Rajasthan

Kota

CC/314/2010

Lalchand Kumhar - Complainant(s)

Versus

M/S Manoj Seeds - Opp.Party(s)

Rajkumar reniwal

27 Jan 2016

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
प्रकरण संख्या-  314 /10
लालचंद पुत्र रतनलाल जाति कुम्हार आयु 28 साल निवासी ग्राम बनियानी तहसील लाडपुरा, जिला कोटा राजस्थान।                                  -परिवादी।
                     बनाम
01.    मैसर्स मनोज, सीड्स (प्रमाणित बीज विक्रेता) पता 25-ए नई धानमंडी, कोटा, राजस्थान।   
02.    तिलम संघ राजस्थान, कोटा परियोजना, रावतभाटा रोड, कोटा, राजस्थान।
                                                      -विपक्षीगण
            समक्ष    
              भगवान दास     -    अध्यक्ष    
                     महावीर तंवर     -    सदस्य
               हेमलता भार्गव    -    सदस्य
       परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1  श्री राजकुमार रेनीवाल , अधिवक्ता, परिवादी की ओर से।
2  श्री मनीष कुमार गुप्ता, अधिवक्ता, विपक्षी सं. 1 की ओर से।
3.  श्री सी0बी0 सोरल, अधिवक्ता विपक्षी सं. 2 की ओर से।   
 
