राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-832/2018
साईरस वहीदी
बनाम
मै0 पैसिफिक डेवलपमेन्ट कारपोरेशन व एक अन्य
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आशुतोष कुमार सिंह,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 22.05.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या-311/2013 साईरस वहीदी बनाम मैसर्स पैसिफिक डेवलपमेन्ट कारपोरेशन लि0 व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 06.04.2018 के विरूद्ध योजित की गयी है। प्रस्तुत अपील विगत 06 वर्ष से लम्बित है।
अपील प्रस्तुतिकरण के समय प्रत्यर्थीगण को नोटिस द्वारा पंजीकृत डाक आदेश दिनांक 17.05.2018 के अनुपालन में प्रेषित किया गया। पंजीकृत डाक के संबंध में कार्यालय द्वारा निम्न आख्या उल्लिखित की गयी:-
''11-6-18
प्रत्यर्थीगण को नोटिस जारी। रसीद आर्डर सीट पर चस्पा की गयी।
19-06-18
प्रत्यर्थी सं0 1 की नोटिस “No Such Farm” की आख्या के साथ वापस। नोटिस मय लिफाफा पत्रावली पर संलग्न है।
06-11-18
प्रत्यर्थी सं0 2 की नोटिस आज दिनांक तक कार्यालय में वापस प्राप्त नहीं हुई है।''
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तदोपरान्त अनेकों तिथियों पर वाद स्थगित किया जाता रहा एवं दिनांक 30.11.2021 को निम्न आदेश पारित किया गया:-
''दिनांक :30-11-2021
यद्धपि इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 17-05-2018 के अनुपालन में प्रत्यर्थीगण को रजिस्टर्ड डाक द्वारा दिनांक 09-06-2018 को नोटिस प्रेषित की गयी थी परन्तु कार्यालय की आख्या के अनुसार यह विदित हुआ कि उपरोक्त नोटिस विपक्षीगण पर चस्पा नहीं हुई। अतएव प्रत्यर्थी गण 1- M/s Pacific Development Corporation Through ownership Vits Hotel Registered Office, Plot no. 5 First Floor Sagar Complex, Lsc New Rajdhani Enclave Main Vikash Marg, Delhi-110092 (2) Manager, VITS Hotel & Lotus Resorts Presently Known as Clarks Inn Suites Pacific Business Park, Site-4, Sahibabad Industrial Area, Ghaziabad, 201010 को पुन: रजिस्टर्ड डाक द्वारा कार्यालय द्वारा दो सप्ताह की अवधि में नोटिस प्रेषित की जावे। नोटिस प्रेषण के संबंध में अपीलार्थी एक सप्ताह में समुचित पैरवी सुनिश्चित करें।
प्रत्यर्थी अपना पक्ष निश्चित तिथि से पूर्व कार्यालय में प्रस्तुत करें।
प्रस्तुत वाद को अंतिम सुनवाई हेतु दिनांक 17-02-2022 को सूचीबद्ध किया जावे।''
उक्त आदेश के संबंध में कार्यालय द्वारा निम्न आख्या उल्लिखित की गयी:-
''04-02-22
अपीलार्थी द्वारा पैरवी दाखिल न किये जाने के कारण नोटिस जारी नहीं की जा सकी।
14-2-22
अपीलार्थी द्वारा पैरवी बाक्स द्वारा प्राप्त हुआ। पत्रावली पर रखा गया।''
तदोपरान्त अपीलार्थी द्वारा की गयी पैरवी के उपरान्त प्रत्यर्थीगण को अपेक्षित नोटिस द्वारा पंजीकृत डाक दिनांक 30.11.2021 के आदेश के अनुपालन में पुन: प्रेषित किया गया, जिस संबंध में कार्यालय द्वारा निम्न आख्या उल्लिखित की गयी:-
''23-5-22
प्रत्यर्थी सं01 को भेजी गई नोटिस बैगर तामीला ''नो सर्च'' की टिप्पणी के साथ वापस प्राप्त हुई। फाइल में मय लिफाफा नत्थी की गई।
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02-6-22
प्रत्यर्थी सं02 को भेजी गई नोटिस बगैर तामीला कार्यालय को वापस प्राप्त हुई। मय लिफाफा फाइल में नत्थी की गई।''
अगली निश्चित तिथि दिनांक 12.07.2022 को इस न्यायालय द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया:-
''दिनांक- 12.07.2022
पुकार की गयी। अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अरविन्द तिलहरी उपस्थित हुए। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अरविन्द तिलहरी ने अपनी बहस प्रारम्भ की उसी बीच विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा इससे पहले वाले वाद अपील संख्या- 348/2018 में बहस करने लगे और जब उन्हें रोका गया कि वर्तमान मामले में बहस प्रारम्भ हो चुकी है, कृपया आप शान्त रहें परन्तु वे शान्त नहीं हुए और दबाव बनाने की कोशिश करने लगे और कहने लगे कि अपील संख्या- 348/2018 में बैंक ड्राफ्ट उनके मोबाइल पर आ गया है और इसको देखा जाए। श्री राजेश चड्ढा हम लोगों की ओर बार-बार अपना मोबाइल दिखाने लगे जिस पर उन्हें रोका गया और कहा गया कि अगर बैंक ड्राफ्ट आ गया है तो वह पत्रावली पर उपलब्ध क्यों नहीं है जिस पर तर्क करते हुए विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा द्वारा पीठ को अवगत कराया गया कि 1755/-रू० का बैंक ड्राफ्ट उनके मोबाइल पर दर्शित हो रहा है जिसे पत्रावली पर प्रदर्शित किया जाए।
