राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद संख्या-149/2015
1- Anil Kumar Singh.
2- Smt. Ruby Singh Wife of Anil Kumar Singh Both residents of SE-141, Hindalco ADM Colony, P.O.-Renukoot, District-Sonbhadra, U.P. परिवादीगण
बनाम्
M/s Mahagun (India)Pvt. Ltd., Resd. Office B-66,Ist Floor, Vivek Vihar, New Delhi through its Managing Director.
Local Office – Service to be sent to : The Corenthum Tower-B
Office No.B/44, Plot No. A/41, Sector-62, Noida-201301,
G. B. Nagar. Through Managing Director विपक्षी
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
2- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
1- परिवादी की ओर से उपस्थित - श्री आर0 के0 गुप्ता।
2- विपक्षी की ओर से उपस्थित - श्री अनुराग श्रीवास्तव
एवं श्री विकास अग्रवाल।
दिनांक : 15-05-2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय :
धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत यह परिवाद परिवादीगण Anil Kumar Singh एवं Smt. Ruby Singh ने विपक्षी M/s Mahagun (India) Pvt. Ltd., के विरूद्ध आयोग के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि विपक्षी के कथन पर विश्वास करते हुए परिवादीगण उसकी Mahagun My Woods स्कीम जो GH-04, Sector-16C ग्रेटर नोयडा, उ0प्र0 में स्थित है, में फ्लैट खरीदने हेतु सहमत हुए और दिनांक 15-02-2011 को 1,00,000/-रू0 के चेक दिनांकित 12-02-2011 के साथ फ्लैट आवंटन हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, तब विपक्षी ने पत्र दिनांकित 16-02-2011 के द्वारा परिवादीगण की बुकिंग
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कन्फर्म की और फ्लैट नम्बर-06091 MIPL-My Woods, GH-04,Sector-16 C. Greater Noida, U.P. में उसे आवंटित होना दर्शित किया। तदोपरान्त परिवादी ने 1,30,000/-रू0 का चेक विपक्षी को दिया जिसकी प्राप्ति उसने दिनांक 28-02-2011 को दिया और एलाटमेंट पत्र दिनांकित 03-03-2011 के द्वारा अपार्टमेंट नम्बर-06091 छठे तल पर 9.10 वर्गफुट क्षेत्रफल बिष्ट अप एरिया और 1110 वर्गफुट सुपर एरिया का उसे उपरोक्त स्कीम में कुल लागत लागत 23,58,373/-रू0 पर आवंटित किया गया जिसमें 22,81,200/-रू0 लागत मूल्य और 77,173/-रू0 सर्विस चार्ज था और उसमें Parking, Power Backup Charges, Club Membership, Electrification and firefighting installation charges सम्मिलित थे। फ्लैट का बेसिक विक्रय मूल्य 18,42,600/-रू0 था। तदोपरान्त विपक्षी ने पत्र दिनांकित 04-04-2011 के द्वारा परिवादीगण से 8,31,269/-रू0 की मांग की। तब एक त्रिपक्षीय करार परिवादीगण, विपक्षी और एच0डी0एफ0सी0 बैंक के बीच हुआ और करार पत्र निष्पादित किया गया। जिसके अनुसार परिवादीगण ने एच0डी0एफ0सी0 बैंक से 18,00,000/-रू0 लोन का आवेदन किया। त्रिपक्षीय करार की शर्तों के अनुसार विपक्षी की यह जिम्मेदारी थी कि वह योजना के सभी अभिलेख एच0डी0एफ0सी0 बैंक को प्रस्तुत करता और योजना की प्रगति के संबंध में उसे अवगत कराता। त्रिपक्षीय करार में यह भी तय हुआ था कि फ्लैट के विक्रय फल की किश्तों का भुगतान विपक्षी को परिवादीगण के निर्देश पर किया जायेगा।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि पत्र दिनांकित 10-05-2011 के द्वारा बैंक ने परिवादीगण को 18,00,000/-रू0 का लोन
