का कब्जा न दिया जाना विक्रय पत्र के विरुद्ध है और अनुचित व्यापार पद्धति है।
आयोग के आदेश दि0 04.06.2018 द्वारा आदेशित किया गया कि परिवादी वैट की उपरोक्त धनराशि राज्य आयोग के समक्ष जमा कर दे और विपक्षी, परिवादी को फ्लैट का कब्जा दे। राज्य आयोग द्वारा यह भी आदेशित किया गया कि राज्य आयोग के समक्ष जमा धनराशि का भुगतान कब्जा अंतरण के बाद राज्य आयोग के आदेश के अनुसार किया जायेगा। परिवादी ने उपरोक्त धनराशि राज्य आयोग में दि0 18.06.2018 को जमा कर दिया, परन्तु उसने फ्लैट का कब्जा नहीं लिया और कथन किया कि फ्लैट की स्थिति दयनीय है और फ्लैट कब्जा लेने योग्य नहीं है। परिवादी की ओर से फ्लैट के फोटोग्राफ प्रस्तुत किये गये हैं।
विपक्षी के अनुसार फ्लैट कब्जा लेने हेतु पूर्ण रूप से तैयार है। परिवादी ने जो फोटोग्राफ प्रस्तुत किये हैं उससे स्पष्ट है कि फ्लैट का निर्माण पूरा है, परन्तु फ्लैट में Finishing कार्य पूर्ण नहीं है और फ्लैट में कुछ कमियां हैं। विपक्षी ने फ्लैट का कोई फोटोग्राफ प्रस्तुत नहीं किया है। आयोग के आदेश दि0 04.06.2018 के बाद परिवादी द्वारा वैट की वांछित धनराशि जमा करने के बाद भी फ्लैट का Finishing कार्य पूरा कर फ्लैट की कमियां दूर कर फ्लैट का कब्जा परिवादी को नहीं दिया गया है।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि विपक्षी ने विक्रय पत्र में कब्जा परिवादी को दिया गया अंकित करने के बाद भी उसे कब्जा नहीं दिया है और आयोग के आदेश के बाद भी फ्लैट का Finishing Work पूर्ण कर फ्लैट परिवादी को उपलब्ध नहीं कराया है। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि विपक्षी ने परिवादी के साथ अनुचित व्यापार पद्धति अपनायी है।
सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचारोपरांत यह उचित प्रतीत होता है कि विपक्षी को आदेशित किया जाये कि वह परिवादी को फ्लैट का Finishing Work पूर्ण कर एवं फ्लैट की कमियों को दूर कर फ्लैट का कब्जा परिवादी को दो माह के अन्दर दे और फ्लैट के मूल्य रू0 24,27,712/- पर परिवादी को विक्रय पत्र की तिथि दि0 03.08.2015 से कब्जा देने की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज कब्जा में विलम्ब हेतु क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करे।
परिवादी को 10,000/-रू0 वाद व्यय दिलाया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह फ्लैट का Finishing Work पूर्ण कर और कमियों को दूर कर फ्लैट का कब्जा परिवादी को इस निर्णय की तिथि से दो माह के अन्दर दे और विक्रय पत्र की तिथि दि0 03.08.2015 से कब्जा देने की तिथि तक फ्लैट के मूल्य की धनराशि रू0 24,27,712/- पर 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज परिवादी को कब्जा में विलम्ब हेतु क्षतिपूर्ति के रूप में दे।
विपक्षी, परिवादी को 10,000/-रू0 वाद व्यय भी देगा।
आयोग के समक्ष परिवादी द्वारा जमा धनराशि रू0 52,748/- अर्जित ब्याज सहित फ्लैट का कब्जा परिवादी को दिये जाने के बाद विपक्षी को अवमुक्त की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1