    निर्णय                   दिनांक 27.01.16 

    परिवादी ने विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर उनका संक्षेप में यह दोष बताया है कि  उसने विपक्षी सं. 2 द्वारा उत्पादित सोयाबीन बीज (जे.एस. 9305 - लोट नं. 762-766) उनके अधिकृत विक्रेता विपक्षी सं. 1 से 2 कट्टे 40-40 किलोग्राम के 1,800/- रूपये अदा करके दिनांक 04.07.10 को खरीदे थे। जिन्हे अपनी साढे सात बीघा (1.8 हैक्टर) कृषि भूमि में बोया था उससे दो किस्म के पौधे निकले, कुछ पौधों में फसल आई कुछ पौधों में नहीं आई, भिन्न तरह की पत्तियां आई, कुछ पौधों में फूल आये कुछ में नहीं आये। इससे स्पष्ट है कि बीज मिश्रित थे अर्थात् घटिया क्वालिटी का व निर्धारित मानक के अनुरूप नहीं था, उससे परिवादी को वांछित उत्पादन नहीं हुआ। यदि सही उत्पादन होता तो 40 क्वि0 फसल प्राप्त होती जिसका बाजार मूल्य 80,000/- रूपये है। बीज बेचते समय बताया गया है कि सिंचाई की आवश्यकता नहीं है। उसकी कृषि भूमि में पानी की कमी है। इसलिये वह पानी भी नही दे सकता था। उसने विपक्षीगण को कानूनी नोटिस भेजा , लेकिन सुनवाई नहीं हुई, नुकसान की भरपाई नहीं हुई। उसे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप व शारीरिक कष्ट हुआ। 
    विपक्षी सं. 1 के जवाब का सार है कि  उसने विपक्षी सं. 2 द्वारा उत्पादित उच्च क्वालिटी एवं मानक का बीज उनके अधिकृत डीलर श्री गणेश ट्रेडिंग कंपनी तालेडा (बूंदी) से खरीदा था क्योंकि उसे सब डीलर नियुक्त किया गया था तथा परिवादी को बीज बेचते समय समझाया था कि इस बीज से 90-95 दिन की न्यूनतम अवधि में फसल तैयार होते ही उसमें पानी देना आवश्यक है। उक्त बीज की एक हैक्टर यानी साढे छः बीघा में कम से कम 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है परिवादी ने साढे सात बीघा कृषि भूमि में बीज बोना बताया है जिसके लिये 100 किलोग्राम से अधिक बीज बोना चाहिये था जबकि उसने केवल 80 किलोग्राम बीज बोना ही बताया है इस प्रकार पर्याप्त बीज नहीं बोया। इससे स्पष्ट है कि उसने उससे खरीदे गये बीज के अलावा अन्य बीज भी मिला कर बोया था, इसलिये विपक्षी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। परिवादी की शिकायत आने पर विपक्षी सं. 2 वह उनके जयपुर कार्यालय को सूचना की गई थी जिन्होने विशेषज्ञों की जांच समिति गठित की, जिसने निरीक्षण करने पर पाया था कि उसमें अन्य किस्म  जे.एस. 335 का बीज भी मानक मापदंडों के अन्तर्गत था इन दोनो किस्मों की पकाव अवधि में कोई अन्तर नहीं होने से फसल को कोई नुकसान भी नहीं हुआ। परिवादी ने उस वर्ष 20.10.10 को भामाशाह कृषि उपज मंडी में विक्रय पर्ची सं. 147 से फसल बेची है। इससे स्पष्ट है कि उसे नुकसान नहीं हुआ। जो बीज बेचा वह उन्नत किस्म, उत्तम क्वालिटी व मानक का था। उसने सेवा में कोई कमी नहीं की, उसका कोई दोष भी नहीं है।  
    विपक्षी सं. 2 के जवाब का सार है कि  विपक्षी सं. 1 उनका अधिकृत डीलर नहीं है। उसके द्वारा बेचे गये बीज के लिये उन्हे उत्तरदायी नही माना जा सकता। यह भी जवाब में कहा गया है कि उनके द्वारा बीज को विक्रय हेतु जारी करने से पूर्व सीड् टेस्टिंग लेब में उसकी वैज्ञानिक तौर से जांच करवाई जाती है  तथा उस जांच में मानक स्तर का होने पर ही विक्रय हेतु जारी किया जाता है। जे.एस. 9305 किस्म के बीज की भी जांच प्रयोगशाला से कराई गई थी जिसमें उसे मानक स्तर का पाया गया था और उसके बाद ही अधिकृत विक्रेता के जरिये बीज उपलब्ध कराया गया था उनके द्वारा उत्पादित बीज उन्नत किस्म, उत्तम क्वालिटी व निर्धारित मानक का है जिसमें कोई दोष नहीं है। परिवादी के खेत की जांच विशेषज्ञों की समिति द्वारा कराई गई जिसमें यह पाया गया कि जो अन्य किस्म की फसल थी उसकी पकाव अवधि भी समान ही थी फसल के उत्पादन में कोई अंतर नहीं आया था। इसलिये परिवाद सारहीन है, उनका कोई दोष नहीं है। 
    परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा बीज खरीद बिल, कृषि भूमि के दस्तावेज, फसल की फोटो, विपक्षीगण को प्रेषित कानूनी नोटिस , पोस्टल रसीद आदि की प्रतियां प्रस्तुत की है।
    विपक्षी सं. 1 ने सा़क्ष्य में प्रो0 दौलत कुमार जैन के शपथ-पत्र के अलावा राजस्थान स्टेट सीड्स कारपोरशन लिमिटेड द्वारा सोयाबीन फसल के लिये उन्नत बीज, व उन्नत तरीके के जारी विवरण, डीलर, श्री गणेश ट्रेडिंग कंपनी तालेडा (बूंदी)के बिल नम्बर 1791 दिनांक 01.07.10, 1901 दिनांक 04.07.10, 1971 दिनांक 06.07.10, उसे सब डीलर नियुक्त करने के पत्र, प्रबंधंक तिलम संघ को प्रेषित पत्र दिनांक 27.08.10, 04.09.10 व 06.09.10, बीज वितरण सूचना पत्रांक, जांच प्रतिवेदन, सीड टेस्टिंग लेबोरेट्री के दस्तावेज की प्रतियां प्रस्तुत की है। 
    विपक्षी सं. 2 ने साक्ष्य में महाप्रबंधक कैलाशनाथ वाजपेयी का शपथ-पत्र प्रस्तुत किया।   

