राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या- 970/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या 91/2011 में पारित आदेश दिनांक 25-04-2016 के विरूद्ध)
Ghanshyam Singh Rana, Advocate Son of Late Satya Prakash Singh Resident of Village Achhronda Post, Tehsil & District Meerut.
..............अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
- M/s Honda Motorcycle & Scooter India Ltd., Registered Office Plot No. 1 Sector 3, IMI, Manesae District Gurgaonm Haryana through Chief Manager.
- M/s Shri Dev Motors B-3, Major Dhyan Chand Nagar, Delhi Road. Meerut through its Manager
..........प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री घनश्याम सिंह राणा।
विद्वान अधिवक्ता ।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री टी0एच0नकवी।
विद्वान अधिवक्ता ।
दिनांक:
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 91/2011 श्री धनश्याम सिंह राणा एडवोकेट बनाम मैसर्स होण्डा मोटर साईकिल और स्कूटर इण्डिया प्रा0लि0 व एक अन्य में जिला फोरम मेरठ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 25.04.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है। अत: क्षुब्ध होकर यह अपील परिवादी धनश्याम सिंह ने प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी व्यक्तिगत रूप से उपस्थित आए है। प्रत्यर्थीगण की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री टी.एच.नकवी उपस्थित आए है।
मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि विपक्षी सं0-01 मैसर्स होण्डा मोटरसाईकिल एण्ड स्कूटर इण्डिया प्रा0 लि0 का अधिकृत डीलर विपक्षी सं0-02 श्री देव मोटर्स है और अपीलार्थी ने विपक्षी सं0-02 से विपक्षी सं0-01 द्वारा निर्मित होण्डा शाइन सिल्वर ग्रे कलर मोटरसाईकिल दिनांक 03.11.2010 को 54,000/-रू0 में क्रय किया। जिसका इंजन नं0- JC36E2045994 और चेसिस नं0-ME4JC36CEA8033420 एवं पंजीयन नं0- UP-15AR-2860 है।
अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि विपक्षी सं0-02 ने उसे रसीद मात्र 49,324/-रू0 की दी है और शेष धनराशि 4606/-रू0 की रसीद असल सेल इनवाइस बिल एवं मोटरसाईकिल का पंजीयन प्रमाण पत्र व इंश्योरेंस उपलब्ध कराते समय देने का आश्वासन दिया। इसके साथ ही विपक्षी सं0-02 ने अपीलार्थी/परिवादी को विश्वास दिलाया कि मोटरसाईकिल बिल्कुल नई और ठीक है जिसमें कोई निर्माण सम्बन्धी दोष नहीं है। इंजन बिल्कुल नया है। वारंटी भी दो वर्ष की बताई। विपक्षी सं0-02 ने यह भी आश्वासन दिया
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कि यदि कोई खराबी आएगी तो इसी मॉडल की नई मोटरसाईकिल उपलब्ध करा दी जाएगी अथवा परिवादी की इच्छानुसार पैसा लौटा दिया जाएगा।
परिवादपत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि मोटरसाईकिल के इंजन में आवाज थी, चलते-चलते रास्ते में बंद हो जाती थी तथा लो पिकअप था और एवरेज भी बहुत कम था। काला धुंआ बहुत अधिक निकलता था। मिसिंग भी होती थी। अत: अपीलार्थी/परिवादी ने विपक्षी सं0-02 को उपरोक्त कमियों से अवगत कराया। विपक्षी सं0-02 ने मोटरसाईकिल अपने पास मंगाकर दूसरी पुरानी मोटरसाईकिल संख्या- UP-15AF-4826 परिवादी को उपयोग करने हेतु इस आशय से दिया कि विवादित मोटरसाईकिल की समस्त कमियां ठीक कराकर 1-2 महीने में सही अवस्था में मोटरसाईकिल उसे वापिस कर दी जाएगी परन्तु मोटरसाईकिल की कमियां दूर नहीं की गई और मिस्त्री द्वारा इस बात की पुष्टि की गई कि मोटरसाईकिल में निर्माण सम्बन्धी दोष है जो ठीक किया जाना संभव नहीं है। परिवादपत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि विपक्षी सं0-02 अपने विधिक दायित्वों से बचने हेतु वारंटी अवधि में मोटरसाईकिल में निर्माण सम्बन्धी दोष होने से इंकार कर रहा है। जबकि प्रश्नगत मोटरसाईकिल दिनांक 30.12.2010 से विपक्षी की वर्कशाप में खराबी के कारण खड़ी है और विपक्षी सं0-02 ने जानबूझकर जाबकार्ड में कमियां अंकित नहीं की हैं।