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मंजूर किया। लोन की किश्तें निर्माण की प्रगति को दृष्टिगत रखते हुए आवश्यकतानुसार जारी किया जाना था। अत: लोन की किश्तें प्राप्त करने
हेतु विपक्षी को बैंक में आवश्यक अभिलेख प्रस्तुत करना था। परन्तु उसने न तो बैंक को कोई सूचना दिया और न ही परिवादीगण को निर्माण की प्रगति के संबंध में कोई सूचना दी। बाद में दिनांक 29-10-2011 को पहली बार विपक्षी ने परिवादीगण को सूचित किया कि भूमि अर्जन के संबंध में मा0 उच्च न्यायालय में विवाद लम्बित है। इसके साथ ही विपक्षी की ओर से 9,49,188/-रू0 की मांग पत्र दिनांकित 29-10-2011 के द्वारा परिवादीगण से की गयी। तब परिवादीगण ने यह पत्र दिनांकित 29-10-2011 एच0डी0एफ0सी0 बैंक में लोन धनराशि की किश्त जारी करने हेतु प्रस्तुत किया। बैंक को भूमि अर्जन से संबंधित विवाद से अवगत कराया जा चुका था इस कारण बैंक ने परिवादी को ऋण की किश्त मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष लम्बित वाद एवं विपक्षी द्वारा कुछ अभिलेख प्रस्तुत न किये जाने के आधार पर देने से मना कर दिया। उसके बाद परिवादीगण बराबर विपक्षी से भूमि अर्जन संबंधित विवाद के संबंध में मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष लम्बित वाद की स्थिति जानने का प्रयास करते रहे परन्तु विपक्षी ने कोई सूचना उन्हें नहीं दिया। तब परिवादी संख्या-1 ने दिनांक 11-04-2012 को ई-मेल के द्वारा भूमि अर्जन से संबंधित उपरोक्त विवाद के संबंध में और सरकार से क्लेयरेंस मिलने के संबंध में विपक्षी से जानकारी चाही तथा क्लीयरेंस से संबंधित अभिलेख की मांग की ताकि बैंक से उसे ऋण की किश्त प्राप्त हो सके। तब दिनांक 12-04-2012 को ई-मेल के माध्यम से विपक्षी के प्रतिनिधि ने परिवादी को सूचित किया कि
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एन0सी0आर0 बोर्ड का निर्णय अभी विचाराधीन है। ऐसी स्थिति में बैंक स्वीकृत ऋण जारी करने में असमर्थ है।
इसके साथ ही विपक्षी के प्रतिनिधि ने परिवादी को यह भी सूचित किया कि अवशेष धनराशि एन0सी0आर0 बोर्ड का निर्णय घोषित होने के बाद ही देय होगी और बैंक से ऋण तभी जारी किया जायेगा। तदोपरान्त विपक्षी से भूमि अर्जन संबंधित कार्यवाही की स्थिति जानने हेतु ईमेल परिवादीगण ने विपक्षी को भेजा जिसका उत्तर विपक्षी ने दिया कि मामला सरकार और अधिकारियों के समक्ष विचाराधीन है और सरकार द्वारा निर्णय लिये जाने के बाद ही कार्य शुरू किया जायेगा। उसके बाद पुन: दिनांक 03-09-2012 को परिवादीगण ने विपक्षी से योजना की प्रगति के संबंध में जानकारी चाही। इसके साथ ही परिवादीगण ने अपने नये पते से भी विपक्षी को अवगत कराया। उसके बाद दिनांक 04-09-2012 को ई-मेल के द्वारा विपक्षी ने परिवादीगण को यह सूचित किया कि आवश्यक निर्णय हेतु प्रक्रिया जारी है, निर्णय शीघ्र ही मालूम हो जायेगा। विपक्षी ने परिवादी को यह भी अवगत कराया कि उसका संशोधित पता कम्प्यूटर सिस्टम में incorporate कर लिया गया है।