     हमने दोनों पक्षांें की  बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया। 
        परिवादी ने विपक्षी सं. 2 द्वारा उत्पादित सोयाबीन बीज विपक्षी सं. 1 से खरीदा है। निर्विवाद रूप से विपक्षी सं. 1 विपक्षी सं. 2 का अधिकृत डीलर नहीं है। विपक्षी सं. 1 के अनुसार डीलर, श्री गणेश ट्रेडिंग कंपनी तालेडा (बूंदी) ने सब डीलर नियुक्त किया। यद्यपि इस बाबत् एक पत्र की प्रति प्रस्तुत की गई है जिसे प्रामाणिक साक्ष्य नहीं माना जा सकता है। डीलर, श्री गणेश ट्रेडिंग कंपनी तालेडा (बूंदी) के प्रो0 का कोई शपथ-पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है। श्री गणेश ट्रेडिंग कंपनी तालेडा (बूंदी) से बीज खरीदने के जो बिल प्रस्तुत किये गये है उन पर कोई बेच नं./लोट नं. अंकित नहीं है। इसलिये यह नही माना जा सकता है कि किस बैच/लोट के बीज खरीदे थे?
    एक-क्षण के लिये यह मान भी लिया जावे कि वह बीज विपक्षी सं. 2 द्वारा उत्पादित था तब भी इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि विपक्षी सं. 1 ने उसे खुला बेचा हो अर्थात् सील बंद अवस्था में नहीं बेचा हो। परिवादी ने बीज सील-बंद अवस्था में खरीदा था, इसकी पुष्टि के लिये कट्टे पर लगे हुये टेग  या मूल कट्टा साक्ष्य में पेश नहीं किया गया है। यदि यह मान भी लिया जाय कि बीज सील-बंद अवस्था में ही विपक्षी सं. 1 ने परिवादी को बेचा था तो भी बीज में दोष की पुष्टि के लिये आवश्यक था कि उसके सेम्पल की अधिकृत प्रयोगशाला में जांच करवाकर साक्ष्य प्रस्तुत करता, लेकिन परिवादी ने ऐसी कोई विशेषज्ञ की साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं की है। बीज जे.एस. 9305 सीड-टेस्टिंग लेबोरेट्री की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है, जिसमें उसे मानक स्तर का होना बताया गया है। इसलिये यह सिद्ध है कि वह बीज मानक स्तर का था, जिसमें कोई दोष नहीं था। विपक्षी-विक्रेता ने इस बीज से फसल लेने के बारे में जो विवरण प्रस्तुत किया है उसमें स्पष्ट है कि उक्त बीज एक हैक्टर में कम से कम 100 किलोग्राम बोना आवश्यक था तथा इसकी पकाव अवधि 90 से 95 दिन है तथा आदर्श अवस्था में उससे प्रति हैक्टर अधिकतम 20,25 क्वि0 उपज प्राप्त कर सकता है लेकिन इसके लिये बीज बोने से पहले उसका उपचार करना आवश्यक है, उसमें उर्वरक पर्याप्त मात्रा में डालना आवश्यक है, सिंचाई करना आवश्यक है तथा पौधों की सुरक्षा हेतु दवा डालना आवश्यक है तथा समय-समय पर खरपतवार को निकालना आवश्यक है। परिवादी ने एक हैक्टर से एक बीघा अधिक जमीन में बीज बोया है जिसके लिये 100 किलोग्राम से अधिक मात्रा आवश्यक थी। परिवादी ने उक्त किस्म का मात्र 80 किलोग्राम बीज ही खरीदा। इसलिये इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि उसने अन्य किस्म का बीज भी बोते समय मिलाया हो। उक्त बीज से अच्छी फसल लेने के लिये सिंचाई करना भी आवश्यक था। परिवादी ने परिवाद में ही स्वीकार किया है कि उसकी भूमि में पानी की व्यवस्था नहीं है अर्थात् उसने आवश्यकतानुसार समय पर सिंचाई भी नहीं की। इसलिये वांछित उपज नहीं होने के लिये वह स्वयं उत्तरदायी है। उक्त किस्म के बीज से फसल की पकाव की अवधि 95 दिवस है जबकि परिवादी ने परिवाद में कहा है कि 60-65 