Uttar Pradesh

StateCommission

A/2001/2378

Lufthansa German Airlines - Complainant(s)

Versus

M/s Mohamad Ibrahim - Opp.Party(s)

Adeei Ahmad

02 Feb 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2001/2378
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Lufthansa German Airlines
A
...........Appellant(s)
Versus
1. M/s Mohamad Ibrahim
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Virendra Singh PRESIDENT
 HON'BLE MR. Jitendra Nath Sinha MEMBER
 HON'BLE MR. Jugul Kishor MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-2378/2001

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, मीरजापुर द्वारा परिवाद संख्‍या-157/1999 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.08.2001 के विरूद्ध)

 

लुफ्थान्‍सा जर्मन एयरलाइन्‍स, 56, जनपथ, नई दिल्‍ली 110001 ।

                                          ................अपीलार्थी/विपक्षी।

बनाम्      

मैसर्स मोहम्‍मद इब्राहिम एण्‍ड सन्‍स, कुन्‍जलगिर गार्डेन, मीरजापुर थाना कोतवाली कटरा, मीरजापुर यू0पी0।

...................प्रत्‍यर्थी/परिवादी।

समक्ष:-

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री वीरेन्‍द्र सिंह, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्री जितेन्‍द्र नाथ सिन्‍हा, सदस्‍य।

3. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित  : श्री अदील अहमद, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित    : श्री अशोक शुक्‍ला, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक 03.06.2015

माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      यह अपील, जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, मीरजापुर द्वारा परिवाद संख्‍या-157/1999 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 14.08.2001 के विरूद्ध योजित की गयी है, जिसके द्वारा जिला फोरम ने निम्‍नवत् आदेश पारित किया है :-

‘’परिवा‍दी का परिवाद स्‍वीकार किया जाता है एवं प्रतिवादी को आदेश दिया जाता है कि इस निर्णय की तिथि से 15 दिन के अन्‍तर्गत परिवादी द्वारा परिवाद पत्र के धारा 29 (ए) में मॉंगी गयी मूल राशि रू0 4,68,967/- का भुगतान कर दें। इसके अतिरिक्‍त उक्‍त मूल राशि पर प्रतिवादी उक्‍त अवधि के अन्‍तर्गत ही 15 प्रतिशत ब्‍याज दिनांक 22.02.1998 से भुगतान की तिथि तक कर दें। इस वाद की परिस्थितियों में परिवादी को अन्‍य क्षतिपूर्ति की राशि स्‍वीकृत करना न्‍यायोचित नहीं है।‘’

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री अदील अहमद एवं प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री अशोक शुक्‍ला उपस्थित हैं। विद्वान अधिवक्‍तागण को विस्‍तार से सुना गया और अभिलेख का अवलोकन किया गया है।

प्रकरण के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी/प्रत्‍यर्थी के कथनानुसार उसकी फर्म हस्‍त निर्मित ऊनी कारपेट दरी इत्‍यादि का निर्माण एवं निर्यात का कार्य करती है। परिवादी/प्रत्‍यर्थी के पार्टनर श्री असलम अंसारी ने वर्ड की वायुसेवा से यात्रा करने के लिए टिकट वाराणसी से दिनांक 01.01.1998 लिया और उसके बिल दिनांक 20.12.1997 के माध्‍यम से भाड़ा इत्‍यादि का भुगतान उसी तिथि के चेक द्वारा किया गया। परिवादी/प्रत्‍यर्थी के उक्‍त पार्टनर (वर्तमान में मृत) म्‍यूनिक फ्लाइट नं0 एनएच 5205 से दिनांक 22.02.1998 को व्‍यापार सम्‍बन्‍धी सेम्‍पल सहित यात्रा की और जब वह म्‍यूनिक जर्मनी हवाई अड्डे पर पहुंचे तो उनका सामान वहां नहीं पहुँचा था, जिस पर उन्‍होंने हवाई अड्डे पर ही रिपोर्ट की। तत्‍पश्‍चात विपक्षी/अपीलार्थी ने उन्‍हें सूचित किया कि एथेन्‍स में उनका सामान म्‍यूनिक के बजाय मिल जायेगा और जब वह रात में एथेन्‍स हवाई अड्डे पर पहुँचे तो उनका सामान वहां भी नहीं पहुँचा था, जिसके कारण उन्‍हें काफी असुविधाओं का सामना करना पड़ा। दिनांक 23.02.1998 को विपक्षी ने परिवादी को बताया कि उनका सामान गलती से ओसलो (नार्वे) से रोम (इटली) चला गया है, जिसके कारण उनका कोई भी व्‍यापारिक कार्य नहीं हो सका। उक्‍त पार्टनर एवं विपक्षी के बीच पत्र व्‍यवहार होने पर अंत में विपक्षी ने अपनी लापरवाही को स्‍वीकार करते हुए उन्‍हें दूसरा टिकट मुफ्त देने पर तैयार हुए। उक्‍त पार्टनर को दिनांक 31.01.1999 को पूर्णत: मुफ्त टिकट दिया गया, परन्‍तु उस दिन जहाज सेवा बन्‍द हो गयी थी इसलिए उनका जर्मनी का कोई व्‍यापारिक कार्य नहीं हुआ, जिसके कारण उन्‍हें काफी मानसिक, शारिरिक एवं आर्थिक क्षति हुई, जिससे क्षुब्‍ध होकर उनके द्वारा प्रश्‍नगत परिवाद संख्‍या-157/1999 यात्रा सम्‍बन्‍धी टिकट एवं अन्‍य व्‍ययों तथा क्षतिपूर्तियों की वूसली हेतु योजित करना पड़ा।