उसके बाद पत्र दिनांकित 07-10-2012 के द्वारा विपक्षी ने परिवादी से 9,50,191/-रू0 की किश्त की मांग की। फिर भी विपक्षी ने बैंक में प्रस्तुत करने हेतु परिवादी द्वारा मांगे गये अभिलेख नहीं भेजा। उसके बाद पुन: दिनांक 15-10-2012 को विपक्षी ने 9,50,191/-रू0 का डिमाण्ड लेटर परिवादी को उपरोक्त वांछित अभिलेख के बिना भेजा और उसके बाद दिनांक 21-11-2012 को रिमाइण्डर नोटिस भेजा। रिमाइण्डर नोटिस भी उपरोक्त
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वांछित अभिलेख के बिना भेजी गयी। इसके साथ ही विपक्षी ने पत्र दिनांकित 21-11-2012 के द्वारा परिवादी को एक अतिरिक्त एग्रीमेंट भेजा जिसके द्वारा मूल करार की शर्तें पुनरीक्षित की गयी थी और यह सूचित किया गया था कि विकास कार्य की परमीशन दिनांक 08-10-2012 को प्रदान की गयी है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि उपरोक्त अतिरिक्त एग्रीमेंट के साथ पत्र दिनांक 17-10-2012 संलग्न किया गया था जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि Writ Petition C No. 500 of 2010 Devender Kumar and Others Vs. State of U.P. and Othdrs. प्रस्तुत की गयी है और जिसमें ग्रेटर नोयडा द्वारा भूमि अर्जन के संबंध में की गयी कार्यवाही की वैघता को चुनौती मा0 उच्च न्यायालय में दी गयी थी। परिवादीगण के अनुसार विपक्षी ने इस तथ्य को परिवादीगण से छिपाते हुए उन्हें फ्लैट के खरीद हेतु करार के लिए उत्प्रेरित किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार विपक्षी ने पुन: पत्र दिनांकित 07-12-2012 के द्वारा परिवादीगण से 9,50,191/-रू0 की मांग की और जमा करने हेतु अंतिम तिथि दिनांक 20-12-2012 बताया, परन्तु उक्त तिथि तक विपक्षी द्वारा आवश्यक अभिलेख न दिये जाने के कारण परिवादीगण बैंक से लोन की किश्त नहीं प्राप्त कर सके। जबकि उन्होंने दिनांक 11-12-2012 और दिनांक 18-12-2012 को ई-मेल के माध्यम से उक्त अभिलेख की विपक्षी से मांग की थी और दिनांक 18-12-2012 को ई-मेल के द्वारा विपक्षी ने परिवादीगण से कहा था कि वह उसके कार्यालय आकर बैंक से आवश्यक अभिलेख प्राप्त कर लें। उसके बाद पुन: दिनांक 05-01-2013 को विपक्षी
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ने परिवादी को 8,31,269/-रू0 की किश्त जमा करने हेतु मांग पत्र वांछित अभिलेखों के बिना भेजा और अनुस्मारक दिनांकित 05-01-2013 को भेजा। उसके बाद विपक्षी ने दूसरा रिवाइज रिमाइण्डर दिनांक 07-01-2013 को परिवादीगण को भेजा और कहा कि उपरोक्त पत्र दिनांक 05-01-2013 को नजरअंदाज करते हुए 9,50,191/-रू0 की किश्त दिनांक 15-01-2013 तक भेजे। इस पुनरीक्षित अनुस्मारक के साथ भी विपक्षी ने वांछित अभिलेख नहीं भेजा और दोनों मांग पत्रों की धनराशि के अंतर के संबंध में स्पष्टीकरण देने का प्रयास नहीं किया।
इस बीच विपक्षी ने आवश्यक अभिलेख एच0डी0एफ0सी0 बैंक को भेजा जिसकी प्रति बाद में परिवादीगण को दी गयी। तब ई-मेल के द्वारा दिनांक 12-01-2013 को परिवादीगण ने विपक्षी की वास्तविक देय धनराशि के संबंध में जानकारी चाही, ताकि तद्नुसार किश्त के भुगतान हेतु तैयारी किया जा सके। तब विपक्षी ने दिनांक 17-01-2013 को ई-मेल के द्वारा परिवादीगण को भुगतान का विवरण भेजा। तब दिनांक 23-01-2013 को 9,50,121/-रू0 का चेक विपक्षी के एकाउन्ट में अवशेष किश्त की अदायगी हेतु जमा किया गया जिसकी प्राप्ति रसीद दिनांक 23-01-2013 को परिवादीगण को दी गयी।
