राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-160/2022
1- मैसर्स न्यू सिंह कैरियर्स 12/4, झरना गेट, पुराना मोटर बस स्टैण्ड, झॉसी।
2- मैसर्स न्यू सिंह कैरियर्स 133/107, टी0पी0 नगर, कानपुर।
दोनों द्वारा प्रोपराइटर श्री अजय कुमार गुप्ता
........... अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम
मैसर्स खण्डेलवाल फैशन, नियन कृष्णा सिनेमा सदर बाजार, झॉसी प्रोपराइटर अंजना खण्डेलवाल।
…….. प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
अपीलार्थीगण के अधिवक्ता : श्री वी0एस0 बिसारिया
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री आलोक सिन्हा
दिनांक :- 26.6.2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/ मैसर्स न्यू सिंह कैरियर्स व एक अन्य द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, झांसी द्वारा परिवाद सं0-315/2017 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 21.6.2021 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा ब्रदर्स 49/48 जनरल गंज, कानपुर से दिनांक 14.10.2015 को बिल सं0-24005, 23995, 23991 क्रमश: 33,275.00 रू0, 15,512.00 रू0 एवं 71,580.00 रू0 माल (कपडा) क्रय किया था एवं उपरोक्त माल को विजय ब्रदर्स ने दिनांक 16.10.2015 को जी0आर0 नं0-239656 के
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द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी सं0-2 के माध्यम से भेजा एवं प्रत्यर्थी/परिवादिनी को भाडा 70.00 रू0 का भुगतान करना था। प्रत्यर्थी/परिवादिनी को विजय ब्रदर्स द्वारा जो माल भेजा गया था, उपरोक्त माल को लेने के लिए प्रत्यर्थी/परिवादिनी कई बार अपीलार्थी/विपक्षीगणों के यहॉ गयी एवं विजय ब्रदर्स जिसके द्वारा माल भेजा गया था विजय ब्रदर्स द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी सं0-2 से सम्पर्क करके प्रत्यर्थी/परिवादिनी को माल डिलीवरी कराने के लिए कहा गया तब अपीलार्थी/विपक्षीगणों के निरंतर प्रत्यर्थी/परिवादिनी को यह आश्वासन दिया जा रहा है कि माल की डिलीवरी शीघ्र ही करा दी जावेगी, परन्तु डेढ वर्ष व्यतीत हो जाने के पश्चात भी अपीलार्थी/विपक्षीगणों द्वारा न तो माल की डिलीवरी दी जा रही है और न ही उपरोक्त माल विजय ब्रदर्स को वापिस किया जा रहा है जबकि विजय ब्रदर्स को प्रत्यर्थी/परिवादिनी पूर्व में ही भेजे गये माल का भुगतान कर चुका है। विजय ब्रदर्स द्वारा जो माल दिनांक 16.10.2015 को बिल्टी सं0-239656 के द्वारा भेजा गया था उपरोक्त बिल्टी के साथ में विजय ब्रदर्स द्वारा मूल बिल भी अपीलार्थी/विपक्षी सं0-2 को प्रदान कर दिये गये थे। जब प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 से माल की डिलीवरी मॉगी तब अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 प्रत्यर्थी/परिवादिनी से कहा गया कि जो माल अपीलार्थी/विपक्षी सं0-2 के यहॉ से बुक किया गया था, उपरोक्त माल के डुप्लीकेट बिल दे दें, तो प्रत्यर्थी/परिवादिनी को बिल के अनुसार माल प्रदान न करने पर धनराशि का भुगतान कर दिया जायेगा। अपीलार्थी/विपक्षीगणों द्वारा बुक किये गये माल की डिलीवरी प्रदान न करना उपभोक्ता संरक्षण कानून का उल्लंघन है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दिनांक 14.8.2017 को अपीलार्थी/विपक्षीगणों को नोटिस भेजा एवं उपरोक्त नोटिस कानपुर में दिनांक 16.8.2017 को प्राप्त हो गया एव झांसी में दिनांक 17.8.2017
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को प्राप्त हो गया उसके बावजूद भी अपीलार्थी/विपक्षीगणों द्वारा न ही बुक किये गये माल की डिलीवरी प्रदान की गई और न ही उक्त माल की धनराशि 1,20,367.00 रू0 प्रदान किये। अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा बुक किये गये माल की डिलीवरी प्रदान न करना उपभोक्ता संरक्षण कानून का उल्लंघन है एवं माल प्राप्त न होने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादिनी को काफी मानसिक कष्ट पहुंचा है और वाद कारण दिनांक 16.10.2015 को उत्पन्न हुआ जब अपीलार्थी/विपक्षी सं0-2 ने माल को बुक करके अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 को भेजा, उसके पश्चात विपक्षी सं0-1 द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी के माल की डिलीवरी नहीं दी गई, अत्एव क्षुब्ध होकर परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपीलार्थी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए यह कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी जिस माल को अपना बता रहा है तथा अपने द्वारा स्वयं क्रय करने की बात कर रहा है वह पूर्णतया असत्य है क्योंकि उक्त माल किसी राजीव खण्डेलवाल आलोक अवस्थी के माध्यम से खरीदा गया एवं राजीव खण्डेलवाल के द्वारा ही उक्त माल भेजा गया, प्रतीत होता है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र के साथ इसीलिए कन्साईनी माल प्राप्त करने वाले जी0आर0 की प्रति नहीं लगायी है जिससे यह स्पष्ट होता कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के द्वारा भेजा गया माल सम्बन्धित व्यक्ति ने स्वयं प्राप्त कर लिया है, अथवा किसी व्यक्ति के माध्यम से प्राप्त कर लिया है तथा परिवादिया ने मात्र नाजायज रूप से पैसा वसूलने के आशय से परिवाद प्रस्तुत कर दिया है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने कैरियर एक्ट 1865 की धारा-9 व 10 का पालन नहीं किया है अत: दावा प्रथम दृष्टया ही अस्वीकार होने योग्य है।