जिला फोरम ने विपक्षी/अपीलार्थी के पते पर नोटिस भेजा और 3-4 तिथियों तक विपक्षी की प्रतिक्षा की गयी, परन्‍तु जब उनकी ओर से परिवाद के विरूद्ध जवादबावा दाखिल करने हेतु कोई उपस्थित नहीं आया तब जिला फोरम ने दिनांक 02.05.2001 को उन पर तामीला पर्याप्‍त मानते हुए परिवाद की सुनवाई एक पक्षीय की गयी।

     जिला फोरम ने परिवादी को सुनने तथा पत्रावली का अनुशीलन व परिशीलन करने के उपरान्‍त उपरोक्‍त प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश पारित किया है।

     उपरोक्‍त प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध अपीलार्थी द्वारा यह अपील दिनांक 01.10.2001 को प्रस्‍तुत की गयी है और कहा गया है कि प्रश्‍नगत प्रकरण में जिला फोरम के समक्ष केवल परिवाद की प्रतिलिपि विपक्षी/अपीलार्थी को प्राप्‍त हुई थी एवं विपक्षी/अपीलार्थी ने पंजीकृत पत्र दिनांक 07.12.1999 के माध्‍यम से जिला फोरम को सूचित कर दिया था कि उन्‍हें परिवाद की सुनवाई की ति‍थि की सूचना प्राप्‍त नहीं है और अपने पत्र के माध्‍यम से यह भी अभिवचित किया था कि प्रश्‍नगत प्रकरण में जिला फोरम को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्‍त नहीं है एवं वाद कारण भी परिवादी द्वारा स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है। अत: परिवाद खण्डित कर दिया जाये।

अपील के साथ विपक्षी/अपीलार्थी की ओर से उपरोक्‍त वर्णित पंजीकृत पत्र दिनांकित 07.12.1999 की प्रतिलिपि व डाकखाने की रसीद दिनांक 14.12.1999 की छायाप्रति प्रस्‍तुत की है और अपने तर्क के समर्थन में उनके द्वारा कहा गया कि उक्‍त पंजीकृत पत्र के सन्‍दर्भ में कोई सूचना उन्‍हें उपलब्‍ध नहीं करायी गयी। इस प्रकार विपक्षी/अपीलार्थी अपना पक्ष जिला फोरम के समक्ष नहीं रख सका। जिला फोरम ने दिनांक 14.08.2001 को निर्णय पारित कर दिया, जिसमें विपक्षी/अपीलार्थी के उपरोक्‍त वर्णित पंजीकृत पत्र के सन्‍दर्भ में उल्‍लेख भी नहीं किया गया। इसके अतिरिक्‍त विपक्षी/अपीलार्थी ने यह भी कथन किया कि प्रश्‍नगत प्रकरण में उनके स्‍तर से सेवा में कमी होना स्‍वीकार योग्‍य नहीं है एवं इस बात पर विशेष बल दिया गया कि प्रश्‍नगत परिवाद जिला फोरम मीरजापुर के अन्‍तर्गत स्‍वीकार योग्‍य नहीं है, क्‍योंकि विपक्षी/अपीलार्थी की कम्‍पनी का ब्रांच आफिस वाराणसी में है और परिवाद पत्र के अभिवचनों को देखते हुए वाराणसी में ही वाद कारण भी उत्‍पन्‍न हुआ है।