दिन में फसल का उत्पादन पर्याप्त नहीं हुआ । परिवादी ने कुल साढे-सात बीघा भूमि में   अनुमानित  40 क्वि0 फसल होने का केस रखा है, इस बाबत् कोई विशेषज्ञ साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है। विपक्षीगण ने उक्त बीज से आदर्श स्थिति में प्रति हैक्टर 20 क्वि0 से 25 क्वि0 अधिकतम उपज बताया है इससे स्पष्ट है कि परिवादी ने एक हैक्टर से कुछ अधिक भूमि में बीज बोया,  उससे आदर्श स्थिति में अधिकतम 25 क्वि0 फसल ही हो सकती थी, इसके लिये भी पर्याप्त मात्रा में सिचाई, खाद, कीटनाशक दवा, खरपतवार निष्काषन व बोने से पहले बीज-उपचार भी आवश्यक था, यह सब  कार्यवाही की गई, इसका कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है। विपक्षी सं. 1 ने परिवादी द्वारा उक्त बीज से प्राप्त फसल को बेचने का दस्तावेज प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार परिवादी ने दिनांक 20.10.10 को मंडी में विकास टेªंिडग, नई धानमंडी, कोटा के माध्यम से लगभग 15 क्वि0 सोयाबीन की फसल बेची है। इसलिये यह नहीं माना जा सकता है कि उसे बीज से फसल का उत्पादन नहीं मिला। इसके अलावा परिवादी की शिकायत पर विपक्षी सं. 2 ने कृषि विशेषज्ञों की समिति बनाकर परिवादी की फसल का निरीक्षण करवाया जिसमें  पाया गया कि फसल में किस्म जे.एस. 9305 के अलावा किस्म जे.एस. 335 के पौधें भी पाये गये थे जो मानक माप दंड के अनुसार थे, दोनो फसल के पकाव की अवधि में कोई अंतर नहीं है। इसलिये कृषक को कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि परिवादी की यह कहानी सही नहीं है कि जो अन्य किस्म की पौध आई उसका बढाव कम था या समय पर नही पकाव नहीं हुआ ।
 उपरोक्त विवेचन से हम यह पाते है कि परिवादी यह सिद्ध करने में विफल रहा है कि उसने जो बीज खरीदा वह घटिया किस्म या घटिया क्वालिटी या निर्धारित मानक के कम स्तर का  था अथवा कट्टे में अन्य किस्म का बीज मिला हुआ था। यदि पर्याप्त मात्रा में उपज नहीं मिली, तब इसके लिये परिवादी ही उत्तरदायी रहा है क्योंकि उसने पर्याप्त सिंचाई, उर्वरक, कीटनाशक दवा, बीजोउपचार, खरपतवार नाशक जैसे तथ्यों की कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है। अतः परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।  
     

    आदेश 

    अतः परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के खिलाफ  खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगें।

(महावीर तंवर)              (हेमलता भार्गव)            ( भगवान दास)  
  सदस्य                    सदस्य                   अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद   जिला उपभोक्ता विवाद      जिला उपभोक्ता विवाद 
प्रतितोष  मंच, कोटा।     प्रतितोष  मंच, कोटा।        प्रतितोष मंच, कोटा।
     निर्णय  आज दिनंाक 27.01.16 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 


  सदस्य                    सदस्य                   अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद   जिला उपभोक्ता विवाद      जिला उपभोक्ता विवाद 
प्रतितोष  मंच, कोटा।     प्रतितोष  मंच, कोटा।        प्रतितोष मंच, कोटा।

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