उसके बाद पुन: दिनांक 09-09-2013 को 1,97,785/-रू0 की मांग विपक्षी द्वारा की गयी जिसे पत्र दिनांकित 16-12-2013 के द्वारा संशोधित करते हुए 3,88,060/-रू0 की डिमाण्ड की गयी और उसके बाद पत्र दिनांकित 21-03-2014 के द्वारा विपक्षी ने परिवादीगण को लास्ट और फाइनल नोटिस वास्ते कैन्सिलेशन 3,88,060/-रू0 की मांग करते हुए भेजा
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जिसमें डिफाल्ट नोटिस दिनांक 23-09-2013, 09-10-2013 एवं 25-10-2013 परिवादीगण को भेजे जाने का उल्लेख था। परन्तु डिफाल्ट नोटिस दिनांक 23-09-2013 और दिनांक 09-10-2013 परिवादी को मिली ही नहीं थी और नोटिस दिनांक 25-10-2013, दिनांक 16-12-2013 को मिली थी। उसके बाद नोटिस दिनांक 21-03-2014 के मिलने पर परिवादीगण ने पत्र दिनांकित 04-04-2014 के द्वारा एच0डी0एफ0सी0 बैंक से 3,88,060/-रू0 की किश्त की धनराशि अवमुक्त करने का निवेदन किया, तब बैंक ने परिवादीगण का प्रार्थना पत्र प्राप्त कर मौखिक रूप से सूचित किया कि यह धनराशि बैंक द्वारा नहीं दी जायेगी और यह धनराशि उन्हें स्वयं बिल्डर को अदा करनी है। इसके साथ ही एच0डी0एफ0सी0 बैंक ने परिवादीगण को अवगत कराया कि इसी आधार पर प्रार्थना पत्र दिनांक 10-10-2013 और दिनांक 04-04-2014 के द्वारा याचित धनराशि जारी नहीं की गयी है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि परिवादी की चाची की लम्बी बीमारी के कारण वे अधिकतर बाहर रहे और विपक्षी से सम्पर्क स्थापित नहीं कर सके अत: उन्होंने दिनांक 29-04-2014 को ई-मेल के द्वारा पूरी स्थिति से विपक्षी को अवगत कराया और उससे अवशेष धनरशि के भुगतान हेतु समय चाहा और यह इच्छा व्यक्त की, कि वे किश्त की धनराशि जमा करने को तैयार हैं। उन्होंने विपक्षी से यह भी कहा कि फ्लैट का कुल मूल्य 23,58,373/-रू0 है और उसमें से वे 11,80,121/-रू0 भुगतान कर चुके है जो 50 प्रतिशत से अधिक है परन्तु विपक्षी ने कोई उत्तर नहीं दिया तब परिवादीगण ने दिनांक 03-05-2014, 08-05-2014, 19-05-2014, 21-05-2014, 29-05-2014 और 31-05-2014 को विपक्षी
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को बराबर रिमाइण्डर भेजे और अपने अनुरोध के संबंध में जानकारी चाही परन्तु विपक्षी ने कोई उत्तर नहीं दिया। इसके विपरीत मिस शिल्पी शर्मा जो विपक्षी के कस्टमर केयर डिपार्टमेंट की प्रभारी थीं ने परिवादीगण से कहा कि वे विपक्षी के कार्यालय में आए और किश्त की अदायगी के बिन्दु पर बात करें। तब दिनांक 02-06-2014 को परिवादी संख्या-1 विपक्षी के कार्यालय गया और बात की तो बात के दौरान यह तथ्य सामने आया कि विपक्षी फ्लैट का दाम बढ़ाना चाहता है और यदि इस पर सहमत हो तो मामला तय हो सकता है, परन्तु परिवादीगण ने अवशेष धनराशि ब्याज सहित अदा करने पर ही अपनी सहमति व्यक्त की जिस पर विपक्षी ने अपनी कोई सहमति व्यक्त नहीं की। उसके बाद पत्र दिनांक 19-06-2014 के द्वारा विपक्षी ने परिवादीगण को अपना फ्लैट अपग्रेड कर बड़ा फ्लैट कराने का आफर भेजा जबकि उसकी अवशेष किश्तों के भुगतान और अधिक धनराशि की मांग का विवाद अभी लम्बित रखा और इस संबंध में कोई सूचना उसे नहीं दी। इस बीच पत्र दिनांक 17-07-2014 