प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश को विधि अनुकूल बताते हुए तर्क किया गया कि जिला फोरम के समक्ष विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा प्रेषित पत्र इस आशय का भेजा गया था कि परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार जिला फोरम को नहीं है, परन्‍तु वह जिला फोरम के समक्ष उपस्थित नहीं हुए। जिला फोरम ने विपक्षी/अपीलार्थी की उपस्थिति के लिए समय भी प्रदान किया जाता रहा, परन्‍तु इसके बावजूद भी वह उपस्थित नहीं हुए। अत: जिला फोरम द्वारा उनके विरूद्ध एक पक्षीय सुनवाई करते हुए निर्णय एवं आदेश पारित कर दिया गया एवं जिला फोरम द्वारा जनपद मीरजापुर में प्रश्‍नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार होने के सन्‍दर्भ में विचार भी किया गया और यह भी कथन किया गया कि विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि प्रस्‍तुत नहीं की गयी है। अत: इस आधार पर भी अपील निरस्‍त होने योग्‍य है।

उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्कों के दृष्टिगत यह स्‍पष्‍ट होता है कि जिला फोरम के समक्ष विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा क्षेत्राधिकार को चुनौती दिये जाने के सन्‍दर्भ में पंजीकृत पत्र प्रेषित किया गया था एवं उक्‍त पत्र के सन्‍दर्भ में सुनवाई की तिथि की सूचना दिये जाने का कोई उल्‍लेख प्रश्‍नगत निर्णय में नहीं पाया जाता है। प्रश्‍नगत निर्णय में केवल इस बात का उल्‍लेख है कि विपक्षी/अपीलार्थी के विरूद्ध दिनांक 25.06.1999 को आपत्‍ति‍ पत्र दाखिल करने हेतु नोटिस विपक्षी/अपीलार्थी के पते पर भेजा गया था और 3-4 तिथियों पर आपत्‍ति‍ की प्रतिक्षा करने के बाद जब विपक्षी पक्ष की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया तो उस पर तामीला पर्याप्‍त मानते हुए उसके विरूद्ध परिवाद की सुनवाई एक पक्षीय करते हुए निर्णय पारित कर दिया। निश्‍चय ही प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश में विपक्षी/अपीलार्थी की ओर से डाक के माध्‍यम से जो पंजीकृत पत्र दिनांक 07.12.1999 को भेजा गया था, जो परिवादी/प्रत्‍यर्थी को भी स्‍वीकार्य है। उक्‍त पंजीकृत पत्र का उल्‍लेख प्रश्‍नगत निर्णय में नहीं किया गया। यदि जिला फोरम द्वारा यह समझा गया कि वह पंजीकृत पत्र डाक के माध्‍यम से भेजा गया था और विपक्षी/अपीलार्थी को व्‍यक्तिगत रूप से ही उपस्थित होना अनिवार्य था। उस स्थिति में भी पंजीकृत पत्र के बावत कोई आदेश पारित किया जाना चाहिये था, जो न्‍याय के हित में आवश्‍यक था। इस प्रकार प्रश्‍नगत प्रकरण में यह पाया जाता है कि विपक्षी/अपीलार्थी अपना पक्ष जिला फोरम के समक्ष पूर्ण रूपेण प्रस्‍तुत नहीं कर सका  कि क्षेत्राधिकार के सन्‍दर्भ में जिला फोरम मीरजापुर में सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं था। इस सन्‍दर्भ में विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा उपरोक्‍त वर्णित पंजीकृत पत्र में माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय की विधि व्‍यवस्‍थाओं का भी उल्‍लेख किया गया। उन विधि व्‍यवस्‍थाओं पर भी जिला फोरम ने कोई विचार नहीं किया। अत: हम उपरोक्‍त परिशीलन के उपरान्‍त इस निष्‍कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रश्‍नगत आदेश अपास्‍त किये जाने एवं प्रश्‍नगत परिवाद जिला फोरम को पुन: निस्‍तारण हेतु प्रतिप्रेषित किये जाने योग्‍य है।

आदेश

     अपील स्‍वीकार करते हुए प्रश्‍नगत आदेश दिनांकित 14.08.2001 अपास्‍त किया जाता है और यह मामला जिला उपभोक्‍ता फोरम मीरजापुर को प्रतिप्रेषित करते हुए निर्देश दिया जाता है कि वह उभय पक्ष को साक्ष्‍य एवं सुनवाई समुचित अवसर देते हुए परिवाद को गुणदोष के आधार पर निस्‍तारित किया जाना सुनिश्चित करें।

    

 

    (न्‍यायमूर्ति वीरेन्‍द्र सिंह)      (जितेन्‍द्र नाथ सिन्‍हा)        (जुगुल किशोर)    

           अध्‍यक्ष                   सदस्‍य                      सदस्‍य                      

लक्ष्‍मन, आशु0

   कोर्ट-1

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Virendra Singh]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Jitendra Nath Sinha]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. Jugul Kishor]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.