यहॉं पर यह कहना समीचीन होगा कि अपील संख्या– 348/2018 प्रस्तुत किये जाते समय ही 1755/-रू० का बैंक ड्राफ्ट प्रस्तुत किया जाना था जो कि अपीलार्थी द्वारा आज तक प्रस्तुत नहीं किया गया और पीठ द्वारा लगातार आदेश किये जाने के बावजूद भी आज दिनांक तक बैंक ड्राफ्ट प्रस्तुत नहीं किया गया। चार वर्ष से अधिक समय बीतने के बाद भी बैंक ड्राफ्ट की कमी को पूरा नहीं किया गया जिस पर उनकी अपील को निरस्त किया गया।
उसके पश्चात विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा बार-बार इस न्यायालय पर दबाव बनाने लगे और पीठ द्वारा पारित किये गये आदेश को वापस लेने की बात कहने लगे और बार-बार मोबाइल पर बैंक ड्राफ्ट देखने की बात कहने लगे जिसके कारण अन्य मामलों में सुनवाई नहीं हो सकी जिसमें वादकारीगण उपस्थित थे। अतंत: ऐसी स्थिति में न्यायालय का सुचारू रूप से कार्य करना सम्भव नहीं हो पाया। अत: इस स्तर पर न्यायालय की कार्यवाही स्थगित की गयी जिससे शेष मामलों की कार्यवाही भी स्थगित हो गयी।
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इस आदेश की प्रति आज सूचीबद्ध सभी मामलों की पत्रावली में संलग्न की जाए और वर्तमान पत्रावली पुन: सुनवाई हेतु दिनांक 05-08-2022 को प्रथम 10 वादों की सूची में सूचीबद्ध की जाए।
इस आदेश की प्रति माननीय न्यायमूर्ति अध्यक्ष महोदय जी को अवलोकनार्थ प्रेषित की जाए।''
उक्त तिथि के पश्चात् लगभग 08 तिथियों पर अपील विभिन्न कारणों से स्थगित की जाती रही। अन्ततोगत्वा पीठ संख्या-2 के पीठासीन सदस्य द्वारा अपील की सुनवाई न किये जाने के कारण इस पीठ द्वारा सुनवाई हेतु तिथि सुनिश्चित की गयी, जिसके अनुपालन में अपील सूचीबद्ध हुई।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आशुतोष कुमार सिंह को सुना। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि ऊपर उल्लिखित इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश के अनुपालन में पंजीकृत डाक से प्रेषित नोटिस के संबंध में कार्यालय की आख्या स्वमेव यह स्पष्ट करती है कि प्रत्यर्थीगण पर तामीली पर्याप्त है।
मेरे विचार से अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आशुतोष कुमार सिंह का उपरोक्त कथन पूर्णत: विधिसम्मत है, अतएव प्रत्यर्थीगण पर नोटिस की तामीली पर्याप्त मानी जाती है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आशुतोष कुमार सिंह द्वारा प्रस्तुत अपील में जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश को ससम्मान स्वीकृत करते हुए मात्र डिक्रीटल धनराशि पर ब्याज की देयता के बिन्दु पर अपना कथन प्रस्तुत किया।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में की गयी प्रार्थना के प्रस्तर ‘अ’ में निम्न अनुतोष प्रदान किये जाने की प्रार्थना की:-
''अ. यह कि परिवादी को विपक्षीगण से अंकन 2,52,900/-रूपये मय 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से दिनांक 13/11/2011 से भुगतान की तिथि तक दिलाया जाये।''
उपरोक्त अनुतोष आंशिक रूप से स्वीकृत करते हुए जिला
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उपभोक्ता आयोग द्वारा समुचित विवरण उल्लिखित किया गया।
मेरे द्वारा उपरोक्त उल्लिखित विवरण का परिशीलन व परीक्षण करते हुए उपरोक्त विवरण विधिक रूप से सही पाया गया। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यद्यपि परिवादी के कथन को आंशिक रूप से स्वीकृत करते हुए कुल धनराशि अंकन 1,93,600/-रू0 के भुगतान हेतु आदेशित किया, परन्तु ब्याज के संबंध में कोई भुगतान का आदेश पारित नहीं किया, जो मेरे विचार से उचित नहीं प्रतीत होता है।
अतएव जिला उपभोक्ता आयोग, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या-311/2013 साईरस वहीदी बनाम मैसर्स पैसिफिक डेवलपमेन्ट कारपोरेशन लि0 व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 06.04.2018 में मात्र ब्याज की देयता के प्रश्न पर 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की देयता परिवाद निर्णीत किये जाने की तिथि से भुगतान की तिथि तक कुल धनराशि 1,93,600/-रू0 पर देय हेतु आदेशित किया जाता है। तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1