के द्वारा विपक्षी ने परिवादीगण को के0वाई0सी0 फार्म अग्रिम संवाद हेतु भरने के लिए भेजा, परन्तु उसके बाद परिवादीगण को कोई सूचना अवशेष किश्त के भुगतान और ब्याज के संबंध में नहीं भेजी और अंतिम पत्र दिनांकित 11-03-2015 के द्वारा परिवादीगण का आवंटन निरस्त कर दिया गया जिसमें पत्र दिनांक 23-09-2013, 09-10-2013 और 25-10-2013 का उल्लेख था जो परिवादी पर कभी तामील नहीं हुआ है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि विपक्षी ने एच0डी0एफ0सी0 बैंक को भी परिवादी का लोन एकाउन्ट बंद करने हेतु ई-
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मेल पत्र दिनांक 31-03-2015 लिखा और कहा कि परिवादी का एलाटमेंट कैन्सिल कर दिया गया है उसके बाद परिवादीगण ने बराबर विपक्षी से अनुरोध किया कि वे परिवादी की बकाया किश्तें विलम्ब के ब्याज के साथ ले ले, परन्तु उन्होंने कोई सुनवाई नहीं की। क्योंकि वह परिवादी का फ्लैट ऊँची कीमत पर दूसरे को बेचने के इच्छुक थे।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि विपक्षी ने पत्र दिनांक 22-04-2015 के द्वारा एच0डी0एफ0सी0 बैंक को परिवादीगण की चूक के कारण 9,50,121/-रू0 की किश्त के रिफण्ड हेतु एच0डी0एफ0सी0 बैंक को सूचित किया परन्तु उसके लिए परिवादी की सहमति या स्वीकृति प्राप्त नहीं की थी अत: ई-मेल पत्र दिनांक 04-05-2015 के द्वारा परिवादीगण ने एच0डी0एफ0सी0 से अपना लोन एकाउन्ट न बंद करने का अनुरोध किया और दिनांक 09-05-2015 को ई-मेल से पत्र भेजकर विपक्षी से अवशेष धनराशि ब्याज सहित स्वीकार करने का अनुरोध किया परन्तु विपक्षी ने कोई सूचना उन्हें नहीं भेजी। परिवादीगण ने विपक्षी की कर्मचारी मिस शिल्पी शर्मा से भी सम्पर्क स्थापित किया परन्तु उन्होंने भी कोई सूचना नहीं दी। पुन: दिनांक 15-05-2015 को परिवादीगण ने विपक्षी से बकाया धनराशि ब्याज सहित स्वीकार करने का आग्रह किया परन्तु विपक्षी ने पत्र दिनांकित 15-05-2015 के द्वारा 2,29,298/-रू0 मार्जिन मनी बताते हुए परिवादीगण को वापस कर दिया और इस धनराशि पर कोई ब्याज नहीं दिया।
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परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण का कथन है कि उन्होंने 2,29,298/-रू0 के इस चेक को कैश नहीं किया है और दिनांक 03-06-2015 को विपक्षी को नोटिस भेजकर यह अवगत कराया है कि विपक्षी द्वारा आवंटन निरस्त किया जाना अनुचित और गलत है।
उपरोक्त कथन के साथ परिवाद पत्र में परिवादीगण ने कथन किया है कि विपक्षी ने परिवादी से उपरोक्त फ्लैट के आवंटन और बिक्री के संबंध में अनुचित व्यापार पद्धति अपनाई है और सेवा में त्रुटि की है। अत: परिवादीगण ने परिवाद प्रस्तुत कर निम्नलिखित अनुतोष चाहा है :-
- The Opposite Party be directed to allot Flat No. 06091, Block-Comphor, Mahagun My Woods situated at plot No. GH.-4. Sector-16 C, Greater Noida, U.P. and handover its peaceful possession ot the Complainantor in the alternative, the Opposite Party be directed to give possession of a Flat of similar specifications and equivalent dimensions at the agreed rate of Rs. 23,58,373/- determined by agreement executed between the parties.