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प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने जानबूझकर एक लम्बी अवधि के पश्चात पूर्णतया मनगढंत आधारों पर दावा दायर किया है तथा इस परिवाद में विजय ब्रदर्स के द्वारा माल भेजना एवं क्रय करना बताते है, वह पूर्णतया असत्य है क्योंकि विजय ब्रदर्स श्याम धनकृपा 49/48 जनरल गंज कानपुर के द्वारा अथवा राजीव खण्डेवाल या आलोक अवस्थी के द्वारा कोई भी सेवा नहीं किया गया है और न ही इस दावे में वह किसी रूप में पक्षकार है जबकि विजय ब्रदर्स कानपुर एवं राजीव खण्डेलवाल एवं आलोक अवस्थी इस मुकदमें में महत्वपूर्ण पक्षकार है, तथा इनके द्वारा कोई दावा न करने के कारण परिवाद चलने योग्य नहीं है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया गया:-
‘’परिवादिनी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध संयुक्त एवं पृथक-प्रथक आंशिक रूप से इस प्रकार से स्वीकृत किया जाता है कि निर्णयके दिनांक से दो माह के अन्दर विपक्षीगण परिवादी को माल की कुल कीमत 1,20,367.00 रू0 (एक लाख बींस हजार तीन सौ सरसठ रूपये) परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक 27.9.2017 से अदायगी तक 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर से अदा करेगें। विपक्षीगण परिवादिनी को मानसिक कष्ट के मद में 3000.00 रू0 (तीन हजार रूपये) तथा परिवाद खर्चे के मद में 2000.00 रू0 (दो हजार रूपये) भी अदा करेगें।‘’
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
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अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के विरूद्ध है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह भी कथन किया गया कि अपील की पत्रावली के पृष्ठ सं0-13 पर जो इंनवाइस रसीद रू0 33,240.00 की दाखिल है, वह राजीव खण्डेलवाल के नाम से है, जो कि प्रोपराइटर अंजना खण्डेलवाल के पति हैं तथा अपील पत्रावली के पृष्ठ सं0-14 पर जो इंनवाइस रसीद रू0 15,512.00 की दाखिल है वह आलोक अवस्थी के नाम से है एवं पृष्ठ सं0-15 पर जो इंनवाइस रसीद रू0 71,580.00 की दाखिल है, वह भी आलोक अवस्थी के नाम है एवं आलोक अवस्थी एवं राजीव खण्डेलवाल का खण्डेलवाल फैशन से को मेल अथवा सम्बन्ध नहीं है।
यह भी कथन किया गया कि इनवाइस नम्बर 24005, 23995 एवं 23991 जो कि एक ही दिनांक के है, आपस में मेल नहीं खाते हैं। यह भी कथन किया गया कि आलोक अवस्थी का राजीव खण्डेलवाल का कोई सम्बन्ध नहीं है।
यह भी कथन किया गया कि माल कानपुर से झांसी के लिए बुक किया गया एवं अपील के पृष्ठ 16 पर जो बिल्टी की छायाप्रति उपलब्ध है वह विजय ब्रदर्स द्वारा बुक करायी गई है न कि खण्डेलवाल फैशन द्वारा बुक करायी गई है।
अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा यह भी कथन किया गया कि विवाद दिनांक 16.10.2015 का है एवं परिवाद दिनांक 27.9.2017 को योजित किया गया है तथा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा यह कथन कि वह डेढ़ वर्ष तक अपने माल का इंतजार करता रहा, तत्पश्चात बाद परिवाद
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योजित किया गया, यह कथन असत्य है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी सामान को खरीदने के डेढ़ वर्ष तक इंतजार नहीं कर सकता है।
अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा परिवाद पत्र में वर्णित प्रस्तर सं0-3 का घोर विरोध करते हुए यह कथन किया गया कि यदि सामान प्राप्त नहीं हुआ तो बिल्टी के साथ में विजय ब्रदर्स को मूल बिल क्यों विपक्षी सं0-2 को प्रदान कर दिये गये। अत: यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी को सामान प्राप्त हो चुका था एवं परेशान करने व गलत रूप से धन वसूलने के उद्देश्य से परिवाद प्रस्तुत किया गया है इसलिए प्रत्यर्थी/परिवादिनी किसी भी क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
उपरोक्त कमियों को दृष्टिगत कराते हुए अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा अपील स्वीकार कर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश को अपास्त किये जाने की प्रार्थना की गई।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के अनुकूल है। यह भी कथन किया गया कि तीनों इनवाइस खण्डेवाल फैशन के ही नाम से बुक की गई हैं। यह भी कथन किया गया कि माल बुक होने के पश्चात सामान प्राप्त होने पर बिल्टी का भुगतान किया जाना था और उपरोक्त बुक सामान प्रत्यर्थी/परिवादी को प्राप्त नहीं हुआ, जो अपीलार्थी की स्पष्ट सेवा में कमी को प्रदर्शित करता है और इस सम्बन्ध में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है उसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
हमारे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा के कथनों को सुना गया तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग
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द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपीलार्थी की ओर से ऊपर उल्लिखित तथ्यों की अनदेखी करते हुए जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है वह अनुचित है तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपीलार्थी के कथनों को विचार में न लेते हुए निर्णय/आदेश पारित किया जाना हमारे विचार से तथ्य और विधि के विरूद्ध है, तद्नुसार अपीलार्थी के अधिवक्ता के तर्कों में बल पाया जाता है, अत्एव प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि को मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1