परिवादपत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण से शिकायत करने पर वे कोई सुनवाई नहीं कर रहे हैं। इस बीच विपक्षी सं0-02 द्वारा उपलब्ध करायी गई बीमा कवर नोट की समयावधि भी दिनांक 02.12.2010 को समाप्त हो चुकी है और बार-बार मांगने पर उसे
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बीमा पालिसी नहीं दी गयी है। अत: विवश होकर अपीलार्थी/परिवादी ने जिला फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया है।
विपक्षीगण की ओर से जिला फोरम के समक्ष प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर कथन किया गया है कि विपक्षी सं0-01 निर्माता कंपनी द्वारा निर्मित मोटरसाईकिल का अधिकृत डीलर/विक्रेता विपक्षी सं0-02 है। लिखित कथन में कहा गया है कि परिवादी को एक वारंटी पुस्तिका दी गई थी जिसमें समय पर सर्विस कराने बिना मिलावट का सही पेट्रोल डालकर चलाने की हिदायत दी गयी थी। वारंटी पुस्तिका के अनुसार किसी पार्ट्स के खराब होने पर उसको नि:शुल्क बदलने का प्रावधान है न कि गाड़ी बदलने का। कीमत वापिस करने का भी कोई प्राविधान नहीं है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि परिवादी ने केवल 53,000/-रू0 का भुगतान विपक्षी सं0-02 को किया है। जिसमें 49,394/-रू0 गाड़ी की एक्स-शोरूम कीमत और बाकी 3,606/-रू0 इंश्योरेंस, रजिस्ट्रेशन, ऐक्सेसरीज में समायोजित हुआ है। परिवादी का परिवादपत्र में शेष कथन गलत है।
प्रतिवाद पत्र में विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि विपक्षी सं0-01 द्वारा निर्मित मोटरसाईकिल की वारंटी अवधि दो वर्ष है। प्रतिवाद पत्र में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि परिवादी की मोटरसाईकिल में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी वह मोटरसाईकिल सर्विस हेतु लेकर आया था तथा अपनी परेशानी बताते हुए विपक्षी सं0-02 से पुरानी मोटरसाईकिल ले गया और दुर्भावनापूर्ण नियत से उसने विपक्षी
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सं0-02 की मोटरसाईकिल वापिस नहीं की तथा अपनी मोटरसाईकिल प्राप्त नहीं की जो कि बिल्कुल सही हालत में है।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि जिला फोरम ने दिनांक 02.06.2011 को आदेश पारित किया है कि परिवादी ने विपक्षी की मोटरसाईकिल वापिस नहीं की है जो निश्चित रूप से आपराधिक न्यास भंग है जिसके लिए विपक्षी पुलिस में रिर्पोट दर्ज कराने हेतु स्वतंत्र है। तब परिवादी ने विपक्षी की मोटरसाईकिल 6 माह अपने पास रखने के बाद वापिस की है। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि विपक्षी सं0-02 अपीलार्थी/परिवादी को दिनांक 31.12.2010 से ही फोन करता रहा है और व्यक्तिगत रूप से सूचना दी है कि वह अपनी मोटरसाईकिल ले जाए परन्तु वह अपनी मोटरसाईकिल नहीं ले गया है और गलत कथन के साथ परिवाद प्रस्तुत किया है। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि विपक्षी सं0-02 दिनांक 12.12.2011 को मोटरसाईकिल लेकर जिला फोरम के समक्ष उपस्थित हुआ था जो बिल्कुल सही हालत में थी और उसमें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। जिसका परिवादी एवं उसके अधिवक्ता द्वारा विरोध किया गया। तब परिवाद दाखिल करने हेतु आदेश पारित किया गया।
लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि उन्होंने सेवा में कोई कमी नहीं की है और न कोई अनुचित व्यापार पद्धति अपनाई है।
उभयपक्षों के अभिकथन और उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत जिला फोरम ने यह निष्कर्ष निकाला है कि परिवादी यह साबित करने में पूर्णत: असफल रहे है कि प्रश्नगत मोटरसाईकिल में कोई निर्माण
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सम्बन्धी दोष है अत: वह प्रश्नगत मोटरसाईकिल के स्थान पर नई मोटरसाईकिल अथवा उसका मूल्य वापिस पाने का अधिकारी नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर ही जिला फोरम ने परिवाद निरस्त किया है।
अपीलार्थी/परिवादी का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है और त्रुटिपूर्ण है अत: उसे अपास्त कर परिवाद स्वीकार किया जाना आवश्यक है।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है अत: अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
यह तथ्य निर्विवाद है कि अपीलार्थी/परिवादी ने दिनांक 3.11.2010 को विपक्षी सं0-02 से मोटरसाइकिल क्रय की है और मोटरसाइकिल दिनांक 30.12.2010 को वह लेकर विपक्षी सं0-02 की वर्कशाप पर गया था और मोटरसाइकिल तब से विपक्षी सं0-02 की वर्कशाप में है। उभयपक्ष के अभिकथन से यह भी स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा विपक्षी सं0-02 की वर्कशाप पर अपनी मोटरसाईकिल देने पर उसे प्रत्यर्थी/विपक्षी ने अपनी पुरानी मोटरसाईकिल काम चलाने हेतु दी है।
निर्विवाद रूप से प्रश्नगत मोटरसाईकिल अभी भी प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-02 की वर्कशाप पर है। प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के अनुसार मोटरसाईकिल पूर्णत: ठीक और दुरूस्त है। अपीलार्थी/परिवादी उसे बिना किसी उचित आधार के नहीं ले रहा है। जबकि अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार मोटरसाईकिल में मैनुफैक्चरिंग(निर्माण संबंधी) त्रुटि है। अत: अपील के निर्णय हेतु मुख्य
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विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या अपीलार्थी/परिवादी ने जो प्रत्यर्थी/विपक्षीगण से मोटरसाईकिल ली है उसमें निर्माण सम्बन्धी त्रुटि है और क्या उसका निवारण प्रत्यर्थी/विपक्षीगण द्वारा नहीं किया गया है। इस बिन्दु के निर्णय हेतु मोटरसाईकिल का सक्षम व्यक्ति से तकनीकी परीक्षण कराया जाना आवश्यक है। अत: उभयपक्ष के अभिकथन को देखते हुए उचित प्रतीत होता है कि जिला फोरम अपीलार्थी/परिवादी की प्रश्नगत मोटरसाईकिल का तकनीकी परीक्षण धारा- 13(4)(IV) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत सक्षम व्यक्ति से कराए और विधि के अनुसार परिवाद में पुन: आदेश पारित करे। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त कर पत्रावली जिला फोरम को पुन: निर्णय हेतु प्रत्यावर्तित किया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त कर पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित की जाती है कि वह धारा- 13(4)(IV) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत वाहन की तकनीकी परीक्षण आख्या सक्षम व्यक्ति से अपीलार्थी/परिवादी के खर्चे पर प्राप्त करे और तद्नुसार विधि के अनुसार पुन: निर्णय और आदेश पारित करे।
उभयपक्ष जिला फोरम के समक्ष दिनांक 26.09.2017 को उपस्थित हो।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
सुधांशु श्रीवास्तव, आशु0
कोर्ट नं0-1