- The Opposite Party be directed to pay interest at the rate of 18% per annum on the entire deposited amount of Rs. 11,80,121/- (Rs. 2,30,000/- deposited by Complainants themselves +Rs. 9,50,121/- deposited through HDFC Bank
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(refunded by the Opposite party on 06.05.2015 to the Bank), till delivery of possession of the Flat.
- Award a sum of Rs. 2.00.000/- for Physical and Mental harassment and dificiency in services.
- Award a sum of Rs. 2.00.000/- as the costs of the case.
- Award a sum of Rs. 1,00,000/- as travelling and other expenses incurred in visiting the office of the Opposite Party and Bank.
- Pass any order or relief deemed just, proper and necessary in the circumstance of the Case.
विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत कर परिवाद का विरोध किया गया है और कहा गया है कि परिवादीगण ने करार की शर्तों के अनुसार समय से भुगतान नहीं किया है अत: पत्र दिनांक 15-05-2015 के द्वारा 2,29,298/-रू0 परिवादी को डी0डी0 नम्बर-000854 दिनांक 16-05-2015 के माध्यम से वापस कर दिया है। इसके साथ ही 9,50,823/-रू0 का भुगतान डी0डी0 नम्बर-030308 दिनांक 06-05-2015 के द्वारा एच0डी0एफ0सी0 बैंक को कर दिया गया है। विपक्षी ने अपने लिखित कथन में यह भी कहा है कि परिवाद ग्राह्य नहीं है क्योंकि परिवादीगण का आवंटन निरस्त करने के बाद उक्त फ्लैट दिनांक 28-05-2015 को दूसरे व्यक्ति को आवंटित कर दिया गया है।
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लिखित कथन में विपक्षी ने परिवाद पत्र में किये गये कथन का खण्डन करते हुए निवेदन किया है कि परिवाद निरस्त किया जाए।
उभयपक्ष की ओर से अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
परिवाद की अंतिम सुनवाई के समय परिवादीगण की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री आर0 के0 गुप्ता तथा विपक्षी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री अनुराग श्रीवास्तव तथा श्री विकास अग्रवाल उपस्थित आए।
हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
उभयपक्ष के अभिकथन से स्पष्ट है कि निर्विवाद रूप से परिवादीगण को परिवाद पत्र में विपक्षी की कथित योजना में फ्लैट आवंटित किया गया था जिसकी कुल कीमत 23,58,373/- रूपये थी, जिसमें से 22,81,200/-रू0 फ्लैट का मूल्य और 77,173/-रू0 सर्विस चार्ज था तथा उसमें Parking, Power Backup Charges, Club Membership, Electrification and firefighting installation charges सम्मिलित थे। फ्लैट का बेसिक मूल्य 18,42,600/-रू0 था। निर्विवाद रूप से परिवादीगण, विपक्षी एवं एच0डी0एफ0सी0 बैंक के बीच लोन के संबंध में हुए त्रिपक्षीय करार के तहत दिनांक 23-01-2013 को 9,50,121/-रू0 विपक्षी ने प्राप्त किया है। निर्विवाद रूप से बुकिंग एमाउन्ट के रूप में चेक दिनांक 12-02-2011 के माध्यम से परिवादीगण ने 1,00,000/-रू0 और दिनांक 16-02-2011 को चेक के माध्यम से 1,30,000/-रू0 विपक्षी को अदा किया है। इस प्रकार परिवादीगण ने विपक्षी को कुल धनराशि 11,80,121/-रू0 अदा किया है।
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परिवाद पत्र के कथन से ही स्पष्ट है कि परिवादीगण ने विपक्षी को एच0डी0एफ0सी0 बैंक के माध्यम से रू0 9,50,121/-रू0 का भुगतान दिनांक 23-01-2013 को किया है और उसके बाद की अवशेष किश्तों का भुगतान नहीं किया है। उसके बाद विपक्षी ने परिवादीगण को डिमाण्ड नोटिस दिनांकित 09-09-2013 व 16-12-2013 भेजा है परन्तु परिवादीगण ने कोई भुगतान नहीं किया है तब विपक्षी ने दिनांक 21-03-2014 को परिवादीगण को लास्ट व फाइनल नोटिस वास्ते कैन्सिलेशन अवशेष धनराशि 3,88,060/-रू0 की मांग करते हुए भेजा है फिर भी परिवादीगण ने कोई भुगतान नहीं किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार विपक्षी की अन्तिम नोटिस दिनांक 21-03-2014 में उल्लिखित डिफाल्ट नोटिस दिनांक 23-09-2013 एवं 09-10-2013 परिवादीगण को नहीं मिली है परन्तु उपरोक्त अन्तिम नोटिस दिनांक 21-03-2014 में उल्लिखित डिफाल्ट नोटिस दिनांक 25-10-2013 दिनांक 16-12-2013 को प्राप्त होना परिवादीगण ने स्वीकार किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादीगण ने एच0डी0एफ0सी0 बैंक से उपरोक्त 3,88,060/-रू0 की किश्त की धनराशि अवमुक्त करने का अनुरोध किया, तब बैंक ने उन्हें बताया कि यह धनराशि बैंक द्वारा नहीं दी जायेगी। यह धनराशि उन्हें स्वयं बिल्डर को देना है। परिवादीगण ने बैंक के इस कथन को चुनौती नहीं दिया है और न ही बैंक के विरूद्ध शिकायत की है। बैंक को परिवाद में पक्षकार नहीं बनाया गया है। अत: यह नहीं कहा जा सकता है कि बैंक ने उपरोक्त 3,88,060/-रू0 की किश्त की धनराशि अवमुक्त न कर उसके भुगतान का दायित्व परिवादीगण का भी बताया है वह त्रिपक्षीय करार के विरूद्ध है। इसके साथ ही बैंक द्वारा यह किश्त
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अवमुक्त न किये जाने हेतु विपक्षी बिल्डर कदापि उत्तरदायी नहीं कहा जा सकता है।
परिवाद-पत्र के कथन से ही स्पष्ट है कि अन्तिम नोटिस दिनांक 21-03-2014 विपक्षी से मिलने के बाद परिवादीगण ने पहली बार विपक्षी से ई-मेल द्वारा दिनांक 29-04-2014 को सम्पर्क स्थापित किया है और अवशेष किश्त जमा करने हेतु समय मांगा, परन्तु कोई धनराशि जमा नहीं किया है।
परिवाद-पत्र के अनुसार चाची की बीमारी के कारण परिवादीगण अधिकतर बाहर रहे इस कारण नोटिस दिनांक 21-03-2014 के बाद उन्होंने दिनांक 29-04-2014 को ई-मेल से विपक्षी से सम्पर्क किया और अवशेष भुगतान हेतु समय मांगा। चाची की बीमारी के कारण परिवादीगण अवशेष किश्त का भुगतान इतनी लम्बी अविध तक नहीं टाल सकते हैं। सम्पूर्ण तथ्यों एवं साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि परिवादीगण ने विपक्षी की अवशेष किश्त के भुगतान में चूक की है और अन्तिम व फाइनल नोटिस वास्ते कैन्सिलेशन दिनांक 21-03-2014 के बाद भी विपक्षी को कोई भुगतान नहीं किया है। परिवाद पत्र के कथन से ही स्पष्ट है कि विपक्षी ने नोटिस दिनांक 21-03-2014 के बाद पत्र दिनांक 11-03-2015 के द्वारा परिवादीगण का आवंटन निरस्त किया है और इस बीच परिवादीगण ने कोई भुगतान विपक्षी को नहीं किया है। स्वीकृत रूप से दिनांक 19-06-2014 के पत्र के द्वारा विपक्षी ने परिवादीगण को फ्लैट अपग्रेड कर बड़ा कराने का आफर भेजा था और उसके बाद पत्र दिनांक 17-07-2014 के0वाई0सी0 फार्म अग्रिम संवाद हेतु भरने के लिये भेजा। परन्तु परिवादीगण द्वारा विपक्षी के पत्र दिनांक 19-06-2014 एवं 17-07-2014
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का कोई उत्तर भेजा जाना अभिकथित नहीं है। अत: उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध अभिलेखों व साक्ष्यों से स्पष्ट है कि परिवादीगण ने विपक्षी की अन्तिम नोटिस दिनांक 21-03-2014 के बाद भी एक साल तक कोई भुगतान विपक्षी को नहीं किया है तब विपक्षी ने पत्र दिनांक 11-03-2015 के द्वारा परिवादीगण का आवंटन निरस्त किया है।
परिवाद पत्र के कथन से ही स्पष्ट है कि विपक्षी की अन्तिम नोटिस दिनांक 21-03-2014 के बाद परिवादीगण ने मात्र अवशेष किश्तों के भुगतान हेतु समय चाहा है और इच्छा व्यक्त किया है कि वे किश्त की धनराशि जमा करने को तैयार हैं। उन्होंने यह नहीं कहा है कि अवशेष किश्तों का भुगतान विपक्षी को किया परन्तु उसने स्वीकार नहीं किया। केवल किश्तों के भुगतान की इच्छा व्यक्त किया जाना और किश्तों का वास्तविक भुगतान इतनी लम्बी अवधि तक न किया जाना यह दर्शाता है कि वास्तव में अवशेष धनराशि के भुगतान हेतु परिवादीगण सदभाविक रूप से इच्छुक और तैयार नहीं थे।
सम्पूर्ण तथ्यों एवं साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि परिवादीगण ने एलाटमेंट करार के अनुसार किश्तों के भुगतान में चूक किया है। अत: एलाटमेंट करार के प्रस्तर-2.1 के अनुसार एलाटमेंट कैन्सिल करने का अधिकार विपक्षी को है। अत: विपक्षी ने परिवादीगण का एलाटमेंट पत्र दिनांक 11-03-2015 के द्वारा कैन्सिल कर न तो करार का उल्लंघन किया है और न ही सेवा में कोई कमी की है। विपक्षी ने परिवादीगण की जमा धनराशि करार के अनुसार वापस किया है। भले ही परिवादीगण ने 2,29,298/-रू0 का ड्राफ्ट प्राप्त कर उसका भुगतान नहीं
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लिया है। परिवादीगण द्वारा ड्राफ्ट की इस धनराशि का भुगतान न लेने का कोई लाभ परिवादीगण को नहीं मिलेगा। परिवादीगण ड्राफ्ट का revalidation नियमानुसार स्वयं या विपक्षी के माध्यम से करा सकते हैं।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना एवं समस्त तथ्यों, साक्ष्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद सव्यय निरस्त किया जाना उचित है।
आदेश
परिवाद दस हजार रूपये वाद व्यय सहित निरस्त किया जाता है। वाद व्यय की यह धनराशि परिवादीगण विपक्षी को दो माह के अंदर अदा करेंगे। यदि दो माह में यह धनराशि परिवादीगण अदा नहीं करते हैं तो विधि के अनुसार उनके विरूद्ध अग्रिम कार्यवाही की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1, प्रदीप मिश्रा